भोजपुर की ठगी : अध्याय 31 : पिंजड़े में चिड़िया
“तुम मेरी तरफ घूर-घूरकर क्यों ताकते हो?” कहकर गूजरी ने दूसरी ओर मुँह फेर लिया। फौजदार ने बिना कुछ सहमे कहा-“मैं एक बात सोचता था। लतीफन के इजहार में उसको बचाने वाली जिस काली, बिखरे बाल वाली हँसमुख औरत का जिक्र है और सामने जो मूर्ती देख रहा हूँ उससे […]
भोजपुर की ठगी : अध्याय 30 : ससुर और दामाद
मुंशीजी-“जब पहरेदार ने आपको मना किया तब आप बाहर क्यों निकले? ख्वाहमख्वाह यह बेइज्जती सहने की क्या जरूरत थी?” बलदेवलाल – “अरे बबुआ, जब कैद हो गया तब बेइज्जती में बाकी क्या रहा? अब मेरा मर जाना ही बेहतर है।” मुंशी – “आप चतुर आदमी होकर इतना क्यों घबराते हैं? […]
भोजपुर की ठगी : अध्याय 26 : फौजदार से भेंट
कोई दोपहर को मुंशीजी और उनके ससुर आरा में फौजदार के मकान के पास पहुँचे। सदर दरवाजे पर एक बरकन्दाज बंदूक में संगीन लगाये पैंतरा चला रहा था। और एक कहार बर्तन मलता था। मुंशीजी ने पूछा-“फौजदार साहब कहाँ हैं?” बरकन्दाज – “दो मंजिले पर हैं। आप ऊपर चले जाइये|” […]
भोजपुर की ठगी : अध्याय 32 : तहकीकात
एक बड़े भारी बरगद की छाया में फौजदारी इजलास बैठा है। धनुषाकार पड़ी हुई पाँच कुर्सियों पर कोतवाल साहब, फौजदार साहब, हीरासिंह, हरप्रकाशलाल और बलदेवलाल बैठे हैं, कुछ दूर अलग एक तख्त पर लम्बी दाढ़ीवाला फतेहउल्ला बैठा है। एक तरफ जमादार, चौकीदार आदि दारोगा और दलीपसिंह, जगन्नाथ सिंह और कई […]
भोजपुर की ठगी : अध्याय 28 : हीरा सिंह का पुत्र शोक
सबेरा हुआ किन्तु आकाश में बादल छाये ही रहे। हीरासिंह के मकान में औरतें रो रही हैं! हीरासिंह के एक ही बेटा था। वह बलवान, रूपवान, बुद्धिमान, सुशील और शांत स्वभाव का था। हठात् वह बीमार पड़ गया। बीमारी बढती गई। रात के तीसरे पहर में वह मर गया। नवमी […]
भोजपुर की ठगी : अध्याय 27 : बाग़ में
हरप्रकाश गिरफ्तार करके मुरार लाये गये हैं। हीरासिंह की आलीशान इमारत के सामने मैदान में फौजदार साहब के खेमे के चारों ओर दो बरकन्दाज बन्दूक पर संगीन चढ़ाये पहरा दे रहे हैं। अफवाह उड़ रही है कि कल हरप्रकाशलाल फाँसी पर चढ़ाये जायेंगे। उन्होंने हीरासिंह के नौकर को मार डाला […]
भोजपुर की ठगी : अध्याय 29 : भेद की बात
तड़के उठकर प्रातः क्रिया करने के बाद बूढ़े कोतवाल साहब फौजदार के डेरे पर आये। वहाँ एक चपरासी से पूछा- “फौजदार साहब कहाँ हैं?” चपरासी ने उत्तर दिया-“वे अभी सोकर नहीं उठे हैं।” कोतवाल-“रात को कै बजे आये थे?” चपरासी- “कोई तीन बजे।” इतने में फौजदार साहब वहाँ आ गये […]
अंतरिक्ष के पार भी –डॉ. हरिकृष्ण देवसरे
डॉ. लोबो ने आज खासतौर पर छुट्टी ली थी क्योंकि उनका चौदह वर्षीय बेटा पीटरोविच अंतर्ग्रहीय यात्राओं का कोर्स पूरा करके वापस चंद्रलोक पर आ रहा था. पीटरोविच ने ‘अंतर्ग्रहीय समझौते’ के अंतर्गत पृथ्वी के अलावा बृहस्पति और मंगल गृह पर भी प्रशिक्षण प्राप्त किया था. “कैसी रही तुम्हारी ट्रेनिंग?” […]
आपकी कहानी/पुस्तक का पहला अध्याय कैसा हो?
एक रीडर के तौर पर आपने किसी भी पुस्तक को स्टार्ट करने के बाद महसूस किया होगा कि किसी पुस्तक का पहला चैप्टर ही रीडर के मन मे उस पुस्तक को खत्म करने का बीज बो देता है। एक लेखक के तौर पर भी अमूमन यही सलाह वरिष्ठ लेखकों से […]
अंतरिक्ष में भस्मासुर – जयंत नार्लीकर
सवेरे का नाश्ता समाप्त करके दिलीप ने घड़ी की ओर देखा- सात बजकर अड़तालीस मिनट हो चुके थे. यानी सुबह की डाक आने में बारह मिनट बचे थे. आज डाक की प्रतीक्षा दिलीप कुछ अधिक उत्सुकता के साथ कर रहा था, क्योंकि उसमें ‘पराग’ का वह अंक आने […]
डॉक्टर का अपहरण – डॉ. हरिकृष्ण देवसरे
कुछ महीनों पहले आपने डॉक्टर भटनागर के अचानक लापता हो जाने का समाचार पढ़ा होगा. लेकिन उसके बाद फिर उनके बारे में कुछ भी पता न चला. हुआ यह था कि एक रात को लगभग दो बजे उनके घर की कालबेल बज उठी. आदत के अनुसार डॉक्टर भटनागर उठ गए. […]
सिक्स सिक्स सिक्स… #1
वह एक ऐसा कमरा था जिसमें मात्र एक दरवाजा और वेंटिलेशन के नाम पर कुछ भी उठा कमरे के स्ट्रक्चर में मौजूद नहीं था। उस दरवाजे से भीतर अगर कोई झांकता तो पाता कि कमरे में सामान के नाम पर एक मेटल की टेबल जो दोनों तरफ से फोल्ड होकर […]
द ब्लाइंड गेम #३
पवन महाजन के चेहरे पर अब मिश्रित भाव आ रहे थे, वह समझ नहीं पा रहा था कि वह खुशी से नाचे या अपना सिर पकड़ बैठकर रोना शुरू करे। जिस मेहनत से उसने अपने घर से यहां तक कि दूरी तय की थी उस रू में वह भौचक्का था […]
द ब्लाइंड गेम #2
जब तक उसने अपने ताबूत में 2 कीलें न ठोक ली तब तक उसकी बारी नहीं आयी। एकॉर्ड को कम से कम 4 पुलिसियों ने घेर लिया। चूंकि वह बिल्कुल बायीं लेन में था इसलिए उसने अपने दाएं तरफ देखा तो पाया कि पुलिस वाले बिल्कुल भुस में सुई खोजने […]
द ब्लाइंड गेम #1
नीले रंग की एकॉर्ड डी एन डी से उतर कर अब ग्रेटर नोएडा की ओर बढ़ रही थी। स्पीड सामान्य थी, जैसे कि ड्राइवर को रात के उस घड़ी कहीं भी जाने की जल्दी नहीं थी, जबकि यह सामान्य से अलग बात होती है। अपनी औसतन रफ्तार को, रोड स्पीड […]
#द_एक्सीडेंटल_कॉन्सपिरेटर #1
“10 रुपये में भर पेट भोजन” दरोगा नाम के उस 26 वर्षीय व्यक्ति ने मोती विहार स्थित एक एन. जी. ओ. द्वारा चलाये जा रहे गरीबों के लिए कम दामों पर भोजन के प्रबंध जैसे सामाजिक कार्य को चिन्हित करता बोर्ड देखा। उसने, अपनी मैली-कुचेली जीन्स के पिछले जेब में […]
द ब्लाइन्ड गेम #४
अगली सुबह अखबार के राजधानी की खबरों वाली पेज को राजधानी में हुए खबरों ने कवर किया हुआ था। पहली खबर अमितेश गुप्ता नामक एक एंटरप्रेन्योर की थी जिसकी लाश जनकपुरी डिस्ट्रिक्ट सेंटर के करीबी रोड पर लावारिश पाई गई थी। वहीं दूसरी खबर एक एक्सीडेंट की थी जो डी […]
साथी हाथ बढ़ाना
डोरबेल की सुमधुर संगीत-लहरी भी उमा के चित्त को अशांत होने से रोक न सकी।अभी-अभी तो वह पूजा करने बैठी थी। फिर यह व्यवधान..? ! नौकर उसके सामने शादी का एक कार्ड धर गया। गहरे पीले रंग पर लाल बनारसी काम के बॉर्डर से सजे उस कार्ड को उमा ने […]