हिन्दी का श्रेष्ठ और कालजयी साहित्य
किम जोंग द्वारा अमेरिका से सुलह कर लेने के बाद भारत टीवी चैनल के कर्ता-धर्ता बहुत परेशान थे कि अब कौन सा देश उनसे युध्दनीति की सूचनाएं साझा करेगा और वो अपनी दुनिया को बचाने की योजनाओं पर काम कैसे करेंगे लेकिन भला हो हिंदी फिल्म की तारिकाओं का ,जिन्होंने टीवी चैंनलों में फिर से […]
आषाढ़ का महीना था। वर्षों बाद गाँव में आषाढ़ के महीने का आनन्द लेने का मौका मिला था। बादलों का उमड़ना-घुमड़ना, सूखी धरती पर बिछी हरियाली, कभी तेज फुहार, ठंडी हवाओं के झोंके, हवा के झोंको के साथ बगुलों का पंक्तिबद्ध उड़ना, खेती-बारी के कार्यों में आई तेजी से किसानों की व्यस्तता, हलवाहों का बैलों […]
मिर्ज़ापुर 2 के स्क्रीनप्ले में ऐसी दसियों बाते हैं जो आपत्तिजनक हैं, ससुर बहु का हौलनाक रिश्ता, बिना मतलब की गालियां, लचर फिलर्स, धीमा होता कथानक या बेहद बचकाना क्लाइमेक्स; ऐसे कई पॉइंट्स हैं जिसको टेक्निकल समझ न रखने वाले भी ये ज़रूर कह सकते हैं कि ‘नहीं यार, मज़ा नहीं आया’ इन सबसे इतर, […]
बन्धुमान्यगण, आज लेखक दिवस है। ये जानकर मुझे आश्चर्य का जोरदार झटका लगा। भला लेखक का भी कोई दिवस हो सकता है? लेखक तो वर्ष में 365 दिवस अपने दिमाग को घिस-घिसकर उसका दही करता रहता है। फिर भला कोई एक ही दिवस लेखक का किस प्रकार हो सकता है? और इस दिवस को मनाने […]
हिन्दी साहित्य के किस्सा साढे चार यार में जो चार अदद थे , ज्ञानरंजन, काशीनाथ सिंह, रवीन्द्र कालिया और दूधनाथ सिंह में हमें दूधनाथ सबसे कमजोर रचनकार लगते थे। ज्ञानरंजन में देवदत्त प्रतिभा थी, काशीनाथ उत्कृष्टता की कीमत पर भी पठनीय बने रहे, रवीन्द्र कालिया हँसमुख गद्य के ब्रांड एम्बेसडर थे, लेकिन दूधनाथ हमें कभी […]
“बने है शाह का चमचा,फिरे है इतराता वरना आगरे में ग़ालिब की हस्ती क्या है “ मशहूर शायर मिर्जा गालिब ने जब ये फरमाया था तब बादशाह की उनपे नूरे नजर थी ,लेकिन वक्त ने ऐसी करवट बदली कि मिर्जा गालिब फकीर हो गए ।उन्होंने अंग्रेज़ राजा को अर्जी लगाई कि शाही खजाने से उनको […]