“तुम मेरी तरफ घूर-घूरकर क्यों ताकते हो?” कहकर गूजरी ने दूसरी ओर मुँह फेर लिया। फौजदार ने बिना कुछ सहमे कहा-“मैं एक बात सोचता था। लतीफन के इजहार में उसको बचाने वाली जिस काली, बिखरे बाल वाली हँसमुख औरत का जिक्र है और सामने जो मूर्ती देख रहा हूँ उससे मुझे विशवास होता है कि तुम्हीं ने लतीफन की जान बचाई है। अब तुमसे एक बात पूछता हूँ। लतीफन के इजहार में यह भी लिखा है, जब हीरासिंह उसको तंग कर रहा था उस समय एक नाटा-सा जवान वहाँ आया। उसे देखकर हीरा ने कहा-‘क्यों रे दुखिया! क्या खबर है।’ उसने कहा-‘रेशम के गोदाम की चाबी चाहिये, रायजी ने कहा है।’ दुखिया कौन है? और रायजी कौन हैं?” गूजरी ने कहा – “दुखिया हीरासिंह का खवास है और राय जी उसका पाला हुआ पंछी है।” फौजदार ने चपरासी को पुकारकर कहा -“मेरा नाम लेकर हीरासिंह के खवास दुखिया को जरा […]
मुंशीजी-“जब पहरेदार ने आपको मना किया तब आप बाहर क्यों निकले? ख्वाहमख्वाह यह बेइज्जती सहने की क्या जरूरत थी?” बलदेवलाल – “अरे बबुआ, जब कैद हो गया तब बेइज्जती में बाकी क्या रहा? अब मेरा मर जाना ही बेहतर है।” मुंशी – “आप चतुर आदमी होकर इतना क्यों घबराते हैं? देखिये तो फौजदार साहब किस रास्ते चलते हैं?” बलदेव-“अभी तक उसका रास्ता नहीं देखा? मैं उसका दामाद हूँ, वह मेरी मदद क्या करेगा? इस मौके पर अपनी थैली भरेगा। उसके पास मेरा जाना ही ठीक नहीं हुआ। जाति-भाई से जो बुराई के सिवा भलाई की आशा करता है वह बेवकूफ है।” मुंशी- आप क्या कहते हैं? अगर भाई भाई से, सजाती सजाती से, स्वदेशी स्वदेशी से सहानुभूति नहीं रखेगा तो और किससे रखेगा? जान पड़ता है, इसी से हिन्दुस्तान रसातल को जायगा, सोने का हिन्दुस्तान मटियामेट हो जायगा, हिन्दुस्तान का नाम मिट जायगा। परन्तु जैसी आप सोचते, समाज की वैसी […]
कोई दोपहर को मुंशीजी और उनके ससुर आरा में फौजदार के मकान के पास पहुँचे। सदर दरवाजे पर एक बरकन्दाज बंदूक में संगीन लगाये पैंतरा चला रहा था। और एक कहार बर्तन मलता था। मुंशीजी ने पूछा-“फौजदार साहब कहाँ हैं?” बरकन्दाज – “दो मंजिले पर हैं। आप ऊपर चले जाइये|” ससुर-दामाद सीढ़ियों पर चढ़कर बालाखाना पर पहुँचे। वहाँ दो सिपाही पहरा देते थे। एक ने पूछा- “कहाँ जाओगे?” मुंशी -“फौजदार के यहाँ।” बरकन्दाज ने ऊँगली से फौजदारी इजलास दिखला दिया। लम्बे-चौड़े कमरे में एक तरफ मुहर्रिर और कारपरदाज मन लगाये लिखा-पढ़ी कर रहे थे और दूसरी तरफ प्यादे चपरासी बैठे थे। बीच में सुन्दर मसनद पर तकिये के सहारे लेटे हुए फौजदार साहब अलबेले पर तमाखू पी रहे थे। यह उनके आराम का समय था। दोपहर से अढ़ाई पहर तक वे कुछ काम नहीं करते थे। दामाद के साथ बलदेव लाल को कमरे में आते देखकर फौजदार साहब ने खड़े […]
एक बड़े भारी बरगद की छाया में फौजदारी इजलास बैठा है। धनुषाकार पड़ी हुई पाँच कुर्सियों पर कोतवाल साहब, फौजदार साहब, हीरासिंह, हरप्रकाशलाल और बलदेवलाल बैठे हैं, कुछ दूर अलग एक तख्त पर लम्बी दाढ़ीवाला फतेहउल्ला बैठा है। एक तरफ जमादार, चौकीदार आदि दारोगा और दलीपसिंह, जगन्नाथ सिंह और कई चपरासी खड़े हैं। कोतवाल ने कहा-“सब लोग आ गये, अब कारवाई शुरू करनी चाहिये।” फतेहउल्ला ने पाँच मल्लाहों को सामने लाकर हरप्रकाशलाल की तरफ ऊँगली दिखाते हुए पूछा- “इन मुंशीजी को तुम लोग उस दिन नाव में ले गये थे?” एक मल्लाह ने कहा-“हाँ, धर्मावतार।” दरोगा-“इनके साथ और कौन था?” मल्लाह- “यह जगन्नाथ और दलीपसिंह थे।” दरोगा- “और कोई नहीं था।” मल्लाह – “हाँ एक औरत थी।” दरोगा- “वह मुंशी की कौन थी?” मल्लाह- “सरकार! यह हम नहीं जानते।” दारोगा – “अच्छा मुंशीजी कहाँ जाते थे?” मल्लाह – “आरे जाने को कहा था।” दारोगा – “लेकिन वहाँ जाना नहीं हुआ?” […]
सबेरा हुआ किन्तु आकाश में बादल छाये ही रहे। हीरासिंह के मकान में औरतें रो रही हैं! हीरासिंह के एक ही बेटा था। वह बलवान, रूपवान, बुद्धिमान, सुशील और शांत स्वभाव का था। हठात् वह बीमार पड़ गया। बीमारी बढती गई। रात के तीसरे पहर में वह मर गया। नवमी की रात को जबरदस्त जमींदार हीरासिंह निपूत हो गया। सबेरा होने पर उसका अग्नि-संस्कार करके लौट आये। जनाने में कुहराम मचा हुआ था। सिर्फ एक दीपक जलता था वह भी बुझ गया, महल में अँधेरा छा गया। पुत्र-वियोग में हीरासिंह व्यथित तो था ही। उसकी स्त्री छाती पीट-पीट कर रो रही थी। हीरा सिंह ने समझाते हुए कहा-“तुम रो-रोकर मुझे पागल बना दोगी? वह तो गया ही, अब मुझे भी मार डालोगी? मैं तुम्हे रोने नहीं दूँगा। तुम क्यों रोती हो? जिसको धन है, सामर्थ्य है उसको बेटे का शोक कैसा? जो लोग दीन दुखिया हैं वे ही बेटे के […]
हरप्रकाश गिरफ्तार करके मुरार लाये गये हैं। हीरासिंह की आलीशान इमारत के सामने मैदान में फौजदार साहब के खेमे के चारों ओर दो बरकन्दाज बन्दूक पर संगीन चढ़ाये पहरा दे रहे हैं। अफवाह उड़ रही है कि कल हरप्रकाशलाल फाँसी पर चढ़ाये जायेंगे। उन्होंने हीरासिंह के नौकर को मार डाला है, हीरासिंह की नाव लूट ली है। तब तक दो आदमी बाग में आये। उनमें से एक आरे के फौजदार साहब हैं और दूसरे कोतवाल साहब। आधीरात हो गयी है। नवमी का चन्द्रमा पश्चिम आकाश में लुढ़क पड़ा है, परन्तु अभी तक उसकी चाँदनी से दुनिया चमक रही है; पेड़ों पर चाँदनी ही चमक रही है। फौजदार और कोतवाल टहलते हुए कुछ दूर निकल गये। इतने में सफ़ेद कपड़ा पहने घूँघट काढ़े एक स्त्री बड़ी तेजी से उन लोगों के पास से निकल गई। वे लोग चकराये। वह स्त्री कुछ दूर जाकर झाड़ी के पास खड़ी हो गयी और दायाँ […]
तड़के उठकर प्रातः क्रिया करने के बाद बूढ़े कोतवाल साहब फौजदार के डेरे पर आये। वहाँ एक चपरासी से पूछा- “फौजदार साहब कहाँ हैं?” चपरासी ने उत्तर दिया-“वे अभी सोकर नहीं उठे हैं।” कोतवाल-“रात को कै बजे आये थे?” चपरासी- “कोई तीन बजे।” इतने में फौजदार साहब वहाँ आ गये और कोतवाल के साथ चौकी पर बैठ गये। और उनसे कहा-“आप तो खूब सबेरे उठे हैं?” कोतवाल- “आपके लिये बड़ी फ़िक्र हो रही थी! मैं तो जाते-जाते रास्ता ही भूल गया। लाचार लौट आया। कहिये उस चुड़ैल से कैसे पीछा छूटा?” फौजदार ने मुस्कराकर कहा-“वह तो न चुड़ैल थी न पगली बल्कि एक अजीब औरत थी। उसने मुझे जो कुछ दिखाया और जो कुछ सुनाया वह कभी देखा और सुना नहीं था।” कोतवाल- “वह आपको कहाँ ले गयी थी?” फौजदार – “नरक में! आदमी जो बात सोच नहीं सकता वहाँ वही बात देखी।” कोतवाल- “ऐं! ऐसी बात देखी?” फौजदार-“हाँ दिल्लगी […]
डॉ. लोबो ने आज खासतौर पर छुट्टी ली थी क्योंकि उनका चौदह वर्षीय बेटा पीटरोविच अंतर्ग्रहीय यात्राओं का कोर्स पूरा करके वापस चंद्रलोक पर आ रहा था. पीटरोविच ने ‘अंतर्ग्रहीय समझौते’ के अंतर्गत पृथ्वी के अलावा बृहस्पति और मंगल गृह पर भी प्रशिक्षण प्राप्त किया था. “कैसी रही तुम्हारी ट्रेनिंग?” डॉ. लोबो ने पीटरोविच से मिलते ही पहला सवाल यही किया था. “अच्छी रही…बहुत अच्छी.” पीटरोविच ने कहा था “लेकिन डैड! आज आप काम पर नहीं गए ?” “आज तुमसे जो मिलना था ! वैसे कल ही तो लौटा हूँ — मंगल ग्रह से, और कल ही शनिग्रह जाना होगा. शायद तुम्हे मालूम नहीं कि मंगल ग्रह और शनि ग्रह में फिर तनाव बढ़ गया है!” “आपके साथ मैं भी चलूँगा …” “तुम तो अभी बच्चे हो….” डॉ. लोबो ने कहा. यह सुनते ही पीटरोविच ने जोर का ठहाका लगाया , “ क्या डैडी ! आपने भी बीसवीं शताब्दी वाली […]
एक रीडर के तौर पर आपने किसी भी पुस्तक को स्टार्ट करने के बाद महसूस किया होगा कि किसी पुस्तक का पहला चैप्टर ही रीडर के मन मे उस पुस्तक को खत्म करने का बीज बो देता है। एक लेखक के तौर पर भी अमूमन यही सलाह वरिष्ठ लेखकों से मिलती है कि वे पहले अध्याय को इस तरह प्रेजेंट करें कि रीडर उसे पढ़ते ही उस पुस्तक को पूरा खत्म करने का मन में ठान ले। वहीं, पहले अध्याय का, इतना शानदार होना इसलिए भी जरूरी हो जाता है ताकि जब आपकी कहानी का ड्राफ्ट एडिटर के पास पहुंचे तो उसे पहले चैप्टर पढ़ने से आपकी कहानी पर विश्वास हो जाये। जहां इस देश में, एडिटर हर नए लेखक के ड्राफ्ट को, उसकी कहानी को, अपनी कुर्सी के पीछे रखे गुप्त डस्टबिन में रख देता हो, वहां यह बहुत महत्वपूर्ण है कि पहला चैप्टर ही आपकी कहानी के लिए […]
सवेरे का नाश्ता समाप्त करके दिलीप ने घड़ी की ओर देखा- सात बजकर अड़तालीस मिनट हो चुके थे. यानी सुबह की डाक आने में बारह मिनट बचे थे. आज डाक की प्रतीक्षा दिलीप कुछ अधिक उत्सुकता के साथ कर रहा था, क्योंकि उसमें ‘पराग’ का वह अंक आने वाला था, जिसमें उसका सनसनीखेज लेख छपा था. लेख का शीर्षक था ‘अंतरिक्ष निवास के संभावित खतरे’. इस लेख के प्रकाशन के बारे में दिलीप के, पराग के संपादक के साथ, बहुत वाद-विवाद हो चुके थे. दिलीप के लेख का पहला मसविदा इतना भड़काने वाला था कि संपादक महोदय उसे उस रूप में छापने को तैयार नहीं थे और दिलीप लेख की काट-छांट करने में राजी नहीं था. आखिर दोनों ओर से कुछ रियायतें दी गयीं और लेख का अंतिम स्वरूप निश्चित हो सका. ऐसी सनसनीखेज बातें क्या थीं, जिन्हें प्रकाशित करने के बारे में ‘पराग’ के सम्पादक सतर्कता का […]
कुछ महीनों पहले आपने डॉक्टर भटनागर के अचानक लापता हो जाने का समाचार पढ़ा होगा. लेकिन उसके बाद फिर उनके बारे में कुछ भी पता न चला. हुआ यह था कि एक रात को लगभग दो बजे उनके घर की कालबेल बज उठी. आदत के अनुसार डॉक्टर भटनागर उठ गए. उनकी पत्नी जागकर भी बिस्तर पर ही पड़ी रहीं, क्योंकि वह जानती थीं कि ऐसा तो रोज ही होता है. जब भी कोई मरीज सीरियस होता तब अस्पताल का चौकीदार उन्हें उठाने आ जाता. अगर किसी को उन्हें घर बुलाकर ले जाना होता, तो वह भी आकर उन्हें जगा देता. डॉक्टर भटनागर मरीजों की सेवा करना अपना परम कर्तव्य समझते थे, इसलिए वह इसका बुरा नहीं मानते, बल्कि सहर्ष चले जाते. कोई उन्हें फीस दे या न दे—इसकी उन्हें कभी चिंता न थी. उस रात भी वह उठे और गाउन पहने ही दवाइयों का बैग उठाकर […]
वह एक ऐसा कमरा था जिसमें मात्र एक दरवाजा और वेंटिलेशन के नाम पर कुछ भी उठा कमरे के स्ट्रक्चर में मौजूद नहीं था। उस दरवाजे से भीतर अगर कोई झांकता तो पाता कि कमरे में सामान के नाम पर एक मेटल की टेबल जो दोनों तरफ से फोल्ड होकर एक तरफ रखी जा सकती थी, वहीं उस मेटल के मेज के दोनों तरफ दो मेटल के ही फोल्डिंग कुर्सियां मौजूद थी जिसमें से एक पर एक ऐसा व्यक्ति बैठा था जिसे देखते ही अजनबी इंसान को भी मोहब्बत हो जाए। लोग बॉलीवुड में, चॉकलेट बॉय के लिए शाहिद कपूर, इमरान हाशमी आदि का नाम लेते हैं लेकिन अगर इस व्यक्ति ने,जिसके चेहरे को देखने की भारत का बच्चा-बच्चा कोशिश कर रहा था ताकि जान सके कि भारत के इतिहास में यह कौन सा अपराधी है जिसके द्वारा किये गए अपराध की सजा अगर उसे आज दी जाती तो कम […]
पवन महाजन के चेहरे पर अब मिश्रित भाव आ रहे थे, वह समझ नहीं पा रहा था कि वह खुशी से नाचे या अपना सिर पकड़ बैठकर रोना शुरू करे। जिस मेहनत से उसने अपने घर से यहां तक कि दूरी तय की थी उस रू में वह भौचक्का था कि जिस चीज को सेफ रखने के लिए उसने ए. सी. की हवा देने वाले छेद में अपने गाड़ी की डिक्की की चाबी को छुपा दिया था, उस पर पानी फिर गया था। इधर उस पुलिसिये कि हालात खराब होती जा रही थी कि डिक्की में से कुछ निकला तो नहीं फिर अब वह पवन महाजन को क्या जवाब दे पायेगा। विपिन नामक कॉन्स्टेबल ने अपने अफसर के चेहरे का रंग उड़ते हुए देखा। उसने डिक्की का ढक्कन लगाया लेकिन वह प्रोपरली लगा नहीं। चीजों का कायदे से इस्तेमाल किया जाए तो वह जिंदगी भर काम करती रहती हैं लेकिन […]
जब तक उसने अपने ताबूत में 2 कीलें न ठोक ली तब तक उसकी बारी नहीं आयी। एकॉर्ड को कम से कम 4 पुलिसियों ने घेर लिया। चूंकि वह बिल्कुल बायीं लेन में था इसलिए उसने अपने दाएं तरफ देखा तो पाया कि पुलिस वाले बिल्कुल भुस में सुई खोजने की तरह गाड़ीयों की तलाशी ली रहे थे। उसके गले में में बनी प्राकृतिक घंटी बजी, सिर्फ बजी ही नहीं बल्कि ऊपर तक आ गयी। उसने अपना हाथ फिर से सिगरेट की डिब्बी की ओर बढ़ाया तो पुलिसवालों ने उसे बाहर आने को कहा। उसने डैशबोर्ड से गाड़ी के कागज वाली फ़ाइल निकाली और बाहर निकल गया। दायीं तरफ से बाहर निकलकर वह बायीं तरफ आ गया। उसने अपने कागजात एक पुलिसिये को देखने के लिए दिया। वह बहुत ही असहज हो, अपनी गाड़ी को देखते हुए बार-बार पहलू बदल रहा था। पुलिसवाला एक-एक करके फ़ाइल में मौजूद डाक्यूमेंट्स को […]
नीले रंग की एकॉर्ड डी एन डी से उतर कर अब ग्रेटर नोएडा की ओर बढ़ रही थी। स्पीड सामान्य थी, जैसे कि ड्राइवर को रात के उस घड़ी कहीं भी जाने की जल्दी नहीं थी, जबकि यह सामान्य से अलग बात होती है। अपनी औसतन रफ्तार को, रोड स्पीड लिमिट के अंदर समेटे हुए गाड़ी अचानक धीमी होनी शुरू हुई। ड्राइविंग सीट पर बैठे व्यक्ति ने पाया कि आगे कई गाड़ियों के बैक लाइट्स जलती हुई नजर आ रही थी। उसने लेन बदल कर अपनी गाड़ी को निकाल ले जाने कि कोशिश करनी चाही लेकिन वह सफल नहीं हो पाया क्योंकि उसे दूर से ही पुलिस की बैरिकेडिंग नज़र आ गयी। उसने ध्यान दिया तो पाया कि बैरिकेडिंग ट्रैफिक पुलिस की नहीं बल्कि सामान्य पुलिस की थी। उसने एक बार पीछे की तरफ देखकर सोचा कि बैक करके सेक्टर 18 की किसी गली से निकल जाए तो इस चेक […]
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