सॉरी (लघुकथा)
कमरे में मद्धम आवाज़ में संगीत बज रहा था। उसे ग़ज़ल सुनना पसंद था। शफल मोड पर वो जगजीत सिंह, गुलाम अली, अनूप जलोटा, आबीदा परवीन इत्यादि को सुना करता था। उसे इसमें सुकून मिलता था। इस भागती दौड़ती ज़िन्दगी में जहाँ गानों को भी खत्म होने की जल्दी रहती थी उसे ऐसा संगीत पसंद था जो ठहरा हुआ हो। आँखों को बंद करके जिसके लफ्जों पर ध्यान देने की जरूरत पड़े और जिसे जिया जा सके। और ग़ज़लों में ये सब खूबी मौजूद थी। ग़ज़ल से भी उसका तारुफ़ उसी ने करवाया था।
पर आज एक वही गज़लें उसके मन को शांत करने में कामयाब नहीं हो पा रही थी। रह रहकर उसकी निगाहें फोन पर जा रही थी। कभी वो फोन को देखता। उसकी स्क्रीन को स्याह पाकर उसका लॉक खोलता और व्हाट्सएप्प ओन करके मेसेज भेजने की बात सोचता लेकिन फिर उसके हाथ रुक से जाते। वो फोन को किनारे रख देता और फिर आँखें मूँद कर बिस्तर पर लेटकर मद्धम संगीत में खोने की कोशिश करता। कभी बजते साजों पर ध्यान केन्द्रित करता, कभी मुरकियों पर और कभी अल्फाजों पर ध्यान लगाने की कोशिश करता लेकिन फिर भी मन में उठती उलझन इन सबके बीच से न जाने कहाँ आ जाती और उसका ध्यान भटक जाता।
सुबह से ही उसका ये हाल था। आज उसकी ज़िन्दगी का फैसला जो होने वाला था। उसके विषय में घर में बात जो होने वाली थी।
वो उठा और कमरे में इधर से उधर चलने लगा। उसके माथे में बल थे और हाथ पसीने से गीले से होने लगे थे। बैचैनी में अक्सर ऐसा उसके साथ हो जाता था। उसकी हथेलियों से पसीना सा आने लगता था। उसने अपने हाथों को बिस्तर में मौजूद हैण्ड टॉवल से साफ किया।
ऐसे घूमने से फायदा न था। उसने सोचा और किचेन की तरफ बढ़ गया। थोड़ा चाय ही बना ली जाए। वक्त तो कटेगा। हो सकता था कि गजल जो चीज न कर पा रही थी वो चाय ही कर दे। कोशिश करने में क्या था?
उसने किसी तरह चाय बनाई और प्याला लेकर अपने कमरे में आया ही था कि फोन में मेसेज टोन आया। उसका मन तो था कि भागते हुए फोन को देखे लेकिन उसने मन को जब्त किया। एक गहरी साँस ली और कप से चाय का एक घूँट भरा। फिर धीरे धीरे फोन की तरफ बढ़ने लगा। उसके मन में डर, रोमांच, दुःख और ख़ुशी के भाव आते जा रहे थे। एक बार तो उसका मन किया कि फोन न देखे। और देखे बिना ही कमरे से बाहर चला जाए। कहीं घूमे और शाम को थक कर जब वापस आये तो ही फोन को हाथ लगाये। लेकिन फिर ऐसा कुछ करना क्या सही होता? उसे याद आया कि एग्जाम से पहले भी ऐसे ही बैचैनी उसे होती थी। लेकिन उस वक्त वो जानता था कि इस बैचैनी का इलाज ये ही है कि वो जल्द से जल्द हॉल में जाये और क्वेश्चन पेपर लेकर इम्तिहान दे दे। आज भी शायद उसे वही करना था। बस फर्क ये था कि इस इम्तिहान में उसका काफी कुछ दाँव पर लगा था।
उसे ध्यान आया कि वो अभी भी टेबल के पास खड़ा है। और फोन पर संदेश आये पाँच मिनट से ऊपर गुजर चुके हैं। उसने एक गहरी साँस ली, चाय का कप टेबल पर रखा और आगे बढ़ कर बिस्तर के करीब पहुँचा।
उसने फोन उठाया और मेसेज पढ़ा।
फिर उसने फोन वापस बिस्तर पर रखा और धम से बिस्तर पर बैठ गया। एक रुलाई सी उसके अंदर फूटने को हो रही थी। वो बिस्तर पर पीठ के बल गिर गया।
संगीत अभी भी बज रहा था। उसने उसकी आवाज़ बढ़ा दी। हुसैन ब्रदर्स कह रहे थे :
कभी यूँ भी आ मेरी आँख में, कभी यूँ भी आ मेरी आँख में
के मेरी नज़र को खबर न हो,
मुझे एक रात नवाज़ दे,मगर उसके बाद सहर न हो….
“तुम्हे पता है ये गज़ल किसने लिखी है”, उससे पूछा गया था
“नहीं”, उसने बोला था
“बशीर जी ने… हिंदुस्तान के काफी बड़े गजलकार हैं..ये उनकी गजल है”
“अब हमारी है” उसने कहा था और दोनों मुस्कराये थे…
एक एक लाइन के बाद उसकी आँखों के कोनों से एक आँसू की बूँद लुढक सी जाती……
उसने फोन को उठाया और दोबारा मेसेज पढ़ा –
सॉरी यार रोहन,
मैं घर वालों से बात नहीं कर पाया। उन्होंने मेरे लिए लड़की देख रखी थी। मैं उससे शादी कर रहा हूँ। जो हमारे बीच था फॉरगेट इट। तू भी शादी कर ले।
सॉरी अगेन
उधर हुसैन ब्रदर्स गा रहे थे :
वो बड़ा रहीम-ओ-करीम है, वो बड़ा रहीम-ओ-करीम है
मुझे ये सिफ़त भी अता करे
तुझे भूलने की दुआ करूँ, तुझे भूलने की दुआ करूँ,
तो मेरी दुआ में असर न हो……
उसने आँखें बंद की। फिर आसमान की तरफ देखा जैसे पूछ रहा हो किस उसे दूसरे लोगों जैसे क्यों नहीं बनाया। उसे ऐसा क्यों न बनाया जो आसानी से सॉरी कह सके। एक बार को उसके मन में आया कि आज के दिन को अपना आखिरी दिन बना दे। लेकिन फिर उसने अपनी आँखों को बन कर दिया और गाने को रिवाइंड कर दिया। ये उसका पसंदीदा गाना था।
‘सॉरी, सॉरी’, वो बुदबुदाया और उसके होंठों ने काँपते काँपते मुस्कराने की कोशिश की। जब इसमें नाकामयाब हुआ तो उसने ये कोशिश भी छोड़ दी। तिरस्कार, अस्वीकृति, नफरत वो सब कुछ झेल चुका था। उसे शांति चाहिए थी। वो गाने के बोलों में खोना चाहता था। संगीत बज रहा था। कमरे के बाहर दुनिया अपनी गति से चल रही थी। कमरे के अंदर पंखा चल रहा था और चल रही थी उसकी मद्धम साँसे।
Tarang
October 27, 2022 @ 3:21 pm
Very nice, well written story. I liked the unexpected twist in the end, makes the story different.
Vikas Nainwal
October 27, 2022 @ 6:59 pm
Thank you…
Shilpa Sharma
October 29, 2022 @ 5:16 pm
अर्थपूर्ण लघु कथा के लिए बधाई!