आवाज कार या टैक्सी की है। अभी यहाँ से दूर है, लेकिन इसके पहुँचने का पता पहले से चल गया है, क्योंकि पहाड़ियों की गूँज ने इस आवाज को फुटबाल की छोटी-छोटी उछालों में आगे फेंका है। कार या टैक्सी होटल की तरफ ही आई है, क्योंकि सड़क इस होटल पर आ कर खत्म हो […]
अभी खप्पर में एक-चौथाई से भी अधिक गेहूं शेष था। खप्पर में हाथ डालकर उसने व्यर्थ ही उलटा-पलटा और चक्की के पाटों के वृत्त में फैले हुए आटे को झाडक़र एक ढेर बना दिया। बाहर आते-आते उसने फिर एक बार और खप्पर में झांककर देखा, जैसे यह जानने के लिए कि इतनी देर में कितनी […]
छोटे मन की कच्ची धूप कहानी में उमा के संघर्षपूर्ण एवं साहसी जीवन की घटनाओं को उभारने का प्रयास कहानी लेखिका ने किया है। उमा का पति एक दिन हवाई जहाज की दुर्घटना में मर जाता है। तब उमा अपने बच्चों को लेकर किस प्रकार जीवन निर्वाह करती है, यही इस कहानी का मुख्य विषय […]
संयोग की बात थी, मैं जिस दिन अपने वकील मित्र शिवराम के घर पहुँचा, उसी दिन मेरे मित्र के पुत्र की वर्षगाँठ धूमधाम से मनाई जा रही थी। भोज में निमंत्रित व्यक्तियों में वेंकटेश्वर राव को देखकर मेरी बाँछे खिल गईं। उसी समय देखता क्या हूँ, एकदम उछलकर वह मुझसे गले मिले। कुशल-प्रश्नों की बौछार […]
कभी अंबाला आना तो माल रोड आइयेगा । यहाँ खड़ा है एक बहुत पुराना, हवेलीनुमा, अभिशप्त सा मकान। राह पर जाते वक्त की झोली से जैसे गिरा हो और पड़ा रह गया हो सड़क किनारे। इस मकान में एक किराएदार होता था, जो यहाँ इस शान और ठसक से रहता था साहब कि क्या कोई […]
‘एल्प्स’ के सामने कारीडोर में अंग्रेजी-अमरीकी पत्रिकाओं की दुकान है। सीढ़ियों के नीचे जो बित्ते-भर की जगह खाली रहती है, वहीं पर आमने-सामने दो बेंचें बिछी हैं। इन बेंचों पर सेकंड हैंड किताबें, पॉकेट-बुक, उपन्यास और क्रिसमस कार्ड पड़े हैं। दिसंबर… पुराने साल के चंद आखिरी दिन। नीला आकाश… कँपकँपाती, करारी हवा। कत्थई रंग का […]
कोहरे की वजह से खिड़कियों के शीशे धुँधले पड़ गये थे। गाड़ी चालीस की रफ्तार से सुनसान अँधेरे को चीरती चली जा रही थी। खिड़की से सिर सटाकर भी बाहर कुछ दिखाई नहीं देता था। फिर भी मैं देखने की कोशिश कर रहा था। कभी किसी पेड़ की हल्की-गहरी रेखा ही गुज़रती नज़र आ जाती […]
आँगन में वह बास की कुर्सी पर पाँव उठाए बैठा था। अगर कुर्ता-पाजामा न पहले होता तो सामने से आदिम नजर आता। चूँकि शाम हो गयी थी और धुँधलका उतर आया था, उसकी नजर बार-बार आसमान पर जा रही थी। शायद उसे असुविधा हो रही थी। उसने पाँव कुर्सी से नीचे उतार लिये और एक […]
और एक दिन वह सब काम-धन्धे छोड़ कर घर से निकल पड़ी। कोई निश्चित प्रोग्राम नहीं था, कोई सम्बन्धी बीमार नहीं था, किसी का लड़का पास नहीं हुआ था, किसी परिचित का देहान्त नहीं हुआ था, किसी की लड़की की सगाई नहीं हुई थी, कहीं कोई सन्त-महात्मा नहीं आया था, कोई त्योहार नहीं था — […]