
मास्टरनी
उस रोज सुबह से पानी बरस रहा था। साँझ तक वह पहाड़ी बस्ती एक अपार और पीले धुँधलके में डूब-सी गयी थी। छिपे हुए सुनसान रास्ते, बदनुमा खेत, छोटे-छोटे एकरस मकान – सब उस पीली धुन्ध के साथ मिलकर जैसे एकाकार हो गए थे। औरतें घरों के दरवाजे बन्द किए […]