उस रोज सुबह से पानी बरस रहा था। साँझ तक वह पहाड़ी बस्ती एक अपार और पीले धुँधलके में डूब-सी गयी थी। छिपे हुए सुनसान रास्ते, बदनुमा खेत, छोटे-छोटे एकरस मकान – सब उस पीली धुन्ध के साथ मिलकर जैसे एकाकार हो गए थे। औरतें घरों के दरवाजे बन्द किए सूत सुलझा रही थीं। आदमी […]
“बीबी जी, आप आवेंगी कि हम चाय बना दें!” किलसिया ने ऊपर की मंज़िल की रसोई से पुकारा। “नहीं, तू पानी तैयार कर- तीनों सेट मेज़ पर लगा दे, मैं आ रही हूँ। बाज़ आए तेरी बनाई चाय से। सुबह तीन-तीन बार पानी डाला तो भी इनकी काली और ज़हर की तरह कड़वी. . .। […]
1 लाला हंसराज से मेरी पहले-पहल जान-पहचान सन् 1924 ई० में हुई थी। उन दिनों विश्वविद्यालय की परीक्षा में पास होकर मैं अभी बाहर निकला ही था। रुपये-पैसे की कुछ कमी तो थी नहीं। पिताजी जो रुपया बैंक में जमा कर गए थे, उसके सूद से हिंदू होटल में शिष्ट शिक्षित मनुष्य की तरह रहकर […]
ऐन आधी रात के वक्त कादिर मियाँ को मालूम हुआ कि खुदावन्द करीम ख्वाब में कह रहे हैं—अमाँ कादिर, तुम दुनिया के भोले-भाले बाशिन्दों को मेरा यह इलहाम सुना दो कि कल जुमेरात के दिन शाम की नमाज के बाद मैं आऊँगा, और उसी वक्त तमाम लोगों से मिल कर कयामत का दिन मुकर्रर करूँगा।” […]
रस-बूँद अमीरी और गरीबी के भेद के कारण टूटते पारिवारिक संबंधों की कहानी है। अमीरी प्राय: मनुष्य को अमानवीय एवं स्वार्थी बना देती है। इस बात को लेखक ने रामचरन के प्रति उसके चाचा और भाई लल्ला के हृदयहीन और निष्ठुर व्यवहार के माध्यम से व्यक्त किया है। एक ओर लल्ला खेल में रामचरन के […]
(1) बूढ़ा मनोहरसिंह विनीत भाव से बोला — “सरकार, अभी तो मेरे पास रुपए हैं नहीं, होते, तो दे देता। ऋण का पाप तो देने ही से कटेगा। फिर, आपके रुपए को कोई जोखिम नहीं। मेरा नीम का पेड़ गिरवी धरा हुआ है। वह पेड़ कुछ न होगा, तो पचीस-तीस रुपए का होगा। इतना पुराना […]
कुछ लोग दार्शनिक होते हैं, कुछ लोग दार्शनिक दिखते हैं। यह जरूरी नहीं कि जो दार्शनिक हो वह दार्शनिक न दिखे, या जो दार्शनिक दिखे वह दार्शनिक न हो, लेकिन आमतौर से होता यही है कि जो दार्शनिक होता है, वह दार्शनिक दिखता नहीं है, और जो दार्शनिक दिखता है वह दार्शनिक होता नहीं है। […]
सिमरौली गाँव के लिए उस दिन दुनिया की सबसे बड़ी खबर यह थी कि संझा बेला जंडैल साब आएँगे। सिमरौली में जंडैल साहब की ससुराल है। वहाँ के हर जोड़ीदार ब्राह्मण किसान को सुखराम मिसिर के सिर चढ़ती चौगुनी माया देख-देखकर अपनी छाती में साँप लोटता नजर आता था। बेटी के बाप तो कई धनी-धोरी […]
शाम को गोधूलि की बेला, कुली के सिर पर सामान रखवाये जब बाबू राधाकृष्ण अपने घर आये, तब उनके भारी-भारी पैरों की चाल, और चेहरे के भाव से ही कुंती ने जान लिया कि काम वहाँ भी नहीं बना। कुली के सिर पर से बिस्तर उतरवाकर बाबू राधाकृष्ण ने उसे कुछ पैसे दिए। कुली सलाम […]