डॉ. लोबो ने आज खासतौर पर छुट्टी ली थी क्योंकि उनका चौदह वर्षीय बेटा पीटरोविच अंतर्ग्रहीय यात्राओं का कोर्स पूरा करके वापस चंद्रलोक पर आ रहा था. पीटरोविच ने ‘अंतर्ग्रहीय समझौते’ के अंतर्गत पृथ्वी के अलावा बृहस्पति और मंगल गृह पर भी प्रशिक्षण प्राप्त किया था. “कैसी रही तुम्हारी ट्रेनिंग?” डॉ. लोबो ने पीटरोविच से […]
सवेरे का नाश्ता समाप्त करके दिलीप ने घड़ी की ओर देखा- सात बजकर अड़तालीस मिनट हो चुके थे. यानी सुबह की डाक आने में बारह मिनट बचे थे. आज डाक की प्रतीक्षा दिलीप कुछ अधिक उत्सुकता के साथ कर रहा था, क्योंकि उसमें ‘पराग’ का वह अंक आने वाला था, जिसमें उसका सनसनीखेज […]
कुछ महीनों पहले आपने डॉक्टर भटनागर के अचानक लापता हो जाने का समाचार पढ़ा होगा. लेकिन उसके बाद फिर उनके बारे में कुछ भी पता न चला. हुआ यह था कि एक रात को लगभग दो बजे उनके घर की कालबेल बज उठी. आदत के अनुसार डॉक्टर भटनागर उठ गए. उनकी पत्नी जागकर भी बिस्तर […]
डोरबेल की सुमधुर संगीत-लहरी भी उमा के चित्त को अशांत होने से रोक न सकी।अभी-अभी तो वह पूजा करने बैठी थी। फिर यह व्यवधान..? ! नौकर उसके सामने शादी का एक कार्ड धर गया। गहरे पीले रंग पर लाल बनारसी काम के बॉर्डर से सजे उस कार्ड को उमा ने उत्सुकता से देखा। एड्रेस वाली […]
ट्रेन के सेकंड एसी के उस कूपे में वह बोरियत भरी खामोशी नहीं थी जो आमतौर पर ऐसे कूपों में पाई जाती है। मानसी अपनी बर्थ पर चुपचाप बैठी, निरंतर सहयात्रियों का अवलोकन कर रही थी। हास्य की एक क्षीण रेखा उसके होंठों पर खेल रही थी। कारण ? उसके सामने की बर्थ पर एक […]
सिंह नर्सिंग होम में बड़ा-सा ताला लटक रहा था। लोकप्रिय डॉ. सिंह के अकस्मात् इस तरह अलोप हो जाने पर, उनके कई मरीजों की अवस्था और बिगड़ गई थी। अब क्या होगा ? अपने हाथों का चमत्कार दिया, उन्हें मृत्युंजयी औषधि पिलानेवाला मसीहा ऐसे अदृश्य क्यों हो गया ? यह ठीक […]
“मम्मी ई ई ई “, सोनू चिल्लाया। मम्मी उस वक्त रोटी बना रही थी। उन्होंने सोनू को देखा तो वो अपने दोनों घुटनों को आपस में टिकाये, आपने हाथों को पेट पर जोड़े अपनी मम्मी को देख रहा था। “मम्मी सुसु आ रही है। बाहर चलो न!”, उसने एक पाँव से दूसरे पाँव पर वजन […]
कमरे में मद्धम आवाज़ में संगीत बज रहा था। उसे ग़ज़ल सुनना पसंद था। शफल मोड पर वो जगजीत सिंह, गुलाम अली, अनूप जलोटा, आबीदा परवीन इत्यादि को सुना करता था। उसे इसमें सुकून मिलता था। इस भागती दौड़ती ज़िन्दगी में जहाँ गानों को भी खत्म होने की जल्दी रहती थी उसे ऐसा संगीत पसंद […]
जीवन ने घड़ी देखी,दो बजकर बीस मिनट हो रहे थे। पौने तीन तक डायरेक्ट लखनऊ वाली बस छूट जानी थी । उसके बाद कई बसें बदलकर ही वो लखनऊ पहुँच सकता था। वक्त के बारे में सोच कर झुंझला उठा ।उसने ऑटो वाले को घुड़का – “मेरी बस छुड़वा दोगे क्या ,जल्दी कर ना यार” […]