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अंतरिक्ष के पार भी –डॉ. हरिकृष्ण देवसरे

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डॉ. लोबो ने आज खासतौर पर छुट्टी ली थी क्योंकि उनका चौदह वर्षीय बेटा पीटरोविच अंतर्ग्रहीय यात्राओं का कोर्स पूरा करके वापस चंद्रलोक पर आ रहा था. पीटरोविच ने ‘अंतर्ग्रहीय समझौते’ के अंतर्गत पृथ्वी के अलावा बृहस्पति और मंगल गृह पर भी प्रशिक्षण प्राप्त किया था.

“कैसी रही तुम्हारी ट्रेनिंग?” डॉ. लोबो ने पीटरोविच से मिलते ही पहला सवाल यही किया था.

“अच्छी रही…बहुत अच्छी.” पीटरोविच ने कहा था “लेकिन डैड! आज आप काम पर नहीं गए ?”

“आज तुमसे जो मिलना था ! वैसे कल ही तो लौटा हूँ — मंगल ग्रह से, और कल ही शनिग्रह जाना होगा. शायद तुम्हे मालूम नहीं कि मंगल ग्रह और शनि ग्रह में फिर तनाव बढ़ गया है!”

 “आपके साथ मैं भी चलूँगा …”

“तुम तो अभी बच्चे हो….” डॉ. लोबो ने कहा.

यह सुनते ही पीटरोविच ने जोर का ठहाका लगाया , “ क्या डैडी ! आपने भी बीसवीं शताब्दी वाली घिसीपिटी बात कह दी! मैं चौदह साल का ज़रूर हूँ ,लेकिन….”

तभी डॉ. लोबो के पॉकेट में रखे कंप्यूटर में कुछ संदेश आने लगे. पृथ्वी से कोई ज़रूरी संदेश आ रहा था.

सन् 2025 से डॉ. लोबो चाँद पर ही रह रहे हैं. यहीं पीटरोविच का जन्म हुआ था. उसकी मां रूसी है. दरअसल पृथ्वी के देशों के बीच आपसी संघर्ष समाप्त करने में अंतर्ग्रहीय यात्राओं की बड़ी महत्वपूर्ण भूमिका रही है. सबसे पहले हमारे संबंध मंगल ग्रह से हुए, फिर शनि, बृहस्पति और शुक्र से.

       बीसवीं सदी में तो लोग यही मान बैठे थे कि इन ग्रहों में जीवन नहीं है, किंतु इन ग्रहों से संबंध बनाने के बाद ही जब वहां के वैज्ञानिकों ने यह चेतावनी दी कि दूसरे सौरमंडल के ग्रह हम पर आक्रमण की तैयारी कर रहे हैं और उन्होंने विभिन्न ग्रहों में अपने जासूस यान भेजकर पिछले अनेक वर्षों में काफी जानकारी एकत्र कर ली है, तो यह ज़रुरत समझी गयी कि इस सौरमंडल के सभी गृह आपस में संगठित हो जायें. इसी आधार पर अंतर्ग्रहीय संगठन बना, जिसके महासचिव बनाए गए डॉ. लोबो.

    फिर एक नयी समस्या ने जन्म लिया. इस सौरमंडल में सबसे शक्तिशाली ग्रह बनने की होड़ लग गयी. डॉ. लोबो इसी समस्या को हल करने का प्रयत्न कर रहे हैं और चाहते हैं कि शांति बनी रहे.

“डैड ! क्या यह संभव नहीं है कि मंगल या शनि ग्रह ने, किसी दूसरे सौरमंडल के ग्रह से दोस्ती कर ली हो!” पीटरोविच ने कहा.

यह सुनते ही डॉ. लोबो चौंक पड़े, फिर बोले, “तुम शायद ठीक कह रहे हो, लेकिन यह बात मैंने क्यों नहीं सोची?”

“क्योंकि आप सिर्फ वैज्ञानिक हैं और मैं एक वैज्ञानिक-जासूस भी हूँ. आज हमारे पूरे सौरमंडल में सर्वशक्तिमान बनने की होड़ ने अंतरिक्ष-जासूसी को बेहद बढ़ावा दे रखा है. अपने प्रशिक्षण के दौरान मैंने भी इस काम में काफी दिलचस्पी ली है. मैं यह भी जानता हूँ कि आप चाँद के एक रहस्यमय हिस्से में ऐसे प्रक्षेपास्त्र बना रहे हैं जो इस सौरमंडल के किसी भी ग्रह को नष्ट कर सकते हैं.” पीटरोविच ने कहा. डॉ. लोबो घबराकर खड़े हो गए, “यह बात तुम्हे कैसे मालूम हुई?”

“छोडिये डैड!” पीटरोविच ने कहा, “जासूसों के लिए कई बार अपने मात-पिता भी कुछ नहीं होते. वैसे तो मुझे ताज्जुब नहीं होगा अगर मंगल या शनि ग्रह वालों को भी आपके इस प्रोजेक्ट की खबर हो.”

    अगले दिन डॉ. लोबो जब गहरे नीले रंग के चमड़े जैसे पदार्थ से बने विशेष अंतरिक्ष-सूट में शनि ग्रह की धरती पर उतरे तो वहां के प्रमुख वैज्ञानिकों ने उनका स्वागत किया. फिर डॉ. लोबो को सीधे वहां ले गए जहाँ अन्य अधिकारी उनसे बातचीत करने के लिए बैठे हुए थे. वह एक गुप्त स्थान था.

शनिग्रह के आधिकारियों ने बताया कि किस तरह मंगल ग्रह के जासूस-यान उनके अंतरिक्ष में चक्कर लगाते हैं, जो कि अंतरिक्ष-समझौते के विरूद्ध है. उन्होंने आरोप लगाया कि मंगल ग्रह ने किसी अन्य सौरमंडल के शक्तिशाली ग्रह से समझौता किया है और उसकी मदद से वह इस सौरमंडल का सबसे शक्तिशाली ग्रह बनना चाहता है.

  डॉ. लोबो सोच में पड़ गए.  “इसे रोकने का एक ही रास्ता है- आप चंद्रलोक में जिस अंतर्ग्रहीय प्रक्षेपास्त्र को बना रहे हैं, उसे वहां नहीं यहाँ बनाएं और उसकी तकनीक हमें बताएं.”

  “लेकिन यह कैसे हो सकता है!” डॉ. लोबो को लगा कि वे किसी बड़ी मुसीबत में फंसने वाले हैं.

  “यह होगा! अगर नहीं होगा तो आप अपनी मौत को गले लगायेंगे.” प्रमुख वैज्ञानिक ने कहा.

  डॉ. लोबो परेशान हो उठे.

मीटिंग खत्म हो चुकी थी. नीली चमड़ीवाले शनिग्रह के लोग इतने खतरनाक हो सकते हैं, यह बात डॉ. लोबो समझ चुके थे. उन्हें वे लोग एक ऐसी इमारत में ले गए जो एकदम नीली थी. उससे नीले रंग की रौशनी निकल रही थी. उसका आकार एकदम अंडे जैसा था. डॉ. लोबो को इसी में रखा गया. उस पूरी इमारत में वह अकेले थे. उन्होंने देखा, चारों तरफ यंत्र ही यंत्र लगे हुए थे. वहां से बच निकलने का कोई उपाय भी न था.

   वह कुछ देर तक बैठकर सोचते रहे कि क्या करूं? तभी उन्हें लगा कि कहीं से कुछ संदेश आ रहे हैं. फिर ध्यान आया कि ये तो उनके अंतरिक्ष सूट के अंदर से सिग्नल्स आ रहे हैं. उन्होंने ध्यान से सुना—ये संकेत पीटरोविच भेज रहा था. डॉ. लोबो के अंतरिक्ष सूट में पीटरोविच ने इतना सूक्ष्म यंत्र लगा दिया था कि उन्हें स्वयं पता न था. डॉ. लोबो ने तुरंत उस बटननुमा यंत्र से सारी बातें पीटरोविच को बता दीं. पीटरोविच बहुत परेशान हो उठा. वह समझ गया कि उसके डैड अगर उन्हें प्रक्षेपास्त्र बनाने की तकनीक बता भी देंगे तो भी वे उन्हें जिंदा नहीं छोड़ेंगे….

   तभी उस इमारत का द्वार खुला और दो अधिकारी आए, “ये सिग्नल्स कहाँ से आ रहे थे? हम आपकी तलाशी लेंगे.”

उनके हाथों में कई छोटे-छोटे कंप्यूटर जैसे यंत्र थे. उन यंत्रों के जरिये उन्होंने डॉ. लोबो का परीक्षण शुरू किया. उनका अंतरिक्ष सूट खोला गया. उसका भी अच्छी तरह परीक्षण किया गया. डॉ. लोबो उनकी इन हरकतों से बहुत परेशान थे. उन्होंने उन्हें धमकाया भी कि इस तरह मेरी तलाशी लेना मेरा अपमान करना है और मैं इस मामले को अंतर्ग्रहीय अदालत में उठाऊंगा, किंतु शनि-अधिकारियों ने उनकी एक न सुनी. आखिर परीक्षण हुआ और वे उस यंत्र को नहीं पकड़ सके.

अगले दिन वे डॉ. लोबो को फिर से विज्ञान अधिकारियों के पास ले गए. आज डॉ. लोबो ने सोच लिया था कि जब तक इस कैद से बचाव का कोई रास्ता नहीं निकलता, उन्हें चाहिए कि शनि ग्रह वालों की बात मान लें. इसीलिए जब डॉ. लोबो ने प्रक्षेपास्त्र बनाने के लिए अपनी सहमति जताई तो वे लोग बहुत खुश हुए.

    उसी दिन से डॉ लोबो, शनि ग्रह के वैज्ञानिकों की एक टीम के साथ काम पर जुट गए. दिनभर वह प्रयोगशालाओं में काम करते और रात में उसी गोल इमारत में आ जाते.

     अब उनके मन में एक ही परेशानी थी. पीटरोविच संकेत क्यों नहीं भेजता? एक-दो बार उन्होंने अपनी ओर से कोशिश की, लेकिन संपर्क नहीं हुआ.

      एक दिन डॉ. लोबो अपने विचारों में डूबे हुए थे कि अचानक किसी ने दरवाज़ा खोला और अंदर आकर बंद कर दिया.
“कौन? पीटरोविच? तुम यहाँ कैसे?” डॉ. लोबो ने तुरंत ही पहचान लिया था.

उसने शांत रहने का संकेत किया. फिर वह तेजी से मकान के ऊपरी गुंबद की ओर सीढियों के सहारे चढ़ता चला गया. कुछ ही मिनटों बाद पूरी इमारत हिल उठी. लगा जैसे भूकंप आ गया है. डॉ. लोबो किसी अज्ञात खतरे से भयभीत होकर चीख पड़े. फिर इतनी तेजी से वह मकान ऊपर उड़ गया कि डॉ. लोबो बड़ी मुश्किल से अपने को संभाल पाए. फिर उन्होंने ऊपर जाकर देखा तो पीटरोविच पूरी एकाग्रता से यान को अधिकतम गति से चला रहा था.

    डॉ. लोबो सारा मामला समझ गए. वे पीटरोविच के पास ही बैठ गए. यान के सभी यंत्र ठीक से काम कर रहे थे. अचानक एक कंप्यूटर ने संकेत दिया कि आपके यान का पीछा किया जा रहा है. उस यान में ऐसी व्यवस्था थी कि यदि उसके पीछे कोई अन्य यान आएगा तो कंप्यूटर संकेत देगा.

    पीटरोविच एक क्षण के लिए घबराया. शनि ग्रह का वह पीछा करने वाला यान आक्रमण भी कर सकता है. उससे पहले हमें आक्रमण करना होगा. पर कैसे? यह बात न डॉ. लोबो समझ पा रहे थे और न पीटरोविच. कंप्यूटर बार-बार संकेत दे रहा था कि खतरा बढ़ता जा रहा है.

    डॉ. लोबो को अचानक एक विचार आया, “तुम कंप्यूटर से ही पूछो न कि पीछा करने वाले यान को कैसे नष्ट करना है?”

अब डॉ. लोबो कंट्रोल पैनल पर बैठ गए थे और पीटरोविच ने कंप्यूटर से प्रश्न पूछा. उत्तर मिला, “कंट्रोल पैनल के ऊपर लगे दो लाल स्विचों को एक साथ दबाओ—इस यान में लगे प्रक्षेपास्त्र पीछा करने वाले यान को नष्ट कर देंगे.”

     और पीटरोविच ने यही किया. कुछ ही क्षणों बाद कंप्यूटर ने फिर संकेत दिया, “खतरा दूर हो गया है.” आखिर शनि ग्रह के वलय की परतें समाप्त हुई तो उन दोनों ने चैन की साँस ली.

   “अब हम सुरक्षित हैं.” पीटरोविच ने कहा.

“लेकिन तुमने यह सब किया?” डॉ. लोबो ने पूछा.

“डैड! अंतरिक्ष-जासूसी का एक फार्मूला है— दो दुश्मनों में से एक को दोस्त बना लो. बस, मैंने मंगल ग्रह से संपर्क किया. उन्होंने बताया कि आप जिस जगह कैद हैं, वह मकान नहीं बल्कि एक अंतरिक्ष यान है, जिसे खराब समझकर शनि ग्रह वालों ने छोड़ दिया है. दरअसल उसे तो मंगल ग्रह के वैज्ञानिकों ने एक तरह से डेड कर दिया था. उन्होंने ही मुझे बताया कि मैं उसे दुबारा कैसे चार्ज कर सकता हूँ.”

“पर तुम शनि के वलय पार करके यहाँ कैसे पहुंचे?”

“मंगल ग्रह के पास एक ऐसा जासूसी अंतरिक्ष यान है जो अपने सिग्नल्स को डेड करता चलता है. इसलिए जिस ग्रह पर वह उतरता है, लोगों को पता ही नहीं चलता है. बस, उनके उसी जासूसी यान के द्वारा मैं यहाँ उतरा और अब आपको सुरक्षित ले चल रहा हूँ.”

“पीटरोविच! मंगल ग्रह के पास ऐसा जासूस-यान क्या सचमुच है?” डॉ. लोबो ने गंभीर होकर पूछा.

“नहीं डैड, आपसे झूठ नहीं बोलूँगा. उन्होंने दूसरे सौरमंडल के जिस ग्रह से मित्रता की है, वह यान उन्होंने ही मंगल ग्रह को दिया है.”

“तो शनि ग्रह वाले ठीक कहते थे कि मंगल ग्रह….”

“डैड, दोस्ती करना बुरी बात तो नहीं है. शनि ग्रह का इरादा कुछ और ही है और उन्हें सबक सिखाना ही पड़ेगा. आज अंतरिक्ष जासूसी इतनी आगे बढ़ चुकी है कि अब जीत उसी की होगी जो इस सौरमंडल के ग्रहों से भी आगे निकल जाएगा.”

“लेकिन तुम इस यान को कहाँ ले जा रहे हो?”

“मंगल गृह पर. वहां वे लोग आपका इंतज़ार कर रहे हैं. मुझे मंगल ग्रह से एक बड़ा काम मिल रहा है. वैसे दूसरे सौरमंडलों को भी अंतरिक्ष जासूसों की ज़रुरत है.”

“इसका मतलब तुम अंतर्ग्रहीय जासूसी में शामिल हो रहे हो?”

“डैड! इस समय पूरे ब्रह्मांड का यही हाल है. हमें समय के अनुसार चलना चाहिए. मैं बच्चा नहीं हूँ…….चौदह वर्ष का…….”

उसने देखा —डॉ. लोबो गंभीर हो गए हैं. शायद सोच रहे थे कि विज्ञान का विष अंतरिक्ष के पार भी पहुँच गया है.

यान की गति धीमी हो चुकी थी. वह मंगल ग्रह के गुरुत्वाकर्षण में आ चुका था. कुछ ही देर में मंगल का लाल अंतरिक्ष केंद्र दिखाई देने लगा, जहाँ वह यान धीरे-धीरे उतर रहा था.
(बाल पत्रिका ‘पराग’ से साभार)

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रोमांच से भरपूर कहानी। पढ़कर मज़ा आ गया। कहानी में विज्ञान के विष से ज्यादा महत्वाकांक्षा का विष है जो अंतरिक्ष में फैला। शायद यही बौद्धिक जीव होने का अभिशाप भी है।