हरप्रकाश गिरफ्तार करके मुरार लाये गये हैं। हीरासिंह की आलीशान इमारत के सामने मैदान में फौजदार साहब के खेमे के चारों ओर दो बरकन्दाज बन्दूक पर संगीन चढ़ाये पहरा दे रहे हैं। अफवाह उड़ रही है कि कल हरप्रकाशलाल फाँसी पर चढ़ाये जायेंगे। उन्होंने हीरासिंह के नौकर को मार डाला है, हीरासिंह की नाव लूट ली है। तब तक दो आदमी बाग में आये। उनमें से एक आरे के फौजदार साहब हैं और दूसरे कोतवाल साहब।
आधीरात हो गयी है। नवमी का चन्द्रमा पश्चिम आकाश में लुढ़क पड़ा है, परन्तु अभी तक उसकी चाँदनी से दुनिया चमक रही है; पेड़ों पर चाँदनी ही चमक रही है। फौजदार और कोतवाल टहलते हुए कुछ दूर निकल गये। इतने में सफ़ेद कपड़ा पहने घूँघट काढ़े एक स्त्री बड़ी तेजी से उन लोगों के पास से निकल गई। वे लोग चकराये। वह स्त्री कुछ दूर जाकर झाड़ी के पास खड़ी हो गयी और दायाँ हाथ हिलाने लगी।
फौजदार साहब आगे बढे। कोतवाल साहब उनके पीछे-पीछे चले।
फौजदार ने उस स्त्री के पास जाकर पूछा- “तुम कौन हो?”
स्त्री ने कहा – “मैं चाहे जो हूँ तुमसे मतलब?”
फौजदार – “मैं जानना चाहता हूँ कि इतनी रात को तुम इस सुनसान जगह में किसलिये खड़ी हो?”
स्त्री- “तो मेरे साथ चलो।”
फ़ौज- “कहाँ?”
स्त्री – “जहाँ मैं ले चलूँ।”
फ़ौज- “क्या मुश्किल है! तुम अगर हम लोगों को नरक में ले जाना चाहो तो क्या हम वहाँ जायेंगे?”
स्त्री ने जोर से हँसकर कहा-“अगर तुम लोगों के नरक में जाने का समय आ गया हो तो कौन तुम लोगों को बचायेगा? तुम लोग मर्द हो न? मरने से इतना क्यों डरते हो?”
फौजदार ने कुछ शरमाकर कहा- “चलो कहाँ चलोगी?”
स्त्री आगे-आगे चली, फौजदार मंत्र मारे हुए की तरह उसके पीछे-पीछे जाने लगा।
कोतवाल साहब जब खेमे के दरवाजे पर पहुँचे तब तक आकाश में घनघोर घटा छा गई। चारों ओर बिजली चमकने लगी। देखते-ही-देखते बादल गरजने और बरसने लगे। जोरों से हवा चलने लगी मानो प्रलयकाल आ गया।
इसी समय हीरासिंह के जनाने में से किसी की चीख सुनाई दी, फिर तुरन्त ही ठाकुरबाड़ी में शोर-गुल मचा। नाच बन्द हो गया, भीड़ तितर-बितर हो गई। थोड़ी ही देर में शोरगुल बन्द हुआ परन्तु बादलों का शोरगुल उस रात को बन्द नहीं हुआ। कोतवाल साहब बैठक में जाकर सो रहे।