एक रीडर के तौर पर आपने किसी भी पुस्तक को स्टार्ट करने के बाद महसूस किया होगा कि किसी पुस्तक का पहला चैप्टर ही रीडर के मन मे उस पुस्तक को खत्म करने का बीज बो देता है। एक लेखक के तौर पर भी अमूमन यही सलाह वरिष्ठ लेखकों से मिलती है कि वे पहले […]
‘मनुस्मृति’ में कहा गया है कि जहाँ गुरु की निंदा या असत्कथा हो रही हो वहाँ पर भले आदमी को चाहिए कि कान बंद कर ले या कहीं उठकर चला जाए। यह हिंदुओं के या हिंदुस्तानी सभ्यता के कछुआ धरम का आदर्श है। ध्यान रहे कि मनु महाराज ने न सुनने जोग गुरु की कलंक-कथा […]
इण्डिया से बाहर, एशिया के भी बाहर, एक नए देश में जब मैंने अपना आशियाना बनाने का फ़ैसला किया, तब सबसे पहला सवाल जो मेरे मन में आया। कहाँ? उस नए देश में कहाँ? अपने देश में कब हमने इस सवाल का सामना किया था? जहाँ नियति में बदा था वहाँ पैदा हो गए और […]
आषाढ़ का महीना था। वर्षों बाद गाँव में आषाढ़ के महीने का आनन्द लेने का मौका मिला था। बादलों का उमड़ना-घुमड़ना, सूखी धरती पर बिछी हरियाली, कभी तेज फुहार, ठंडी हवाओं के झोंके, हवा के झोंको के साथ बगुलों का पंक्तिबद्ध उड़ना, खेती-बारी के कार्यों में आई तेजी से किसानों की व्यस्तता, हलवाहों का बैलों […]
लौटते समय डॉक्टर साहब माया के जेठ, उनके पड़ोसी निगम और निगम की माँ ‘चाची’ सबसे अपील कर जाते — “आप लोग इन्हें समझाइये… कुछ खिलाइये, पिलाइये और हंसाइये।” निगम साधारणतः स्वस्थ, परिश्रमी और महत्त्वाकांक्षी व्यक्ति है। वह चित्रकार है। पिछले वर्ष दिसम्बर में वह अमरीका में होने वाली एक प्रदर्शनी में भेजने के लिए […]
सालों बाद मुझे एक शादी में सम्मिलित होने का अवसर मिला। अपने गांव, अपने रीति रिवाजों से परिपूर्ण शादियों का अलग ही मजा है। सारे रिश्तेदार-नातेदारों से मिलने का और ढ़ोल थापों पर गीत-गवनई के सगल का अलग ही आनंद है। उसपर ये शादी हमारे रिश्ते के लड़के का था,ये जानते ही मेरा दिल बल्लियों […]
प्रेमचन्द हिंदी साहित्य के एक ऐसे वट वृक्ष हैं जिनकी छाया में साहित्य का हर पल्लव पल्लवित होता है ,उनकी रचनाओं की छाँह में एक सुख है ,एक सुकून है ।उनके पुत्र अमृतराय ने भी एक बार कहा था कि “प्रेमचन्द सिर्फ उनके नहीं,बल्कि सभी के हैं “।अब ये बात और भी समीचीन मालूम पड़ती […]
हिंदी फिल्मों के लंबे और रोचक इतिहास में एक ऐसा समय भी आया जिसमें एक पुराने युग की शाम ढलने को हुई और एक नए युग ने अंगड़ाई ली और सब कुछ इतनी तेज़ी से हुआ कि न तो पात्र संभल पाए और न ही दर्शक और श्रोता। समय था सन् 1969 से 1972. शक्ति […]
लोक नृत्य, लोकगीत आदिवासी जन-जीवन को उल्लसित करने का एक सर्वोत्तम माध्यम है। नृत्य, संगीत आदिवासी जीवन के रग-रग में, पल-पल में रचा बसा है। हर प्रांत के जन-जातीय जीवन में कमोबेश यही स्थिति पाई जाती है। छोटा नागपुर की कुडुख (उरांव) जनजाति भी इससे अछूती नहीं है। यहां के लोकगीतों में, विभिन्न कार्यक्रमों में […]