गीत गाने दो मुझे – सूर्यकांत त्रिपाठी निराला
गीत गाने दो मुझे तो, वेदना को रोकने को। चोट खाकर राह चलते होश के भी होश छूटे, […]

कार्नेलिया का गीत- अरुण यह मधुमय देश हमारा!
कार्नेलिया का गीत (अरुण यह मधुमय देश हमारा) जयशंकर प्रसाद के नाटक चन्द्रगुप्त से लिया गया है। काव्यांश अरुण यह मधुमय देश हमारा! जहाँ पहुँच अनजान क्षितिज को मिलता एक सहारा। सरस तामरस गर्भ विभा पर नाच रही तरुशिखा मनोहर। छिटका जीवन हरियाली पर मंगल कुंकुम सारा! शब्दार्थ अरुण: सुबह […]
देवसेना का गीत
देवसेना का गीत जयशंकर प्रसाद के नाटक स्कंदगुप्त से लिया गया है। काव्यांश आह! वेदना मिली विदाई! मैंने भ्रम-वश जीवन संचित, मधुकरियों की भीख लुटाई। छलछल थे संध्या के श्रमकण, […]


ये कैसी अजब दास्तां हो गयी-देव-सुरैया की नाकाम मुहब्बत
बॉलीवुड में बहुत-सी प्रेम कहानियाँ बनीं। बहुत से किस्से परवान चढ़े। कई जोड़ियाँ बनीं, कई दिल टूटे। इन प्रेम कहानियों का जिक्र जब भी आएगा, देव आनंद और सुरैया की याद जरूर आएगी। देव-सुरैया की लव स्टोरी बॉलीवुड की सबसे चर्चित प्रेम कहानियों में से एक है, और शायद सबसे […]
हिन्दी सिनेमा का पहला गीत-दे दे खुदा के नाम पे-आलम आरा
दे दे खुदा के नाम पे प्यारे ताकत हो गर देने की कुछ चाहे अगर तो माँग ले उससे हिम्मत हो गर लेने की दे दे खुदा के नाम पे प्यारे ताकत हो गर देने की कुछ चाहे अगर तो माँग ले मुझसे हिम्मत हो गर लेने की

काला पत्थर (1979)
1979 में रिलीज हुई यशराज फिल्म्स की “काला पत्थर” सितारों से सजी उस समय की एक बहुचर्चित फिल्म थी जिसने उस समय तो बॉक्स ऑफिस पर औसत व्यवसाय किया था लेकिन बाद में सफलता के कई कीर्तिमान बनाए। बॉलीवुड में त्रासदियों पर बनी कुछ अच्छी फिल्मों में इस फिल्म का […]

दानव-उपन्यास अंश (आदित्य कुमार)
जाड़े की धुंध भरी घुप्प अंधेरी रात से ज्यादा गहरी रात और कोई नहीं होती, आज वैसी ही एक रात थी। ट्रेन रात के ग्यारह बजे की थी। कैलाश अपनी पत्नी और बच्चे को लेकर नौ बजे ही स्टेशन पहुँच गया। काठगोदाम स्टेशन यूँ तो चहल-पहल वाला स्टेशन है, पर […]

पुरातन आश्चर्यों वाला शहर एफ़ेसस
रुपाली ‘संझा’ के यात्रा वृतांत ‘दिल की खिड़की में टँगा तुर्की’ का एक अंश तकरीबन तीन हजार साल प्राचीन रोमन कालीन शहर! नहीं सिर्फ शहर नहीं…सुप्रसिद्ध पुरातन पत्तन (बंदरगाह) शहर! इस तरह की भौगोलिक स्थिति का मतलब तब किसी शहर के लिए हुआ करता था धन्ना सेठ होना। ये वो […]

अजगर करे न चाकरी
शिवनाथ जम्हाई लेते हुए कुर्सी पर ही सोते सोते एकतरफा लटक जा रहे थे। यद्यपि अपना संतुलन बनाए हुए थे। उनके बगल मे आटे के बोरे जैसे कसे देह लिए रमाशंकर चैतन्य थे। वह पतीली में बाज़ार से से लाये मटन को तलने में मगन थे। वो तलते कम थे, […]

साथी हाथ बढ़ाना (संजू प्रजापति ‘मीठी’)
“चलिए, अपना ख्याल रखिएगा और कोई जरूरत हो तो फोन कीजियेगा” कहते हुए नीमा ने कॉल काटा और मुड़ी तो चौंक गई। पतिदेव सामने खड़े थे, बोले “किस से बात कर रही थी इतनी रात को?” नीमा ने कहा “मेरी फ्रेंड है ना विशाखा, जो कोविड पॉजिटिव है और उसके […]

अनजान रिश्ते (धर्मेंद्र त्यागी)
फ्लैट के बाहर से आ रही जोर जोर से बोलने की आवाजें सुनकर अंगद ने दरवाजा खोला। अंगद का पूरा नाम अंगद शुक्ला था। वो अपनी नौकरी की वजह से अभी कुछ दिन पहले ही मथुरा से मुम्बई आया था, जहाँ कि वो एक ऑटोपार्ट्स बनाने वाली कम्पनी में टेक्निकल […]

इमिग्रेशन कथा
इण्डिया से बाहर, एशिया के भी बाहर, एक नए देश में जब मैंने अपना आशियाना बनाने का फ़ैसला किया, तब सबसे पहला सवाल जो मेरे मन में आया। कहाँ? उस नए देश में कहाँ? अपने देश में कब हमने इस सवाल का सामना किया था? जहाँ नियति में बदा था […]
बहुरूपिये की गवाही
ऊँचे-ऊँचे देवदार एवं बलूत के वृक्षों ने सूरज की रोशनी को पूरी तरह से ढक लिया था जिसके कारण दोपहर के समय भी उस जंगल में शाम का अहसास हो रहा था। जहां उस जंगल में आसमान को देखना आसान नहीं था वहीँ जमीन को देख पाना भी मुश्किल था। […]
दर्द दिया जो तूने
दर्द दिया जो तूने कितना अच्छा लगता है, आँखों का खारा पानी भी मीठा लगता है । धब्बों वाला चाँद नहीं, तेरा सुन्दर मुखड़ा, सुबह सुबह का सूरज घर में उतरा लगता है। यह जो नीला अम्बर है, तेरे शर्माने से, कहीं गुलाबी ना हो जाए ऐसा लगता है । […]
कबिरा खड़ा बाजार में
इधर अकादमी पुरस्कारों की घोषणा हुई उधर सिद्धवाणी का उद्घोष शुरू हो गया । वैसे सिद्धवाणी जो खुद को कबीरवाणी भी कहती रही है कि खासियत ये है कि इसकी तुलना आप क्रिकेटर -कम -नेता नवजोत सिंह सिद्धू के स्वागत भाषणों से भी कर सकते हैं जिसका कंटेंट वही रहता […]
ओल्ड इज आलवेज गोल्ड
किम जोंग द्वारा अमेरिका से सुलह कर लेने के बाद भारत टीवी चैनल के कर्ता-धर्ता बहुत परेशान थे कि अब कौन सा देश उनसे युध्दनीति की सूचनाएं साझा करेगा और वो अपनी दुनिया को बचाने की योजनाओं पर काम कैसे करेंगे लेकिन भला हो हिंदी फिल्म की तारिकाओं का ,जिन्होंने […]
बाँस की छतरी
आषाढ़ का महीना था। वर्षों बाद गाँव में आषाढ़ के महीने का आनन्द लेने का मौका मिला था। बादलों का उमड़ना-घुमड़ना, सूखी धरती पर बिछी हरियाली, कभी तेज फुहार, ठंडी हवाओं के झोंके, हवा के झोंको के साथ बगुलों का पंक्तिबद्ध उड़ना, खेती-बारी के कार्यों में आई तेजी से किसानों […]