देवसेना का गीत जयशंकर प्रसाद के नाटक स्कंदगुप्त से लिया गया है।
काव्यांश
आह! वेदना मिली विदाई!
नीरवता अनंत अँगड़ाई।
शब्दार्थ
वेदना – अनुभूति, ज्ञान, पीड़ा ( प्रस्तुत कविता के लिए उपयुक्त अर्थ- पीड़ा, कष्ट)
भ्रम – संदेह, धोखा, गलतफ़हमी (भ्रम वश – गलतफ़हमी के कारण)
जीवन-संचित – जीवन भर इकट्ठा की हुई
मधुकरी – भिक्षा, साधुओं द्वारा पके अन्न की भिक्षा, मधुकर अर्थात् भौंरे की मादा (भौंरी), थोड़ा-थोड़ा करके इकट्ठी की गयी वस्तु, कर्नाटक संगीत की एक रागिनी
श्रम कण – पसीने की बूंदें
नीरवता – शांत, खामोशी, बिना रव (ध्वनि) के
अनंत – जिसका कोई अंत नहीं (प्रस्तुत कविता के संदर्भ में उपयुक्त), समुद्र, ईश्वर
व्याख्या
स्कंदगुप्त का प्रणय निवेदन ठुकराने के बाद देवसेना अपने हृदय की पीड़ा को अभिव्यक्त करती है। वह अपने जीवन के भावी सुखों से विदा लेती है, अर्थात् स्कंदगुप्त के प्रेम में जो भी स्वप्न देवसेना ने देखे थे; स्कंदगुप्त से जुड़ीं जो उम्मीदें, आशाएँ और आकांक्षाएँ अपने हृदय में रखी थीं, आज उन सबसे विदा ले रही है। इस विदाई से हृदय को कष्ट हो रहा है, लेकिन देवसेना स्कंदगुप्त के प्रति अपने प्रेम और उन सपनों को भ्रम वश इकट्ठा किया हुआ कह कर उन्हें वापस लुटा रही है।
देवसेना आज अपने बीते दिनों को याद कर रही है। अपने जीवन के कष्टों को याद कर रही है। जीवन की इस संध्या में उसे अपने कष्टों के साथ बहाई गयी पसीने की बूँदें भी याद आ रही हैं, जो आँसुओं के समान गिरते ही रहे। अर्थात् उसका सारा जीवन कष्टों और आँसुओं में ही बीत गया।
देवसेना की इस पीड़ा भरी जीवन यात्रा में कोई भी उसके साथ नहीं है। सिर्फ खामोशी की अनंत अँगड़ाई उसके साथ है। कोई नहीं जिससे अपनी पीड़ा के उद्गार कह कर अपने मन को हल्का कर सके। कोई नहीं जो उससे सांत्वना के दो बोल कहे। अपने सभी अपनों को पहले ही गँवा चुकी देवसेना आज अपने आखिरी सहारे स्कंदगुप्त के प्रेम से भी विदा ले रही है।
काव्यांश
शब्दार्थ
श्रमित – थका हुआ
स्वप्न – सपना
मधु माया – मन को अच्छा लगने वाला भ्रम
गहन – घना
विपिन – जंगल
तरु – पेड़
पथिक – राहगीर, रास्ते पर चलने वाला
उनींदी श्रुति – अर्ध निद्रा में सुनाई देने वाली आवाज़ें
विहाग – रात के दूसरे पहर में गाया जाने वाला राग
सतृष्ण – प्यासी
दीठ – दृष्टि, आँखें, नज़र
बावली – पगली
सकल – संपूर्ण
व्याख्या
देवसेना कहती है, जैसे घने जंगल से गुजरता कोई राहगीर थक कर किसी पेड़ की छाया में सो जाए और आधी नींद में उसे विहाग की तान सुनाई दे, वैसे ही जीवन संघर्षों से थकी देवसेना के लिए स्कंदगुप्त का प्रणय निवेदन है। उसे पता है, यह उसके जीवन की वास्तविकता नहीं है, स्वप्न है, भ्रम है।
देवसेना याद करती है कि किस प्रकार आश्रम से भिक्षा के लिए जाने पर लोगों की प्यासी नज़रें उसे घूरती थी। उसने किसी तरह खुद को बचा रखा था; स्कंदगुप्त के लिए, अपने प्रेम भरे सपनों के लिए। लेकिन, उसकी पगली आशा ने प्रेम के जो सपने सजाए थे, मिलन के जो ख्वाब देखे थे, आज स्कंदगुप्त को वापस लौटाने के साथ ही वो सारे सपने हमेशा के लिए टूट गए। वो सारी कमाई लुट गयी।
काव्यांश
इससे मन की लाज गँवाई।
शब्दार्थ
प्रलय – विनाश, आपदा, मुसीबत
निज – अपना
दुर्बल – कमज़ोर
पद-बल – पैरों की शक्ति
होड़ – मुकाबला
थाती – उपहार, धरोहर, अमानत
विश्व – संसार, ईश्वर
व्याख्या
देवसेना अपने जीवन के दुखों को याद करते हुए कहती है कि उसके जीवन रूपी रथ पर तो जैसे प्रलय ही सवार है। अर्थात् उसे कभी भी दुखों, कष्टों और मुसीबतों से छुटकारा नहीं मिला। परिजनों की मृत्यु, राष्ट्र की पराजय, प्रेम में विफलता, लोगों की गंदी नज़रें – क्या कुछ नहीं सहा देवसेना ने। देवसेना यह जानते हुए भी कि प्रलय से ठानी इस लड़ाई में उसकी हार निश्चित है, हार मानने को तैयार नहीं है। वह अपने कमजोर पैरों की ताकत के साथ तब तक लड़ते रहना चाहती है, जब तक साँसें चल रही हैं।
राष्ट्र का दुख देवसेना के व्यक्तिगत दुखों से बढ़ कर है। उसकी करुणा देश की दयनीय स्थिति को देख कर चीत्कार कर रही है। इसीलिए वह इस विश्व के धरोहर रूप में मिले प्रेम को और उससे जुड़े सारे सपनों को लौटा देना चाहती है और स्कंदगुप्त को भी राष्ट्र के लिए जीने को प्रेरित करती है। यह प्रेम ही है, जिसके कारण उसने अपने मन की लाज गँवा दी। वह अपने प्रेम को अपने हृदय में छिपा लेना चाहती थी, लेकिन अब वह प्रेम प्रकट हो गया है। इसलिए, अब देवसेना उसे सँभाल नहीं पा रही और उसे उसी परमात्मा को लौटा देना चाहती है, जिसने उसके हृदय में प्रेम उत्पन्न किया था।
Very very nice bhot acha hai mai jb class mai samajta tha to bhi mujhe samaj aa jata tha per hum student itne subject pdte hai to kuch bhul jaate hai per ab nehi bhul sakte per last mai ek baat khna chata hu ki mane apni life sirf ek teacher dakhe hai or vo sh mai teacher kahne layak hai and he is perfect man in this world
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