नीले रंग की एकॉर्ड डी एन डी से उतर कर अब ग्रेटर नोएडा की ओर बढ़ रही थी। स्पीड सामान्य थी, जैसे कि ड्राइवर को रात के उस घड़ी कहीं भी जाने की जल्दी नहीं थी, जबकि यह सामान्य से अलग बात होती है। अपनी औसतन रफ्तार को, रोड स्पीड लिमिट के अंदर समेटे हुए गाड़ी अचानक धीमी होनी शुरू हुई। ड्राइविंग सीट पर बैठे व्यक्ति ने पाया कि आगे कई गाड़ियों के बैक लाइट्स जलती हुई नजर आ रही थी। उसने लेन बदल कर अपनी गाड़ी को निकाल ले जाने कि कोशिश करनी चाही लेकिन वह सफल नहीं हो पाया क्योंकि उसे दूर से ही पुलिस की बैरिकेडिंग नज़र आ गयी।
उसने ध्यान दिया तो पाया कि बैरिकेडिंग ट्रैफिक पुलिस की नहीं बल्कि सामान्य पुलिस की थी। उसने एक बार पीछे की तरफ देखकर सोचा कि बैक करके सेक्टर 18 की किसी गली से निकल जाए तो इस चेक पॉइंट से बच जाएगा। मन ही मन वह पुलिसवालों को कोस रहा था कि अन्य दिन या रात तो ये सोते रहते हैं, आज कैसे एक्टिव हो गए हैं। उसने फिर सामने देखा और अपने दोनों हाथों को स्टेयरिंग पर दे मारा। यह उसकी झुंझलाहट थी या नाराजगी या गुस्सा – इसे समझना पाना शायद आम इंसान के बस की बात नहीं।
उसने अपनी गाड़ी को रिवर्स गियर में डालकर ज्योहीं ही एक इंच अपनी गाड़ी पीछे सड़काई कि पीछे से आ रही एक टैक्सी ने हॉर्न बजाते हुए उसके पीछे गाड़ी ला खड़ी कर दी। वो तो अच्छा हुआ कि पीछे वाली गाड़ी ने गैप मेन्टेन करके रखा वरना एक का अगवाड़ा और एक का पिछवाड़ा ठुक ही जाना था।
उसने एक जोड़ का घूंसा स्टेयरिंग व्हील पर दे मारा जिसकी चोट हॉर्न बटन पर पड़ी और एक तेज़ आवाज ने वहां मौजूद गाड़ियों, गाड़ियों में बैठी सवारियों और पुलिस वालों का ध्यान अपनी ओर खींच लिया।
एक खाकी वर्दी में पुलिसिया उसकी तरफ टॉर्च की रोशनी फेंकते हुए आगे बढ़ा। हालांकि उस फ्लाईओवर के नीचे, जो कि सेक्टर 18 की ओर मुड़ने वाले सड़क पर बना हुआ था, काफी रोशनी थी लेकिन फिर भी पुलिसवाले अपने रूटीन से अलग होना पसंद नहीं करते।
पुलिसवाले ने हाथ से उस कार के ड्राइविंग सीट के तरफ वाले शीशे को नॉक किया और टॉर्च की रोशनी ड्राइवर समेत पूरे कार में फैला दी। ड्राइवर साइड शीशे को नॉक करने का सामान्य अर्थ था कि शीशा खोलिए। उस कार का ड्राइवर समझदार था इसलिए उसने झट शीशा खोल दिया।
“बड़ी जल्दी हो रही है तुझे?” – पुलिसवाले ने टॉर्च का पूरा फोकस ड्राइवर के चेहरे पर किया जिससे उस कार के ड्राइविंग सीट पर बैठे व्यक्ति की आंखे चुंधिया गयी।
पुलिसवाले ने गौर किया तो पाया कि वह उस गाड़ी का ड्राइवर तो कतई नहीं था बल्कि उस गाड़ी का मालिक जरूर लग रहा था। डेनिम कलर की शर्ट पहने, वह ऐसा लग रहा था जैसी कि अभी अभी किसी बिज़नेस मीटिंग से छूट कर आ रहा है।
“जल्दी तो है लेकिन वो हॉर्न गलती से दब गया था।” – उस व्यक्ति ने अपनी आंखों को अपने बाजू से ढकते हुए कहा।
पुलिसवाले ने टॉर्च बंद करते हुए पूछा – “कहाँ जाना है?”
“अलीगढ़।” – उसने हाथ नीचे कर लिया।
“ठीक है, सब्र कर, जल्दी निबटा देंगे तुझको।”
गाड़ी वाले ने उत्सुकतावस पूछा – “चेकिंग किस बात की चल रही है?”
पुलिसवाला जो बस उसके पास से फटक ही रहा था कि रुक कर गाड़ी वाले को घूरने लगा – “अबे तू नशा करता है क्या?” -इतना कहते ही वह ड्राइवर साइड की ओर झुका और लगभग अपना मुंह शीशे से अंदर डालते हुए बोला – “पी रखी है क्या?”
लेकिन उसको किसी भी प्रकार की मुश्क नहीं आयी।
“ऐसा क्या हो गया जो इस छोटे से सवाल से भड़क गए? और मुझसे तू-तड़ाक वाली भाषा नहीं चलेगी।”
“वो भाई, मजे ले रहा है क्या। पूरी दिल्ली हाई अलर्ट पर है। सरोजिनी नगर में फिर से बम मिला है। आतंकवादियों की साजिश लग रही है। दिल्ली से जाने और दिल्ली को आने वाले हर गाड़ी को चेक किया जा रहा है।”
यह सुनते ही ड्राइविंग सीट पर बैठे व्यक्ति के चेहरे में भारी बदलाव आए। ऐसा लगा जैसे कि उसके सिर पर पहाड़ टूट गया हो या उसके पैरों तले जमीन खिसक गई हो। आ रही सर्दी के सर्द भरी रात वाले मौसम में भी उसके चेहरे पर पसीने की बूंदें बहना शुरू हो गयी थी। उसका हाथ बरबस ही गाड़ी के डैशबोर्ड की तरफ बढ़ गया जहां कि सिगरेट का एक डिब्बा और एक लाइटर रखा हुआ था।
पुलिसवाले ने भी उस व्यक्ति के चेहरे पर आए बदलाव को नोट किया। हालांकि पुलिसवाले ने उसे टोका नहीं लेकिन उसके मन में शक का बीज जरूर घुस गया। निक्सन में बैठे व्यक्ति ने पुलिसवाले को फिर पूछा – ” तो दिल्ली पुलिस चेक करती न?”
पुलिसवाला इस मूर्खतापूर्ण सवाल पर उस व्यक्ति के पेंदे को सेंकने का मन बना रहा था कि अचानक ही उसने अपना मूड बदला और बोला – “आतंकवादी हमला किसी धर्म, जाति, शहर या राज्य को टारगेट करके नहीं होता, वह तो पूरे देश पर हुआ हमला है, जिसका जवाब भी पूरा देश मिलकर ही देता है।”
एकॉर्ड कार वाला व्यक्ति अब गहरी सोच में डूबा हुआ था क्योंकि ऐसी चेकिंग का मतलब होता है कि डिक्की भी खुलेगी और डिक्की खुली तो उसका कच्चा चिट्ठा, उसके जीवन का नया अध्याय भी खुल जायेगा। न वह पीछे कदम बढ़ा सकता था और न ही आगे कदम बढ़ाने से खुद को रोक सकता था। अगर वह गाड़ी को लावारिश छोड़कर भाग जाता है तो पुलिस नंबर प्लेट के जरिये उस तक पहुंच जाएगी। और अगर वह चेक पॉइंट से गुजरता है तो डिकी से हुई बरामदगी उसे लंबा नपवा देगी। आखिरकार उसने भागने के बजाय सामना करने की सोची और सिगरेट का पैकट उठा कर एक विल्स क्लासिक रेगुलर लाइटर के जरिये सुलगा लिया।
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©राजीव रोशन
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