हिन्दी का श्रेष्ठ और कालजयी साहित्य
चंद्रकांता संतति भाग 9 बयान 3

कुंअर आनन्दसिंह के जाने के बाद इन्द्रजीतसिंह देर तक उनके आने की राह देखते रहे। जैसे-जैसे देर होती थी, जी बेचैन होता जाता था। यहां तक कि तमाम रात बीत गई, सवेरा हो गया, और पूरब तरफ से सूर्य भगवान दर्शन देकर धीरे-धीरे आसमान पर चढ़ने लगे। जब पहर भर से ज्यादा दिन चढ़ गया, […]
चंद्रकांता संतति भाग 9 बयान 2

ऐयारों को जो कुंअर इन्द्रजीतसिंह और आनन्दसिंह के साथ थे, बाग के चौथे दर्जे के देवमन्दिर में आने-जाने का रास्ता बताकर कमलिनी ने तेजसिंह को रोहतासगढ़ जाने के लिए कहा और बाकी ऐयारों को अलग-अलग काम सुपुर्द करके दूसरी तरफ बिदा किया। इस बाग के चौथे दर्जे की इमारत का हाल हम ऊपर लिख आए […]
चंद्रकांता संतति भाग 9 बयान 1

अब वह मौका आ गया है कि हम अपने पाठकों को तिलिस्म के अन्दर ले चलें और वहां की सैर करावें, क्योंकि कुंअर इन्द्रजीतसिंह और आनन्दसिंह तथा मायारानी तिलिस्मी बाग के चौथे दर्जे में जा विराजे हैं जिसे एक तरह तिलिस्म का दरवाजा कहना चाहिए। पिछले भाग में यह लिखा जा चुका है कि भैरोसिंह […]
पंचायत

1 मन्दाकिनी के तट पर रमणीक भवन में स्कन्द और गणेश अपने-अपने वाहनों पर टहल रहे हैं। नारद भगवान् ने अपनी वीणा को कलह-राग में बजाते-बजाते उस कानन को पवित्र किया, अभिवादन के उपरान्त स्कन्द, गणेश और नारद में वार्ता होने लगी। नारद-(स्कन्द से) आप बुद्धि-स्वामी गणेश के साथ रहते हैं, यह अच्छी बात है, […]
चंद्रकांता संतति भाग 8 बयान 12

आज से कुल आठ-दस दिन पहले मायारानी इतनी परेशान और घबड़ाई हुई थी कि जिसका कुछ हिसाब नहीं। वह जीते जी अपने को मुर्दा समझने लगी थी। राजा गोपालसिंह के छूट जाने के डर, चिन्ता, बेचैनी और घबड़ाहट ने चारों तरफ से उसे घेर लिया था, यहां तक कि राजा वीरेन्द्रसिंह के पक्ष वालों और […]
चंद्रकांता संतति भाग 8 बयान 11

ऊपर के बयान में जो कुछ लिख आये हैं उस बात को कई दिन बीत गये, आज भूतनाथ को हम फिर मायारानी के पास बैठे हुए देखते हैं। रंग-ढंग से जाना जाता है कि भूतनाथ की कार्रवाइयों से मायारानी बहुत ही प्रसन्न है और वह भूतनाथ को कद्र और इज्जत की निगाह से देखती है। […]
चंद्रकांता संतति भाग 8 बयान 10

दूसरे दिन आधी रात जाते-जाते भूतनाथ फिर उसी मकान में नागर के पास पहुंचा। इस समय नागर आराम से सोई न थी बल्कि न मालूम किस धुन और फिक्र में मकान की पिछली तरफ नजरबाग में टहल रही थी। भूतनाथ को देखते ही वह हंसती हुई पास आई और बोली – नागर – कहो, कुछ […]
चंद्रकांता संतति भाग 8 बयान 9

रात पहर भर से ज्यादा जा चुकी है। काशी में मनोरमा के मकान के अन्दर फर्श पर नागर बैठी हुई और उसके पास ही एक खूबसूरत नौजवान आदमी छोटे-छोटे तीन-चार तकियों का सहारा लगाये अधलेटा-सा पड़ा जमीन की तरफ देखता हुआ कुछ सोच रहा है। इन दोनों के सिवाय कमरे में कोई तीसरा नहीं है। […]
रात और जाग
अपूर्वा अनित्या काव्य संसार, समकालीन काव्य 1
रात देर तक जागना और देर रात जाग जाना बड़ा भयंकर अंतर है दोनों परिस्थितियों में, पहली में जहां आप अपनी मर्ज़ी से जाग रहे हैं और वक़्त बिता रहे हैं मनपसंद कामों में किसी फ़िल्म या किताब या किसी की बातों में डूबे सुनहले भविष्य का सपना बुनते ख़ुश – ख़ुश जाग रहे होते […]
मेरे पंख
दीपांशु सहाय काव्य संसार, समकालीन काव्य 1
मेरे पंख रंग-बिरंगे, थोड़े बेजान जरा खुले, जरा बंद जैसे मेरा मन मेरा मन थका सा, थोड़ा टूटा कसक से ठिठकता, परतों में जैसे मेरी हँसी मेरी हँसी जग को खिलखिलाती खुद में मायूस, मगर मुसकाती जैसे मेरे नयन मेरे नयन सब कुछ देख, सब कुछ नकारते इंकार करते, कभी स्वीकारते जैसे […]
रीढ़ की हड्डी- जगदीशचन्द्र माथुर

पात्र परिचय उमा : लड़की रामस्वरूप : लड़की का पिता प्रेमा : लड़की की माँ शंकर : लड़का गोपालप्रसाद : लड़के का बाप रतन : नौकर [ मामूली तरह से सजा हुआ एक कमरा। अंदर के दरवाजे से आते हुए जिन महाशय की पीठ नजर आ रही है […]
तांबे के कीड़े

पात्र: महिला अनाउंसर, रिक्शेवाला, थका अफसर, एक परेशान रमणी, एक मसरूफ पति, कुछ लड़के, पागल आया (यह नाटक ड्राइंगरूम के लिए ही है।) एक दीवार से जरा हटाकर काला स्क्रीन खड़ा किया गया है। जिसके बराबर अनाउंसर (जिसे स्त्री ही होना चाहिए) खड़ी है। अनाउंसर के कपड़े रंग-बिरंगे होते हैं। एक फूलदार ड्रेसिंग गाऊन, रेशमी […]
अंतरिक्ष में भस्मासुर – जयंत नार्लीकर

सवेरे का नाश्ता समाप्त करके दिलीप ने घड़ी की ओर देखा- सात बजकर अड़तालीस मिनट हो चुके थे. यानी सुबह की डाक आने में बारह मिनट बचे थे. आज डाक की प्रतीक्षा दिलीप कुछ अधिक उत्सुकता के साथ कर रहा था, क्योंकि उसमें ‘पराग’ का वह अंक आने वाला था, जिसमें उसका सनसनीखेज […]
अंतरिक्ष के पार भी –डॉ. हरिकृष्ण देवसरे

डॉ. लोबो ने आज खासतौर पर छुट्टी ली थी क्योंकि उनका चौदह वर्षीय बेटा पीटरोविच अंतर्ग्रहीय यात्राओं का कोर्स पूरा करके वापस चंद्रलोक पर आ रहा था. पीटरोविच ने ‘अंतर्ग्रहीय समझौते’ के अंतर्गत पृथ्वी के अलावा बृहस्पति और मंगल गृह पर भी प्रशिक्षण प्राप्त किया था. “कैसी रही तुम्हारी ट्रेनिंग?” डॉ. लोबो ने पीटरोविच से […]
सिंहासन बत्तीसी पहली पुतली – रत्नमंजरी
साहित्य विमर्श कहानियाँ, बाल कथाएँ, बाल जगत 1

राजा भोज ने जब खुदाई में प्राप्त राजा विक्रमादित्य के सिंहासन पर बैठने का प्रयत्न किया तो सिंहासन की पहली पुतली रत्नमंजरी ने उन्हें रोकते हुए कहा- “हे राजन! राजा विक्रम के इस सिंहासन पर वही बैठ सकता है, जो उनकी तरह प्रतापी, दानवीर और न्यायप्रिय हो। मैं आपको राजा विक्रम की कथा सुनाती हूँ। […]
सिंहासन बत्तीसी – भूमिका
साहित्य विमर्श कहानियाँ, बाल कथाएँ, बाल जगत 0

बहुत समय पहले राजा भोज उज्जैन नगर पर राज्य करते थे। राजा भोज एक धार्मिक प्रवृति के न्यायप्रिय राजा थे। समस्त प्रजा उनके राज्य में सुखी एवं सम्पन्न थी। सम्पूर्ण भारतवर्ष में उनकी प्रसिद्धि दूर-दूर तक फैली हुई थी। राजा भोज के शासनकाल में प्रत्येक व्यक्ति संपन्न एवं सुखी था। कृषि भी खूब होती थी। […]
नाम में क्या रखा है – शेक्सपेयर
कल मैं अपने एक मित्र से बात कर रहा था जो अपने नाम को कुछ मॉडिफाई करने या किसी तखल्लुस के लिए मेरे साथ मशवरा कर रहे थे। मुझे हैरानी हुई कि एक अच्छे-ख़ासे नाम को भला क्यों मॉडिफाई किया जा रहा है; जवाब मिला कि ये यूनीक नहीं है। हालाँकि कुछ एक उदहारण देने […]
भोजपुरिया समाज के पुरोधा: भिखारी ठाकुर
विजया एस कुमार विविध साहित्यिक विधाएँ, विमर्श 3
गांव जाने पर जो सबसे पहला चेहरा सामने आता है वो है हमारे “शिवबचन ठाकुर” का पौढ़ अवस्था की ओर अग्रसर शिबच्चन कांपते हाथ भी हमारे हर मांगलिक कार्यक्रम में इस ठसक से शामिल होते हैं कि क्या बताएं अम्मा कहीं लोकाचार भूल भी जाएं तो चट से अम्मा को टोकते हैं “ह नु! रवा […]
चहारदीवारी में कैद जिन्दगी – फिलिस्तीन
विनय प्रकाश तिर्की विमर्श, विविध साहित्यिक विधाएँ, समसामयिक 3
संसार के जितने भी देश हैं उनमें इजराएल सबसे रहस्यमयी देश प्रतीत होता है, न जाने यह देश सदियों से आज तक इतने भीषण युद्धों और विषमताओं का बड़ा गवाह बना हुआ है कि कहना मुश्किल है और यही एक बड़ा कारण है कि इस देश की ओर बरबस आकर्षित होना और उस ओर […]