कुछ महीनों पहले आपने डॉक्टर भटनागर के अचानक लापता हो जाने का समाचार पढ़ा होगा. लेकिन उसके बाद फिर उनके बारे में कुछ भी पता न चला. हुआ यह था कि एक रात को लगभग दो बजे उनके घर की कालबेल बज उठी. आदत के अनुसार डॉक्टर भटनागर उठ गए. उनकी पत्नी जागकर भी बिस्तर पर ही पड़ी रहीं, क्योंकि वह जानती थीं कि ऐसा तो रोज ही होता है. जब भी कोई मरीज सीरियस होता तब अस्पताल का चौकीदार उन्हें उठाने आ जाता. अगर किसी को उन्हें घर बुलाकर ले जाना होता, तो वह भी आकर उन्हें जगा देता. डॉक्टर भटनागर मरीजों की सेवा करना अपना परम कर्तव्य समझते थे, इसलिए वह इसका बुरा नहीं मानते, बल्कि सहर्ष चले जाते. कोई उन्हें फीस दे या न दे—इसकी उन्हें कभी चिंता न थी. उस रात भी वह उठे और गाउन पहने ही दवाइयों का बैग उठाकर […]
डोरबेल की सुमधुर संगीत-लहरी भी उमा के चित्त को अशांत होने से रोक न सकी।अभी-अभी तो वह पूजा करने बैठी थी। फिर यह व्यवधान..? ! नौकर उसके सामने शादी का एक कार्ड धर गया। गहरे पीले रंग पर लाल बनारसी काम के बॉर्डर से सजे उस कार्ड को उमा ने उत्सुकता से देखा। एड्रेस वाली जगह पर कलकत्ता लिखा देख वह चौंक पड़ी। लिफाफा खोल कर देखा तो कागज का एक टुकड़ा, उसमें से गिरकर उसके आंचल में आ फंसा। ” दुलहिन ! आना जरूर। सालों पहले…भीड़ भरे आंगन में, एक झलक की भेंट का ही नाता था तुमसे।पर मुझ अभागन के दुख के आभास से ही कभी छटपटा उठी थी तुम। तुमसे मन-प्राण का नाता कैसे न जोड़ूँ! तुम्हें भेजा गया यह निमंत्रण, दुनियादारी का तकाजा नहीं है उमा। मेरे दुख को देखकर…रोने वाले बहुतेरे थे, सहानुभूति दिखाने वाले थे, रोजमर्रा का कारोबार समझकर पीठ मोड़ने वाले भी थे। […]
अगली सुबह अखबार के राजधानी की खबरों वाली पेज को राजधानी में हुए खबरों ने कवर किया हुआ था। पहली खबर अमितेश गुप्ता नामक एक एंटरप्रेन्योर की थी जिसकी लाश जनकपुरी डिस्ट्रिक्ट सेंटर के करीबी रोड पर लावारिश पाई गई थी। वहीं दूसरी खबर एक एक्सीडेंट की थी जो डी एन डी रोड पर हुआ था। लियाकत और रज्जी, उस वक़्त शिवाजी पार्क, पंजाबी बाग स्थित मैक्स ग्लोबल पैकर्स एवं मूवर्स के वेयरहाउस में मौजूद थे। उन दोनों का वहां मूल काम हेल्पर्स का था जो मूवर्स एवं पैकर्स वाले काम में समान पैकिंग करने और फिर गाड़ी लोड करने का करते थे। दिन में उनके पास यही काम होता था जबकि रात में छोटे-मोटे आपराधिक गतिविधियों में लिप्त होते थे। जिस रात भी वे शिकार पर निकलते थे, मात्र एक एक्ट का टारगेट रखते थे। लियाकत के हाथ में अखबार था, उसने रज्जी को अपने करीब बुलाया। “ओये, रज्जी […]
ट्रेन के सेकंड एसी के उस कूपे में वह बोरियत भरी खामोशी नहीं थी जो आमतौर पर ऐसे कूपों में पाई जाती है। मानसी अपनी बर्थ पर चुपचाप बैठी, निरंतर सहयात्रियों का अवलोकन कर रही थी। हास्य की एक क्षीण रेखा उसके होंठों पर खेल रही थी। कारण ? उसके सामने की बर्थ पर एक वृद्ध दंपति बैठे थे जो बात-बात पर तकरार कर दूसरे यात्रियों को मनोरंजन की पर्याप्त सामग्री मुहैया करा रहे थे। पति की सीट किसी अन्य कूपे में थी और वह शायद इस अनवरत कलह से विश्रांति पाने की मंशा से…अपनी सीट पर जाने को बेकरार दिख रहे थे। मगर उनकी पत्नी भी उन्हें इस सुख का उपभोग करने से वंचित रखने पर तुली हुई थीं। उनके बीच की आखिरी तकरार इसी मुद्दे पर हो चुकी थी और वे दोनों मुंह सुजाए…खिड़की से बाहर देखने का उपक्रम कर रहे थे। मानसी कौतुक से उन्हें निहार रही […]
सिंह नर्सिंग होम में बड़ा-सा ताला लटक रहा था। लोकप्रिय डॉ. सिंह के अकस्मात् इस तरह अलोप हो जाने पर, उनके कई मरीजों की अवस्था और बिगड़ गई थी। अब क्या होगा ? अपने हाथों का चमत्कार दिया, उन्हें मृत्युंजयी औषधि पिलानेवाला मसीहा ऐसे अदृश्य क्यों हो गया ? यह ठीक था कि कई दिनों से डॉ. सिंह ने अपने क्लीनिक में किसी भी नए मरीज को नहीं लिया था, फिर भी निराश मरीजों के असहाय आत्मीयों की एक लम्बी कतार, उनके सेक्रेटरी के चरणों पर सिर रखकर गिड़गिड़ाती रही थी। जैसे भी हो, एक बार डॉ. सिंह उनके मरीजों को देख-भर लें, पर सेक्रेटरी बेचारा क्या करता ? डॉ. साहब अपनी सजी कोठी के सबसे ऊपर के कमरे में स्कॉच लेकर बन्द थे। किसकी मजाल थी कि द्वार खटखटा दे। बीच-बीच में उनका गूँगा नौकर बदलू, काली तेज़ कॉफी की ट्रे वहीं […]
पूर्वी भारत से हमारे राम जय बाबू पधारे । मैंने उनको रोसगुल्ला देकर कहा- “राम राम राम जय बाबू “। जय राम बाबू चिहुंक उठे ,पसीना -पसीना हो उठे और बोले – “शत्रु से मैं खुद निबटना जनता हूँ मित्र से पर , देव!तुम रक्षा करो ” कविवर दिनकर ने ये लाइनें तुम्हारे जैसे मित्र-शत्रु के लिये ही कहीं होंगी। सही बात है जब तुम जैसे शुभचिंतक मित्र हों तो शत्रु की क्या जरूरत। ये खेल नहीं खेलो हमसे , रसगुल्ला खिलाओ या ना खिलाओ , लेकिन मेरे नाम के साथ इतने बार राम मत लगाओ ,नहीं तो मेरे पीठ की चमड़ी उधेड़ दी जाएगी। मेरे साथ खेला होबे मत करो। मैं अब आरजे के नाम से जाना जाता हूँ और राम -राम नहीं बल्कि नोमोस्कार करके ही दुआ -सलाम करता हूँ”। उनका फैंसी नाम सुनकर मुझे सुखद अचरज हुआ और उनके नाम के लेकर डर को लेकर थोड़ी हैरानी […]
राइट टाइम टू किल अभिनेत्री सोनाली सिंह राजपूत ने पाँच सालों बाद दिल्ली में कदम क्या रखा, जैसे हंगामा बरपा हो गया। बंगले में घुसते ही गोली मारकर उसकी हत्या कर दी गई। पुलिस और मीडिया दोनों को शक था कि सोनाली का कत्ल उसके चाचा उदय सिंह राजपूत ने किया है, क्योंकि पांच साल पहले उसने अपनी भतीजी को खुलेआम जान से मारने की धमकी दी थी। लिहाजा कहानी परत-दर-परत उलझती जा रही थी। एक तरफ इंस्पेक्टर गरिमा देशपांडे कातिल की तलाश में जी जान से जुटी हुई थी, तो वहीं दूसरी तरफ भारत न्यूज की इंवेस्टिगेशन टीम पुलिस से पहले हत्यारे का पता लगाने के लिए दृढसंकल्प थी। जबकि कातिल था कि एक के बाद एक लाशें बिछाता जा रहा था।
अंकुर रोहिल्ला बेहद दौलतमंद, लेकिन हद दर्जे का अय्याश था, जिसकी नीयत अपने ही किरायेदार की बेटी पर खराब थीं। फिर एक रात मानो जलजला आ गया। वह मासूम लड़की लापता हो गई। क्या लड़की का बाप, क्या पड़ोसी, सबको जैसे यकीन था कि उसकी गुमशुदगी के पीछे अंकुर के कुत्सित इरादों का हाथ है। पर, क्या इसे साबित करना इतना आसान था? क्या लड़की सचमुच अंकुर की वासना की भेंट चढ़ गई या फिर किसी अकल्पनीय साजिश का शिकार हो गई? ऐसे में केस में इंट्री होती है द अनप्रिडिक्टेबल मैन पनौती की, जिसके साथ पान में लौंग-सी फिट है- हरदिल अजीज अवनी। इस अनोखी जुगलबंदी ने क्या गुल खिलाये? लापता लड़की का क्या हुआ? क्या सचमुच अंकुर रोहिल्ला गुनहगार है? घात-प्रतिघात से लबरेज, तेजरफ्तार, पनौतीपन लिए संतोष पाठक का विशिष्ट शाहकार प्रतिघात साहित्य विमर्श की गौरवशाली पेशकश
द वॉचमैन-मर्डर इन रूम नंबर 108 सुधीर सिंघल निहायत घटिया, बदनीयत! सूरत से कामदेव सरीखा ऐसा नौजवान था, जो पैसों की खातिर किसी भी हद तक जा सकता था। अधेड़ उम्र की औरतों को अपने प्रेमजाल में फाँस सकता था, नौजवान लड़कियों की कमाई पर ऐश कर सकता था। वह कइयों की जिंदगी में उथल-पुथल मचाये था, तो कइयों को बर्बादी के कगार पर भी पहुँचा चुका था। ऐसे फसादी शख्स के साथ जो न हो जाता, वही कम था। द वाचमैन सीरीज की नयी पेशकश
ऐतिहासिक उपन्यास इंद्रप्रिया, अपने समय की सर्वाधिक सुन्दर स्त्री, एकनिष्ठा नर्तकी, कुशल कवियत्री, समर्पित प्रेयसी, ओरछा की राय प्रवीना की केवल कथा भर नहीं है, अपितु यह दस्तावेज है, उस वीरांगना का जिसने कामुक शहंशाह अकबर के मुग़ल दरबार में अपनी विद्वता से न केवल अपनी अस्मिता की रक्षा की बल्कि उसने अकबर को पराजित भी किया.
“उस जीवन पर क्या गर्व करना जिसमें गिनाने के लिए वर्षों की संख्या के सिवा कुछ न हो। बदलाव में जिंदगी है, ठहराव में नहीं।” – बात बनेचर बात बनेचर वो किताब है कि जब इसका पहला पन्ना खोलो तो ऐसा लगता है मानों जंगल के प्रवेश द्वार पर खड़े हो और पंछियों की, पशुओं की आवाज़ें अंदर बुला रही हों। एक बार इसकी कोई भी कहानी पढ़ने की देर नहीं है कि ख़ुद कहाँ बैठे हैं, कितनी देर से पढ़ रहे हैं, ये भी याद नहीं रहता। सुनील कुमार ‘सिंक्रेटिक’ वर्तमान हिन्दी में अपनी विधा के एक मात्र लेखक हैं। सब किस्सा लिखते हैं, ये बन किस्सा। इनकी प्रसिद्धि इंसानी चरित्र के मुताबिक जानवरों को ढूंढकर ऐसी कहानी गढ़ने की है कि जंगल का सामान्य सा किस्सा, कब मनुष्य का जीवन-किस्सा बन जाता है, पता ही नहीं चलता। विजुअल मोड इनकी लेखनी की विशेष शैली है। पढ़ने के साथ […]
छाप तिलक सब छीनी .. वह कहानियाँ… जो स्त्री-मन की अंधेरी गलियों से हो कर गुजरीं, जीवन की आपाधापी में गुम होते-होते रह गईं और मानवीय प्रेम और करूणा के उजालों की तलाश में सतत विचरती रहीं। मानव-मन अपने अनगढ़ स्वरुप में कितना लुभावना हो सकता है, कितना करुणामय…. इस किताब की कहानियों के किरदार, यही छटा बिखेरते हैं। ख़ास कर स्त्री पात्र। पीड़ा में भी अलौकिक सौन्दर्य है। इन कहानियों के आत्मा, इसी सौन्दर्य से गर्वोन्नत है। Buy Now
रोशन आनंद, भारत का एक नामचीन अपराध कथा लेखक था, जिसे उलझी हुई कहानियां खोजने और लिखने का शौक था। ये शौक कई बार उसे मौत के मुहाने पर लाकर भी खड़ा कर देता था। दिल्ली के थाना क्षेत्र के अधीन घटे ओपन एंड शट केस में ज्यों ही उसने अपनी दखल बनाई, सिलसिलेवार तरीके से हत्याओं का एक दौर-सा चल पड़ा, जिसका रहस्य अंक ‘8’ से सम्बंधित था… प्रकृति ने अपराध करने का ठेका किसी खास श्रेणी को नहीं दिया और न ही इसे श्रेणीबद्ध किया कि अमुक श्रेणी का इंसान अपराध नहीं कर सकते। लेकिन हम श्रेणियाँ बना ही लेते हैं……. Buy Now
दिल्ली का पुस्तक मेला समाप्त हो चुका था। धर्मराज युधिष्ठिर हस्तिनापुर के अलावा इंद्रप्रस्थ के भी सम्राट थे ।अचानक यक्ष प्रकट हुए। उन्होंने सोचा कि चलकर देखा जाये कि धर्मराज अभी भी वैसे हैं या बदल गए जैसे कि मेरे सरोवर का जल पीने के समय थे। युधिष्ठिर से मिले, कुशल क्षेम हुई। उन्होंने यक्ष से कहा कि “चलो इंद्रप्रस्थ में पुस्तक मेला लगवाना है,वहीं बातें भी हो जाएंगी।” यक्ष उनके साथ हो लिये। यक्ष नाखुश हुए उन्होंने कहा “हे धर्मराज,यदि मेरे प्रश्नों के उत्तर ना दिए तो मारे जाओगे”। धर्मराज ने हामी भर दी।यक्ष ने पूछा “हे राजन,जब दिल्ली में मेला लग चुका था ,तब इंद्रप्रस्थ में पुस्तक मेले की क्या ज़रूरत थी?” युधिष्ठिर ने कहा “धर्मो रक्षत रक्षितः”अर्थात जिसने पुस्तक मेले में किसी की किताब दो सौ रुपये की किताब चार रुपये की उसकी कटिंग चाय पीकर खरीदी है,वो बहुत आक्रोशित है,उसे भी अपनी किताब बेचने,ऑटोग्राफ देने और […]
एक दिन एक दोस्त ने इस्लामिक कांसेप्ट को लेकर सवाल पूछा था, कि यह बात समझ में नहीं आती कि मुसलमानों को दुनिया में तो शराब पीना हराम करार दे दिया और जन्नत में शराब की नदियां देने का वादा किया गया, दुनिया में तो जिनाकारी एक गुनाह बना दी और जन्नत में हूरों के ढेर परोसने के वादे कर लिये। एक ईमान का पक्का शख़्स इसके कुछ और जवाब देगा लेकिन मैंने यही कहा कि कई बार हम उद्दंड बच्चों को सुधारने के लिये ऐसे ही झूठे सपने दिखाते हैं कि वे लालच में पड़ कर ख़ुद पर कंट्रोल करना सीखें और उनमें वह सुधार आ जाये। अब एक बार जब सुधर जायेंगे तो समझदार होने पर ख़ुद ही समझ जायेंगे कि उनसे वह सब क्यों कहा गया था।सवाल यह है कि मैं किसी किताब की प्रमोशनल पोस्ट पर इस बात की चर्चा क्यों कर रहा हूँ— क्योंकि कई […]
बहुत ही बढिया अौर शिक्षाप्रद ,एवं व्यंगात्मक कहानी , 🙏🙏🙏