जब हम सत्य को पुकारते हैं तब वह हमसे हटते जाता है जैसे गुहारते हुए युधिष्ठिर के सामने से भागे थे विदुर और भी घने जंगलों में सत्य शायद जानना चाहता है कि उनके पीछे हम कितनी दूर तक भटक सकते हैं कभी दिखता है सत्य और कभी ओझल हो जाता है और हम कहते […]
1947 के बाद से इतने लोगों को इतने तरीक़ों से आत्म निर्भर, मालामाल और गतिशील होते देखा है कि अब जब आगे कोई हाथ फैलाता है पच्चीस पैसे एक चाय या दो रोटी के लिए तो जान लेता हूँ मेरे सामने एक ईमानदार आदमी, औरत या बच्चा खड़ा है मानता हुआ कि हाँ मैं लाचार […]
हिमालय किधर है? मैंने उस बच्चे से पूछा जो स्कूल के बाहर पतंग उड़ा रहा था उधर-उधर-उसने कहा जिधर उसकी पतंग भागी जा रही थी मैं स्वीकार करूँ मैंने पहली बार जाना हिमालय किधर है?
इस शहर मे बसंत अचानक आता है और जब आता है तो मैंने देखा है लहरतारा या मडुवाडीह की तरफ़ से उठता है धूल का एक बवंडर और इस महान पुराने शहर की जीभ किरकिराने लगती है […]
मैं ने देखा एक बूँद सहसाउछली सागर के झाग सेरँग गई क्षण भरढलते सूरज की आग से।मुझको दीख गया :सूने विराट् के सम्मुखहर आलोक-छुआ अपनापनहै उन्मोचननश्वरता के दाग से! कठिन शब्द सहसा- अचानक विराट् – (तत्सम, विशेषण, संज्ञा) – बहुत बड़ा, ब्रह्म उन्मोचन – (तत्सम) – मुक्ति, आजादी नश्वरता – (तत्सम) – नाश होने की प्रवृत्ति, […]
यह दीप अकेला स्नेह भरा है गर्व भरा मदमाता, पर इसको भी पंक्ति को दे दो। यह जन है : गाता गीत जिन्हें फिर और कौन गाएगा? पनडुब्बा : ये मोती सच्चे फिर कौन कृती लाएगा? यह समिधा : ऐसी आग हठीला बिरला सुलगाएगा। यह अद्वितीय : यह मेरा : यह मैं स्वयं विसर्जित – […]
देखा विवाह आमूल नवल, तुझ पर शुभ पड़ा कलश का जल। देखती मुझे तू, हँसी मंद, होठों में बिजली फँसी, स्पंद उर में भर झूली छबि सुंदर, प्रिय की अशब्द शृंगार-मुखर तू खुली एक उच्छ्वास-संग, विश्वास-स्तब्ध बंध अंग-अंग, नत नयनों से आलोक उतर काँपा अधरों पर थर-थर-थर। देखा मैंने, वह मूर्ति-धीति मेरे वसंत की प्रथम […]
गीत गाने दो मुझे तो, वेदना को रोकने को। चोट खाकर राह चलते होश के भी होश छूटे, […]
अरुण यह मधुमय देश हमारा! जहाँ पहुँच अनजान क्षितिज को मिलता एक सहारा। सरस तामरस गर्भ विभा पर नाच रही तरुशिखा मनोहर। छिटका जीवन हरियाली पर मंगल कुंकुम सारा! लघु सुरधनु से पंख पसारे-शीतल मलय समीर सहारे। उड़ते खग जिस ओर मुँह किए-समझ नीड़ निज प्यारा। बरसाती आँखों के बादल-बनते जहाँ भरे करुणा जल। लहरें […]
आह! वेदना मिली विदाई! मैंने भ्रम-वश जीवन संचित, मधुकरियों की भीख लुटाई। छलछल थे संध्या के श्रमकण, आँसू-से गिरते थे प्रतिक्षण। मेरी […]
उस रोज सुबह से पानी बरस रहा था। साँझ तक वह पहाड़ी बस्ती एक अपार और पीले धुँधलके में डूब-सी गयी थी। छिपे हुए सुनसान रास्ते, बदनुमा खेत, छोटे-छोटे एकरस मकान – सब उस पीली धुन्ध के साथ मिलकर जैसे एकाकार हो गए थे। औरतें घरों के दरवाजे बन्द किए सूत सुलझा रही थीं। आदमी […]
बॉलीवुड में बहुत-सी प्रेम कहानियाँ बनीं। बहुत से किस्से परवान चढ़े। कई जोड़ियाँ बनीं, कई दिल टूटे। इन प्रेम कहानियों का जिक्र जब भी आएगा, देव आनंद और सुरैया की याद जरूर आएगी। देव-सुरैया की लव स्टोरी बॉलीवुड की सबसे चर्चित प्रेम कहानियों में से एक है, और शायद सबसे बदकिस्मत भी। देव-सुरैया की […]
1979 में रिलीज हुई यशराज फिल्म्स की “काला पत्थर” सितारों से सजी उस समय की एक बहुचर्चित फिल्म थी जिसने उस समय तो बॉक्स ऑफिस पर औसत व्यवसाय किया था लेकिन बाद में सफलता के कई कीर्तिमान बनाए। बॉलीवुड में त्रासदियों पर बनी कुछ अच्छी फिल्मों में इस फिल्म का स्थान सर्वोपरि है। 27 दिसंबर […]
‘मनुस्मृति’ में कहा गया है कि जहाँ गुरु की निंदा या असत्कथा हो रही हो वहाँ पर भले आदमी को चाहिए कि कान बंद कर ले या कहीं उठकर चला जाए। यह हिंदुओं के या हिंदुस्तानी सभ्यता के कछुआ धरम का आदर्श है। ध्यान रहे कि मनु महाराज ने न सुनने जोग गुरु की कलंक-कथा […]
जाड़े की धुंध भरी घुप्प अंधेरी रात से ज्यादा गहरी रात और कोई नहीं होती, आज वैसी ही एक रात थी। ट्रेन रात के ग्यारह बजे की थी। कैलाश अपनी पत्नी और बच्चे को लेकर नौ बजे ही स्टेशन पहुँच गया। काठगोदाम स्टेशन यूँ तो चहल-पहल वाला स्टेशन है, पर जाड़े की रात जब गहरी […]
जीवन की रक्षा करना हमारी जिम्मेदारी है इसे नष्ट करने का किसी को कोई हक नहीं हमारा जीवन हमारी मेहनत…