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जब भी वह उसके पास दिल्ली आती तो पूरा घर व्यवस्थित करने में उसे कुछ दिन लग जाते। पिछले कुछ समय से उसे घर में कुछ ऐसी वस्‍तुएँ भी मिल जाती थीं, जिससे उसका दिल तेज धड़क जाता था। कभी-कभी उसने टोका तो राजीव ने उसको घुड़क दिया। उसके दोस्‍त, उनके परिवार, उसके अपने घर वाले कितने लोग तो आते हैं मिलने वाले। किसका क्या छूट गया वो क्या जाने? परन्तु एक फाँस तो कहीं उलझ ही गया पल्‍लवी के हृदय में। धीरे-धीरे इसको और बल मिला जब राजीव की रुचि उसकी तरफ कम होती गयी थी और कड़वाहट  बढ़ती गई थी। दाम्पत्य की डोर ढीली होने लगी थी।

एक रोज, घर की साफ़ सफाई में उसको अपने बेडरूम में लिपस्टिक और एक लेडीज रूमाल बेड के नीचे से मिले। वह अब तक काफी कुछ नज़रअंदाज़ करती रही थी। वह कब तक और क्या-क्या पर आँखें मूँद ले, इसका फैसला नहीं कर पा रही थी।

राजीव ऑफिस से हमेशा की तरह लेट ही आया था।

“एक लेडीज हैंकी मिली है बेड के नीचे से!” जब वह बाथरूम से बाहर निकला तो पल्लवी ने ऐसे कहा जैसे उसे सूचना दी जा रही हो। पर राजीव सूचना का अर्थ समझ गया था।

“तो…।” उसने अलमारी में कपड़े टाँगते हुए कहा। उसकी आवाज में गुस्सा था।

“तुम्हें नहीं लगता कि तुम्हें कुछ बताना चाहिए।” उसने संयत स्वर में कहा। वह उसके सामने कभी भी मुखर न हो सकी थी। यह भी याचित ही था। घर की दहलीज पर ही उसके अंदर का अफसर मर जाता था।

“नहीं, मुझे नहीं लगता।” वह कमरे से बाहर निकल कर स्टडी की तरफ जा रहा था। पल्लवी कुछ देर ठहर कर सोचती रही कि वह क्या कहे, क्या करे। कुछ सोच कर वह आगे बढ़ गयी।

“कुछ हमारे बारे में आप सोचते भी हो?” उसने इस बार सवाल की शक्ल बना कर आहिस्ते से कहा।

वह अपना लैपटॉप खोल रहा था। और उसी में व्यस्त रहा। गैर ज़रूरी काम और प्रश्न उसके पास से निकल कर खिड़की से बाहर नीचे गिर गए।

“कुछ बोलो भी … कुछ नहीं तो गुड़िया के लिए सोचो।” उसने याचना के स्वर में कहा।

एक सवाल उसके बगल ठिठका खड़ा था, जिसे शुतुरमुर्ग बन कर टाला नहीं जा सकता था। राजीव ने एक सख्त नज़र से उसे देखा। जैसे ब्लैकमेल की नीयत से किसी करीबी के ऊपर बंदूक रख कर फिरौती माँगी गयी हो।

उसने चीखते हुए कहा -“क्या सोचना है बोलो… क्या सोचना है उसके बारे में? कोई परेशानी हो रही है क्या?”

पल्लवी सहम गयी थी। उसका अर्थ ऐसा नहीं था। वह लगातार उसे घूर रहा था। उसकी साँसे तेज हो गयी थीं। वह देख रही थी, उसके गले की नस तेजी से ऊपर-नीचे हो रही थी, जैसे फन काढ़े नाग की होती है।

“नहीं … नहीं ऐसी कोई बात नहीं … मैं  बस कह रही थी कि तुम्हारी जिंदगी में हम कहाँ हैं?” उसने विनती से अपनी जगह माँगी। वह यह कहते हुए भी घबड़ा रही थी।

राजीव कुर्सी से खड़ा हो गया था और अचानक से चिल्ला पड़ा था- “तुम कहीं नहीं हो…। बस्स, कहीं नहीं…। निकल जाओ, मेरा दिमाग मत खराब किया करो। जब भी आती हो, ड्रामे ही करती हो।” यह कह कर उसने उसको बाहर निकलने के लिए इशारा किया और दरवाजा जोर से उस के मुँह पर बंद कर दिया। पल्लवी काँप गयी थी।

थोड़ी देर वह चुप वहाँ खड़ी रही। कत्थई दरवाजा निरीह उसके सामने खड़ा था, जैसे उसे अफ़सोस हो। पर वह यह अफ़सोस नहीं देख पाई। उसके सामने एक कत्थई दीवाल थी,जो बड़ी होती जा रही थी। उसकी आँखों से अचानक झरना फूट पड़ा था। आखिर उसकी क्या गलती है? उसने खाना मेज पर लगा रखा था। वह कमरे से बाहर ही नहीं निकला। दो घंटे तक मेज पर इंतज़ार करते हुए वह सोचती ही रही। सवालों का भँवर बन गया था, जिसमें वह डूबी ही जा रही थी। वह भी बिना खाए कमरे में चली गयी।

बेडरूम में बच्‍ची सो रही थी। पल्‍लवी निर्निमेष छत को ताक रही थी। कमरे में रोशनी बहुत मामूली थी और पंखे के तेज चलने से हवा के कटने की आवाज भी साफ सुनाई दे रही थी। राजीव के व्यवहार से यह अप्रत्‍याशित नहीं था। परन्‍तु इतने नग्‍न रूप में, विस्‍फोटक आघात की आशंका नहीं थी। यदि एक पर्देदारी भी बनी रहती तो शायद कुछ आशा की डोर रहती। दर्द की रात धीरे-धीरे सरकती गयी। चाँद बालकनी से चढ़ते-चढ़ते छत पर से गुजर गया और उसकी जगह रक्‍ताभ गोला आ गया।

अगली सुबह बिना किसी बातचीत के राजीव जल्दी ही ऑफिस चला गया था। एक पूरी रात का फासला भी इस फासले को कम न कर सका। उसने राजीव को एक मैसेज भेजा, जिसका कोई जवाब नहीं आया। फिर उसने एक बार फोन किया, जो नहीं उठा, न ही उसके बाद पलट कर आया। ‘तुम कहीं नहीं हो’ पूरी रात उसके कान में बजने के बाद अब दिन में भी बज रहा था। वह बेटी के साथ वापस इलाहाबाद के लिए निकल गयी।

 उनके बीच, तब से केवल औपचारिक बातचीत कुछ वाक्यों की होती है। केवल बेटी है,जिससे राजीव की बातचीत होती है। पल्लवी उससे बातचीत कराते हुए इस रिश्ते को जिन्दा रखने की कोशिश में है, जैसे इसी बेल के सहारे पुनः वह अपने पेड़ पर चढ़ सकेगी। ससुराल और मायके को भी इस खटपट की खबर हो गयी थी, परन्‍तु किसी तरफ से भी कोई बात खुलकर नहीं कही गयी थी। लोग पति-पत्नी के मामले में पड़ना नहीं चाहते या इसी तरीके से बच लेना चाहते हैं। कभी-कभी मन में बगावती ज्वालामुखी फूटने लगते हैं, पर अगले ही क्षण कमजोर पड़ जाते हैं। इस रात की भी एक सुबह होगी, बस इसी आशा पर पिछले कुछ महीनों से पल्‍लवी का जीवन चल रहा था।

लेखक के बारे में –

कथा लेखकों का जो समुच्चय वर्तमान में दिखता रहा है, उनमें से कुछ गम्भीर और शोध परक लेखकों का नाम यदि उठा लिया जाए तो उसमे ‘रणविजय’ का नाम अवश्य आएगा। वर्ष 2018 में इनकी पहली पुस्तक ‘दर्द माँजता है’ (कहानी संग्रह) प्रकाशित हुई थी। वर्ष 2020 में इनका दूसरा कहानी संग्रह ‘दिल है छोटा सा’ आया था और 2021 में इनका प्रथम उपन्यास ‘ड्रैगन्स गेम’ प्रकशित हुआ है।
समसामयिक मुद्दों पर गम्भीर टिप्पणियों और सारगर्भित आलेखों के लिए इनसे सोशल मीडिया फेसबुक, इन्स्टाग्राम पर जुड़ा जा सकता है। रणविजय से सम्बन्धित और जानकारी के लिए इनकी वेबसाइट www.ranvijay.co.in को देखा जा सकता है।

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Hema

Bahut badhiya