Skip to content

CRN-45

Ashfaq Ahmad

लेखक के बारे में –

Ashfaq Ahmad is an Indian Hindi writer and blogger, who runs several blogging sites such as Wordsmith, Aakharvani Patrika, Lafztraash, Parihas Patrika, Qissagoi and Lafzabandi. He has written about a dozen books like Jihadi Parinde, God’s Existence, Vulture’s Feast, Infinity, Junior Gigolo, Mirov and Saavari. He also runs a publication and writes on literary platforms like Pratilipi.

5 1 vote
Article Rating

एक दिन एक दोस्त ने इस्लामिक कांसेप्ट को लेकर सवाल पूछा था, कि यह बात समझ में नहीं आती कि मुसलमानों को दुनिया में तो शराब पीना हराम करार दे दिया और जन्नत में शराब की नदियां देने का वादा किया गया, दुनिया में तो जिनाकारी एक गुनाह बना दी और जन्नत में हूरों के ढेर परोसने के वादे कर लिये। एक ईमान का पक्का शख़्स इसके कुछ और जवाब देगा लेकिन मैंने यही कहा कि कई बार हम उद्दंड बच्चों को सुधारने के लिये ऐसे ही झूठे सपने दिखाते हैं कि वे लालच में पड़ कर ख़ुद पर कंट्रोल करना सीखें और उनमें वह सुधार आ जाये।

अब एक बार जब सुधर जायेंगे तो समझदार होने पर ख़ुद ही समझ जायेंगे कि उनसे वह सब क्यों कहा गया था।सवाल यह है कि मैं किसी किताब की प्रमोशनल पोस्ट पर इस बात की चर्चा क्यों कर रहा हूँ— क्योंकि कई बार मेरे मन में यह बातें आई हैं कि इस तथाकथित जन्नत के जो भी खाके खींचे गये हैं इस्लामिक कांसेप्ट में, उसके हिसाब से वह ऐसी जगह है जहां कोई दुख नहीं, जहां बस सुख ही सुख है, हमेशा-हमेशा की जिंदगी है, कोई बीमारी-बेजारी नहीं, पीने को हर तरह के द्रव्य हैं (शराब/शर्बत/कोई भी पेय), खाने को हर तरह के लजीज़ खाने हैं (वेज/नानवेज सभी) और भोगने को बेशुमार खूबसूरत औरतें हैं, जिन्हें हूरें कहा गया है।
मुसलमानों को एक अजाब से भरी दोजख का खौफ दिखा कर इस सुख-सुविधा से भरी जन्नत का लालच दिखाया जाता है कंट्रोल करने के लिये, उन्हें उनके धार्मिक पथ पर बनाये रखने के लिये और प्रकारांतर से एक अच्छा इंसान बनाये रखने के लिये। मैं सोचता हूँ कि एक पल के लिये मान लेते हैं कि ऐसा ही कुछ है और यह जन्नत रियल है, जो सौभाग्यशाली मुसलमानों के हिस्से में आयेगी, लेकिन यहां एक सवाल सामने आता है कि क्या वे इस सुख को महसूस भी कर पायेंगे?इस कहानी में एक संक्रामक आपदा पूरी दुनिया को तबाह कर देती है, तमामतर देश अपना वजूद खो बैठते हैं और बचे-खुचे लोगों के सहारे टैरेट्रीज वजूद में आती हैं, जो कुछ ताक़तवर लोग चलाते हैं, वे इस संक्रमण का शिकार हो कर, अपनी सारी मेमोरी खो चुकने के बाद खाली दिमाग़ बच्चों के सामने भगवान बन कर पेश होते हैं और उनके लिये ठीक इसी तर्ज पर एक व्यवस्था खड़ी करते हैं जिसे एक तरह से जन्नत के रूप में ही रिप्रजेंट किया जाता है— जहां लोगों के लिये सभी तरह की सुख सुविधाएं उपलब्ध थीं।
अब उनकी नई व्यवस्था से असहमत कुछ बागी उनके निजाम को हटाना चाहते हैं और उसे अपने एक एडवांस किस्म के डेमोक्रेटिक सिस्टम से बदलना चाहते हैं, जहां पुरानी सारी कमियों से पार पाया जा सके। अब इस मरहले पर इस व्यवस्था को खड़े करने वाले और इस व्यवस्था को उखाड़ फेंकने का सपना देखने वाले के बीच जो बहस होती है, वहां यही सवाल सामने आता है कि लोगों से मैं ख़ुद को भगवान इसलिये मनवाता हूँ कि मैंने उन्हें वह दिया है जिसकी वे अपने पुराने भगवानों से कामना करते थे। मैंने उन्हें वह जन्नत दी है जहां उनकी मुंह मांगी इच्छाएं पूरी होती हैं। तुम इस व्यवस्था को किसलिये बदलना चाहते हो, क्या कमी है इस जन्नत में?अब यहां से एक बड़ा सवाल पैदा होता है कि वाकई क्या कमी हो सकती है ऐसी जन्नत में?
हर तरह की सुख सुविधा है, इंसान की सभी बेसिक नीड्स उपलब्ध हैं— तो भला ऐसी जगह क्या कमी हो सकती है? कमी यह है कि यह जगह इंसान के बेसिक गुण को खत्म कर रही है, उसकी सर्वाइवल स्किल का सत्यानाश कर रही है। जानते हैं एक सुहानी सुबह का मज़ा कब है— जब वह एक कष्टकारी रात के बाद आये, लेकिन अगर इस रात का अस्तित्व ही खत्म हो जाये तो? हमेशा के लिये आपको किसी ऐसी जगह डाल दिया जाये, जहां सूरज ही न डूबता हो और रात ही न होती हो तो आपके लिये किसी सुहानी सुबह या दिन का मतलब ही खत्म हो जायेगा। फिर आप उस सुबह या दिन के सुख को महसूस ही नहीं कर पायेंगे।आप जंगल में आज़ाद फिरते हिरण और चीते को देखते हैं, एक शिकार करके पेट भरने के लिये दौड़ रहा है, दूसरा जान बचाने के लिये भाग रहा है।
फिर आप दोनों को चिड़ियाघर में ले आते हैं जहां एक छोटी सी जगह वे दोनों पड़े रहते हैं, और आपने उनकी जगह पर ही उनके खाने-पीने और भोगने का इंतज़ाम कर दिया है और टेक्निकली यही उनकी जन्नत है— लेकिन क्या वाक़ई ऐसा है? एक की शिकार की नैसर्गिक क्षमता खत्म हो रही है और दूसरे की बचने की, यह गुण उन्हें विरासत में मिला था। इसी गुण के चलते तो वे शेर और हिरण थे, लेकिन वह गुण उस चिड़ियाघर में खत्म हो रहा है। अब उनके जीवन में कोई रस नहीं है। अपनी नैसर्गिक क्षमता खो कर वे बस नाम के हिरण और शेर बचे हैं— एक अरसे बाद उन्हें या उनकी नस्लों आप आज़ाद कर दीजिये तो उनका ज़िंदा रहना मुश्किल हो जायेगा।याद रखिये, सुख का मज़ा तब है जब दुख का अस्तित्व बना रहे, अगर दुख खत्म हो गया तो सुख आपके लिये निरर्थक है।
किसी राहत को आप सिर्फ तब महसूस कर सकते हैं जब कष्ट की उपस्थिति बनी रहे, अगर कष्ट खत्म हो गया तो राहत अपने आप खत्म हो जायेगी। जिन चीज़ों को जन्नत में “सुख” बताया जा रहा है, असल में वे इस दुनिया के हिसाब से आपके लिये सुख हैं, क्योंकि देखने, महसूस करने के लिये दुख आपके आसपास मौजूद है— लेकिन जहां आपको ले जाने की बात की जा रही है, वहां दुख हैं ही नहीं, तो जो यहां आपको सुख प्रतीत हो रहा है, वहां वह आपके लिये होगा ही नहीं।और अगर कोई यह दावा करता है कि दिमाग़ में होते जिन कैमिकल रियेक्शंस के सहारे हम इस सुख, राहत, खुशी, संतुष्टि आदि को महसूस कर पाते हैं— वहां उनकी बनावट बदल दी जायेगी और वे बिना अपने विपरीत घटक के अकेले भी अपना अस्तित्व बनाये रखेंगे तो फिर सीधा मतलब यह होगा कि तब फिर आप वह इंसान ही नहीं रहेंगे जो आप यहां हैं..
और जब वह इंसान ही नहीं रहेंगे, तो फिर जन्नत का आपके लिये कोई मतलब भी नहीं बचता। यह कुछ ऐसा है कि चिड़ियाघर में शेर और हिरण अपना नैसर्गिक गुण खो बैठेंगे, जिससे बचाने के लिये आप उनका रोबोटिकरण कर दें और कृत्रिम चीज़ों से उन गुणों को बनाने की कोशिश करें तो फिर उनके लिये असल में शेर या चीता होने का कोई मतलब ही नहीं बचता— फिर वे बस रोबोट ही होंगे।तो इसी लाॅजिक के सहारे सीआरएन-45 की लड़ाई आगे बढ़ती है और दो परिकल्पनाएं एक दूसरे से भिड़ती हैं— कौन कामयाब रहता है और किस तरह कामयाब होता है, यह जानने के लिये CRN-45 पढ़ सकते हैं।
5 1 vote
Article Rating
Subscribe
Notify of
guest
0 Comments
Inline Feedbacks
सभी टिप्पणियाँ देखें