“मम्मी ई ई ई “, सोनू चिल्लाया।
मम्मी उस वक्त रोटी बना रही थी। उन्होंने सोनू को देखा तो वो अपने दोनों घुटनों को आपस में टिकाये, आपने हाथों को पेट पर जोड़े अपनी मम्मी को देख रहा था।
“मम्मी सुसु आ रही है। बाहर चलो न!”, उसने एक पाँव से दूसरे पाँव पर वजन डालते हुए बोला था।
“मोनू!” मम्मी चिल्लाई थी। मोनू सोनू का बड़ा भाई था और सोनू दुनिया में उससे ही सबसे ज्यादा नफरत करता था। मोनू हर वक्त उस पर अपनी धौंस जमाता था। वो उससे पाँच साल बढ़ा था लेकिन ऐसे बर्ताव करता था जैसे वो मम्मी पापा के उम्र का हो। उसकी दादागिरी से सोनू तंग चुका था और वह कल्पनाओं में कई बार मोनू को पीट चुका था। लेकिन ऐसा नहीं था कि मोनू किसी काम का नहीं था। कई बार स्कूल में जब लड़ाई होती थी तो मोनू ही उसकी मदद करता था।
सोनू को याद है जब ऋषभ उसे खेल के मैदान में परेशान कर रहा था और उसके कंचे नहीं दे रहा था। तब मोनू को किसी तरह पता लग गया था और उसने आकर मदद की थी। उस वक्त उसे बहुत अच्छा लगा था। मैदान से आते हुए जब उसने मोनू को धन्यवाद बोलना चाहा था तो मोनू ने उसके बालों को बिगाड़ कर कहा था-“देख भई, घोंचू। तुझे मेरे अलावा कोई परेशान करे ये किसी को हक नहीं।”
न जाने क्यों सोनू को उस वक्त उसकी बात पर गुस्सा नहीं आया था। पहली बार लगा था कि उसका भाई अच्छा है। यह अहसास उसे होता रहता था लेकिन इसका होना इतना कम था कि ज्यादातर वक्त वो मोनू से परेशान ही रहता था। इस बार भी यही हुआ था।
मम्मी उसे सोनू के साथ भेजती थी और मोनू उसे खबेस के नाम से डराता था। घर के सामने एक छोटा बगीचा था और उस बगीचे में टमाटर,बैंगन के पौधे और खीरे, कद्दू इत्यादि के बेलें थी। दिन में हरि भरी क्यारियाँ बड़ी खबूसूरत लगती थी लेकिन रात को यही क्यारियाँ डरावनी लगने लगती थी। पौधे और बेलें मिल कर कुछ ऐसी आकृतियाँ बनाती थी कि सोनू की डर के मारे घिग्घी बन जाती थी। ऊपर से मोनू उसे इन सबके के बीच तरह तरह के जानवर होने की बात बताता रहता था। सोनू को पता था वो उसकी टाँग खींच रहा है लेकिन कई बार उसने पौधों के झुरमुटों में से झाँकती पीली आँखों को देखा था। आजकल मोनू अँधेरे में खबेस के किस्से सुनाता था। खबेस जो अँधेरे में आकर बच्चों पर चढ़ जाता था और बच्चों को खून की उलटी होने लगती थी। खबेस जो जब आदमी पर चढ़ता तो उसका मुँह टेढा हो जाता था। मोनू का कहना था आजकल उनके मोहल्ले में एक खबेस घूम रहा है और प्रकाश जो काफी दिनों से खेलने नहीं आ रहा वो खबेस का शिकार हुआ था।
शीघ्र ही पुस्तकाकार प्रकाशित
*खबेस* बच्चों के ऊपर लिखी गई कहानी भी बच्चों से कही जाने वाली नहीं है। या शायद आजकल के बच्चों को ऐसी ही डरावनी कहानियों का चस्का लगा है।
कहानी का भाव स्पष्ट रूप से समझाया गया है। और कंचन का खबेस बन जाना एक तरह से प्रश्नचिन्ह के साथ कहानी का अंत लाज़मी बना है।
👍👌
जी जब मैं छोटा था तो आर एल स्टाइन की कहानियां काफी पसंद आती थीं। उनकी गूसबंप सीरीज पसंद थीं। ऐसे में इसी विधा की ये बाल कहानी है। कहानी आपको अच्छी लगी यह जानकर अच्छा लगा। हिंदी में बाल पाठकों के लिए हॉरर विधा में कम ही लेखन हुआ है। इसी खाली जगह को भरने का प्रयास मैंने किया है।