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खबेस

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“मम्मी ई ई ई “, सोनू चिल्लाया।

मम्मी उस वक्त रोटी बना रही थी। उन्होंने सोनू को देखा तो वो अपने दोनों घुटनों को आपस में टिकाये, आपने हाथों को पेट पर जोड़े अपनी मम्मी को देख रहा था।

“मम्मी सुसु आ रही है। बाहर चलो न!”, उसने एक पाँव से दूसरे पाँव पर वजन डालते हुए बोला था।

“मोनू!” मम्मी चिल्लाई थी। मोनू सोनू का बड़ा भाई था और सोनू दुनिया में उससे ही सबसे ज्यादा नफरत करता था। मोनू हर वक्त उस पर अपनी धौंस जमाता था। वो उससे पाँच साल बढ़ा था लेकिन ऐसे बर्ताव करता था जैसे वो मम्मी पापा के उम्र का हो। उसकी दादागिरी से सोनू तंग चुका था और वह कल्पनाओं में कई बार मोनू को पीट चुका था। लेकिन ऐसा नहीं था कि मोनू किसी काम का नहीं था। कई बार स्कूल में जब लड़ाई होती थी तो मोनू ही उसकी मदद करता था।

सोनू को याद है जब ऋषभ उसे खेल के मैदान में परेशान कर रहा था और उसके कंचे नहीं दे रहा था। तब मोनू को किसी तरह पता लग गया था और उसने आकर मदद की थी। उस वक्त उसे बहुत अच्छा लगा था। मैदान से आते हुए जब उसने मोनू को धन्यवाद बोलना चाहा था तो मोनू ने उसके बालों को बिगाड़ कर कहा था-“देख भई, घोंचू। तुझे मेरे अलावा कोई परेशान करे ये किसी को हक नहीं।”

न जाने क्यों सोनू को उस वक्त उसकी बात पर गुस्सा नहीं आया था। पहली बार लगा था कि उसका भाई अच्छा है। यह अहसास उसे होता रहता था लेकिन इसका होना इतना कम था कि ज्यादातर वक्त वो मोनू से परेशान ही रहता था। इस बार भी यही हुआ था।

मम्मी उसे सोनू के साथ भेजती थी और मोनू उसे खबेस के नाम से डराता था। घर के सामने एक छोटा बगीचा था और उस बगीचे में टमाटर,बैंगन के पौधे और खीरे, कद्दू इत्यादि के बेलें थी। दिन में हरि भरी क्यारियाँ बड़ी खबूसूरत लगती थी लेकिन रात को यही क्यारियाँ डरावनी लगने लगती थी। पौधे और बेलें मिल कर कुछ ऐसी आकृतियाँ बनाती थी कि सोनू की डर के मारे घिग्घी बन जाती थी। ऊपर से मोनू उसे इन सबके के बीच तरह तरह के जानवर होने की बात बताता रहता था। सोनू को पता था वो उसकी टाँग खींच रहा है लेकिन कई बार उसने पौधों के झुरमुटों में से झाँकती पीली आँखों को देखा था। आजकल मोनू अँधेरे में खबेस के किस्से सुनाता था। खबेस जो अँधेरे में आकर बच्चों पर चढ़ जाता था और बच्चों को खून की उलटी होने लगती थी। खबेस जो जब आदमी पर चढ़ता तो उसका मुँह टेढा हो जाता था। मोनू का कहना था आजकल उनके मोहल्ले में एक खबेस घूम रहा है और प्रकाश जो काफी दिनों से खेलने नहीं आ रहा वो खबेस का शिकार हुआ था।

मोनू ने अनुसार : “प्रकाश एक बार अपने घर से बाहर सुसु करने गया था। उस दिन बिजली जा रखी थी और उसने अपनी मम्मी की बात न मानते हुए बाहर जाकर सुसु करने का मन बनाया था। असल में तो उसने अपनी मम्मी को बताने की जरूरत भी नहीं समझी थी। वो चुपचाप बाहर निकला था। लेकिन यहीं उससे गलती हो गई थी। उनके बाथरूम के नजदीक दो माल्टे के पेड़ थे। चारो तरफ अन्धेरा था। झींगुरो की आवाज़ के सिवा बाहर कुछ नहीं सुनाई दे रहा था। प्रकाश बाथरूम का दरवाजा खोलकर अंदर दाखिल हुआ। उसने दरवाजा खुला रख रखा था। लाइट थी नहीं और इसलिए वो चाहता था कि बाहर मौजूद चाँद की रोशनी अदंर आये। वो सुसु करने लगा। वो सुसु कर ही रहा था कि खबेस ने उस पर हमला कर दिया। उसने उसे उठाया और उसे हवा में लेकर चला गया। प्रकाश इतनी तेजी से ऊपर गया था कि माल्टे के पेड़ से टकराया था और वापस आकर जमीन पर गिर गया था। प्रकाश का माथा छिल गया था और वो बेहोश हो गया था। बेहोश होने से पहले उसने खबेस के बड़े दाँत और बड़ी बड़ी दरवानी आँखें देखी ही देखी थी। इतना गोल गपाड़ा मचा कि प्रकाश के घर वाले बाहर आये और उन्होंने बेहोश प्रकाश को देखा था। वो उसे उठाकर अन्दर लेकर गये। प्रकाश को तबसे बुखार था और वो बार बार खबेस खबेस बड़बड़ा रहा था। उसके घर वालों ने बाद में पूजा वगेरह भी की थी लेकिन प्रकाश पर उसका कोई असर हुआ हो ऐसा लग तो नहीं ही रहा था।”

फिर मोनू ने सोनू को देखा और कहा। अब तुम ही बताओ सोनू प्यारे। जो खबेस तुम से बीस किलो भारी प्रकाश को उड़ा ले जा सकता है। उसके लिए तुम किस खेत की मूली हो। तुम्हें याद तो होगा न कि उस दिन प्रकाश ने तुम्हें किस तरह हवा में उठा दिया था। अगर मैं समय पर न पहुँचता तो तुम्हारी चटनी बननी तय थी। लेकिन क्या करें अपना तो दिल ही बड़ा है। खैर, मैं तो अब सोते हुए भी चादर के अदंर मुँह करके सोता हूँ। क्या पता खबेस अंदर ही आ जाये और इधर से ही खींच कर ले जाये। तुम्हें तो और ज्यादा ध्यान रखने की जरूरत है। खिड़की के नजदीक तुम ही हो। चलो अब सोते हैं। कल स्कूल भी जाना है।”

यह कहकर मोनू तो सो गया था लेकिन सोनू की नींद तो गायब ही हो गई थी। उसने कई बार खिड़की की तरफ उठकर देखा था तो उसे उधर एक साया सा दिखा था जो उसे अपने पास बुला रहा था। उसके बाद सोनू ने अपने कम्बल में मुँह डाल दिया था और जब तक नींद नहीं आ गई तब तक वो कम्बल में दुबका हुआ था।

सुबह नींद खुलते ही उसने मम्मी को बताया तो मम्मी ने मोनू को डाँट लगाई थी। मोनू ने मम्मी से केवल इतना ही कहा था – “मम्मी मैं तो मजाक कर रहा था। सोनू तो समझदार है। उसे पता है कि खबेस वगेरह कुछ नहीं होता। क्यों सोनू तुम्हे पता है न? तुम समझदार हो न?”

सोनू अब असमंजस में था। वो समझदार तो था लेकिन खबेस होता है या नही ये उसे नहीं पता था। उसने अपना कंधा उचकाते हुए मम्मी से कहा था- “मम्मी कोई बात नहीं। मैं अब जान चुका हूँ कि खबेस जैसा कुछ नहीं होता है।”

“बिलकुल”, मोनू ने कहा था और जब मम्मी उसकी तरफ नहीं देख रही थी तब उसने सोनू की तरफ देखकर आँख मारी थी। इसका अर्थ क्या था। क्या असल में खबेस होते थे? या ये मजाक था? सोनू को उस वक्त कुछ समझ नहीं आ रहा था लेकिन वो मोनू के सामने बेवकूफ नहीं लगना चाहता था तो उसने भी मोनू को देखकर आँख मारी थी और हँस दिया था। मोनू इस बात से अचकचा गया था।

खैर, ये हफ्ते पहले की बात थी। तब से लेकर अब तक जब भी सोनू को बाथरूम जाना होता तो मोनू उसे लेकर जाता और यहाँ वहाँ खबेस के होने की बात करके उसे डराता। हालत ऐसी हो गई थी कि सोनू को पौधों के पीछे खबेस की आकृति दिखने लगी थी। हर पल उसे लगता कि कोई उसे अब खींचेगा। डर के कारण उसकी घिघी बंधी रहती। यही कारण था कि बाथरूम जाने के लिए सोनू मम्मी के पास ही आया था। और अब मम्मी ने दोबारा मोनू को ही आवाज़ लगाई थी।

मोनू अब मम्मी के सामने खड़ा था और सोनू को देख रहा था और मुस्करा रहा था।

“जी मम्मी”, मोनू ने कहा।

“सोनू के साथ बाहर जा तो।”, मम्मी ने कहा-“मैं रोटी बना रही हूँ।”

“पर मम्मी मैं पढ़ रहा था।”, मोनू ने कहा था।

“हाँ, हाँ मुझे पता था कि तू कितना पढ़ रहा था। जल्दी जा इसके साथ। मुझे खाना बनाना है। पापा भी आते होंगे। वैसे ही आज खाना बनाने में देर हो गई है।”
मम्मी ने कहा था और फिर रोटियाँ बेलने में मशरूफ हो गई थी।

“चलिए राजकुमार सोनू जी। आपकी सवारी इन्तेजार कर रही है।”, मोनू ने झुक कर किसी दरबारी की एक्टिंग करते हुए कहा था।

सोनू को पता था कि मोनू ने उसे परेशान करना था लेकिन अब कुछ नहीं हो सकता था। सोनू बाहर की तरफ बढ़ा।

“क्यों राजकुमार सोनू जी, हाल कैसे हैं?” मोनू बोला था। उसके चेहरे से शरारत टपक रही थी। आज क्या क्या देखने की ख्वाहिश रखते हैं आप। सुना है आजकल बाघ भी घूम रहा है। ढंढरी गाँव में कल ही एक बच्चे को लेकर गया बाघ। आपकी ही उम्र का था। उसकी खून से सनी लाश मिली थी। सुना है वह बच्चा भी लोगों को दिखता अब। फिर मोहल्ले के खबेस का हाल तो आपको पता ही है। क्या पता दोनों ने मिलकर जोड़ी बना ली हो? एक खबेस ने प्रकाश के क्या हाल किये थे आपको याद तो होगा। प्रकाश अभी तक सदमे से नहीं उभरा है। अब दो हो गये हैं। आप एक तरफ भागोगे तो दूसरा तो पकड़ ही लेगा। हो सकता है आज आपका लकी डे हो। क्या कहते है, प्रिंस सोनू? करेंगे दो दो हाथ।” कहते हुए मोनू मुस्कराया था।

“मम्मीई ई ई”

“मोनू उसे डरा मत। तेरे को समझाया था न? तुझे मालूम भी है।”

“मैंने कुछ भी नहीं किया माँ।” मोनू जवाब में चिल्लाया था और सोनू से बोला था- “तू भी बड़ा डरता है यार। क्या होगा तेरा भी। तेरे उम्र में तो मैं अकेले ही बाहर चला जाता था और धारे से पानी भी भर कर ला जाता था। और तू। तुझे धारे भेजेंगे तो तू उधर से पानी तो क्या लायेगा। डर के मारे तेरी सुस्सू निकल जायेगी और तू बेहोश ही मिलेगा हमें। तुझे पता है धारे में रात को एक चुड़ैल रहती है। तेरे जैसे ही प्यारे प्यारे बच्चे को ढूँढती रहती है। तेरा नरम नरम मांस ऐसे ही खाएगी जैसे तू मुर्गे की टंगड़ी खता है। और यह कहकर मोनू ऐसे चलने लगा जैसे उसने कुछ कहा ही न हो।” जब उसे सोनू आते हुए नहीं दिखा तह तो वह खौफनाक मुस्कराहट मुस्कराते हुए बोला था, ”चल जल्दी चल। मुझे डर है कि तू कहीं यहीं न कर दे।” मोनू कह कर हँसा था और उसने जाली का दरवाजा खोला था। सोनू आगे था और मोनू पीछे था। बरामदे के एक कोने में पहुँच कर मोनू ने कहा था –

“जाइए प्रिंस। होकर आइये। हम आपका इधर ही इंतजार कर रहे हैं।” जब से टीवी पर मोनू ने राजा महराजाओ वाले धारावाहिक देखने शुरू किये थे तब से ही वो सोनू को चिढ़ाने के लिए इस तरह बात किया करता था।

सोनू ने एक बार मोनू को देखा था और फिर सामने देखा था। सामने बाथरूम था जिसके अन्दर अँधेरा था। बाथरूम के बाहर ही लाइट का स्विच था। बरामदे से बाथरूम की दूरी ज्यादा तो नहीं थी लेकिन फिर भी माहौल डरावना था। बाथरूम की छत से घर की छत की तरफ रस्सियाँ बंधी हुई थी जिन पर सब्जियों की बेले लटक रही थीं। चचिंडा,लौकी, तोरियाँ उनसे लटक रही थी। सोनू ने मम्मी से सुना था कि ऐसी बेलों से साँप भी लटकते थे। बाथरुम की छत पर कद्दू की बेल का झुरमुट था। वहीं बरामदे में बाथरूम के दायीं तरफ एक छोटी सी क्यारी थी जिसमें टमाटर और बैगन के पौधे थे। हवा चल रही थी और उन पौधों से सरसराहट उत्पन्न हो रही थी। सोनू ने मोनू की तरफ देखा और फिर उन पौधों की तरफ देखा।

“कुछ नहीं होगा। मैं इधर हूँ न। और फिर कुछ हुआ भी तो क्या हुआ। भाई के लिए भाई कुर्बान होता रहा है। मैं कहूँगा खबेस जी मेरी जिंदगी बड़ी प्यारी आप प्यारे सोनू को ले जाओ। वो आपका पूरा खया रखेगा। आपके पैर भी दबाएगा।” मोनू ने मुस्कराते हुए कहा था।

सोनू ने बेबसी से उसकी तरफ देखा था और उससे कहा था, “वहाँ तक चलो न?”

“अबे बेशर्म! वहाँ तक चलने को कहता है। चल तू भी क्या याद रखेगा।” और मोनू उसके साथ बरामदे में आधे तक आ गया था। “चल जा अब”, उसने सोनू से कहा तो वह गोली की तरह आधा रास्ता तय कर गया था।

सोनू ने बाथरूम का स्विच ऑन किया लेकिन वो खुला नहीं। शायद बल्ब फ्यूज हो गया था। भागते हुए सोनू को पौधों के बीच में कुछ दिखा था लेकिन उस पर ध्यान दिये बना वो सीधा बाथरूम की तरफ भागा था। उसे सुसु ही करनी थी और वो थोड़ी देर में निपट जाती। वो अँधेरे में ये काम कर सकता था। वो अंदर गया और उसने दरवाजा बंद किया और राहत की साँस ली। उसने बाथरूम की कुण्डी लगाई और पेंट खोलकर बाथरूम करने की कोशिश की ही थी कि बाथरूम का दरवाजा भड़भड़ाया जाने लगा।

“सोनू खोल! सोनू दरवाजा खोल!” ये मोनू कीआवाज़ थी और वो डरा हुआ लग रहा था।
“सोनूsss! नहींss नहींss नहीं ss ” फिर मोनू के चीखने की आवाज़ आई थी और फिर किसी के गिरने की आवाज़ हुई थी।

“मोनू!”मम्मी के चीखने की आवाज़ आई थी। फिर भागने की आवाज़ और दरवाजा खुलने की आवाज़ हुई थी। मम्मी भागते हुए बाहर आई थी और कुछ देर बाद सोनू को उनकी आवाज़ सुनाई दी थी- “मोनू उठ क्या हुआ? उठ मोनू क्या हुआ बेटा।” सोनू ने दरवाजा खोला था तो मम्मी ने उसे देखकर कहा था- “अंदर रह! मैं इसे लेकर अंदर जा रही हूँ। तुझे लेने आती हूँ।” फिर मोनू को कंधे में उठाकर मम्मी चली गई थी।

मम्मी जब मोनू को लेकर जाने लगी तो सोनू को लगा था कि मोनू बडबडा रहा था – कंचन खबेस बण ग्यायी.. (कंचन खबेस बन गई) ऐसा कुछ सोनू को सुनाई तो दिया था लेकिन मम्मी तब तक उसे लेकर चली गई थी।

सोनू ने दरवाजा बंद करने में कोई देर नहीं लगाई थी। दरवाजा बंद करते हुए उसकी आँख ऊपर छत की तरफ चली गई थी और उसने उधर एक साया सा खड़ा महसूस किया था। सोनू ने उसे देखकर अनदेखा कर दिया था और फट से दरवाजा बंद कर दिया था। उसकी साँसे तेज हो गई थी। ऊपर कौन था? वह क्यों था? सोनू सोचने लगा उसने अंदर ही क्यों नहीं सुसु कर दी।

कुछ देर बाद – मम्मी की आवाज़ आई थी- “सोनू! आजा बाहर।” मैं इधर हूँ।

“अच्छा मम्मी।”सोनू ने कहा था। फिर वो अंदर जाने लगे थे।

“मम्मी ये मोनू कंचन के बारे में क्या बोल रहा था?” मोनू ने मम्मी को पूछा था।

“कुछ नहीं। वो तो पागल है। गिर गया था तो ऐसे ही उल जलूल बक रहा था।” मम्मी ने कहा था। “कंचन तो बाहर गई है। मैंने तुझे बताया था न।”

“ओके मम्मी।”, सोनू ने कहा और डरते हुए एक नजर बाथरूम की तरफ मारी। वहाँ कोई नहीं था।

सोनू अब कंचन के बारे में सोचने लगा। कंचन मोनू की बेस्ट फ्रेंड थी जिसके साथ खेलना उसे पसंद था। प्रकाश और उसके बीच झगड़ा भी कंचन को लेकर ही हुआ था। न जाने क्यों प्रकाश नहीं चाहता था कि वो कंचन के साथ खेले। लेकिन फिर सोनू ने अपने मन से ये ख्याल निकाल दिया और उसने मम्मी को पूछा-“आज खाने में क्या बना है?”

“सेवई बनाई है”, मम्मी ने ऐसा ही कहा था। उनका ध्यान कहीं और था।

घर का माहौल अब काफी संजीदा हो गया था। मोनू बाहर के बिस्तर में बेहोश लेटा कुछ न कुछ बड़बड़ा रहा था। सोनू को उसके कमरे में भेज दिया गया था।

कुछ देर बाद पापा ऑफिस से आ गये थे। राजेन्द्र बिष्ट बैंक में कार्यरत थे और आज ऑफिस से आने में थोड़ी देर हो गई थी। घर में हुई घटना की बात उन्हें पता चली। मोनू को अब होश आ गया था। वो बुखार से तप रहा था। सोनू को मम्मी ने सुला दिया था। कम से कम उन्हें तो ये ही लग रहा था। पापा और मम्मी मोनू के बगल में बैठे हुए थे।

मोनू की आँखें खुली। “बेटा क्या हुआ था?” माँ ने पूछा।

“माँ वो कंचन….वो खबेस… “

“कौन कंचन?” पापा ने कहा।

“वो शर्मा जी की लड़की।”

“वो तो….” पापा ने बोली थी।

“हाँ,” माँ ने बोलते हुए सोनू के कमरे की तरफ देखा था। सोनू को पता था ऐसा होगा इसलिए वो छुप गया था।

एक बार यह सुनिश्चित करके कि सोनू नहीं सुन रहा मम्मी ने अपनी आवाज़ धीमी कर दी थी-“हाँ। सोनू को हमने बताया नहीं था। उसे उस दिन बाहर भेज दिया था। बेचारी के साथ बुरा हुआ था। खेल खेल में उसकी जान चली गई। बोलो किसी को क्या पता था कि अपनी नानी के घर जायेगी और कभी लौट कर नहीं आएगी।”

पापा ने अफसोस जताते हुए अपनी गर्दन हिलाई थी और मोनू जो तब तक उठ गया था से पूछा था, “अब बता क्या हुआ था?”

मोनू ने बात शुरू की।

“मैं उधर खड़ा था। सोनू बाथरूम चला गया था। मैं ऐसे ही वक्त काट रहा था और अपनी जगह पर गोल गोल घूम रहा था कि मुझे लगा कि कोई बाथरूम की छत पर खड़ा है और वह हवा में उड़ रहा है। मैं डर गया और बाथरूम के दरवाजे की तरफ भागा और दरवाजा पीटने लगा। सोनू अन्दर था लेकिन उसने दरवाजा नहीं खोला पापा।” कहकर मोनू सुबकने लगा। पापा ने मोनू को गले लगाया और उसे चुप कराया। तब तक मम्मी ने उठकर सोनू के कमरे का दरवाजा लगा दिया था। जब मोनू चुप हुआ तो उसने कहना जारी रखा, “ तब मुझे लगा किसी ने मुझे बाथरूम के दरवाजे से पीछे को खींच कर पहले हवा में उठाया और फिर गेट की तरफ फेंक दिया है। मुझे कुछ पता लगता उससे पहले मैं जमीन पर था। दर्द के मारे मेरे बुरे हाल थे। मेरी आँखें बंद थी और जब मैंने अपनी छाती पर किसी को महसूस किया तो आँखें खोली और मेरी चीख निकल गई। मैंने किसी को अपनी छाती पर बैठा हुआ देखा था, पापा। वह कंचन थी। सोनू की दोस्त। उसका सिर फटा हुआ है। पूरा चेहरा खून से सना हुआ था। मैं कुछ कहता उससे पहले उसने अपने हाथों से मेरे मुँह को ढक दिया। वो हँस रही थी और कह रही थी-“खबेस देखने का मन है भैया। बताओ कैसी हूँ मैं।” कहकर हँसने लगी और फिर वह मेरे मुंह की तरफ बढ़ी और उसके मुँह से खून टपक कर मेरे चेहरे पर गिरने लगा।” फिर मुझे याद नहीं क्या हुआ।

मम्मी पापा ने एक दूसरे को देखा। उन्हें समझ नहीं आ रहा था कि क्या कहें। मम्मी ने कंधे उचकाये। “तू सोनू को डराने के लिए ऐसा सब कहता है इसलिए तुझे ऐसा लगा होगा।” आखिर में मम्मी ही बोली थी। “मैं उधर आई तो कुछ नहीं था। तू अपने कपड़े देख। उधर कुछ लगा है क्या? न ही तेरे चेहरे पर कोई खून था। होता तो मुझे नहीं दिखता भला।” पापा भी उधर ही से आये थे। मुख्य गेट वही है। “क्यों जी, आपको कुछ दिखा?” मम्मी ने पापा से कहा।

“नहीं तो। ” पापा ने कहा। “वैसे भी मोनू बेटा खबेस वगैरह कुछ नहीं होता। यह सब मन का वहम है। अंधविश्वास है।”

“पर पापा मुझे डर लग रहा है।” मोनू ने रुआंसा होकर बोला था। “आज मुझे आप लोगों के साथ सोना है।” वह गिड़गिड़ाया।

“ठीक है। ठीक है। “ मम्मी ने उसके बालों पर हाथ फिरा कर कहा था। “लेकिन चलो अब सब खाना खा लेते हैं।”

इस बात को गुजरे एक दो घंटे हो चुके थे। मोनू अब अच्छा महसूस कर रहा था। शायद उसे ही वहम हुआ था। वो गोल गोल घूम रहा था और इस कारण शायद उसे वो साया दिया। फिर वह भागकर बाथरूम की तरफ गया और फिर घूमने के वजह से उसे चक्कर आ गया और उसके कदम लड़खड़ाये और वो गिर गया था। न कोई उसकी छाती पर बैठा था और न ही किसी ने उसके मुँह पर खून की उलटी करी थी। यह सब उसके मन का वहम था। वो भी कितना बड़ा पागल है। उसने मन ही मन सोचा। सोनू के सामने उसकी मिटटी पलीत हो गई। अब सोनू जरूर उसे चिढ़ायेगा। उसने सोचा। और फिर बोला – “नहीं माँ। मैं अपने कमरे में सोऊँगा। मैं डरता वरता नहीं हूँ।”

“तू तो मेरा बहादुर बच्चा है।” पापा उसकी बात सुनकर खुश हुए थे।चल उठ जा और खाने के लिए हाथ मुँह धो ले। कुछ ही देर में मोनू पहले की तरह चहकने लग गया था। खाना लग चुका था। और अब मम्मी ने मोनू से कहा – “जा सोनू को बुला ला। वो सो गया होगा तो उठा देना उसे। बेचारा वो भी डरा हुआ सा लग रहा था। उसने भी खाना नहीं खाया।”

मोनू उछलता कूदता अपने भाई को बुलाने के लिए चल दिया। कमरे में अँधेरा छाया हुआ था। उसने सोचा कि वो सोनू को दुबारा डराएगा। कम से कम इससे सोनू को उसका मजाक उड़ाने का वक्त तो नहीं मिलेगा। बाहर क्या हुआ था यह वो अब भूलने लगा था। वो बिना आहट किये कमरे तक पहुँचना चाहता था। फूँक-फूँक कर कदम रखते हुए अपने कमरे तक पहुँचा। दरवाजा हल्का सा खुला था। चन्द्रमा की रोशनी बाहर से छनकर खिड़की के रास्ते अंदर आ रही थी। दरवाजा खोलने के लिए ही उसने हाथ बढ़ाया था कि उसे सोनू का स्वर सुनाई दिया- “वाह कंचन तुमने तो कमाल कर दिया। तुम हो मेरी बेस्ट फ्रेंड। पहले तुमने प्रकाश को मजा चखाया और अब मोनू को। मेरी तो हँसी छूटने वाली थी। बड़ी मुश्किल से डरने की एक्टिंग कर रहा था।कैसे डर से काँप रहा था बेचारा। अब मुझे कभी नहीं डराएगा।” कहकर सोनू हँसने लगा था।

उधर से कुछ बोला गया जो मोनू ने तो नहीं सुना लेकिन उसे सोनू पर बहुत गुस्सा आया था। उसका मन तो किया था कि वह दरवाजा खोलकर सोनू को सबक सिखाये लेकिन फिर सोनू की कुछ कहने लगा तो वह फिर ध्यान से सुनने लगा।

“हाँ। अब शायद कोई मुझे परेशान न करे। लेकिन मुझे किसी से कुछ लेना देना नहीं है। मुझे एक बात बताओ तुम मुझे अब छोड़कर तो नहीं जाओगी न। तुम्हे पता है जब मम्मी ने कहा तुम अपनी नानी के घर हमेशा के लिए चली गई हो तो मैं कितना रोया था।”

“क्या कहा? तुम मर गई थी? लेकिन कैसे?”

“ओह तुम्हे दर्द हुआ होगा न? अब कैसी हो?”

“मुझसे एक वादा करो।”, सोनू ने बोला,”तुम अब मुझे छोड़कर कभी नहीं जाओगी। हम हमेशा साथ खेलेंगे।”

“वाह!! सच कह रही हो न। थैंक यू वैरी मच कंचन। तुम मेरी सबसे अच्छी दोस्त हो।” सोनू चहका था।

मोनू के कानो में ये आवाज़ पड़ रही थी। उसका शरीर जूडी के बुखार की तरह काँपने लग गया था।
“मोनू किधर रह गया तू। सोनू को जगाया या नहीं। खाना खाने आओ दोनों।” मम्मी की आवाज़ किचन से आई थी। खाना लग चुका था। मोनू ने जवाब देने के लिए मुँह खोला लेकिन उसकी जबान सूख चुकी थी। वह चाहकर भी कुछ कह नहीं पा रहा था।

“आ रहा हूँ, मम्मी!”,सोनू ने कहा था।”कंचन तुझे खाने के लिए चाहिए?” सोनू ने पुछा था। “नहीं?? चल कोई नहीं। मैं खाकर आता हूँ। तू कहीं मत जाना, हाँ।” कहकर सोनू भागते हुए आया था और उसने दरवाजा खोला था। सामने मोनू को देखकर वो ठिठका था। मोनू सोनू से लम्बा था तो उसके सिर के ऊपर से अंदर कमरे में देख सकता था। अदंर कमरा पूरा खाली था। चन्द्रमा की दूधिया रोशनी में इतना तो देखा जा सकता था कि किधर कुछ भी नहीं था।

“त…तू अंदर किस से बात कर रहा था?” मोनू ने कंपकंपाती आवाज़ में पूछा था।

“किसी से नहीं।” सोनू मुस्करा दिया था और फिर उसने मोनू को देखकर आँख मारी थी। इससे पहले मोनू कुछ कहता वो भागते हुए किचन की तरफ चले गया था।

“पापा मार्केट से मेरे लिए क्या लाये? मम्मी सेवई में मौजूद काजू मैं खाऊँगा। वाह कितनी अच्छी खुशबू आ रही है सेवई की। मैं तो आज रोटी बिलकुल नहीं खाऊंगा।”, सोनू की आवाज मोनू के कानों में पड़ रही थी लेकिन वह कमरे की तरफ ताकता ही जा रहा था।

वहाँ बाहर बिष्ट दम्पति खुश थे। उन्हें लग रहा था कि मोनू की हालत देखकर सोनू घबरा गया होगा लेकिन वो तो खुश था। चलो अच्छा है। उन्होंने राहत की साँस ली। दोनों ही बच्चे अब ठीक लग रहे थे। इनका हॉरर धारावाहीक देखना बंद करना होगा। उन्होंने आपस से यह निर्णय कर लिया था।

मोनू अभी भी खड़ा कमरे की तरफ देख रहा था जिधर उसे सोना था। उधर कोई नहीं था तो सोनू किससे बात कर रहा था। और उसने आँख क्यों मारी थी। कमरा खाली लग रहा था लेकिन मोनू की अन्दर जाने की हिम्मत नहीं हो रही थी। वह अँधेरे कमरे की तरफ पीठ करने की हिम्मत भी नहीं कर पा रहा था। उसे लग रहा था कि वह पीठ करेगा और कोई उसे खींच लेगा।

“मोनू जल्दी आ! खाना ठंडा हो रहा है।” अचानक मम्मी की आवाज़ आई तो उसका ध्यान टूटा था।

मोनू को अपनी टाँगे मन भर की लग रही थीं। वो मुड़ा और खाने के कमरे की तरफ जाने लगा ही था कि तभी कमरे में कुछ सरसराहट हुई थी। वो पीछे मुड़ा। उसे कुछ दिखाई नहीं दिया। बस ऐसा लगा जैसे कोई फुसफुसाकर कह रहा हो – “खबेस देखना है भैया!!!”

मोनू कमरे की तरफ भागने लगा। उधर रोशनी जो थी। उसके कानों में किसी बच्ची की हँसने की आवाज़ अभी आ रही थी।

वह खाने के कमरे में पहुँचा तो टेबल पर सोनू बैठा हुआ था। मम्मी किचन में थी और पापा हाथ मुँह धोने बाहर गये थे।

सोनू ने उसकी तरफ देखा और उसने मोनू को देखकर मुस्कराकर आँख मारी।

पर तब तक मोनू बेहोश होकर गिर चुका था।

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विकास नैनवाल

Vikas Nainwal is a writer and translator who currently lives in Gurgram, Haryana. He writes in Hindi and translates English books into Hindi. His first story 'Kursidhar' (कुर्सीधार) was published in Uttaranchal Patrika in 2018. He hails from a town called Pauri in Uttarakhand.
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मृगतृष्णा 'तरंग'

*खबेस* बच्चों के ऊपर लिखी गई कहानी भी बच्चों से कही जाने वाली नहीं है। या शायद आजकल के बच्चों को ऐसी ही डरावनी कहानियों का चस्का लगा है।
कहानी का भाव स्पष्ट रूप से समझाया गया है। और कंचन का खबेस बन जाना एक तरह से प्रश्नचिन्ह के साथ कहानी का अंत लाज़मी बना है।
👍👌

जी जब मैं छोटा था तो आर एल स्टाइन की कहानियां काफी पसंद आती थीं। उनकी गूसबंप सीरीज पसंद थीं। ऐसे में इसी विधा की ये बाल कहानी है। कहानी आपको अच्छी लगी यह जानकर अच्छा लगा। हिंदी में बाल पाठकों के लिए हॉरर विधा में कम ही लेखन हुआ है। इसी खाली जगह को भरने का प्रयास मैंने किया है।