हिन्दी का श्रेष्ठ और कालजयी साहित्य
चंद्रकांता संतति भाग 8 बयान 8

अपनी बहिन लाडिली, ऐयारों और दोनों कुमारों को साथ लेकर कमलिनी राजा गोपालसिंह के कहे अनुसार मायारानी के तिलिस्मी बाग के चौथे दर्जे में जाकर देवमन्दिर में कुछ दिन रहेगी। वहां रहकर ये लोग जो कुछ करेंगे, उसका हाल पीछे लिखेंगे, इस समय तो भूतनाथ का कुछ हाल लिखकर हम अपने पाठकों के दिल में […]
चंद्रकांता संतति भाग 8 बयान 7

राजा गोपालसिंह और देवीसिंह को काशी की तरफ और भैरोसिंह को रोहतासगढ़ की तरफ रवाना करके कमलिनी अपने साथियों को साथ लिए हुए मायारानी के तिलिस्मी बाग की तरफ रवाना हुई। इस समय रात नाममात्र को बाकी थी। प्रायः सुबह को चलने वाली दक्षिणी हवा ताजी खिली हुई खुशबूदार फूलों की कलियों में से अपने […]
भाड़े का टट्टू
प्रेमचंद कहानियाँ, प्रेमचंद कालीन कहानियाँ 0

1 आगरा कालेज के मैदान में संध्या-समय दो युवक हाथ से हाथ मिलाये टहल रहे थे। एक का नाम यशवंत था, दूसरे का रमेश। यशवंत डीलडौल का ऊँचा और बलिष्ठ था। उसके मुख पर संयम और स्वास्थ्य की कांति झलकती थी। रमेश छोटे कद और इकहरे बदन का, तेजहीन और दुर्बल आदमी था। दोनों में […]
चंद्रकांता संतति भाग 8 बयान 6

रात आधी जा चुकी है, चारों तरफ सन्नाटा छाया हुआ है, हवा भी एकदम बन्द है, यहां तक कि किसी पेड़ की एक पत्ती भी नहीं हिलती। आसमान में चांद तो नहीं दिखाई देता, मगर जंगल मैदान में चलने वाले मुसाफिरों को तारों की रोशनी जो अब बहुतायत से दिखाई दे रहे हैं, काफी है। […]
चंद्रकांता संतति भाग 8 बयान 5

दिन दो पहर से कुछ ज्यादा चढ़ चुका है मगर मायारानी को खाने-पीने की कुछ भी सुध नहीं है। पल-पल में उसकी परेशानी बढ़ती ही जाती है। यद्यपि बिहारीसिंह, हरनामसिंह और धनपत ये तीनों उसके पास मौजूद हैं परन्तु समझाने-बुझाने की तरफ किसी का ध्यान नहीं। उसे कोई भी नहीं दिलासा देता, कोई धीरज भी […]
चंद्रकांता संतति भाग 8 बयान 4

कमलिनी की आज्ञानुसार बेहोश नागर की गठरी पीठ पर लादे हुए भूतनाथ कमलिनी के उस तिलिस्मी मकान की तरफ रवाना हुआ जो एक तालाब के बीचोंबीच में था। इस समय उसकी चाल तेज थी और वह खुशी के मारे बहुत ही उमंग और लापरवाही के साथ बड़े-बड़े कदम भरता जा रहा था। उसे दो बातों […]
चंद्रकांता संतति भाग 8 बयान 3

मायारानी उस बेचारे मुसीबत के मारे कैदी को रंज, डर और तरद्दुद की निगाहों से देख रही थी जबकि यह आवाज उसने सुनी, “बेशक मायारानी की मौत आ गई!” इस आवाज ने मायारानी को हद्द से ज्यादा बेचैन कर दिया। वह घबड़ाकर चारों तरफ देखने लगी मगर कुछ मालूम न हुआ कि यह आवाज कहां […]
बाघ से भिड़ंत-श्रीराम शर्मा
साहित्य विमर्श कहानियाँ, बाल कथाएँ 0

सायंकाल के चार बजे थे। मैं स्कूल से लौटकर घर में गरम-गरम चाय पी रहा था। किसी ने बाहर से पुकारा: “मास्टर साहब, मास्टर साहब, जरा बाहर आइए। एक आदमी आया है। बाघ की खबर लाया है।” बाघ का नाम सुनकर मैं उछल पड़ा। चाय का प्याला वहीं रखकर झट से बाहर आया। देखा, […]
व्यक्त-अव्यक्त
आलोक मिश्रा काव्य संसार, समकालीन काव्य 0
मैं जब भी व्यक्त हुआ आधा ही हुआ उसमें भी अधूरा ही समझा गया उस अधूरे में भी कुछ ऐसा होता रहा शामिल जिसमें मैं नहीं दूसरे थे जब उतरा समझ में तो वह बिल्कुल वह नहीं था जो मैंने किया था व्यक्त इस तरह मैं अब तक रहा हूँ अव्यक्त।
डर गईं अमराइयां भी आम बौराए नहीं
प्रवीण प्रवाह काव्य संसार, समकालीन काव्य 3
डर गईं अमराइयां भी आम बौराए नहीं, ख़ूब सींचा बाग हमने फूल मुस्काए नहीं। यार को है प्यार केवल जंग से, हथियार से, मुहब्बत के रंग मेरे यार को भाए नहीं। मंज़िलों के वास्ते खुदगर्जियाँ हैं इस कदर , हमसफ़र को गिराने में दोस्त शर्माए नहीं । रोज सिमटी जा रही हैं उल्फतों की चादरें […]
भारत दुर्दशा
भारतेन्दु हरिश्चंद्र नाटक/एकांकी 0
प्रहसन भारतदुर्दशा नाट्यरासक वा लास्य रूपक , संवत 1933 ।। मंगलाचरण ।। जय सतजुग-थापन-करन, नासन म्लेच्छ-आचार। कठिन धार तरवार कर, कृष्ण कल्कि अवतार ।। पहिला अंक स्थान – बीथी (एक योगी गाता है) (लावनी) रोअहू सब मिलिकै आवहु भारत भाई। हा हा! भारतदुर्दशा न देखी जाई ।। धु्रव ।। सबके पहिले जेहि ईश्वर धन बल दीनो। सबके पहिले जेहि […]
अब्बू खाँ की बकरी – डॉ जाकिर हुसैन
साहित्य विमर्श कहानियाँ, बाल कथाएँ 9

हिमालय पहाड़ पर अल्मोड़ा नाम की एक बस्ती है। उसमें एक बड़े मियाँ रहते थे। उनका नाम था अब्बू खाँ। उन्हें बकरियाँ पालने का बड़ा शौक था। बस एक दो बकरियाँ रखते, दिन भर उन्हें चराते फिरते और शाम को घर में लाकर बाँध देते। अब्बू गरीब थे और भाग्य भी उनका साथ नहीं देता […]
जूँ चट्ट, पानी लाल-सर्वेश्वर दयाल सक्सेना

कवि सर्वेश्वर दयाल सक्सेना से परिचय बहुत बाद में हुआ। परिचय हो जाने पर भी उनकी पहली याद अपनी प्रिय पत्रिका पराग के संपादक के रूप में ही रही। आज उनकी पुण्य तिथि पर प्रस्तुत है, बच्चों के लिए लिखी गई उनकी एक गीत कथा एक लड़की थी। वह हमेशा धूल में खेलती थी। नतीजा […]
दुःख की बदली- महादेवी का पाथेय
अमित कुमार सिंह विमर्श महादेवी वर्मा 5
छायावाद स्व के अस्तित्व को समझने के लिए अन्तर्मन के गहरे पैठने का युग है। इस दौर के चारों स्तम्भों – प्रसाद, पन्त, निराला और महादेवी वर्मा ने स्व-अन्वेषण के निष्कर्षों की अभिव्यक्ति गद्य एवं पद्य दोनों रूपों में की है। इन चारों रचनाकारों के रचना-कर्म में सर्वाधिक विषय-वैविध्य जिसकी रचनाओं में मिलता है, वह […]
जहरबाद: अब्दुल बिस्मिल्लाह का पहला उपन्यास
झीनी-झीनी बीनी चदरिया जैसी लोकप्रियता भले ही अब्दुल बिस्मिल्लाह के अन्य उपन्यासों को हासिल नहीं हुई हो, लेकिन पठनीयता और सामाजिक यथार्थ के प्रामाणिक अंकन की दृष्टि से उनके सभी उपन्यास अत्यंत महत्वपूर्ण हैं। ‘जहरबाद’ प्रकाशन की दृष्टि से अब्दुल बिस्मिल्लाह का तीसरा उपन्यास है, परंतु वस्तुतः: यह प्रथम प्रकाशित उपन्यास ‘समर शेष है’ से […]
धार्मिक प्रतिक्रिया मात्र नहीं है भक्ति काव्य
साहित्य विमर्श साहित्य इतिहास 2
संवत् 1375 से लेकर संवत् 1700 तक के काल को भक्ति काल कहा जाता है। भारतीय इतिहास में पहली बार समस्त देश की चेतना इस काल में भक्ति भाव धारा से अनुप्राणित हो उठी। ग्रियर्सन ने कहा है — भक्ति काव्य का आरंभ भक्ति आंदोलन इतने जोर शोर से कैसे आरंभ हुआ और इसके […]