‘परिंदे’ निर्मल वर्मा की सर्वाधिक चर्चित कहानियों में से है . यह न सिर्फ अपनी चित्रात्मक भाषा के ज़रिये एक नए शिल्प प्रयोग को सामने लाती है , बल्कि कथ्य के स्तर पर भी कई परंपरागत प्रतिमानों को तोड़ती हुई नज़र आती है . परिंदे एक प्रेम कथा है . ऐसा नहीं है कि हिंदी […]
रेटिंग: *****
1954 में मैला आंचल के प्रकाशन को हिन्दी उपन्यास की अद्भुत घटना के रूप में माना जाता है। इसने आंचलिक उपन्यास के रूप में न सिर्फ हिन्दी उपन्यास की एक नयी धारा को जन्म दिया, बल्कि आलोचकों को लम्बे समय तक इस पर वाद-विवाद का मौका भी दिया। अंग्रेजी में चौसर के ‘केन्टरवरी टेल्स’ और […]
रेटिंग: *****
प्रेमचन्द के बाद हिन्दी में ग्राम कथा पर आधारित धारा अवरूद्ध सी हो जाती है। बलचनमा (नागार्जुन.1952) और गंगा मैया (भैरव प्रसाद गुप्त.1952) जैसे उपन्यास लिखे तो गये, परन्तु प्रेमचन्द जैसी व्यापक संवेदनशीलता और मानवीय दृष्टि के अभाव में यथोचित प्रभाव नहीं छोड़ पाए। ऐसे में 1954 में मैला आंचल का आना एक सुखद आश्चर्य […]
रेटिंग: ****
किसान समस्या प्रेमचन्द के उपन्यासों में सर्वाधिक महत्वपूर्ण समस्या के रूप में सामने आती है।प्रेमचन्द का पहला उपन्यास ‘सेवासदन’ यद्यपि स्त्री समस्या को लेकर लिखा गया है,लेकिन यहाँ भी चैतू की कहानी के माध्यम से उन्होँने यह संकेत दे ही दिया है कि किसान समस्या और किसान जीवन ही उनके उपन्यासों का मुख्य विषय होने […]
देवसेना का गीत जयशंकर प्रसाद के नाटक स्कंदगुप्त से लिया गया है। काव्यांश आह! वेदना मिली विदाई! मैंने भ्रम-वश जीवन संचित, मधुकरियों की भीख लुटाई। छलछल थे संध्या के श्रमकण, आँसू-से गिरते थे प्रतिक्षण। मेरी यात्रा पर लेती थीं- नीरवता अनंत अँगड़ाई। शब्दार्थ वेदना – अनुभूति, ज्ञान, पीड़ा ( प्रस्तुत कविता के लिए उपयुक्त अर्थ- पीड़ा, कष्ट) भ्रम – संदेह, धोखा, गलतफ़हमी (भ्रम वश – गलतफ़हमी के कारण) जीवन-संचित – जीवन भर इकट्ठा की हुई मधुकरी – भिक्षा, साधुओं द्वारा पके अन्न की भिक्षा, मधुकर अर्थात् भौंरे की मादा (भौंरी), थोड़ा-थोड़ा करके इकट्ठी की गयी वस्तु, कर्नाटक संगीत की एक रागिनी श्रम कण – पसीने की […]
उस रोज सुबह से पानी बरस रहा था। साँझ तक वह पहाड़ी बस्ती एक अपार और पीले धुँधलके में डूब-सी गयी थी। छिपे हुए सुनसान रास्ते, बदनुमा खेत, छोटे-छोटे एकरस मकान – सब उस पीली धुन्ध के साथ मिलकर जैसे एकाकार हो गए थे। औरतें घरों के दरवाजे बन्द किए सूत सुलझा रही थीं। आदमी पास के एक गाँव में गए थे। वहाँ मिशन का क्वार्टर था और एक भट्टी। वाकई, वहाँ बारिश की धीमी, एकरस और मुलायम छपाछप की कोई आवाज नहीं आ रही थी। चार बजने से कुछ ही मिनट पहले एक कॉटेज का दरवाजा खुला। यह कॉटेज मामूली मकानों से भी नीची और छोटी थी। उसके चरमराते हुए लकड़ी के जीने से पाँच-छ: लड़के-लड़कियाँ उतर, बूढ़े किसानों की तरह झुककर, अपने बस्तों से बारिश बचाते, चुपचाप, घुमावदार रास्ते पर चलकर आँखों से ओझल हो गए। जब तक वह दिखलाई देते रहे, उनकी मास्टरनी तनी हुई चुपचाप खड़ी […]
बॉलीवुड में बहुत-सी प्रेम कहानियाँ बनीं। बहुत से किस्से परवान चढ़े। कई जोड़ियाँ बनीं, कई दिल टूटे। इन प्रेम कहानियों का जिक्र जब भी आएगा, देव आनंद और सुरैया की याद जरूर आएगी। देव-सुरैया की लव स्टोरी बॉलीवुड की सबसे चर्चित प्रेम कहानियों में से एक है, और शायद सबसे बदकिस्मत भी। देव-सुरैया की प्रेमकथा उनकी पहली फिल्म विद्या की शूटिंग के समय ही शुरू हो गई थी। देव उस समय न्यूकमर थे, जबकि सुरैया गायिका और अभिनेत्री दोनों रूपों में एक स्थापित कलाकार। देवआनंद सुरैया के साथ काम करने को लेकर जितने उत्साहित थे, उतने ही आशंकित। बाद में उन दिनों को याद करते हुए देव साहब ने लिखा- “वह बहुत अच्छी थीं, मैं उनके दोस्ताना व्यवहार से प्रभावित था। इतनी बड़ी स्टार होकर भी उनमें घमंड नहीं था।“ सुरैया को भी देव के आकर्षक व्यक्तित्व ने पहली बार में ही प्रभावित किया। एक इंटरव्यू में इस बारे […]
1979 में रिलीज हुई यशराज फिल्म्स की “काला पत्थर” सितारों से सजी उस समय की एक बहुचर्चित फिल्म थी जिसने उस समय तो बॉक्स ऑफिस पर औसत व्यवसाय किया था लेकिन बाद में सफलता के कई कीर्तिमान बनाए। बॉलीवुड में त्रासदियों पर बनी कुछ अच्छी फिल्मों में इस फिल्म का स्थान सर्वोपरि है। 27 दिसंबर 1975 में घटित धनबाद की “चासनाला खान दुर्घटना” से प्रेरित होकर यह फिल्म बनाई गई थी जिसमें लगभग 375 मजदूर खदान में पानी भर जाने के कारण असमय मृत्यु का शिकार हो गए थे। इस फिल्म की शूटिंग झारखंड (तत्कालीन बिहार राज्य) की गिद्दी खदानों में की गई थी। भारत में 90 फ़ीसदी से अधिक कोयले का उत्पादन कोल इंडिया करती है। कुछ खदानें बड़ी कंपनियों को भी दी गई हैं, इन्हें कैप्टिव माइन्स कहा जाता है। इन कैप्टिव खदानों का उत्पादन कंपनियां अपने संयंत्रों में ही ख़र्च करती हैं। भारत दुनिया के उन पांच […]
‘मनुस्मृति’ में कहा गया है कि जहाँ गुरु की निंदा या असत्कथा हो रही हो वहाँ पर भले आदमी को चाहिए कि कान बंद कर ले या कहीं उठकर चला जाए। यह हिंदुओं के या हिंदुस्तानी सभ्यता के कछुआ धरम का आदर्श है। ध्यान रहे कि मनु महाराज ने न सुनने जोग गुरु की कलंक-कथा के सुनने के पाप से बचने के दो ही उपाय बताए हैं। या तो कान ढककर बैठ जाओ या दुम दबाकर चल दो। तीसरा उपाय, जो और देशों के सौ में नब्बे आदमियों को ऐसे अवसर पर पहले सूझेगा, वह मनु ने नहीं बताया कि जूता लेकर, या मुक्का तानकर सामने खड़े हो जाओ और निंदा करने वाले का जबड़ा तोड़ दो या मुँह पिचका दो कि फिर ऐसी हरकत न करे। यह हमारी सभ्यता के भाव के विरुद्ध है। कछुआ ढाल में घुस जाता है, आगे बढ़कर मार नहीं सकता। अश्वघोष महाकवि ने बुद्ध […]
जाड़े की धुंध भरी घुप्प अंधेरी रात से ज्यादा गहरी रात और कोई नहीं होती, आज वैसी ही एक रात थी। ट्रेन रात के ग्यारह बजे की थी। कैलाश अपनी पत्नी और बच्चे को लेकर नौ बजे ही स्टेशन पहुँच गया। काठगोदाम स्टेशन यूँ तो चहल-पहल वाला स्टेशन है, पर जाड़े की रात जब गहरी होती है तो यहाँ एक अजीब सा सन्नाटा ला देती है। बच्चा अभी छोटा था सिर्फ दस महीने का, अतः कैलाश को समय से एक-दो घंटे पहले पहुँचना ही लाज़िमी लगा। वो काफी खुश था, ज़्यादा खुश इस वजह से था कि अनीता को नैनीताल काफी पसंद आया था। अनीता कैलाश की पत्नी थी। उसकी कई गुजारिशों के बाद कैलाश उसे घुमाने लेकर निकला था। क़रीब पाँच साल पहले दोनों की शादी हुई थी। यह हनीमून के बाद दूसरा मौका था जब दोनों कहीं बाहर घूमने निकले थे। पूछताछ केंद्र से कैलाश वह खबर भी […]
रुपाली ‘संझा’ के यात्रा वृतांत ‘दिल की खिड़की में टँगा तुर्की’ का एक अंश तकरीबन तीन हजार साल प्राचीन रोमन कालीन शहर! नहीं सिर्फ शहर नहीं…सुप्रसिद्ध पुरातन पत्तन (बंदरगाह) शहर! इस तरह की भौगोलिक स्थिति का मतलब तब किसी शहर के लिए हुआ करता था धन्ना सेठ होना। ये वो जमाना था जब सारा व्यापार समुद्र मार्ग के द्वारा होता था। ऐसी स्थिति में ये प्राकृतिक बंदरगाह उस शहर के लिए कारू का खजाना साबित हुआ करते थे। जब ये शहर अपने वैभव की पराकाष्ठा पर था तब मेडिटेरेनियन समुद्र के तट पर बसा नगर था! अपने वक्त का व्यापार के लिए लोकप्रियता के चरम पर पहुँचा हुआ नामी-गिरामी शहर। कैस्टर नदी गहन भावातिरेक की मानिंद एफ़ेसस और मेडिटेरेनियन सागर के बीच बहती रहती थी। उन्हें आपस में जोड़ने का यही तो सेतु था, सतत बहता हुआ। शहर और समुद्र एक-दूसरे के प्यार में गहरे खोये हुए थे। वे हमेशा […]
शिवनाथ जम्हाई लेते हुए कुर्सी पर ही सोते सोते एकतरफा लटक जा रहे थे। यद्यपि अपना संतुलन बनाए हुए थे। उनके बगल मे आटे के बोरे जैसे कसे देह लिए रमाशंकर चैतन्य थे। वह पतीली में बाज़ार से से लाये मटन को तलने में मगन थे। वो तलते कम थे, वकोध्यानम भाव से कलछुल ज्यादा हिला रहे थे। सूखी, चर्राई हुयी लकड़ियाँ पूरे आवेग से धधक रही थीं। ट्यूबवेल के पास वाली जीर्ण-शीर्ण मड़ई रसोईघर में तब्दील हो चुकी थी। बंटू,मंटू,पिंटू,सिधारी,खरपत्तू और जोखन लाल सहित कई लोग लहसुन-प्याज छिलने के काम में कूद-कूद कर भिड़े हुए थे। मंडली पूरे मनोयोग से लगी हुयी थी! आज किसी बड़े दावत की तैयारी थी! कल फिर बकरभोज का आयोजन था और आज पांच- छह दिनों से, केवल मंगलवार छोड़कर , दावतों का दौर परवान पर था। रमाशंकर ने शिवनाथ काका के खर्राटे पर खिसिया कर कहा- ‘ए काका! कुर्सीय प मत […]
“चलिए, अपना ख्याल रखिएगा और कोई जरूरत हो तो फोन कीजियेगा” कहते हुए नीमा ने कॉल काटा और मुड़ी तो चौंक गई। पतिदेव सामने खड़े थे, बोले “किस से बात कर रही थी इतनी रात को?” नीमा ने कहा “मेरी फ्रेंड है ना विशाखा, जो कोविड पॉजिटिव है और उसके हसबैंड भी…. उसके हसबैंड को ऑक्सीजन सिलिंडर की जरूरत है। सांस लेने में तकलीफ हो रही है और ऑक्सीजन लेवल 85 है। उसने मेसेज किया था तो वही पूछ रही थी कि अरेंज हुआ या नहीं।” तब तक रवि नीमा के हाथ से फोन लेकर लास्ट डायल्ड नंबर पर दुबारा कॉल कर चुका था और उधर से एक मर्द की आवाज में हेलो सुनकर फोन काट चुका था। नीमा की तरफ देखकर रवि बोला “ये विशाखा औरत है या मर्द?” नीमा ने हैरानी से कहा “औरत ही है और मैंने उसी को फोन किया था पर…” नीमा अपनी बात भी […]
फ्लैट के बाहर से आ रही जोर जोर से बोलने की आवाजें सुनकर अंगद ने दरवाजा खोला। अंगद का पूरा नाम अंगद शुक्ला था। वो अपनी नौकरी की वजह से अभी कुछ दिन पहले ही मथुरा से मुम्बई आया था, जहाँ कि वो एक ऑटोपार्ट्स बनाने वाली कम्पनी में टेक्निकल मैनेजर के पद पर नियुक्त हुआ था। गैलरी में मिसेज वर्मा और उनका बेटा किसी बात पर बहस कर रहे थे और उनकी बहू दरवाजे पर खड़ी थी। मिसेज वर्मा रिटायर्ड प्रोफेसर रघुवंश वर्मा की पत्नी थी। वे अंगद को कुछ खास पसन्द नही करतीं थीं। उन्हें लगता था कि घर से बाहर रहने वाले लड़के आवारा होते है और अंगद तो उन्हें कई बार गैलेरी में अक्सर सिगरेट के कश लगाता दिख जाता था। अंगद कई बार गैलरी में मिलने पर उन्हें नमस्ते भी करता था, जिसका जवाब न मिलने पर अब उसने वो भी करना बंद कर दिया […]
इण्डिया से बाहर, एशिया के भी बाहर, एक नए देश में जब मैंने अपना आशियाना बनाने का फ़ैसला किया, तब सबसे पहला सवाल जो मेरे मन में आया। कहाँ? उस नए देश में कहाँ? अपने देश में कब हमने इस सवाल का सामना किया था? जहाँ नियति में बदा था वहाँ पैदा हो गए और लो जी हो गए.. लखनवी, इलाहाबादी या इंदौरी। हमने कब तय किया? तरुणाई में, आगे की पढ़ाई के लिए कई तरह के फ़ॉर्म भरे, परीक्षाएँ दी और जहाँ से बुलावा आ गया वहाँ के हो गए.. भोपाल, गोवा या कोचीन। हमने कब सर खुजलाया था? कॉलेज परिसर में जितनी कम्पनियाँ आयीं, सब के इम्तिहान दिए और जिसने हमें चुन लिया उसके साथ चल पड़े.. दिल्ली, मुम्बई या हैदराबाद। हमने कब सोच-सोच कर रातें काली कीं कि कहाँ जाएँगे? कभी नहीं। हर बार किसी ना किसी ने हमारे लिए निर्णय ले लिया। ए बावरे नैन, उधर […]
ऊँचे-ऊँचे देवदार एवं बलूत के वृक्षों ने सूरज की रोशनी को पूरी तरह से ढक लिया था जिसके कारण दोपहर के समय भी उस जंगल में शाम का अहसास हो रहा था। जहां उस जंगल में आसमान को देखना आसान नहीं था वहीँ जमीन को देख पाना भी मुश्किल था। बर्फ की मोटी-मोटी परतों से वह धरती दूर-दूर तक बर्फ के रेगिस्तान जैसी नज़र आ रही थी। ठण्ड के कारण हर्ष वर्मा की हालत खराब हो रही थी। अपने मौजूदा प्रोफेशन में यह उसका सबसे मुश्किल असाइनमेंट था और इस बात का एहसास उसे अभी थोड़ी देर पहले ही हुआ था जब जंगल के एक हिस्से से गुजरते वक़्त एक गोली उसके फर की टोपी को छूकर गुजरते हुए उसके पीछे जंगल में कहीं गुम हो गयी। इस घटना के बाद उसकी साँसें थम गयी थीं और वह सकते में आ गया लेकिन क्षण भर में ही उसकी चेतना वापिस […]
दर्द दिया जो तूने कितना अच्छा लगता है, आँखों का खारा पानी भी मीठा लगता है । धब्बों वाला चाँद नहीं, तेरा सुन्दर मुखड़ा, सुबह सुबह का सूरज घर में उतरा लगता है। यह जो नीला अम्बर है, तेरे शर्माने से, कहीं गुलाबी ना हो जाए ऐसा लगता है । तू गुलशन में पहुँचेगी तो भौंरे बोलेंगे, यह गुलाब गुलशन में सबसे ताजा लगता है। तुझे देखने वालों का भी पागलपन देखा, जलसा तेरा कोई पागलखाना लगता है। खुशबू लाता है ‘ प्रवीण ‘ के अशआरों में जो, वो तेरी मीठी यादों का झोंका लगता है।
हॉस्पिटल के बाहर बेंच पर बैठी मैं अतीत के पन्नो को पलट रही थी…आज मैं ख़ुद को ऐसे मोड़ पर ले आई थी, जहाँ से मुझे रास्तें नही गहरी खाई दिख रही थी…सुरेखा भाभी की कही बात आज मेरे कानों में गूँज रही थी “वियोना, तुम्हें मैंने दिल से अपनी छोटी बहन माना है, इसका एहसास तुम्हें एक ना एक दिन जरूर होगा और जब होगा तो मिलने आना, मैं तुम्हें तुम्हारी बड़ी बहन की तरह ही मिलूंगी” परंपरागत, रूढ़िवादी ब्राह्मण खानदान में एक पारसी लड़की को बहु के रूप में स्वीकृति मिलना किसी चमत्कार से कम नही था, ये चमत्कार हुआ शुभम की सुरेखा भाभी के कारण..उफ़्फ़..ये क्या कर दिया मैंने, सुरेखा भाभी मेरे और शुभम के प्यार के लिए पूरे परिवार से लड़ गयी थी और मैंने उनको उनके ही घर संसार से निकाल दिया। मैं अपनी माँ के कहे अनुसार चलती रही जो परिवार प्यार और भरोसे […]
इधर अकादमी पुरस्कारों की घोषणा हुई उधर सिद्धवाणी का उद्घोष शुरू हो गया । वैसे सिद्धवाणी जो खुद को कबीरवाणी भी कहती रही है कि खासियत ये है कि इसकी तुलना आप क्रिकेटर -कम -नेता नवजोत सिंह सिद्धू के स्वागत भाषणों से भी कर सकते हैं जिसका कंटेंट वही रहता है तारीफ चालीसा का बस बन्दे या बन्दी का नाम बदल जाता है ।उन्हें अपने कंटेंट पर इतना नाज है कि वो कभी -कभी दुश्मन देश के उन्हीं लोगों के कसीदे गढ़ देते हैं जो हमसे हमेशा दुश्मनी निभाते आये हैं ।लोग बाग उनके भाषणों की तुलना तेरह नम्बर की रिंच से भी करते हैं जो कहीं भी फिट हो जाती है । साहित्य में खुद को कबीर पंथी घोषित करने वाले महापुरुष ने कसीदे गढ़ने शुरू कर दिए और तारीफ के गोले दनादन दागने शुरू कर दिए। अकादमी के पुरस्कार की खबर और महाकवि की फेसबुक पोस्ट शाम को […]
बहुत ही सुंदर कविता है जिसने भी लिखी है उसको मेरा दिल से सलाम धन्यवाद आपको