भोजपुर की ठगी : अध्याय 28 : हीरा सिंह का पुत्र शोक
सबेरा हुआ किन्तु आकाश में बादल छाये ही रहे। हीरासिंह के मकान में औरतें रो रही हैं!
हीरासिंह के एक ही बेटा था। वह बलवान, रूपवान, बुद्धिमान, सुशील और शांत स्वभाव का था। हठात् वह बीमार पड़ गया। बीमारी बढती गई। रात के तीसरे पहर में वह मर गया। नवमी की रात को जबरदस्त जमींदार हीरासिंह निपूत हो गया।
सबेरा होने पर उसका अग्नि-संस्कार करके लौट आये। जनाने में कुहराम मचा हुआ था। सिर्फ एक दीपक जलता था वह भी बुझ गया, महल में अँधेरा छा गया। पुत्र-वियोग में हीरासिंह व्यथित तो था ही।
उसकी स्त्री छाती पीट-पीट कर रो रही थी। हीरा सिंह ने समझाते हुए कहा-“तुम रो-रोकर मुझे पागल बना दोगी? वह तो गया ही, अब मुझे भी मार डालोगी? मैं तुम्हे रोने नहीं दूँगा। तुम क्यों रोती हो? जिसको धन है, सामर्थ्य है उसको बेटे का शोक कैसा? जो लोग दीन दुखिया हैं वे ही बेटे के लिये रोते है, तुम इतना क्यों रोती हो? जो मर गया वह अब हमारा कौन है? उसके लिये क्यों रोओगी? मत रोओ।” स्त्री को यों समझा-बुझाकर हीरासिंह वहाँ से बाहर आया।
हीरासिंह अपना जी बहलाने के लिए बाग़ में गया, परन्तु पापी को वहाँ भी शान्ति नहीं मिली। थोड़ी ही दूर पर फौजदार का खेमा देखकर उसको और तरह का सन्देह हुआ। वह सोचने लगा- आरे का फौजदार क्यों यहाँ आया? लतीफन ने कुछ नालिश की है क्या? अगर की हो तो आफत है। इस आफत में भोला मुझे छोड़कर चला गया। उसकी विलक्ष्ण बुद्धि, अपार बल और बेहद फुर्ती ने मेरी बड़ी मदद की है। वह जब चला गया है तब खूब समझ रहा हूँ कि मेरी कमबख्ती आई है। लेकिन मैं इतना क्यों घबराता हूँ? सब दिन थोड़े सामान जाते हैं? अब काम करना चाहिये, दुःख में धीरज धरना चाहिये। बेटे की काम-क्रिया तो भाई करेगा ही; मुझे उधर ध्यान देना चाहिये जिसके फौजदार वगैरह आये हैं। कोतवाल ने बताया है कि हरप्रकाशलाल आरे के फौजदार का कोई लगता है। अगर यह बात है तो डर की उतनी बात नहीं है। जो हो, लापरवाह नहीं रहना चाहिये। यों सोचते-सोचते हीरासिंह फुलवारी में टहलने लगा।