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सिक्स सिक्स सिक्स… #1

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वह एक ऐसा कमरा था जिसमें मात्र एक दरवाजा और वेंटिलेशन के नाम पर कुछ भी उठा कमरे के स्ट्रक्चर में मौजूद नहीं था। उस दरवाजे से भीतर अगर कोई झांकता तो पाता कि कमरे में सामान के नाम पर एक मेटल की टेबल जो दोनों तरफ से फोल्ड होकर एक तरफ रखी जा सकती थी, वहीं उस मेटल के मेज के दोनों तरफ दो मेटल के ही फोल्डिंग कुर्सियां मौजूद थी जिसमें से एक पर एक ऐसा व्यक्ति बैठा था जिसे देखते ही अजनबी इंसान को भी मोहब्बत हो जाए।
लोग बॉलीवुड में, चॉकलेट बॉय के लिए शाहिद कपूर, इमरान हाशमी आदि का नाम लेते हैं लेकिन अगर इस व्यक्ति ने,जिसके चेहरे को देखने की भारत का बच्चा-बच्चा कोशिश कर रहा था ताकि जान सके कि भारत के इतिहास में यह कौन सा अपराधी है जिसके द्वारा किये गए अपराध की सजा अगर उसे आज दी जाती तो कम से कम 20 दफा उसे फांसी दी जाती, अगर फ़िल्म इंडस्ट्री में हाथ आजमाया होता तो रणवीर सिंह जैसे अदाकारों के कद के बराबर उसका कद होता। ईश्वर भी धरती पर मानव का जीवन मात्र एक जन्म के लिए देता है, दूसरा जन्म तो मानव की अतिरेक कल्पनाशीलता है। अगर ऊपर वाले ने खास इस व्यक्ति को, इस धरा पर, 20 दफा जीवन बख्शा होता तो भारत के कानून को उसे 20 दफा फांसी पर चढ़ाने में कोई गुरेज नहीं होता।
उस व्यक्ति का चेहरा, उस कमरे के सीलिंग से लटक रहे, 100 वाट के बल्ब से इस प्रकार दमक रहा था जैसे कि उस व्यक्ति ने अगर अभी आगे बढ़ कर किसी व्यक्ति के कान में कुछ कह भर दिया तो वह उसकी मोहिनी सूरत को देखकर ही उसके लिए कुछ भी कर जाने को तैयार हो जाता।
सुना जाता है कि स्त्रियां ही इस सुंदरता के मापदंड तक पहुंच पाती हैं लेकिन यह व्यक्ति सामान्य से अलग, स्त्रियों की सुंदरता को मात देने वाला था क्योंकि उसके चेहरे की सुंदरता ही नहीं बल्कि उसके चेहरे की कशिश भी किसी को अपनी ओर आकर्षित कर लेती। सुना जाता है कि एक सार्वजनिक समारोह में जब इसने बोलना शुरू किया तो वहां बैठा कोई भी व्यक्ति उसके बोलना बंद होने से पहले उठा नहीं।
ऐसे व्यक्तिव का व्यक्ति एक ऐसी चारदीवारी के बीच एक नग्न, सपाट, सफेद दीवार को निहार रहा था, घूर रहा था जैसे कि वह जल्दी ही ब्रह्मत्व की प्राप्ति कर लेगा।
दरवाजे के उस पार दो व्यक्ति – एक दूसरे से बात करने में मशगूल थे। एक का नाम दिनेश छाबड़िया था, जो कि दिल्ली क्राइम ब्रांच में इंस्पेक्टर के पद पर आसीन था और दूसरा व्यक्ति रोशन आनंद नामक एक अपराध कथा लेखक था जिसकी दिलचस्पी इस व्यक्ति की कहानी में थी ताकि वह एक नई कहानी लिखकर अपने प्रकाशकों के मुंह पर मार सके। ऐसे में जब दिनेश छाबड़िया ने उसे बताया कि आंनद दीवान उससे बात करना चाहता है तो वह ना कैसे कर सकता था।
“तुम्हें क्या लगता है, इसने क़त्ल किये होंगे?” – दिनेश छाबड़िया ने पूछा।
“डीसी, कहना मुश्किल है भाई, अभी तो बात ही नहीं कर पाया हूँ।”
“चल वो तुम उससे पूछना, लेकिन तुझे पता है जिसने पहला कत्ल किसका किया था?” – डीसी के नाम से पुकारे गए दिनेश छाबड़िया ने पूछा।
“नहीं, तू बता?”
“सच में बता दूं? क्योंकि अगर बता दिया तो जिस व्यक्ति से तू अगले ही मिनट में मिलने वाला है, रूबरू होने वाला है, उससे घृणा हो जाएगी।”
“ओ, भाई, रहने दे। मैंने अपराध की हर किस्म को स्टडी किया हुआ है। मुझे इन सब बातों से कोई फर्क नहीं पड़ता है।”
“पक्का न?”
“डीसी तू मुझे बता रहा है या मैं जाकर आनंद दीवान से बात करूं?”
“रुक न, बताता हूँ, लेकिन तू वादा कर प्रेस में से किसी को भी तेरे द्वारा यह बात पता नहीं चलेगी।”
“ओके! लेकिन तू खामख्वाह के ड्रामेटिक सीन क्रिएट कर रहा है?”
“भाई, इस बंदे ने कबूला है कि इसने पहला मर्डर 1 वर्षीय बच्ची का किया था।”
“तुम्हें क्या लगता है, इसने कितने क़त्ल किये होंगे?” – दिनेश छाबड़िया ने पूछा।
“डीसी, कहना मुश्किल है भाई, अभी तो बात ही नहीं कर पाया हूँ।”
“चल वो तुम उससे पूछना, लेकिन तुझे पता है इसने पहला कत्ल किसका किया था?” – डीसी के नाम से पुकारे गए दिनेश छाबड़िया ने पूछा।
“नहीं, तू बता?”
“सच में बता दूं? क्योंकि अगर बता दिया तो जिस व्यक्ति से तू अगले ही मिनट में मिलने वाला है, रूबरू होने वाला है, उससे घृणा हो जाएगी।”
“ओ, भाई, रहने दे। मैंने अपराध की हर किस्म को स्टडी किया हुआ है। मुझे इन सब बातों से कोई फर्क नहीं पड़ता है।”
“पक्का न?”
“डीसी तू मुझे बता रहा है या मैं जाकर आनंद दीवान से बात करूं?”
“रुक न, बताता हूँ, लेकिन तू वादा कर प्रेस में से किसी को भी तेरे द्वारा यह बात पता नहीं चलेगी।”
“ओके! लेकिन तू खामख्वाह केस का ड्रामेटिक सीन क्रिएट कर रहा है?”
“भाई, इस बंदे ने कबूला है कि इसने पहला मर्डर 1 वर्षीय बच्ची का किया था।”
“माँ की आंख.. तू पागल हो गया है डी. सी…तुझे पता है तू क्या कह रहा है?”
“भाई, मैंने बोला था न कि तू भी शॉकड हो जाएगा..फटी न?”
“भाई, पूरी फट गई… मुझे तो निठारी कांड के टाइप का कुछ लगा था।”
“भाई, यह उससे ऊपर है। अभी तक तो मीडिया को इसकी खबर नहीं।” – डीसी उर्फ दिनेश छाबड़िया ने विश्वास भरी आंखों से उसे देखा।
“मैं समझ गया भाई। तुझे मेरे से कोई धोखा नहीं मिलेगा।”
“उम्मीद तो यही है।”
“इसने सभी गुनाह कबूल कर लिए?”
“घंटा, अभी कहाँ यार. इसने तो एक के बारे में बस बताया और रट लगाए बैठा है कि जो बताएगा तुझे बताएगा।”
“डीसी, शक्ल ओ सूरत और पुराने रिकॉर्ड देख कर लगता है कि इस बंदे ने कभी ऐसा काम किया होगा?”
“भाई, इस पर तो हाथ डालने में ही पूरे दिल्ली पुलिस की फटी पड़ी थी।”
‘हाँ, भाई ऐसा तो होगा ही क्योंकि सिटींग एम पी पर हाथ डालना इतना आसान भी तो नहीं होता।”
“वही बात है, उसमें भी वर्तमान सरकार का सिटींग एम पी।”
“वर्तमान सरकार ने पंगे न किये?”
“वही तो शुरू से पंगे किये बैठे थे लेकिन जब कमिश्नर साहब ने मानसी अरोड़ा के कत्ल के सारे पत्ते चीफ मिनिस्टर के सामने रखे तो वो भी बैक फुट पर आ गए।”
“ओह, अब क्या पोजीशन है, मुख्यमंत्री साहब के?”
“पूरी तरह से बैक फुट पर हैं। कोआपरेट कर रहे हैं। उनको भी एक साल बाद जनता के बीच वोट मांगने जाना है ऐसे में इनकी हिम्मत नहीं कि इतने बड़े केस में कोई अड़ंगा डाले।”
“भाई, बहुत बड़ी उपलब्धि है ये तो।”
“शुक्रिया भाई। बहुत मेहनत की है इस केस में, पूरा प्रशासन एक जुट होकर काम कर रहा था इस बार।”
“सही है भाई।”
दिनेश छाबड़िया ने रोशन आनन्द का हाथ पकड़ते हुए कहा – “भाई, अब पूरे केस का दारोमदार तेरे ऊपर है।”
“भाई, 100% कोशिश रहेगी कि मैं उससे वो सब उगलवा सकूं जो उसे फांसी के फंदे पर ले जाने से न रोक सके।”
“आमीन।”
“सुम्मा-आमीन।” – रोशन आनंद उस बंद कमरे के इकलौते दरवाजे की ओर बढ़ते हुए बोला -“चलूं?”
“हाँ, हाँ, क्यों नहीं।”
उस दरवाजे के सहारे एक कांस्टेबल मुस्तैदी के साथ खड़ा था। रोशन आनंद ने दरवाजे का नॉब घुमाया लेकिन वह बंद नज़र आया। उसने घूमकर दिनेश छाबड़िया की ओर देखा तो दिनेश छाबड़िया ने उस कॉन्स्टेबल को देखा। कॉन्स्टेबल की आंखे ज्यों ही दिनेश छाबड़िया से मिली त्यों ही उसने अपने पेंट के जेब से एक चाबी निकाली जिसमें कोई की-रिंग नहीं लगा हुआ था।
उसने दरवाजा के नॉब में चाबी घुसते हुए रोशन आनंद से कहा – “साब, उससे पूछना रमा की लाश किधर है, उसकी मिट्टी को सही जगह पहुंचाना जरूरी है।”
रोशन आनंद ने प्रश्नसूचक नेत्रों से पहले उस कॉन्स्टेबल को देखा फिर दिनेश छाबड़िया को देखा। दिनेश छाबड़िया ने अपना बायां हाथ रोशन आनन्द के कंधे पर रखी और दूसरा उस कॉन्स्टेबल के कंधे पर।
“कन्हैया, तेरी भांजी मिल जाएगी। जरूरी नहीं इसी बंदे ने उसके साथ कुछ किया हो।” – रोशन आनंद के कंधे पर दबाव ज्यादा था जिसे समझते हुए वह अंदर घुस गया। लेकिन उसके दिमाग में एक बीज का रोपण हो चुका था। सामने एक ऐसा व्यक्ति था जिसके व्यक्तित्व ने भारत के हर व्यक्ति के दिमाग पर एक समय पर ऐसा छाप छोड़ा था कि उसे कोई भुला नहीं सकता था और आज वही लोग उसके मौत की कामना कर रहे थे। ऐसे विभत्स मौत की कामना कि जिसे भारत का कानून इजाजत नहीं देता था क्योंकि कानून बेड़ियों में बंधा हुआ एक जानवर है जिसका पालन करना प्रत्येक कानून के रखवाले का कर्तव्य था, है और रहेगा।
….To be continued
#सिक्स_सिक्स_सिक्स
#क्राइम_फिक्शन
#प्लाट
#अधूरा_उपन्यास
#द_बीस्ट_हु_वाज_लव्ड_बाय_एवेरीवन
©राजीव रोशन

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