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द ब्लाइंड गेम #३

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पवन महाजन के चेहरे पर अब मिश्रित भाव आ रहे थे, वह समझ नहीं पा रहा था कि वह खुशी से नाचे या अपना सिर पकड़ बैठकर रोना शुरू करे। जिस मेहनत से उसने अपने घर से यहां तक कि दूरी तय की थी उस रू में वह भौचक्का था कि जिस चीज को सेफ रखने के लिए उसने ए. सी. की हवा देने वाले छेद में अपने गाड़ी की डिक्की की चाबी को छुपा दिया था, उस पर पानी फिर गया था।
इधर उस पुलिसिये कि हालात खराब होती जा रही थी कि डिक्की में से कुछ निकला तो नहीं फिर अब वह पवन महाजन को क्या जवाब दे पायेगा।
विपिन नामक कॉन्स्टेबल ने अपने अफसर के चेहरे का रंग उड़ते हुए देखा। उसने डिक्की का ढक्कन लगाया लेकिन वह प्रोपरली लगा नहीं। चीजों का कायदे से इस्तेमाल किया जाए तो वह जिंदगी भर काम करती रहती हैं लेकिन जहां उसके सिस्टम के साथ जबरदस्ती छेड़-छाड़ होती है वह ऐसी बिगड़ती है कि सुधारने के लिए किसी स्पेशलिस्ट को बुलाना पड़ता है।
कॉन्स्टेबल विपिन ने मामले को संभालने की कोशिश में पवन महाजन को किनारे में ले गया और बोला – “तुम्हारा काम हो गया है और अगर यहां कोई सीन, कोई प्रॉब्लम क्रिएट करने की कोशिश की तो ऐसे केस में फ़साउंगा कि निकलते निकलते जूते घिस जाएंगे।”
पवन महाजन ने उस कॉन्स्टेबल को भाव-विहीन नज़रों से देखते हुए सोचा – क्या हालत हो गयी है, इस देश की कानून व्यवस्था की, एक देशभक्ति, कानून, आतंकवाद की बात कर रहा था दूसरा उसी कानून की माँ को मार लेने की बात खुल्ला करता है।
साहेबान, इस देश में पुलिस व्यवस्था को लेकर हज़ार बातें कही जाती हैं, सुनी जाती है – लोग आम कहते हुए देखे गए हैं – आ गए ठुल्ले, वो रहे मामा, ये हैं सबसे बड़े चोर, इतनी सैलरी मिलती है पर पेट नहीं भरता। देखा जाए तो आप आज देश के किसी भी हिस्से की पुलिस व्यवस्था को देख लें – देखते ही आपको हँसी आएगी – यार ये करेंगे तो कुछ नहीं बस पैसे मांगेंगे। आप एक मल्टीप्लेक्स में मूवी देखने जाएं, आप एक मॉल में कोई सामान खरीदने जाएं, आप सीसीडी या मेकडी या पिज़्ज़ा हट या डोमिनोज़ में कुछ खाने जाएं, आप किसी भी होटल में ब्रेकफास्ट, लंच, डिनर, चाय आदि लेने जाएं आप जब तक पे नहीं करेंगे वो सर्विस मुहैया नहीं कराएंगे। कुछ सर्विस पोस्ट-पेमेंट हो सकती तो कुछ प्री-पेमेंट। तो पुलिसवालों आपके सेवक हैं, सरकार के तो हैं ही तभी वहां प्रति मंथ सैलरी उठाते वहीं आपके भी सेवक हैं तभी आप उनकी मुट्ठी, उनकी जेब गर्म करने को अपना अधिकार समझते हैं और चुपचाप इस कृत्य को करके उसी तरह घर पहुंचते हैं जैसे किसी ग्रॉसरी स्टोर से कोई सामान खरीद कर घर पहुंचते हैं। अब वो सेवा क्या करते हैं, इसके बारे में आपको कोई जानकारी नहीं होती। यह कुछ उस गुप्तदान की तरह होता होगा जिसके बारे में बड़े-बूढ़े कह गए हैं कि अगर दाएं हाथ से करें तो बायें हाथ को पता नहीं चलना चाहिए। तो ऐसे में पुलिस व्यवस्था के इन सेवकों को ठुल्ला, मामा, दामाद जैसे अपशब्दों से पुकारे जाने के बजाय अपने अंदर के इंसान को आइना दिखाने की कोशिश कीजिये क्योंकि कबीर जी भी कह गए हैं –
पवन महाजन ने सूखते गले से डिक्की की ओर इशारा करते हुए पूछा – “डिक्की??”
उस कॉन्स्टेबल ने हाथ के इशारे से बोला – “वैसे भी तेरे डिक्की में कुछ है नहीं जो कुछ होगा भी। आगे जो भी मैकेनिक मिले उससे ठीक करवा लियो।”
“ये मेकैनिक से नहीं सर्विस सेंटर में ठीक होने वाला काम है जिसको होने में 10-1५ दिन और 10-15 हज़ार का खर्चा आ सकता है।”
उस कॉन्स्टेबल ने आंखे तरेरी। पवन महाजन उसका मंतव्य समझ गया। तभी पवन महाजन के जेब में रखे मोबाइल की घंटी बजी। उसने अपने पेंट के जेब से मोबाइल निकाला तो उसे स्क्रीन पर ‘होम’ से कॉल आता दिखाई दिया।
उसने कॉल उठाया – “हेल्लो….नहीं…वापिस आ रहा हुँ…बहुत बड़ा लफड़ा हो गया है…हाँ.. मैं घर आकर बताता हूँ…तुम ठीक हो न…ठीक है…मैं बस पहुंच रहा हूँ…”
उसने कॉल डिसकनेक्ट किया और पुलिस कांस्टेबल की ओर घुमा और अपना हाथ आगे बढ़ा दिया।
कॉन्स्टेबल बोला – “क्या????”
“मेरी गाड़ी की चाबी तो दे दे मेरे बाप।”
हड़बड़ाते हुए उस कॉन्स्टेबल ने उसे चाबी पकड़ाई। भुनभुनाते हुए पवन महाजन अपनी गाड़ी में घुसा और उसी लाइट से उसने यु-टर्न लेकर गाड़ी को अपने घर की ओर मोड़ दिया।
पवन महाजन गाड़ी को यु टर्न लेते ही एक सिगरेट जलाकर फूंकने लगा। वह रिकॉल करने की कोशिश कर रहा था कि उससे गलती कहाँ हुई थी। अपने फ्लैट से वह जब निकला था, तब से इस लोकेशन तक, वह किसी भी पॉइंट पर रुका नहीं। चूंकि रात के उस वक़्त ट्रैफिक नाम-मात्र रहता था इसलिए उसने अपनी गाड़ी को हवाई जहाज बनाया हुआ था। उसके मन के अंदर अंतर्द्वंद चल रहा था कि कैसे उस डिक्की से , जिसमें उसने खुद 2-3 क्विंटल के उस कालीन को अपनी बीवी के मदद से रखा था, गायब हो गया। ऐसा लगता था कि अभी उसके सामने वह कालीन था और किसी जादूगर ने जादू की छड़ी घुमाई और वह कालीन गायब।
पवन महाजन तेज़ रफ़्तार से गाड़ी चला रहा था, ताकि वह जल्दी से जल्दी अपने घर पहुंचे और अपनी हर्राफा बीवी को इस घटना के बारे में बताए जिसको सुनकर उसका भी वह हाल हो जो उसका खाली डिक्की को देखकर हो रहा था। जिस दुनिया में मग्न हो, खोकर वह घुसा हुआ था, उसने डी. एन. डी. पर चढ़ने वाला कट लगभग छोड़ ही दिया था कि उसने जबरदस्त तरीके से अपनी कार को बायीं ओर मोड़ा लेकिन सफलतापूर्वक गाड़ी के मुड़ने और मुड़कर संभालने में वह सफल नहीं हो पाया और कार सीधे सीमेंटेड रेलिंग से जा टकराई। सेकंड के हजारवें हिस्से में उसका सिर उसके कार के स्टेयरिंग से जा टकराया और फिर पीछे की तरफ झटका खाया। अभी मात्र कार ही टकराई थी कि एक झटका उसे पीछे से भी आकर लगा, जिसने फिर से, पहले सिर फिर उसके पूरे बदन को पेंडुलम की तरह फारवर्ड/बैकवर्ड किया जैसे कि किसी ऑडियो कैसेट को चलाने के दौरान फारवर्ड एवं बैकवर्ड बटन को जानबूझकर दबा दिया जाता हो। पीछे से मिले झटके से गाड़ी घिसटते हुए, डी एन डी के स्टार्टिंग पॉइंट से फ्लाईओवर के ऊपर ले जाने लगा। लेकिन जिस प्रकार से ईश्वर की बनाई गई इस दुनिया में ऐसी कोई चीज नहीं जो गतिमान ही रहे, उसी प्रकार वह कार भी, कार-टायर-सड़क की भीषण घर्षण एवं संघर्ष के पश्चात रुका। पाश्चात्य के संगीतकार अगर ऐसी आवाज को रिकॉर्ड कर बेचते तो इसमें दो राय नहीं कि कई हॉलीवुड फिल्मों में उस संगीत का बाकायदा इस्तेमाल भी होता और खूब पैसा भी कमाया जाता।
हमारी सरकारें, ट्रैफिक के नियमों में इतनी सख्ती बरतती है कि पूछिये मत लेकिन ये नियम सजीव प्राणियों पर ही लागू होते हैं। जो कारें आज के समय में, हमारे देश में सड़कों पर दौड़ रही हैं, वो कहीं भी अंतराष्ट्रीय सुरक्षा मानकों को पास नहीं कर पाती फिर भी हम भोले-भाले मैंगो पीपल अपनी महत्वाकांक्षाओं के आगे, अपने स्टेटस सिम्बल के आगे, मौत को कम तरजीह देते हैं, सेफ्टी को कम तरजीह देते हैं। भारत में बड़े बुजुर्ग कहते हैं कि अगर लड़के ने सुपारी खाना शुरू कर दिया है टी आगे जाकर पता नहीं क्या क्या करेगा। इसलिए उसे अभी रोको। कहा जाता है कि लड़के ने आज कहीं रखे हुए पैसे चुराए हैं, इसे अभी सुधारो वरना बाद में यह इससे बड़ी बड़ी चोरी करेगा। लेकिन हम सुरक्षा मानकों के अनुसार 70 वर्षों में कुछ नहीं सुधार कर पाएं हैं, जिसके कारण हर वर्ष भारत में फेटल एक्सीडेंट होते हैं।
पवन महाजन की कार कुछ उस गुब्बारे की तरह नज़र आ रही थी जिसमें किसी ने अचानक ही सुई चुभोकर छोड़ दिया हो। दूर कहीं पुलिस के सायरन के आवाज़ आ रही थी, वहीं पवन महाजन की कार में मोबाइल की घंटी भी बजनी शुरू हो गयी थी।
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#द_ब्लाइंड_गेम #३
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#अधूरा_उपन्यास
©राजीव रोशन
द ब्लाइंड गेम #2

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