जब तक उसने अपने ताबूत में 2 कीलें न ठोक ली तब तक उसकी बारी नहीं आयी। एकॉर्ड को कम से कम 4 पुलिसियों ने घेर लिया। चूंकि वह बिल्कुल बायीं लेन में था इसलिए उसने अपने दाएं तरफ देखा तो पाया कि पुलिस वाले बिल्कुल भुस में सुई खोजने की तरह गाड़ीयों की तलाशी ली रहे थे। उसके गले में में बनी प्राकृतिक घंटी बजी, सिर्फ बजी ही नहीं बल्कि ऊपर तक आ गयी। उसने अपना हाथ फिर से सिगरेट की डिब्बी की ओर बढ़ाया तो पुलिसवालों ने उसे बाहर आने को कहा।
उसने डैशबोर्ड से गाड़ी के कागज वाली फ़ाइल निकाली और बाहर निकल गया। दायीं तरफ से बाहर निकलकर वह बायीं तरफ आ गया। उसने अपने कागजात एक पुलिसिये को देखने के लिए दिया। वह बहुत ही असहज हो, अपनी गाड़ी को देखते हुए बार-बार पहलू बदल रहा था। पुलिसवाला एक-एक करके फ़ाइल में मौजूद डाक्यूमेंट्स को देख रहा था। वहीं एक पुलिसवाला गाड़ी के फ्रंट भाग में कमर के बल झुका हुआ, जर्रे-जर्रे की तलाशी में जुटा हुआ था। पीछे के भाग में भी एक पुलिसिया उसके कुल-जहां की उस रात की मेहनत पर पानी फेरने की कोशिश कर रहा था।
एक पुलिसवाला उसके करीब आते हुए बोला – “साहब, डिक्की की चाबी?” – ऐसा कहते हुए, उसने उसके आगे हाथ फैला दिया।
इस प्रश्न ने उस मीठी ठंड में उसके अंदर सिहरन पैदा कर दी, जिसके कारण उसके चेहरे पर पसीने की बूंदें छलक पड़ी।
उसने अपने शर्ट के ऊपरी जेब में पहले हाथ डाला, फिर अपने पैंट के तीनों जेबों में डाला फिर हाथ को बाहर निकालते हुए बोला – “शायद चाबी गाड़ी की मेन रिंग में होगा, जिसमें गाड़ी की मेन चाबी में ही लगा होगा।”
हालांकि उसको और पुलिसवाले, दोनों को इसका जवाब पहले ही मालूम था कि डिक्की की चाबी, अमूमन इग्निशन में लगी गाड़ी की मुख्य चाबी में ही होता है। कोई मूर्ख ही होगा जो कार की डिक्की की चाबी, मेन चाबी से अलग रखता होगा। फिर भी एक ने सवाल किया और दूसरे ने पूरी कोशिश करने के बाद जवाब दिया।
पुलिसवाला ड्राइविंग सीट की तरफ बढ़ा, जहां स्टीयरिंग से उसने गाड़ी की चाबी निकाली जो कि एक ही थी। उसने चाबी को अपनी उंगलियों में घुमाता हुआ, कार के पिछले हिस्से की तरफ बढ़ा। उसने चाबी को डिक्की के लॉक में लगाया और उसे घुमाया लेकिन कोई चाबी घूमी नहीं।
जो पुलिसवाला उस कार का डाक्यूमेंट्स देख रहा था – उसने डिक्की के लॉक पर मेहनत कर रहे पुलिसिये को देखा।
“क्या हुआ विपिन?” – डाक्यूमेंट्स देख रहे पुलिसवाले ने कहा।
“साहब, ये इस चाबी से डिक्की नहीं खुल रही है।” – विपिन नाम से पुकारे गए पुलिसवाले ने कहा।
“इधर आ?”
कॉन्स्टेबल विपिन उसके पास आया तो पुलिसवाले ने फ़ाइल एकॉर्ड के मालिक को पकड़ाया और बोला – “डाक्यूमेंट्स पूरे हैं मिस्टर महाजन।”
कॉन्स्टेबल विपिन से उसने चाबी लिया और देखा – “अबे गधे, ये तो गाड़ी स्टार्ट करने वाली चाबी है। इससे डिक्की थोड़े न खुलेगी।”
वह महाजन नाम से पुकारे गए व्यक्ति की ओर घुमा – “मिस्टर पवन महाजन, आपके डिक्की की चाबी कहाँ है?”
पवन महाजन हिचकते हुए बोला -“इसी रिंग में थी?”
पुलिसवाले ने उसके हाथ में उसके गाड़ी की चाबी पकड़ाते हुए कहा – “लो देखो और बताओ, कौन सी चाबी है जिससे डिक्की खुलेगी?”
पवन महाजन ने चाबी पकड़ते हुए, उस रिंग को एक दो बार देखा। उसके समझ में नहीं आ रहा था कि वह क्या कहे, क्योंकि रिंग में तो एक ही चाबी था।
“सर…सर…चाबी तो इसी में थी, लगता है कहीं गिर गयी या घर पर छूट गयी।” – पवन महाजन बोला।
“न…न…झूठ बोलने की जरूरत नहीं है। हम यहां कोई खेल नहीं खेल रहे हैं। चाबी रिंग में से निकल कर गिरती नहीं है बल्कि पूरी की रिंग ही गिरती है।” – पुलिसवाला उसको घूरते हुए बोला -“अब चुपचाप बताओ डिक्की की चाबी कहाँ है?”
“सर, सच में मुझे नहीं पता। अगर गिरी नहीं होगी तो मेरे घर पर ही होगी।” – वह हकलाते हुए बोला – “आप मेरे घर चलो, वहां मिली तो डिक्की खोल कर देख लीजिएगा।”
“इतना वक़्त नहीं है भाई मेरे पास।” – पुलिसवाला बोला – “हर बंदे के घर में जा-जाकर अगर ऐसा करने लगे तो हो लिया हमारा काम।”
“फिर?” – पवन महाजन बोला।
इस सवाल को नजरअंदाज कर, उसने उन दोनों पुलिसवालों को पुकार कर कहा – “इसकी गाड़ी से कोई चाबी मिली क्या?”
दोनों कॉन्स्टेबल जो गाड़ी के अंदर वाले हिस्से में तलाशी ली रहे थे बोले -“नहीं, लेकिन हमने चाबी खोजने की नीयत से तलाशी नहीं ली है।”
“नहीं ली तो अब लो, क्योंकि मुझे लगता है कि यह मिस्टर महाजन की कोई शरारत है कि डिक्की की चाबी इनके पास नहीं है।”
“ठीक है।”
दोनों पुलिसकर्मियों ने उस गाड़ी की फिर अंदर से तलाशी ली लेकिन नतीजा सिफर ही निकला।
“सर, कोई चाबी नहीं मिली।” – एक पुलिसकर्मी ने कहा।
दूसरे पुलिसकर्मी ने भी यही जवाब दिया।
पवन महाजन, जो कि इस एक्ट को एन्जॉय कर रहा था, निश्चिन्त होकर बोला -“अब?”
“अब क्या? देख क्या होता है?” – पुलिसवाले ने विपिन नाम के कॉन्स्टेबल को कहा -“विपिन, जिप्सी में से रॉड निकाल।”
विपिन जिप्सी की तरफ बढ़ चला।
“आप…आप…डिक्की को जबरदस्ती खोलना चाहते हैं?”
“हाँ, क्योंकि मेरे पास और कोई चारा नहीं है।”
तभी कॉन्स्टेबल विपिन ने उस पुलिसिये के हाथ में रॉड पकड़ा दिया।
“सर…सर…यह गैरकानूनी है।” – पवन महाजन ने लगभग गिड़गिड़ाते हुए कहा।
“हाँ गैरकानूनी तो है, लेकिन क्या आतंकवादियों को कानूनी या गैरकानूनी में कोई डिफरेंस नज़र आता है? क्या उनको इंसानियत और शैतानियत में कोई अंतर नज़र आता है? उनको तो बस इस देश में एक-एक करके होल करने का मकसद ही नज़र आता है और जब तक इस बदन पर खाकी वर्दी है तब तक हम उन्हें ऐसा करने से रोकते रहेंगे।” – पुलिसिया बोला।
“तो क्या आप मुझे आतंकवादी समझ रहे हैं?” – पवन महाजन ने आंखों में गुस्सा लाते हुए कहा।
“नहीं, अभी नहीं समझ रहा लेकिन अगर आप मेरा काम करने से रोकोगे तो मैं समझने लगूंगा। ” – पुलिसिये ने उसके आंखों में झांकते हुए कहा -“और वैसे भी इंसानी जिस्म में कौन आतंकवादी है और कौन नहीं यह कहना आसान नहीं होता। आतंकवाद जिस्म से, पहनावे से, धर्म से, जाति से, क्षेत्र से नहीं पहचाने जाते बल्कि यह आतंकवाद तो उनके दिमाग में होता है जिसे मिटाने की कोशिश हम कई वर्षों से कर रहे हैं। सरकार आज के समय में पकड़े हुए आतंकवादियों को भी दूसरा मौका दे रही ताकि उन्हें भी आम आदमी का जीवन जीने का मौका मिले और वे समझ सकें कि इंसानियत क्या है।”
“हेल्लो… हेल्लो… मैं यह भाषण सुनने के लिए यहां मजूद नहीं हूं, मुझे अलीगढ़ पहुंचना है।”
“ठीक है, तो मुझे वो काम करने दो जो मुझे करना चाहिए था।”
इस तमाशे को वहां मौजूद पब्लिक भी देखने लगी जिनके कार की चेकिंग हो रही थी।
“लेकिन यह गैरकानूनी है?”
“कानून, इंसानियत को जिंदा रखने के लिये बनाया गया है। इंसान की सहूलियत के लिए बनाया गया है। इस देश की जम्हूरियत को जिंदा रखने के लिए बनाया गया है ताकि आप, मैं, इस देश की जनता चैन से सो सके।” – इतना कहते हुए वह पुलिसिया एकॉर्ड के पिछले भाग की ओर बढ़ गया और उसने डिक्की के निचले हिस्से में जहां डिक्की का लॉक था, वहां रॉड फंसा दिया।- “और अगर इस काम के लिए हमें कानून को तोड़ना भी पड़ेगा तो हम तोड़ेंगे।”
पवन महाजन का दिल धाड़-धाड़ धड़कने लगा। ऐसा लगता था कि उसके जीवन का बस अंत ही होने वाला हो। उसके चेहरे की तुलना आप उस जादूगर से कर सकते हैं जिसकी जान एक तोते में अटकी रहती थी और उस तोते की गर्दन मरोड़ने के लिए हाथ आगे बढ़ रहे हैं।
पुलिसवाले ने रॉड को फंसा कर उमेठ दिया लेकिन लॉक नहीं खुला। लेकिन एक कोशिश से कोशिशों का अंत तो हो नहीं जाता है। पुलिसवाले ने कुछ कोशिशों के बाद डिक्की का लॉक तोड़ ही दिया। अब बस डिक्की का ढक्कन उठाने की बारी थी।
पुलिसवाले के पीछे 3 कॉन्स्टेबल और पवन महाजन अपनी सांस रोके डिक्की के खुलने की प्रतीक्षा कर रहे थे।
कहते हैं कि इंसान के भाग्य का फैसला कई बार सिर्फ एक्ट से हो जाता है जिसका स्क्रिप्ट, टाइमिंग, एक्टर, करैक्टर सब ऊपर वाला लिखता है और इंसान के लिए वह गुड लक साबित हो तो उसका क्रेडिट वह खुद लेता है, वहीं अगर बैड लक साबित हो तो वह उसका क्रेडिट भगवान को कोसते हुए देता है।
पुलिसवाले ने किसी ड्रामेटिक तरीके से, धीरे-धीरे उस डिक्की के ढक्कन को उठाया। जैसे-जैसे डिक्की का ढक्कन उठ रहा था, वैसे-वैसे पवन महाजन की आंखें बंद होती जा रही थी।
डिक्की उठाते ही पुलिसवालों ने टॉर्च की रोशनी को डिक्की ओर फिरा दिया। जिससे एकॉर्ड की वह छोटी सी डिक्की रौशनी से पूरी तरह नहा गयी।
“इसमें तो कुछ भी नहीं है।” – कॉन्स्टेबल विपिन ने कहा।
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©राजीव रोशन
द ब्लाइंड गेम #1
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