हिन्दी का श्रेष्ठ और कालजयी साहित्य
तुम आदिवासी किसी काम के नहीं
अथनास किसपोट्टा विविध साहित्यिक विधाएँ, समसामयिक 3

छोटानागपुर क्षेत्र की अधिकांश जनजातियाँ ईसाई धर्म की ओर उन्मुख हो चुकी हैं। जनजाति युवाओं को बतौर पुरोहिताई कार्य के लिए सेमिनरी यानी गुरुकुल में प्रशिक्षण की व्यवस्था है और इन केंद्रों में अध्ययन का बड़ा आकर्षण है। ईसाई पादरी बनना एक उपलब्धि के साथ सम्मान की बात है। इन्हीं पादरी बनने के प्रशिक्षण केन्द्रों […]
सड़क आगे नहीं जाती
स्वदेश दीपक कहानियाँ, स्वातंत्र्योत्तर कहानी 1

आवाज कार या टैक्सी की है। अभी यहाँ से दूर है, लेकिन इसके पहुँचने का पता पहले से चल गया है, क्योंकि पहाड़ियों की गूँज ने इस आवाज को फुटबाल की छोटी-छोटी उछालों में आगे फेंका है। कार या टैक्सी होटल की तरफ ही आई है, क्योंकि सड़क इस होटल पर आ कर खत्म हो […]
कोरोया फूल
अथनास किसपोट्टा कहानियाँ, समकालीन लेखन 7

कोरोया फूल छोटानागपुर की वादियों में बहुतायत रूप में पाया जाता है, यह एक जंगली फूल है, और यह छोटानागपुर वासियों के लोक गीतों में भी रच बस गया है। कहानी, एक आदिवासी अधिकारी के गैर आदिवासी कन्या से विवाह और उनसे उत्पन्न समस्याओं और सांस्कृतिक जटिलताओं का चित्रण प्रस्तुत करती है । मैं अपने […]
हाय रे, मानव हृदय!

स्मृति की धुँधली और गम्भीर छाया में आज वह छोटी-सी घटना उतनी प्रखर और उत्तेजित नहीं प्रतीत होती। आज जब इस प्रकाश ह्रास और अच्छाई के संसार से भागकर उस कुरूप अन्धकार में, उस उन्माद, उस उफान के साथ नयन खोलना चाहता हूँ, तब दम घुटने लगता है। आज का अर्थ है – मेरी सफलता, […]
लॉटरी
प्रेमचंद कहानियाँ, प्रेमचंद कालीन कहानियाँ 2

जल्दी से मालदार हो जाने की हवस किसे नहीं होती? उन दिनों जब लॉटरी के टिकट आये, तो मेरे दोस्त विक्रम के पिता, चचा, अम्मा और भाई, सभी ने एक-एक टिकट खरीद लिया। कौन जाने, किसकी तकदीर जोर करे? किसी के नाम आये, रुपया रहेगा तो घर में ही। मगर विक्रम को सब्र न हुआ। […]
मैंने दिल से कहा

यह उन कुछ दु:स्वप्नों में एक था जो हमें हमेशा डर था कि किसी दिन सच हो जायेंगे । इरफान नहीं हैं, यह एक सच है जो दिमाग जान चुका है लेकिन दिल बदमाशी पर आमादा है। कहता है, “हट, इरफान भी कभी मरा करते हैं। रात रात भर जागेगा तो ऊँघेगा और जब ऊँघेगा […]
इरफान-ऐसा कलाकार जिसका दिल भी सोना था

आँखें..ऐसा लगता था मानों उबल कर बाहर आ जायेंगी..भूरी आभा लिए वही आँखें कभी क्रूरता की मिसाल तो कभी करुणा और याचना का उदाहरण पेश करती थीं। मामूली शक्लो-सूरत और हाथों में नेशनल स्कूल ऑफ ड्रामा की डिग्री लिए बेहद साधारण परिवार से निकल कर सफलता की चोटियों को छूने वाले इरफान खान महज एक […]
तुमको याद रखेंगे गुरु हम,आई लाइक आर्टिस्ट-इरफान

इरफान खान नहीं रहे !! क्या यह संभव है कि इरफान न रहे? हम जैसे सिनेमा प्रेमियों के लिये असंभव बात है। इसका सीधा कारण यह है कि जो कलाकार आपको अपने बीच का लगता है अपने जैसा लगता है वो कभी आपके साथ न रहे ऐसा असंभव लगता है। सबसे पहले मैंने व्यक्तिगत तौर […]
सखि वे मुझसे कह कर जाते – मैथिलीशरण गुप्त
साहित्य विमर्श काव्य संसार मैथिलीशरण गुप्त 0
सखि, वे मुझसे कहकर जाते, कह, तो क्या मुझको वे अपनी पथ-बाधा ही पाते? मुझको बहुत उन्होंने माना फिर भी क्या पूरा पहचाना? मैंने मुख्य उसी को जाना जो वे मन में लाते। सखि, वे मुझसे कहकर जाते। स्वयं सुसज्जित करके क्षण में, प्रियतम को, प्राणों के पण में, हमीं भेज देती हैं रण में […]
हल्दीघाटी – द्वादश सर्ग – श्यामनारायण पाण्डेय
साहित्य विमर्श काव्य संसार श्यामनारायण पाण्डेय 0
निर्बल बकरों से बाघ लड़े¸ भिड़ गये सिंह मृग–छौनों से। घोड़े गिर पड़े गिरे हाथी¸ पैदल बिछ गये बिछौनों से॥1॥ हाथी से हाथी जूझ पड़े¸ भिड़ गये सवार सवारों से। घोड़ों पर घोड़े टूट पड़े¸ तलवार लड़ी तलवारों से॥2॥ हय–रूण्ड गिरे¸ गज–मुण्ड गिरे¸ कट–कट अवनी पर शुण्ड गिरे। लड़ते–लड़ते अरि झुण्ड गिरे¸ भू पर हय […]
सरोज स्मृति
सरोज स्मृति एक शोकगीति है, जो निराला ने अपनी पुत्री सरोज की मृत्यु के पश्चात लिखी थी।कवि अन्यत्र कहता है-‘गीत गाने दो मुझे तो वेदना को रोकने को’। यहाँ भी कवि अपनी पुत्री, जो उसके जीवन का एकमात्र सहारा थी’ की मृत्यु से उत्पन्न वेदना को कविता के माध्यम से कम करना चाहता है।पुत्री कवि […]
गोदान में प्रेमचंद का उद्देश्य
किसान समस्या प्रेमचन्द के उपन्यासों में सर्वाधिक महत्वपूर्ण समस्या के रूप में सामने आती है।प्रेमचन्द का पहला उपन्यास ‘सेवासदन’ यद्यपि स्त्री समस्या को लेकर लिखा गया है,लेकिन यहाँ भी चैतू की कहानी के माध्यम से उन्होँने यह संकेत दे ही दिया है कि किसान समस्या और किसान जीवन ही उनके उपन्यासों का मुख्य विषय होने […]
नारीवाद और विज्ञापनी संस्कृति
राजीव सिन्हा विमर्श, समसामयिक 0
‘स्त्री न स्वंय ग़ुलाम रहना चाहती है और न ही पुरुष को ग़ुलाम बनाना चाहती है। स्त्री चाहती है मानवीय अधिकार्। जैविक भिन्नता के कारण वह निर्णय के अधिकार से वंचित नहीं होना चाहती।’ यह कथन विश्व की पहली नारीवादी मानी जाने वाली मेरी उल्स्टोनक्राफ़्ट का है। इस घोषणा को हुए दो सौ साल बीत […]