काजर की कोठरी खंड-1
संध्या होने में अभी दो घंटे की देर है मगर सूर्य भगवान के दर्शन नहीं हो रहे , क्योंकि काली-काली घटाओं ने आसमान को चारों तरफ से घेर लिया है। जिधर निगाह दौड़ाइए मजेदार समा नजर आता है और इसका तो विश्वास भी नहीं होता कि संध्या होने में अभी कुछ कसर है।
ऐसे समय में हम अपने पाठकों को उस सड़क पर ले चलते हैं जो दरभंगे से सीधी बाजितपुर की तरफ गई है।
काजर की कोठरी खंड-2
यों तो कल्याणसिंह के बहुत-से मेली-मुलाकाती थे मगर सूरजसिंह नामी एक जिमींदार उनका सच्चा और दिली दोस्त था, जिसकी यहाँ के राजा धर्मसिंह के वहाँ भी बड़ी इज्जत और कदर थी। सूरजसिंह का एक नौजवान लड़का भी था, जिसका नाम रामसिंह था और जिसे राजा धर्मसिंह ने बारह मौजों का तहसीलदार बना दिया था। उन दिनों तहसीलदारों को बहुत बड़ा अख्तियार रहता था, यहाँ तक सैकड़ों मुकदमे दीवानी और फौजदारी के खुद तहसीलदार ही फैसला करके उसकी रिपोर्ट राजा के पास भेज दिया करते थे।
काजर की कोठरी खंड-3
रात दो घंटे से ज्यादे नहीं रह गई है। दरभंगा के बाजारों की रौनक अभी मौजूद है, मगर घटती जाती है। हाँ उस बाजार की रौनक कुछ दूसरे ही ढंग पर पलटा खा रही है, जो रंडियों की आबादी से विशेष संबंध रखती है, अर्थात उनके निचले खंड की रौनक से ऊपरवाले खंड की रौनक ज्यादे होती जा रही है। इस उपन्यास के इस बयान में हमको इसी बाजार से कुछ मतलब है, क्योंकि उस बाँदी रंडी का मकान भी इसी बाजार में है, जिसका जिक्र इस किस्से के पहले और दूसरे बयान में आ चुका है। बाँदी का मकान तीन मरातब का है और उसमें जाने के लिए दो रास्ते हैं, एक तो बाजार की तरफ से और दूसरा पिछवाड़े वाली अंधेरी गली में से।
काजर की कोठरी खंड-4
दिन आधे घंटे से ज्यादे बाकी है। आसमान पर कहीं-कहीं बादल के गहरे टुकड़े दिखाई दे रहे हैं और साथ ही इसके बरसाती हवा भी इस बात की खबर दे रही है कि यही टुकड़े थोड़ी देर में इकट्ठे होकर जमीन को तराबोर कर देंगे। इस समय हम अपने पाठकों को जिस बाग में ले चलते हैं, वह एक तो मालियों की कारीगरी और शौकीन मालिक की निगरानी तथा मुस्तैदी के सबब खुद ही रौनक पर रहा करता है, दूसरे, आजकल के मौसिम ने उसके जीवन को और भी उभार रखा है।
काजर की कोठरी खंड-5
रात दो घंटे से कुछ ज्यादे जा चुकी है। लालसिंह अपने कमरे में अकेला बैठा कुछ सोच रहा है। सामने एक मोमी शमादान जल रहा है तथा कलम-दवात और कागज भी रखा हुआ है। कभी-कभी जब कुछ खयाल आ जाता है, तो उस कागज पर दो-तीन पंक्तियाँ लिख देता है और फिर कलम रखकर कुछ सोचने-विचारने लगता है। कमरे के दरवाजे बंद हैं और पंखा चल रहा है, जिसकी डोरी कमरे से बाहर एक खिदमतगार के हाथ में है। यकायक पंखा रुका और लालसिंह ने सर उठाकर सदर दरवाजे की तरफ देखा। कमरे का दरवाजा खुला और उसने अपने पंखा खिदमतगार को हाथ में एक पुर्जा लिए हुए कमरे के अंदर आते देखा।