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2 Comments

  1. NUTAN SINGH
    April 20, 2020 @ 11:09 am

    Shayad ye kathan sahi hai ki abhaav se manav ka swabhav badalta hai.
    Apni kamia dhakne k liye hinsa ko dhaal banaya gaya hai.

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  2. डॉ. ( प्रो.) नरेन्द्र प्रसाद यादव
    March 30, 2022 @ 10:36 pm

    जहरबाद फोड़ा हो या नासूर, परंतु इसे लिखा है अब्दुल बिस्मिल्लाह साहब ने डूब कर . `झीनी झीनी बीनी चदरिया `भी इसी तरह का उपन्यास है.झीनी झीनी बीनी चदरिया बुनकर की दुरावस्था, बेबसी को दिखाता है . मगर ज़हरबाद एक अंचल विशेष के माध्यम से भारत के ग्रामीण अंचलों की तस्वीर प्रस्तुत करता है .दूसरे रूप में 2020 के कोरोना- संकट में भारतभर केसड़कों , पटरियों पर,पुलिस द्वारा पीटे जाने और अपने ही राज्य की बंदसीमा में घुसने की जद्दोजहद में देखा गया था . इतनी दुरावस्था कि भूख बीमारी मानी जाए .पेट के लिए दाना खोजने में ही पूरी जिंदगी गुजर जाए और पूरी जिंदगी की दूरी एकमात्र भूख ही रह जाए .

    बीसवीं शताब्दी के अंतिम दशक का यह उपन्यास है तब तक आजादी के स्वर्ण जयंती मनाने के लिए भारत बेताब था .विश्व ग्राम बन रहा है .भारत भी उदारीकरण की ओर बढ़ गया है.परंतु भारत के अधिकांश ग्रामीण अर्थशास्त्र इन्द्रके कोप और कृपा पर ही निर्भर है. जंगल और खेत भी अब इन भूखे- नंगे के पेट भरने में लाचार दिख रहा है . दूसरी और तीसरी ( कपड़ा और घर) आवश्यकता की बात ही क्या.मनुष्य की लालसा , उम्मीदें देह के साथ हीचली जा रही है.विकास की घोषणाएं ढिंढोरें ही बन जाते हैं. उल्टे विकास के ठेकेदार और लफंगे बहन ,बेटियों की इज्जत लूटते हुए उन्हें भिखारिनी/ उपेक्षितों की ही श्रेणी में पहुंचा देता है.और यह स्थिति लगातार उपन्यास की शुरुआत ( यानी जीवन की शुरुआत ) से ही अंतिम तक बद से बदतर होती जा रही है. कहानी में सब कुछ है. ग्रामीण संस्कृति, पर्व- त्योहार, उल्लास, उल्लास की खोज आंचलिक नृत्य- संगीत तथा पंच, पंचायतऔर उसकी विशेषता कमियाँ सब. पुरुष पुरुष का अहं, बहुविवाह, तलाक स्त्री जाति की लाचारी- बेबसी सब कुछ. और इसके बीच की धुरी फिर भी निहायत गरीबी ही है और गरीबी से उत्पन्न ज़हरबाद जो धीरे- धीरे जीवन के रस और जीवन के सारे रिश्ते को छीज- छीजकर दर्द में ही विलीन कर देता है. रही सही कसर धार्मिक- सामाजिक पुरानी प्रथा तलाक पूरा कर देता है. पति- पत्नी पुत्र आमने – सामने एक ही जगह रहते हुए भी तलाक ऐसी स्थिति उत्पन्न कर देता है कि न देने वाले,न लेने वाली और न उन दोनों से जन्मे पुत्र को एक पल चैन से दम लेने देता है. यह उपन्यास `एक चादर मैली सी( राजेंद्र सिंह बेदी )की याद दिलाता है.लगता है लेखक कबीर से ज्यादा प्रभावित है.उनका वर्णन यह भी सिद्ध करता है निराश- हताश – निराश्रित मनुष्यों को कबीर के पद किस तरह सुकून देते हैं.इसलिए कबीर के पद में ये अपने दुख मिलाकर भी गाते चलते हैं.

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