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शेखचिल्ली और चोरी में हिस्सा

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शेखचिल्ली एक दिन अपने घर के सामने अहाते में बैठे भुने हुए चने खा रहे थे और साथ ही जल्दी-से-जल्दी अमीर बनने के सपने देख रहे थे. खुली आँखों से सपने देखते हुए कुछ चने खा रहे थे और कुछ नीचे गिरा रहे थे. संयोग से जमीन पर गिरे चने के दानों में एक दाना कच्चा था. कुछ ही दिनों में वहाँ चने का एक छोटा पौधा निकल आया. शेखचिल्ली अपनी इस अनजाने में की गयी खेती को देखकर खूब खुश हुए और जी जान से फसल की रखवाली में लग गए. उन्हें बड़ी चिंता थी कि उनके इकलौते चने के पौधे को कोई गाय-भैंस ना चर जाए, इसलिए अम्मी के सो जाने के बाद रात में भी फसल की निगरानी किया करते थे.

              एक रात जब वो हाथ में डंडा लिए चने के पौधे की रखवाली कर रहे थे, तभी तीन-चार लोग खामोशी से छिपते-छिपाते कहीं जाते दिखाई दिए. शेखचिल्ली ने आवाज़ लगाईं, “ज़रा ध्यान से चलो भाइयो, कहीं मेरा पौधा न कुचल देना. वैसे, कौन हो तुम लोग? इतनी रात में कहाँ जा रहे हो?”

              अजनबी दरअसल चोर थे, जो गाँव के ही बनिए के घर चोरी करने जा रहे थे. शेखचिल्ली के इस तरह उन्हें देख लेने से चोर डर गए. उन्हें लगा कि कहीं शेखचिल्ली सबको उनके बारे में बता न दे. उन्होंने आपस में विचार किया और यह तय किया कि शेखचिल्ली को भी साथ लिए चलते हैं. जब यह चोरी में हमारे साथ होगा तो किसी को बताने की हिम्मत नहीं करेगा.

             चोरों के नेता ने कहा, “हम चोर हैं और चोरी करने जा रहे हैं. अगर चाहो तो, तुम भी हमारे साथ चलो. बहुत मजा आता है इस काम में.”

             शेखचिल्ली को काम तो मजेदार लगा, लेकिन पशोपेश में पड़ गए. सोचा, अगर मैं इन लोगों के साथ चोरी करने गया और इस बीच किसी जानवर ने मेरी फ़सल खा ली तो खेती का नुकसान हो जाएगा. यह शेखचिल्ली को अच्छा नहीं लगा. इस फसल को बेचकर उन्हें अमीर बनना था, बड़ा घर बनवाना था, शादी करनी थी. फसल नष्ट हो गयी तो सारी योजनाएँ धरी-की-धरी रह जाएंगी.

            सरदार ने उन्हें विचारमग्न देखकर कहा, “क्या हुआ? किस सोच में पड़ गए? चलना है तो जल्दी करो.”

            शेखचिल्ली बोले, “भाई, चलने को तो मैं चल लूँ तुम्हारे साथ. लेकिन, फिर मेरी चने की फसल की निगरानी कौन करेगा? अगर तुममें से कोई एक यहाँ रुक जाए तो मैं साथ चल सकता हूँ.”

            चोरों ने उनके इकलौते चने के पौधे को देखा और मन ही मन हँसते हुए बोले, “अरे, निगरानी की क्या चिंता है? फसल को उखाड़कर जेब में रख लो. वापस आकर फिर मिट्टी में लगा देना. इस तरह कोई तुम्हारी फसल को नुकसान नहीं पहुंचा पाएगा.” शेखचिल्ली को उपाय जम गया. उन्होंने चने के पौधे को उखाड़ कर अपनी जेब में रखा और चोरों के साथ हो लिए.

            कुछ दूर चलने के बाद शेखचिल्ली को याद आया कि हिस्से की बात तो की ही नहीं. उन्होंने चोरों के नेता से पूछा, “ये तो बताओ, चोरी में मेरा हिस्सा कितना होगा?”

            नेता ने कहा, “हिस्से का क्या करना है? कम या ज्यादा हो सकता है. तुम ऐसा करो, चोरी में चाहे कुछ भी मिले, तुम हमसे सौ रूपये ले लेना.”

            शेखचिल्ली बोले, “मुझे क्या निरा बेवकूफ समझ रखा है? तुम चार लोग हो और मैं पाँचवा. पाँचवे हिस्से की बात करो, नहीं तो मैं अभी शोर मचाता हूँ.”

          चोर घबरा गए. मरता क्या न करता. बोले, “नाराज न हो. तुम पाँचवा हिस्सा ही लेना.”

          अब शेखचिल्ली ख़ुशी-ख़ुशी उनके साथ चले. अंदाज़े लगा रहे थे कि पाँचवे हिस्से में कितनी रकम हाथ आएगी. चने की फसल बेचकर और चोरी का हिस्सा मिलाकर पक्का मकान ज़रूर बन जाएगा. फिर अम्मी भी खुश हो जाएँगी. गाँववाले, जो उन्हें निकम्मा समझते हैं, उनकी तरक्की देखकर जल मरेंगे.

         ऐसे ही सपने देखते शेखचिल्ली चोरों के साथ बनिए के घर तक पहुँच गए. चोरों ने बनिए के घर की पिछली दीवार से सेंध लगाई और घर में प्रवेश कर गए. पीछे-पीछे शेखचिल्ली भी थे. घर के अंदर जाने के बाद चोर बिना कोई आवाज़ किये धीरे-धीरे कीमती सामान इकट्ठा करने लगे. शेखचिल्ली परेशान थे. एक तो अँधेरे में उन्हें कुछ दिखाई नहीं दे रहा था और दूसरे समझ भी नहीं आ रहा था कि क्या उठाएँ. यूँ ही टटोलते-टटोलते उन्हें बोरी में कुछ नारियल मिल गए. शेखचिल्ली खुश हो गए. पैदल चलते-चलते भूख भी लग आई थी. सोचा, नारियल ही खाया जाए. लेकिन, नारियल खाने के लिए उसे फोड़ना जरूरी था.

          हाथ में नारियल लिए हुए शेखचिल्ली कोई ऐसी चीज़ ढूँढने लगे, जिससे उसे फोड़ा जा सके. टटोलते हुए अचानक उन्हें एक चिकने पत्थर जैसी चीज़ का आभास हुआ. उन्होंने पूरी ताकत के साथ नारियल उस पत्थर जैसी चीज़ पर दे मारा. लेकिन, यहाँ थोड़ी सी गड़बड़ हो गयी. जिस चीज़ को वे पत्थर समझ रहे थे, वो दरअसल सोए हुए बनिए का गंजा सर था. सर पर नारियल लगते ही बनिया उठकर बैठ गया और जोर-जोर से चिल्लाने लगा. देखते-ही-देखते घर के सारे लोग जग गए. पड़ोसी भी आवाजें सुनकर जमा हो गए.

         चोरों को भागने का कोई मौका नहीं मिला. वे बुरी तरह फंस गए थे. मन-ही-मन शेखचिल्ली को कोसते हुए वे घर में ही इधर-उधर छिप गए. शेखचिल्ली को जब छिपने की कोई जगह नहीं सूझी, तब वे छलाँग मारकर ऊपर टांड़ पर चढ़ गए.

         लोग बनिए के पास इकट्ठे हो गए और तरह-तरह के सवाल पूछने लगे.’कौन थे?’ ‘कहाँ गए?’ जैसे सवालों की बौछार होने लगी. बनिया बेचारा सिर में चोट लगने से वैसे ही परेशान था. उसे कुछ समझ नहीं आ रहा था. बोला, “कौन थे, कहाँ गए—ये तो ऊपरवाला ही बता सकता है. मैं क्या बताऊं?”

        ऊपर टांड़ पर बैठे शेखचिल्ली को लगा कि बनिए ने उन्हें देख लिया है और अब उनकी ओर इशारा कर रहा है. उन्हें गुस्सा आ गया. चिल्लाकर बोले, “सिर्फ उपरवाला क्यों जाने? अलमारी के पीछे वाला क्यों नहीं? चारपाई के नीचे वाला क्यों नहीं?”

        बस, फिर क्या था? बात-की-बात में सारे चोर पकड़ लिए गए. चोर बेचारे मन-ही-मन शेखचिल्ली को गालियाँ देने और दांत पीसने के सिवा कुछ भी नहीं कर पाए. शेखचिल्ली और उनकी अक्ल को गाँववाले जानते थे. दूसरे, उन्हीं की वजह से चोर पकड़े गए थे. इसलिए, उन्हें छोड़ दिया गया, जबकि बाकी चोरों को मार-पीटकर पुलिस के हवाले कर दिया गया. शेखचिल्ली वापस अपने घर की ओर चल पड़े,चने के पौधे को फिर से मिट्टी में लगाने.

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विकास नैनवाल

वाह!! क्या कहने। मज़ेदार किस्सा था।

नीलेश पवार

मजेदार ।
पढ़ कर बचपन की कहानियां याद आ गई । सरल और रोचक

NUTAN SINGH

Manorajan se bharpoor . Har kahani gudgudati hui.