सुनेली का कुआँ -एक राजस्थानी लोककथा
राजस्थान और गुजरात की सीमा पर बसा एक छोटा-सा गाँव था ‘नरसी की ढाणी’।राजस्थान के और गाँवों की तरह यहाँ भी पानी की बहुत कमी थी।गाँव की बहू-बेटियाँ सिर पर घड़े रखकर दूर-दूर से पानी लाती थीं। इसी गाँव की एक बींदणी थी-सुनेली।घर का सारा काम-काज और दूर से पानी भरकर लाना, शाम तक सुनेली थककर चूर हो जाती थी।पानी लाने की परेशानी से बचने के लिए गाँव का एक परिवार ‘बंजारे के कुएँ’ पर जाकर रहने लगा।सुनेली चाहती थी कि उसका परिवार भी किसी कुएँ के पास जाकर डेरा जमाए।परिवार के लोग अपने पुरखों की ढाणी छोड़कर कहीं जाना नहीं चाहते थे।बेचारी सुनेली मन मारकर रह जाती थी।
एक दिन की बात है,सिर पर पानी का घड़ा उठाये मन में कुछ गुनती-विचारती अनमनी-सी सुनेली ढाणी को लौट रही थी।खेजड़े के पेड़ के नीचे साँस लेने रुकी तो उसकी नजर जड़ पर पड़ी।वहाँ उसे गीली-मिट्टी दिखाई दी।
‘ऊँह, ये उँदरे भी सब जगह बिल खोद डाल देते हैं’ उसने सोचा और आगे बढ़ चली।अचानक उसके मन में आया कि बिल से खुदी मिट्टी तो गीली है।ज़रूर यहाँ पानी होना चाहिए।अगर यहाँ कुआँ खोद लें तो दूर से पानी लेने नहीं जाना पड़ेगा।
उसके पैरों को मानो पंख लग गए।जल्दी से घर पहुँचकर उसने अपने बेटों से कहा, “अपने फावड़े उठा लो।गाँव के खेजड़े के पेड़ के पास हम कुआँ खोदेंगे।”
तीनों बेटे और उनका पिता सुनेली की बात सुनकर हँसने लगे। “उँदरों का बिल बनाना कौन-सी नई बात है।पर यहाँ पानी कहाँ!” उसके पति ने उसे समझाया,पर सुनेली न मानी। “ना आओ तुम मेरे साथ।मैं अकेली ही कुआँ खोद लूँगी” उसने कहा और फावड़ा उठाकर चल दी खेजड़े के पेड़ की ओर।
बहुत देर तक जब सुनेली न लौटी तो बूढ़े ठाकुर ने बेटों से उसके बारे में पूछा।वे तीनों हँसते हुए बोले-माँ तो फावड़ा लेकर कुआँ खोदने गई है।ठाकुर ने बड़े बेटे को सुनेली को देखने भेजा।बेटा खेजड़े के पेड़ के पास पहुँचा तो देखता ही रह गया।उसकी माँ फावड़े से खुदाई कर रही थी।पास ही बहुत-सी ताजी मिट्टी पड़ी थी।उसने माँ के हाथों से फावड़ा लेकर खोदना शुरू किया।ऊपर की थोड़ी-सी रेत के नीचे नरम मिट्टी निकल रही थी।बेटा पूरे उत्साह से खोदने में लग गया।थोड़ा सुस्ताने के बाद सुनेली ने कहा, “बेटा में विश्वास के साथ कहती हूँ कि यहाँ नीचे पानी है।सब मिलकर अगर खोदेंगे तो जल्दी ही कुआँ बन सकता है।पर अगर कोई नहीं भी खोदता है तो भी मैं यहाँ खुदाई करती रहूँगी।अब तो मैं अपने कुएँ का पानी पीकर ही मरूँगी।तू खुदाई कर।मैं तेरे लिए रोटी लेकर आती हूँ।”
बेटा जोश में खुदाई करता रहा।सुनेली जब रोटी लेकर आई तो उसने देखा कि जवान बेटे ने अच्छी खासी खुदाई कर दी है।बेटा छाया में बैठकर रोटी खाने लगा तो सुनेली खुद फावड़ा लेकर खुदाई में जुट गई।साँझ को जब माँ-बेटे घर लौट रहे थे तो ढाणी के लोगों ने उनका मज़ाक उड़ाया।दोनों चुपचाप घर को लौट आये।मन ही मन वे दोनों बहुत खुश थे।
सुबह-सवेरे छोटा बेटा सोकर उठा तो उसे घर में माँ नहीं दिखाई दी।घड़ा भी अपनी जगह नहीं था।पास में सोते हुए भाई को उठाकर उसने कहा, “भाई सा,माँ शायद ठीक कहती हैं।खेजड़ा इसलिए हरा-भरा रहता है कि उसके नीचे ज़मीन में पानी है।चलो,हम भी माँ के काम में हाथ बँटाएँ।” बड़ा भाई थोड़ी देर बैठा सोचता रहा,फिर बोला, “तू ठीक कहता है।चल,हम चलकर माँ का हाथ बँटाएँ।”
खेजड़े के पास पहुँचकर दोनों माँ के खोदे गड्ढे में उतर गए।माँ के हाथ से फावड़ा लेकर दोनों ने खुदाई शुरू कर दी।तब तक सुनेली का पति भी वहाँ आ पहुँचा।पति और बेटों को देखकर सुनेली फूली न समाई।उसे विश्वास हो गया कि अब खेजड़े के पास कुआँ ज़रूर खुदेगा।दोपहर तक सारा परिवार कुआँ खोदता रहा।राजस्थान का मौसम!अचानक आँधी आ गई।खोदे गए गड्ढे में रेत भर गई।
ढाणीवालों ने सुनेली और उसके परिवार का खूब मज़ाक उड़ाया।दोनों बेटे उदास हो गए।सुनेली ने उनके माथे पर हाथ फेरते हुए कहा, “अब हम दिन में आराम करेंगे और रात को चंदा की चाँदनी में खुदाई करेंगे।तुम खुदाई करो और मैं मिट्टी फेंकती जाऊँगी।”
काम फिर आगे बढ़ा।उनकी लगन और विश्वास हो देखकर ढाणीवाले भी उनकी मदद के लिए आ गए।क्या छोटा,क्या बड़ा!सभी काम में जुट गए।अब सफलता पास ही दिखाई दे रही थी।जैसे-जैसे गड्ढा गहरा होता गया मिट्टी ऊपर लाना मुश्किल होने लगा।सुनेली ने तरकीब लगाई।बोली, “जैसे कुएँ से पानी निकालने के लिए गरारी लगाते हैं,वैसी गरारी यहाँ भी लगा लो।उससे मिट्टी ऊपर खींचना आसान हो जाएगा।” अब जैसे ही मिट्टी ऊपर आती बच्चे उसे फेंक आते।
जल्दी ही कुएं में गीली मिट्टी निकल आई।गाँव में बताशे बँटे।लड़के तो ख़ुशी से नाचने ही लगे।अब खुदाई और जल्दी-जल्दी होने लगी।एक के बाद दूसरा सोता फूटता गया और सबके देखते-देखते पानी बारह हाथ ऊपर चढ़ गया।कुएँ से शीतल,मीठा पानी निकल।चारों ओर सुनेली की समझदारी और लगन की तारीफ़ हो रही थी।खुद उसका मन कर रहा था कि वह पानी में खूब-खूब नहाए।
अपनी जय-जयकार सुनकर उसकी आँखें भर आईं।वह बोली, “भाई लोगों,अकेला चना भाड़ नहीं फोड़ सकता।अगर आप मेरे साथ नहीं आते तो मैं अकेली भला क्या कर पाती?”
गाँव के सबसे बूढ़े व्यक्ति ने कहा, “या तो थारी हिम्मत है,बींदणी सा।उँदरे तो बिल खोदते ही हैं।खेजड़े भी राजस्थान में उगते ही हैं।पर अपने अस्सी बरस के जीवन में मैंने किसी को ऐसा सोचते नहीं देखा।”
सुनेली के खोदे कुएँ में पानी कभी खत्म नहीं होता और लोग आज भी उसे सुनेली का कुआँ कहते हैं।
January 30, 2018 @ 6:11 pm
कहानी बहुत अच्छी है।लोककथाओं में कथा का एक अलग ही रूप देखने को मिलता है।हालाँकि इस कहानी में कुछ पंक्तियाँ मिसिंग है मैं उन्हें उपलब्ध करवाने का प्रयास करूँगा।
February 3, 2018 @ 6:31 pm
I like the story very much the same story is in our hindi medha book i want u to add question answers of it in this site ..else everything is good
February 3, 2018 @ 6:34 pm
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February 8, 2018 @ 11:21 am
Briliant the story is best
January 28, 2021 @ 1:15 pm
yes
January 5, 2020 @ 5:42 am
लोक कथाऐं हमे हमारी अतीत की जानकारी प्रदान कराती है।
June 7, 2020 @ 8:57 pm
Sham ke samay Aandhi aane par kya hua
June 7, 2020 @ 9:05 pm
शाम के समय आँधी आने के कारण सुनेली और उसके परिवार के द्वारा कुएँ के लिए खोदे गए गड्ढे में रेत भर गयी।
June 25, 2020 @ 8:31 pm
मुझे यह कहानी बहुत अच्छी लगी। मुझे मेरे सर ने यह कहानी नेट पर से पढ़ने के लिए कहा था। धाकड़ कहानी है।
June 25, 2020 @ 8:41 pm
शुक्रिया. ऐसी और भी कहानियाँ साहित्य विमर्श पर मौजूद हैं. आप प्ले स्टोर से साहित्य विमर्श का एंड्रॉयड ऐप भी इंस्टॉल कर सकती हैं.
August 7, 2020 @ 8:54 pm
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August 7, 2020 @ 10:32 pm
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September 14, 2020 @ 2:35 pm
तीनों बेटें और उनका पिता सुनेली की बात सुनकर क्यों हंसने लग गए?
September 14, 2020 @ 8:15 pm
जब सुनेली ने पानी के लिए रेत में कुआँ खोदने की बात कही तो उसके पति और तीनों बेटे उसकी बात सुन कर हँसने लगे। उन्हें यह बात इतनी असंभव लगी कि इस पर सिर्फ हँसा जा सकता था। रेगिस्तान में उँदरे बिल खोदते ही हैं और वहाँ खेजड़ी के पेड़ भी होते हैं। लेकिन इस आधार पर वहाँ धरती के नीचे पानी होने की कल्पना करना और उसके लिए कुआँ खोदने की बात उसके बेटों और पति को हास्यास्पद लगी।
October 7, 2020 @ 10:40 am
Suneli ke charitro ke bare me bataiye
October 20, 2020 @ 1:58 pm
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October 20, 2020 @ 2:01 pm
यदि आप सुनेली के स्थान पर होते तो गांव छोड़ कर जाते कुआं खोदते ।
October 27, 2020 @ 10:09 am
This story is amazing. It is in my Hindi book also. Exactly the same.
May 4, 2021 @ 11:37 am
बहुत ही बढिया कहानी है, ग्रामीण परिवेश से संबंधित कहानी मन मोह लेता है
July 26, 2021 @ 3:44 pm
Kisne kisse kaha of suneli ka kua I want that answers please all that questions
June 25, 2022 @ 3:31 pm
Mene ye story 2007 me tisri class me padi thi. Aaj sochne laga sonali ka kua ki kahani yad aa gai.