वह एक ऐसा कमरा था जिसमें मात्र एक दरवाजा और वेंटिलेशन के नाम पर कुछ भी उठा कमरे के स्ट्रक्चर में मौजूद नहीं था। उस दरवाजे से भीतर अगर कोई झांकता तो पाता कि कमरे में सामान के नाम पर एक मेटल की टेबल जो दोनों तरफ से फोल्ड होकर एक तरफ रखी जा सकती थी, वहीं उस मेटल के मेज के दोनों तरफ दो मेटल के ही फोल्डिंग कुर्सियां मौजूद थी जिसमें से एक पर एक ऐसा व्यक्ति बैठा था जिसे देखते ही अजनबी इंसान को भी मोहब्बत हो जाए। लोग बॉलीवुड में, चॉकलेट बॉय के लिए शाहिद कपूर, इमरान हाशमी आदि का नाम लेते हैं लेकिन अगर इस व्यक्ति ने,जिसके चेहरे को देखने की भारत का बच्चा-बच्चा कोशिश कर रहा था ताकि जान सके कि भारत के इतिहास में यह कौन सा अपराधी है जिसके द्वारा किये गए अपराध की सजा अगर उसे आज दी जाती तो कम […]
पवन महाजन के चेहरे पर अब मिश्रित भाव आ रहे थे, वह समझ नहीं पा रहा था कि वह खुशी से नाचे या अपना सिर पकड़ बैठकर रोना शुरू करे। जिस मेहनत से उसने अपने घर से यहां तक कि दूरी तय की थी उस रू में वह भौचक्का था कि जिस चीज को सेफ रखने के लिए उसने ए. सी. की हवा देने वाले छेद में अपने गाड़ी की डिक्की की चाबी को छुपा दिया था, उस पर पानी फिर गया था। इधर उस पुलिसिये कि हालात खराब होती जा रही थी कि डिक्की में से कुछ निकला तो नहीं फिर अब वह पवन महाजन को क्या जवाब दे पायेगा। विपिन नामक कॉन्स्टेबल ने अपने अफसर के चेहरे का रंग उड़ते हुए देखा। उसने डिक्की का ढक्कन लगाया लेकिन वह प्रोपरली लगा नहीं। चीजों का कायदे से इस्तेमाल किया जाए तो वह जिंदगी भर काम करती रहती हैं लेकिन […]
जब तक उसने अपने ताबूत में 2 कीलें न ठोक ली तब तक उसकी बारी नहीं आयी। एकॉर्ड को कम से कम 4 पुलिसियों ने घेर लिया। चूंकि वह बिल्कुल बायीं लेन में था इसलिए उसने अपने दाएं तरफ देखा तो पाया कि पुलिस वाले बिल्कुल भुस में सुई खोजने की तरह गाड़ीयों की तलाशी ली रहे थे। उसके गले में में बनी प्राकृतिक घंटी बजी, सिर्फ बजी ही नहीं बल्कि ऊपर तक आ गयी। उसने अपना हाथ फिर से सिगरेट की डिब्बी की ओर बढ़ाया तो पुलिसवालों ने उसे बाहर आने को कहा। उसने डैशबोर्ड से गाड़ी के कागज वाली फ़ाइल निकाली और बाहर निकल गया। दायीं तरफ से बाहर निकलकर वह बायीं तरफ आ गया। उसने अपने कागजात एक पुलिसिये को देखने के लिए दिया। वह बहुत ही असहज हो, अपनी गाड़ी को देखते हुए बार-बार पहलू बदल रहा था। पुलिसवाला एक-एक करके फ़ाइल में मौजूद डाक्यूमेंट्स को […]
नीले रंग की एकॉर्ड डी एन डी से उतर कर अब ग्रेटर नोएडा की ओर बढ़ रही थी। स्पीड सामान्य थी, जैसे कि ड्राइवर को रात के उस घड़ी कहीं भी जाने की जल्दी नहीं थी, जबकि यह सामान्य से अलग बात होती है। अपनी औसतन रफ्तार को, रोड स्पीड लिमिट के अंदर समेटे हुए गाड़ी अचानक धीमी होनी शुरू हुई। ड्राइविंग सीट पर बैठे व्यक्ति ने पाया कि आगे कई गाड़ियों के बैक लाइट्स जलती हुई नजर आ रही थी। उसने लेन बदल कर अपनी गाड़ी को निकाल ले जाने कि कोशिश करनी चाही लेकिन वह सफल नहीं हो पाया क्योंकि उसे दूर से ही पुलिस की बैरिकेडिंग नज़र आ गयी। उसने ध्यान दिया तो पाया कि बैरिकेडिंग ट्रैफिक पुलिस की नहीं बल्कि सामान्य पुलिस की थी। उसने एक बार पीछे की तरफ देखकर सोचा कि बैक करके सेक्टर 18 की किसी गली से निकल जाए तो इस चेक […]
“10 रुपये में भर पेट भोजन” दरोगा नाम के उस 26 वर्षीय व्यक्ति ने मोती विहार स्थित एक एन. जी. ओ. द्वारा चलाये जा रहे गरीबों के लिए कम दामों पर भोजन के प्रबंध जैसे सामाजिक कार्य को चिन्हित करता बोर्ड देखा। उसने, अपनी मैली-कुचेली जीन्स के पिछले जेब में हाथ डाला तो चिल्लर के सिवा कुछ बाहर न निकला। दरोगा ने उन चिल्लरों को काउंट किया तो गिनती 16 तक पहुंची। वह सुबह से भूखा था और इसके लिए वह खुद को नहीं बल्कि अपने जोड़ीदार पटवारी को जिम्मेदार मानता था जो सुबह एक बार शक्ल दिखाने के बाद अपनी नई-नई बंदी से मिलने निकल गया था। न तो दरोगा उसका असली नाम था न ही उसके दोस्त का नाम पटवारी था। इससे भी बड़ा ताज्जुब यह था कि दोनों के ये नाम सरकारी महकमे के पदों के नाम हैं जबकि इन दोनों का इन पदों से दूर दूर […]
अगली सुबह अखबार के राजधानी की खबरों वाली पेज को राजधानी में हुए खबरों ने कवर किया हुआ था। पहली खबर अमितेश गुप्ता नामक एक एंटरप्रेन्योर की थी जिसकी लाश जनकपुरी डिस्ट्रिक्ट सेंटर के करीबी रोड पर लावारिश पाई गई थी। वहीं दूसरी खबर एक एक्सीडेंट की थी जो डी एन डी रोड पर हुआ था। लियाकत और रज्जी, उस वक़्त शिवाजी पार्क, पंजाबी बाग स्थित मैक्स ग्लोबल पैकर्स एवं मूवर्स के वेयरहाउस में मौजूद थे। उन दोनों का वहां मूल काम हेल्पर्स का था जो मूवर्स एवं पैकर्स वाले काम में समान पैकिंग करने और फिर गाड़ी लोड करने का करते थे। दिन में उनके पास यही काम होता था जबकि रात में छोटे-मोटे आपराधिक गतिविधियों में लिप्त होते थे। जिस रात भी वे शिकार पर निकलते थे, मात्र एक एक्ट का टारगेट रखते थे। लियाकत के हाथ में अखबार था, उसने रज्जी को अपने करीब बुलाया। “ओये, रज्जी […]
डोरबेल की सुमधुर संगीत-लहरी भी उमा के चित्त को अशांत होने से रोक न सकी।अभी-अभी तो वह पूजा करने बैठी थी। फिर यह व्यवधान..? ! नौकर उसके सामने शादी का एक कार्ड धर गया। गहरे पीले रंग पर लाल बनारसी काम के बॉर्डर से सजे उस कार्ड को उमा ने उत्सुकता से देखा। एड्रेस वाली जगह पर कलकत्ता लिखा देख वह चौंक पड़ी। लिफाफा खोल कर देखा तो कागज का एक टुकड़ा, उसमें से गिरकर उसके आंचल में आ फंसा। ” दुलहिन ! आना जरूर। सालों पहले…भीड़ भरे आंगन में, एक झलक की भेंट का ही नाता था तुमसे।पर मुझ अभागन के दुख के आभास से ही कभी छटपटा उठी थी तुम। तुमसे मन-प्राण का नाता कैसे न जोड़ूँ! तुम्हें भेजा गया यह निमंत्रण, दुनियादारी का तकाजा नहीं है उमा। मेरे दुख को देखकर…रोने वाले बहुतेरे थे, सहानुभूति दिखाने वाले थे, रोजमर्रा का कारोबार समझकर पीठ मोड़ने वाले भी थे। […]
ट्रेन के सेकंड एसी के उस कूपे में वह बोरियत भरी खामोशी नहीं थी जो आमतौर पर ऐसे कूपों में पाई जाती है। मानसी अपनी बर्थ पर चुपचाप बैठी, निरंतर सहयात्रियों का अवलोकन कर रही थी। हास्य की एक क्षीण रेखा उसके होंठों पर खेल रही थी। कारण ? उसके सामने की बर्थ पर एक वृद्ध दंपति बैठे थे जो बात-बात पर तकरार कर दूसरे यात्रियों को मनोरंजन की पर्याप्त सामग्री मुहैया करा रहे थे। पति की सीट किसी अन्य कूपे में थी और वह शायद इस अनवरत कलह से विश्रांति पाने की मंशा से…अपनी सीट पर जाने को बेकरार दिख रहे थे। मगर उनकी पत्नी भी उन्हें इस सुख का उपभोग करने से वंचित रखने पर तुली हुई थीं। उनके बीच की आखिरी तकरार इसी मुद्दे पर हो चुकी थी और वे दोनों मुंह सुजाए…खिड़की से बाहर देखने का उपक्रम कर रहे थे। मानसी कौतुक से उन्हें निहार रही […]
सिंह नर्सिंग होम में बड़ा-सा ताला लटक रहा था। लोकप्रिय डॉ. सिंह के अकस्मात् इस तरह अलोप हो जाने पर, उनके कई मरीजों की अवस्था और बिगड़ गई थी। अब क्या होगा ? अपने हाथों का चमत्कार दिया, उन्हें मृत्युंजयी औषधि पिलानेवाला मसीहा ऐसे अदृश्य क्यों हो गया ? यह ठीक था कि कई दिनों से डॉ. सिंह ने अपने क्लीनिक में किसी भी नए मरीज को नहीं लिया था, फिर भी निराश मरीजों के असहाय आत्मीयों की एक लम्बी कतार, उनके सेक्रेटरी के चरणों पर सिर रखकर गिड़गिड़ाती रही थी। जैसे भी हो, एक बार डॉ. सिंह उनके मरीजों को देख-भर लें, पर सेक्रेटरी बेचारा क्या करता ? डॉ. साहब अपनी सजी कोठी के सबसे ऊपर के कमरे में स्कॉच लेकर बन्द थे। किसकी मजाल थी कि द्वार खटखटा दे। बीच-बीच में उनका गूँगा नौकर बदलू, काली तेज़ कॉफी की ट्रे वहीं […]
रोशन आनंद, भारत का एक नामचीन अपराध कथा लेखक था, जिसे उलझी हुई कहानियां खोजने और लिखने का शौक था। ये शौक कई बार उसे मौत के मुहाने पर लाकर भी खड़ा कर देता था। दिल्ली के थाना क्षेत्र के अधीन घटे ओपन एंड शट केस में ज्यों ही उसने अपनी दखल बनाई, सिलसिलेवार तरीके से हत्याओं का एक दौर-सा चल पड़ा, जिसका रहस्य अंक ‘8’ से सम्बंधित था… प्रकृति ने अपराध करने का ठेका किसी खास श्रेणी को नहीं दिया और न ही इसे श्रेणीबद्ध किया कि अमुक श्रेणी का इंसान अपराध नहीं कर सकते। लेकिन हम श्रेणियाँ बना ही लेते हैं……. Buy Now
छाप तिलक सब छीनी .. वह कहानियाँ… जो स्त्री-मन की अंधेरी गलियों से हो कर गुजरीं, जीवन की आपाधापी में गुम होते-होते रह गईं और मानवीय प्रेम और करूणा के उजालों की तलाश में सतत विचरती रहीं। मानव-मन अपने अनगढ़ स्वरुप में कितना लुभावना हो सकता है, कितना करुणामय…. इस किताब की कहानियों के किरदार, यही छटा बिखेरते हैं। ख़ास कर स्त्री पात्र। पीड़ा में भी अलौकिक सौन्दर्य है। इन कहानियों के आत्मा, इसी सौन्दर्य से गर्वोन्नत है। Buy Now
“उस जीवन पर क्या गर्व करना जिसमें गिनाने के लिए वर्षों की संख्या के सिवा कुछ न हो। बदलाव में जिंदगी है, ठहराव में नहीं।” – बात बनेचर बात बनेचर वो किताब है कि जब इसका पहला पन्ना खोलो तो ऐसा लगता है मानों जंगल के प्रवेश द्वार पर खड़े हो और पंछियों की, पशुओं की आवाज़ें अंदर बुला रही हों। एक बार इसकी कोई भी कहानी पढ़ने की देर नहीं है कि ख़ुद कहाँ बैठे हैं, कितनी देर से पढ़ रहे हैं, ये भी याद नहीं रहता। सुनील कुमार ‘सिंक्रेटिक’ वर्तमान हिन्दी में अपनी विधा के एक मात्र लेखक हैं। सब किस्सा लिखते हैं, ये बन किस्सा। इनकी प्रसिद्धि इंसानी चरित्र के मुताबिक जानवरों को ढूंढकर ऐसी कहानी गढ़ने की है कि जंगल का सामान्य सा किस्सा, कब मनुष्य का जीवन-किस्सा बन जाता है, पता ही नहीं चलता। विजुअल मोड इनकी लेखनी की विशेष शैली है। पढ़ने के साथ […]
ऐतिहासिक उपन्यास इंद्रप्रिया, अपने समय की सर्वाधिक सुन्दर स्त्री, एकनिष्ठा नर्तकी, कुशल कवियत्री, समर्पित प्रेयसी, ओरछा की राय प्रवीना की केवल कथा भर नहीं है, अपितु यह दस्तावेज है, उस वीरांगना का जिसने कामुक शहंशाह अकबर के मुग़ल दरबार में अपनी विद्वता से न केवल अपनी अस्मिता की रक्षा की बल्कि उसने अकबर को पराजित भी किया.
द वॉचमैन-मर्डर इन रूम नंबर 108 सुधीर सिंघल निहायत घटिया, बदनीयत! सूरत से कामदेव सरीखा ऐसा नौजवान था, जो पैसों की खातिर किसी भी हद तक जा सकता था। अधेड़ उम्र की औरतों को अपने प्रेमजाल में फाँस सकता था, नौजवान लड़कियों की कमाई पर ऐश कर सकता था। वह कइयों की जिंदगी में उथल-पुथल मचाये था, तो कइयों को बर्बादी के कगार पर भी पहुँचा चुका था। ऐसे फसादी शख्स के साथ जो न हो जाता, वही कम था। द वाचमैन सीरीज की नयी पेशकश
अंकुर रोहिल्ला बेहद दौलतमंद, लेकिन हद दर्जे का अय्याश था, जिसकी नीयत अपने ही किरायेदार की बेटी पर खराब थीं। फिर एक रात मानो जलजला आ गया। वह मासूम लड़की लापता हो गई। क्या लड़की का बाप, क्या पड़ोसी, सबको जैसे यकीन था कि उसकी गुमशुदगी के पीछे अंकुर के कुत्सित इरादों का हाथ है। पर, क्या इसे साबित करना इतना आसान था? क्या लड़की सचमुच अंकुर की वासना की भेंट चढ़ गई या फिर किसी अकल्पनीय साजिश का शिकार हो गई? ऐसे में केस में इंट्री होती है द अनप्रिडिक्टेबल मैन पनौती की, जिसके साथ पान में लौंग-सी फिट है- हरदिल अजीज अवनी। इस अनोखी जुगलबंदी ने क्या गुल खिलाये? लापता लड़की का क्या हुआ? क्या सचमुच अंकुर रोहिल्ला गुनहगार है? घात-प्रतिघात से लबरेज, तेजरफ्तार, पनौतीपन लिए संतोष पाठक का विशिष्ट शाहकार प्रतिघात साहित्य विमर्श की गौरवशाली पेशकश
Nicely written. Nagpanchami is one of that festivals which combines the good vibes of conservating forests and their dependents. The…