डोरबेल की सुमधुर संगीत-लहरी भी उमा के चित्त को अशांत होने से रोक न सकी।अभी-अभी तो वह पूजा करने बैठी थी। फिर यह व्यवधान..? ! नौकर उसके सामने शादी का एक कार्ड धर गया। गहरे पीले रंग पर लाल बनारसी काम के बॉर्डर से सजे उस कार्ड को उमा ने उत्सुकता से देखा। एड्रेस वाली […]
ट्रेन के सेकंड एसी के उस कूपे में वह बोरियत भरी खामोशी नहीं थी जो आमतौर पर ऐसे कूपों में पाई जाती है। मानसी अपनी बर्थ पर चुपचाप बैठी, निरंतर सहयात्रियों का अवलोकन कर रही थी। हास्य की एक क्षीण रेखा उसके होंठों पर खेल रही थी। कारण ? उसके सामने की बर्थ पर एक […]
चुभती हुई गरमियों के दिन ..। नयन के माथे का घूँघट…उसके ललाट पर विषधर के फन सरीखा फैला हुआ था। पसीने से नहायी… हाथ का पंखा झलती ,वह घूँघट की ओट से आंगन की झकमक करती भीड़ को ताक रही थी। वहां शोरगुल के घने बादलों के बीच….रंगीन साड़ियों और दमकते गहनों से सजी गुजी […]