दैवी विचित्रा गति:! “कान्तं वत्ति कपोतिकाकुलतया नाथान्तकालोऽधुना व्याधोऽधो धृतचापसजितशरः श्येनः परिभ्राम्यति ।। इत्थ सत्यहिना स दष्ट इषुणा श्येनोऽपि तेनाहत- स्तूर्ण तौ तु हिमालयं प्रति गतौ दैवी विचित्रा गतिः ।।” (नीतिरत्नावली) मेरे कान में ऐसी भनक पड़ी कि मानो मुझे कोई पुकार रहा है! ऐसा जान कर मैं उठ बैठी और आँखें मल-मल और जम्हाई ले-ले कर नींद की खुमारी दूर करने लगी। मुझे जगी हुई जान कर रामदयाल ने धीरे से मुझसे यों कहा,–“बस, खबरदार हो जाओ। थानेदार अब्दुल्ला लौट आया है और अब वह कदाचित तुमको अपने पास बुलावेगा।” यह सुन कर मैंने उनसे पूछा,–“ओहो! यह तो खासी रात हो आई! मैं बहुत जादे सोई।” उन्होंने कहा,–“हाँ, तुम खूब सोईं। अब रात के ग्यारह बजने का समय है! दस बजे अब्दुल्ला और हींगन लौट कर यहाँ आ गए हैं और खाना-बाना खा कर अब दोनों उसी कोठरी में बैठे हुए शराब पी रहे हैं। कदाचित अब […]
No Posts Found
दो सज्जन उस बदजात थानेदार के जाने पर वे दोनों चौकीदार मुझसे बातचीत करने लगे। वे दोनों बेचारे बड़े भले आदमी थे। उनमें से एक ( दियानत हुसैन ) तो मुसलमान थे और दूसरे (रामदयाल) ब्राह्मण। बातों ही बातों में उन दोनों को मैंने अपनी सारी ‘रामकहानी’ सुना दी, जिसे सुन कर वे दोनों बेचारे बहुत पछताने लगे और यों कहने लगे कि,–“दुलारी, जो खून तुम्हारे घर में हो गए हैं, उनके कसूर में आश्चर्य नहीं कि तुम्हीं सजा पा जाओ और वह कसूर तुम्हारे ही गले मढ़ा जाये; पर कुछ पर्वा नहीं; जन्म लेकर कोई बार-बार नहीं मरता। तुम्हारा धर्म जो नारायण ने बचा दिया, उसके मुकाबिले में फांसी की तखती कोई चीज ही नहीं है। यदि धर्म और परमेश्वर कोई चीज हैं, तो वे दोनों तुम्हें अच्छी गति देंगे और परलोक या दूसरे जन्म में तुम सुख पाओगी। फिर यह भी बात है कि यदि तुमने सचमुच खून […]
कुल जमा दो लाख स्क्वायर मील एरिया और साढ़े चार करोड़ आबादी। स्पेन आज अकेला विश्व भ्रमण करने वाले साल के आठ करोड़ लोगों का पसंदीदा देश है। आठ करोड़। सोचिए, पूरे विश्व में अगर साल भर में 50 करोड़ लोग टूर करते हैं तो उनका सोलह प्रतिशत स्पेन खींचता है और फ्रांस साढ़े आठ से नौ करोड़ लोगों की पहली पसंद है। वर्ल्ड टूरिज्म फ्रेंडली कंट्री की लिस्ट के मुताबिक फ़्रांस और स्पेन पहले दूसरे नंबर पर बने रहते हैं। फ्रांस, जो कुल ढाई लाख स्क्वायर मील एरिया रखता है। इसके बाद क्योंकि विश्व की सबसे बड़ी मंडी यूनाइटेड स्टेट्स हैं, तो तीसरे नंबर पर उनका होना अजीब नहीं लगता। पर अजीब लगता है चौथे नंबर पर चीन का होना। सोचिए, छः करोड़ से ज़्यादा लोग सालाना चीन की सैर करते हैं। अब आपके दिमाग में भी वही सवाल घूम रहा होगा, बत्तीस लाख स्क्वायर किलोमीटर एरिया में फैला […]
मैं राजीव चौक मेट्रो से निकलकर कॉरिडोर पार करके ऊपर धरती की तरफ जा ही रहा था कि तीन-चार लड़कियों के बीच एक कूल डूड बलखाता जा रहा था। हँस-हँस के, इधर-उधर डगरते हुए, पेप्सी पीते-पीते नशे की एक्टिंग करते कुछ ऐसे किस्से सुना रहा था कि लड़कियां ठठा कर हँस रही थीं। कॉरिडोर की एग्जिट से पहले एक बोरियों से बने कवर के पीछे CISF जवान उसकी या पेप्सी की ओर देख रहा था। लड़कियां जो हँस रही थीं, उनकी हँसी में और इज़ाफ़ा करने के लिए कूल डूड ने कार्नर में खड़े CISF जवान की एके 47 राइफल की नली पकड़ ली और बोला “असली तो है न?” लड़कियाँ पेट पकड़ हँस पड़ीं। मेरे काटो ख़ून नहीं। मैं उस तरफ बढ़ा। जवान ने तुरंत हड़काया, “पीछे हट, खेलने की चीज़ है ये? क्या समझ रखा है?” कूल डूड ने कहा “चिल ब्रो, मैं तो बस मज़ाक कर रहा […]
1 सेठ पुरुषोत्तमदास पूना की सरस्वती पाठशाला का मुआयना करने के बाद बाहर निकले तो एक लड़की ने दौड़कर उनका दामन पकड़ लिया। सेठ जी रुक गये और मुहब्बत से उसकी तरफ देखकर पूछा—क्या नाम है? लड़की ने जवाब दिया—रोहिणी। सेठ जी ने उसे गोद में उठा लिया और बोले—तुम्हें कुछ इनाम मिला? लड़की ने उनकी तरफ बच्चों जैसी गंभीरता से देखकर कहा—तुम चले जाते हो, मुझे रोना आता है, मुझे भी साथ लेते चलो। सेठजी ने हँसकर कहा—मुझे बड़ी दूर जाना है, तुम कैसे चलोगी? रोहिणी ने प्यार से उनकी गर्दन में हाथ डाल दिये और बोली—जहाँ तुम जाओगे वहीं मैं भी चलूँगी। मैं तुम्हारी बेटी हूँगी। मदरसे के अफसर ने आगे बढ़कर कहा—इसका बाप साल भर हुआ नहीं रहा। माँ कपड़े सीती है, बड़ी मुश्किल से गुजर होती है। सेठ जी के स्वभाव में करुणा बहुत थी। यह सुनकर उनकी आँखें भर आयीं। उस भोली प्रार्थना में वह […]
हवालात अवश्यभव्येष्वनवग्रहग्रहा, यया दिशा धावति वेधसः स्पृहा ॥ तृणेन वात्येव तयानुगम्यते, जनस्य चित्तेन भृशावशात्मना ॥ (श्रीहर्ष:) बाहर आने पर मैंने क्या देखा कि मेरी गाड़ी में मेरे ही दो बैल जुते हुए हैं! वे मुझे देखते ही मारे आनन्द के गर्दन हिलाने लगे। मैंने उन दोनों बैलों की पीठ थपथपाई और गाड़ी पर सवार हो गई। फिर रास अपने हाथ में लेकर मैंने एक ओर को कूच किया। जिस समय मैंने गाड़ी हांकी थी उस समय पौ फट चुकी थी और झुटपुटा हो आया था। बस, उसी उषःकाल में मैंने यात्रा की और आध घंटे में अपने गाँव के बाहर मैं जा पहुँची। उस समय गाँव में चारों ओर सन्नाटा छाया हुआ था और रास्ते में मुझे कोई भी नहीं मिला था। यह देख कर मैं गंगा-किनारे पहुँची। फिर गाड़ी से उतर कर मैंने गंगास्नान किया और तीन अंजुल जल अपने पिता के लिए दिया। फिर मैं एक घंटे […]
“उड़ते खग जिस ओर मुंह किए समझ नीड़ निज प्यारा बरसाती आंखों के बादल बनते जहां करुणा जल लहरें टकराती अनंत की, पाकर जहाँ किनारा , अरुण यह मधुमय देश हमारा” कॉर्नेलिया ने जब ये बात प्रसाद की कविता में कही थी तब से अब बहुत कुछ बदल गया ।अरुण शेखर का कविता संग्रह “मेरा ओर न छोर” भी उनके अपने रचे मधुमय संसार की सैर आपको कराएगा। अपना संसार हर कोई मधुमय ही रचना चाहता है लेकिन क्या ये सम्भव है कि कवि सिर्फ मधुमय,हरा-भरा वातावरण ही पेश करे ,फिर चीखें,पुकार और सिसकियाँ भी इसी मधु के इर्द -गिर्द मिलेंगी ,जिससे कवि भाग नहीं सकता। कवि ने ये संग्रह अपने पिता (बप्पा)को समर्पित किया है ।बस कुछ किलोमीटर की दूरी पर रह रहा बेटे को उनके गुजर जाने की खबर जब अंत्येष्टि के बाद पता लगती है ,तो वो टीस जीवन की एक स्थायी पीड़ा बनकर रह जाती है […]
जब कभी हिन्दी कविता की बात होगी, गजानन माधव मुक्तिबोध की चर्चा अवश्य होगी। मुक्तिबोध की कविताओं की एक विशेषता है, एक तरह का अधूरापन और औपन्यासिकता । यह कहना असंगत न होगा कि जो बीहड़ विमर्श और वैसा ही बीहड़ रचनाशिल्प उन्होंने चुने थे उसके परिणामस्वरूप यह अधूरापन अनिवार्य ही था। उनका रचनाकाल छायावाद की छाया में प्रारंभ हुआ था।अपनी अधूरी और अधूरापन लिये कविताओं में मुक्तिबोध अपना एक नितांत निजी स्वर तलाशते दिखते हैं। ऐसी पंक्तियों में उनका आत्यंतिक लक्ष्य देखा जा सकता है , ” ओ अनाश्रयी अनात्मन् / इस युग क्षय में तुम्हें चरम अक्षय होना है। “ अपनी लड़ाई में अकेले होने की तीव्र अनुभूति वे व्यक्त करते हैं , ” बहुत बहुत करना है, बहुत अकेले/बहुत बहुत ओझल हो , बहुत बहुत मरना है। “ विमर्श और बिम्ब मुक्तिबोध की कविताओं में गुँथे हुये आते हैं। नामवर जी ने एक बार कहा था कि […]
क्रिस काइल की SEAL ट्रेनिंग कुछ ऐसी थी कि सुबह से शाम तक ठन्डे पानी में बिठा दिया जाता था। घंटो पानी के पाइप से तीखी धार मारी जाती थी। इस बीच इतनी ‘झंड’ की जाती थी कि कई ट्रेनिंग लेते साथी बीच में छोड़ के भाग जाते थे। कीचड़ में कोहनियों के बल कई-कई किलोमीटर चलने के लिए कहा जाता था। इन सब ट्रेनिंग –जिसे आप यातना भी कह सकते हो– के बाद क्रिस को इराक में पोस्टिंग मिली। क्रिस क्योंकि स्नाइपर थे तो दूर बैठे ही अलगाववादियों के मत्थे भेद दिया करते थे। साठ से ज़्यादा सटीक निशाने लगाने के कारण पहले ही टूर में क्रिस को the legend का ख़िताब मिल गया था। काइल जब रमादी शहर में भेजे गए थे तब वो एक खंडहर में लेटे मरीन ऑफिसर्स के कॉनवॉय को प्रोटेक्ट कर रहे थे, तभी उनकी नज़र एक बुर्खा पहने औरत पर पड़ी जिसके हाथ […]
दुःख पर दुःख एकस्य दुखस्य न यावदन्तं गच्छाम्यहं पारमिवार्णवस्य । तावद् द्वितीयं समुपस्थितं मे छिद्रेष्वनर्था बहुलीभन्ति ।। (नीति सुधाकरे) फिर वहाँ से भागने की मैंने ठहराई। सो, चटपट एक मोटी धोती और एक रूईदार सलूका पहिर कर मैंने एक ऊनी सफेद चादर ओढ़ ली और मन ही मन भगवान और भगवती को प्रणाम करके उस कोठरी से मैं बाहर निकली। उस समय भागने की धुन में मैं ऐसी लौलीन हो रही थी कि मुझे इस बात का मुतलक खयाल नहीं था कि, ‘इसी घर में हिरवा मरा पड़ा है!’ अस्तु, फिर मैं ज़ल्दी-जल्दी पैर बढ़ाती हुई सदर दरवाजे की ओर जाने लगी थी कि इतने ही में कालू बड़े जोर से चीख मार उठा और मुझे ऐसा जान पड़ा कि मानो “धम्म” से कोई चीज रसोई घर में गिरी हो। ऐसी आहट पाकर मैं तेजी के साथ सदर दरवाजे की ओर भागी थी कि बड़े जोर से कराह […]
यूं तो खुशियाँ उभर रही थीं हसरत में, मगर गमों के अक्स बन गए उल्फत में। राह चाह की, आह तलक ही जाती है, अक्सर ऐसा क्यूँ होता है चाहत में। अहसासों में कब तक दर्द छुपे रहते, नज़र आ गए सभी ग़ज़ल की रंगत में। मन्नत है उनकी आँखों में बस जाएँ, इससे बढ़कर क्या अच्छा है जन्नत में। दिल जीते जाते हैं प्यार मुहब्बत से, इतनी ताकत होती है क्या दौलत में ? प्यार के लिए पहले कितनी फुर्सत थी, ‘प्रवीण’ इसकी बात करेंगें फुर्सत में।
साया भ्रूचातुर्यात्कुष्चिताक्षाः कटाक्षाः स्निग्धा वाचो लज्जितांताश्च हासाः | लीलामंदं प्रस्थितं च स्थितं च स्त्रीणां एतद्भूषणं चायुधं च ‖ (भ्रतृहरि:) बस, इतने ही में कालू आ पहुँचा और मेरी खाट के पास बैठ, हँसकर यों कहने लगा,–“क्यों प्यारी दुलारी! मैंने कैसे अच्छे ढंग से अपने साथियों को यहाँ से हटाया?” मैं बोली,–“किन्तु इस झूठ का नतीजा क्या होगा?” वह कहने लगा,–“यह बात पीछे सोची जायेगी। इस बखत तो उन सभों को यहाँ से टाल दिया न! जो यह बात मुझे न सूझती, तो वे तीनों भला, यहाँ से कभी टलने वाले थे! अच्छा, अब तुम्हें जो कुछ कहना-सुनना हो, उसे झटपट कह डालो; क्योंकि रात बीती चली जा रही है।” यह सुनकर मैंने उसकी ओर हँसकर देखा और स्त्रियों के स्वाभाविक […]
प्रेमचन्द हिंदी साहित्य के एक ऐसे वट वृक्ष हैं जिनकी छाया में साहित्य का हर पल्लव पल्लवित होता है ,उनकी रचनाओं की छाँह में एक सुख है ,एक सुकून है ।उनके पुत्र अमृतराय ने भी एक बार कहा था कि “प्रेमचन्द सिर्फ उनके नहीं,बल्कि सभी के हैं “।अब ये बात और भी समीचीन मालूम पड़ती है कि होरी,धनिया,के सौ वर्ष गुजर जाने के बाद भी हर गांव में होरी के खेत, धन ,गिरवी क्यों हो जाते हैं।सौ सालों बाद भी अपनी जमीन पर हाड़तोड़ मेहनत करने वाला किसान स्वाभिमान से क्यों नहीं जी पाता। शतरंज के खिलाड़ी कहानी में वो मुद्दा उठाते हैं कि स्टेट की सारी दौलत कैसे राजधानी में लुटा दी जाती है ।हालात कमोबेश ऐसे ही हैं ,भारत का गांव,खेती,जाति का अर्थशास्त्र आज तक नहीं बदला है । उनकी रचनाओं ने जो सवाल उठाए थे ,उस समय उनको लगा था कि सुराज आयेगा तो ये सब समस्याएं […]
हिंदी फिल्मों के लंबे और रोचक इतिहास में एक ऐसा समय भी आया जिसमें एक पुराने युग की शाम ढलने को हुई और एक नए युग ने अंगड़ाई ली और सब कुछ इतनी तेज़ी से हुआ कि न तो पात्र संभल पाए और न ही दर्शक और श्रोता। समय था सन् 1969 से 1972. शक्ति सामन्त कृत फ़िल्म आराधना के हिट होने साथ ही राजेश खन्ना का एक सुपरस्टार के रूप में राज्यभिषेक हो गया। एक ताक़तवर और प्रतापी राजा ने हिंदी फ़िल्म साम्राज्य का सिंहासन संभाला और तीन ही सालों में कटी पतंग, सफ़र, आनंद,अमर-प्रेम, हाथी मेरे साथी के अमोघ अस्त्रों से फ़िल्म जगत पर एकछत्र राज स्थापित कर दिया। इस अश्वमेध यज्ञ में उनके सेनापति बनें अभिनेत-गायक किशोर कुमार। जो पार्ट-टाइम अभिनेता-गायक से फुल-टाइम गायक स्टार बन गए। राजेश खन्ना ने अपने राज्य में ऐलान कर दिया की उनकी फ़िल्म में यदि उनके लिए गायेगा तो में वो […]
मायारानी का डेरा अभी तक खास बाग (तिलिस्मी बाग) में है। रात आधी से ज्यादा जा चुकी है, चारों तरफ सन्नाटा छाया हुआ है। पहरे वालों के सिवाय सभी को निद्रादेवी ने बेहोश करके डाल रखा है, मगर उस बाग में दो औरतों की आँखों में नींद का नाम-निशान भी नहीं। एक तो मायारानी की छोटी बहिन लाडिली, जो अपने सोने वाले कमरे में मसहरी के ऊपर पड़ी कुछ सोच रही है और थोड़ी-थोड़ी देर पर उठकर बाहर निकलती और सन्नाटे की तरफ ध्यान देकर लौट जाती है, मालूम होता है कि वह मकान से बाहर जाकर किसी से मिलने का मौका ढूँढ रही है, और दूसरी मायारानी, जो निद्रा न आने के कारण अपने कमरे में टहल रही है। उसे भी तरह-तरह के खयालों ने सता रखा है। कभी-कभी उसका सिर हिल जाता है जो उसके दिल की परेशानी को पूरी तरह से छिपा रहने नहीं देता, उसके होंठ […]
Nicely written. Nagpanchami is one of that festivals which combines the good vibes of conservating forests and their dependents. The…