हिन्दी का श्रेष्ठ और कालजयी साहित्य
मैं राजीव चौक मेट्रो से निकलकर कॉरिडोर पार करके ऊपर धरती की तरफ जा ही रहा था कि तीन-चार लड़कियों के बीच एक कूल डूड बलखाता जा रहा था। हँस-हँस के, इधर-उधर डगरते हुए, पेप्सी पीते-पीते नशे की एक्टिंग करते कुछ ऐसे किस्से सुना रहा था कि लड़कियां ठठा कर हँस रही थीं। कॉरिडोर की […]
1 सेठ पुरुषोत्तमदास पूना की सरस्वती पाठशाला का मुआयना करने के बाद बाहर निकले तो एक लड़की ने दौड़कर उनका दामन पकड़ लिया। सेठ जी रुक गये और मुहब्बत से उसकी तरफ देखकर पूछा—क्या नाम है? लड़की ने जवाब दिया—रोहिणी। सेठ जी ने उसे गोद में उठा लिया और बोले—तुम्हें कुछ इनाम मिला? लड़की ने […]
हवालात अवश्यभव्येष्वनवग्रहग्रहा, यया दिशा धावति वेधसः स्पृहा ॥ तृणेन वात्येव तयानुगम्यते, जनस्य चित्तेन भृशावशात्मना ॥ (श्रीहर्ष:) बाहर आने पर मैंने क्या देखा कि मेरी गाड़ी में मेरे ही दो बैल जुते हुए हैं! वे मुझे देखते ही मारे आनन्द के गर्दन हिलाने लगे। मैंने उन दोनों बैलों की पीठ थपथपाई और गाड़ी पर सवार हो […]
“अक्ल को तन्कीद से फुर्सत नहीं इश्क़ पर आमाल की बुनियाद रख” हाल ही में एक फ़िल्म आयी है चमनबहार जिसमें नायक अपनी जीतोड़ मेहनत सी की कमायी गयी अल्प पूंजी पर अपने मन के उदगार लिखते हुए लिखते हुए दस -दस के नोटों पर अपनी प्रेमिका के प्रति अपनी भड़ास निकालते हुए लिखता है […]
“उड़ते खग जिस ओर मुंह किए समझ नीड़ निज प्यारा बरसाती आंखों के बादल बनते जहां करुणा जल लहरें टकराती अनंत की, पाकर जहाँ किनारा , अरुण यह मधुमय देश हमारा” कॉर्नेलिया ने जब ये बात प्रसाद की कविता में कही थी तब से अब बहुत कुछ बदल गया ।अरुण शेखर का कविता संग्रह “मेरा […]
जब कभी हिन्दी कविता की बात होगी, गजानन माधव मुक्तिबोध की चर्चा अवश्य होगी। मुक्तिबोध की कविताओं की एक विशेषता है, एक तरह का अधूरापन और औपन्यासिकता । यह कहना असंगत न होगा कि जो बीहड़ विमर्श और वैसा ही बीहड़ रचनाशिल्प उन्होंने चुने थे उसके परिणामस्वरूप यह अधूरापन अनिवार्य ही था। उनका रचनाकाल छायावाद […]