डीएम ऑफिस से आने के बाद से ही दीपमाला बहुत दुखी और परेशान थी। वह आईने के सामने खड़ी होकर अपने ढलते यौवन और मुरझाए सौंदर्य को देखकर बेतहाशा रोए जा रही थी। ऐसा लग रहा था मानो वह आईने से कह रही हो कि तुम भी लोगों की तरह झूठे हो। आज तक मुझे सिर्फ झूठ दिखाते रहे। कभी सच देखने ही नहीं दिया। उसने रात का खाना भी नहीं खाया। पति और दोनों बच्चे खाना खाकर सो चुके थे। लेकिन उसे नींद नहीं आ रही थी। दीपमाला की शादी को पंद्रह वर्ष हो चुके थे। पति और दोनों बच्चों के साथ उसका जीवन अब तक सुखी पूर्वक ही व्यतीत हुआ था। जी भर कर रो लेने के बाद वह अपने बेडरूम में आई। वहां उसने सोए हुए अपने पति को गौर से देखा। आज पहली बार उसका पति उसे काला-कलूटा, बेडौल शरीर वाला कुरूप व्यक्ति दिख रहा था। […]
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किसी देश की यात्रा करनी हो तो सड़क मार्ग से अच्छा कुछ नहीं हो सकता। इससे वहाँ की भूमि की संरचना, जलवायु, मानवीय बसाहटों आदि की नई- नई जानकारी मिलती है। खोजी प्रवृति के मानवीय मन को और क्या चाहिए। किसी भी बेहतर रचना को अंजाम देने के लिए, अनुसंधान की प्रवृति, रचना कौशल को भी और निखार देती है। लालसागर के किनारों से जाते हुए इजराएल से जैसे ही हम लोग मिस्र के ताबा बार्डर पहुँचे, गाइड हमारे दल का इंतजार कर रहा था। मिस्र का लगभग 94 प्रतिशत भू-भाग मरूस्थल है और जीविका का बहुत बड़ा स्त्रोत पर्यटन है, अतः मिस्रवासी बड़ी सहृदयता व गर्मजोशी से पर्यटकों का स्वागत करते हैं। यह इलाका सिनाई प्रायद्वीप कहलाता है। 60,000 वर्ग किमी का यह विशाल इलाका मिस्र का इकलौता क्षेत्र है जो एशिया के महाद्वीप पर पड़ता है और शेष मिस्र , उत्तर अफ्रीकी महाद्वीप में। भौगोलिक दृष्टि से यह […]
काजर की कोठरी खंड-12 के लिए क्लिक करें काजर की कोठरी सभी खंड सरला और शिवनंदन के शादीवाले दिन का हाल बयान करते हैं। वह दिन पारसनाथ और हरिहरसिंह के लिए बड़ी खुशी का दिन था। हरनंदन की इच्छानुसार बाँदी ने पूरा-पूरा बंदोबस्त कर दिया था और इसी बीच में हरनंदन और पारसनाथ को कई दफे बाँदी के यहाँ जाना पड़ा और इसका नतीजा जाहिर में दोनों ही के लिए अच्छा निकला। जिस दिन शादी होनेवाली थी उस दिन पारसनाथ ने शादी का कुल सामान उसी मकान में ठीक किया जिसमें सरला कैद थी। आदमियों में से केवल पारसनाथ, हरिहरसिंह, सुलतानी, सरला और शिवनंदन के पुरोहित उस मकान में दिखाई दे रहे थे, इनके अतिरिक्त पारसनाथ का भाई धरणीधर भी इस काम में शरीक था, जो आधी रात के समय शिवनंदन को लाने के लिए उसके मकान पर गया हुआ था। रात आधी से ज्यादा […]
काजर की कोठरी खंड-11 के लिए क्लिक करें काजर की कोठरी सभी खंड पारसनाथ बाजार को तय करता हुआ ऐसी जगह पहुँचा, जहाँ से बहुत तंग और गंदी गलियों का सिलसिला जारी होता था और इन गलियों में घूमता हुआ एक उजाड़ मुहल्ले में पहुँचा, जहाँ दिन-दोपहर के समय भी आदमियों को जाते डर मालूम पड़ता था। यहाँ पर एक मजबूत मगर पुराना मकान था जिसके दरवाजे पर पहुँचकर पारसनाथ ने कंडी खटखटाई। थोड़ी देर बाद किसी ने भीतर से पूछा, ‘कौन है?” इसके जवाब में पारसनाथ ने कहा, ‘गूलर का फूल!” दरवाजा खुला और पारसनाथ उसके अंदर चला गया। इसके बाद मकान का दरवाजा भी बंद हो गया। इस मकान की भीतरी कैफियत बयान करने की इस समय कोई जरूरत नहीं है क्योंकि हम मुख्तसर ही में उन बातों को बयान करना चाहते हैं जिन्हें असल फैक्ट कह सकते हैं। एक लंबे-चौड़े दालान […]
काजर की कोठरी खंड-10 के लिए क्लिक करें काजर की कोठरी सभी खंड आज हम फिर हरनंदन और उनके दोस्त रामसिंह को एक साथ हाथ में हाथ दिए उसी बाग के अंदर सैर करते देखते हैं जिसमें एक दफे पहिले देख चुके हैं। यों तो उन दोनों में बहुत देर से बातें हो रही हैं, मगर हमें इस समय की थोड़ी-सी बातों का लिखना जरूरी जान पड़ता है। रामसिंह : ईश्वर न करे कोई इन कमबख़्त रंडियों के फेर में पड़े! इनकी चालबाजियों को समझना बड़ा ही कठिन है। रास्ते में चलनेवाले बड़े-बड़े धूर्तों और चालाकों को मुँह के बल गिरते मैं अपनी आँखों से देख चुका हूँ। हरनंदन : ठीक है, मेरा भी यही कौल है, मगर मेरे बारे में तुम इस तरह बदगुमानियों को दिल में जगह न दो। कोई बुद्धिमान और पढ़ा-लिखा आदमी इन लोगों के हथकंडे में पड़कर बरबाद नहीं हो सकता, चाहे वह अपनी […]
काजर की कोठरी खंड-9 के लिए क्लिक करें काजर की कोठरी सभी खंड अब हम थोडा-सा हाल लालसिंह के घर का बयान करते हैं। लालसिंह को घर से गायब हुए आज तीन या चार दिन हो चुके हैं। न तो वे किसी से कुछ कह गए हैं और न कुछ बता ही गए हैं कि किसके साथ कहाँ जाते हैं और कब लौटकर आवेंगे। अपने साथ कुछ सफर का सामान भी नहीं ले गए, जिससे किसी तरह की दिलजमई होती और यह समझा जाता कि कहीं सफर में गए हैं, काम हो जाने पर लौट आवेंगे। वह तो रात के समय यकायक अपने पलंग से गायब हो गए और किसी तरह का शक भी न होने पाया। न तो पहरेवाला ही कुछ बताता है और न खिदमतगार ही किसी तरह का शक जाहिर करता है। सब-के-सब और परेशानी में पड़े हैं तथा […]
काजर की कोठरी खंड-8 के लिए क्लिक करें काजर की कोठरी सभी खंड बाँदी की अम्मा पारसनाथ से मनमाना पुर्जा लिखवाकर नीचे उतर गई और अपने कमरे में न जाकर एक दूसरी कोठरी में चली गई जिसमें सुलतानी नाम की एक लौंडी का डेरा था। यह सुलतानी लौंडी पुरानी नहीं है, बल्कि बाँदी के लिए बिलकुल ही नई है। आज चार ही पाँच दिन से इसने बाँदी के यहाँ अपना डेरा जमाया है। इसकी उम्र चालीस वर्ष से कम न होगी। बातचीत में तेज, चालाक और बड़ी ही धूर्त है। दूसरे को अपने ऊपर मेहरबान बना लेना तो इसके बाएँ हाथ का करतब है। यद्यपि उम्र के लिहाज से लोग इसे बुढ़िया कह सकते हैं, मगर यह अपने को बुढ़िया नहीं समझती। इसका चेहरा सुडौल और रंग अच्छा होने के सबब से बुढ़ापे का दखल जैसा होना चाहिए था, […]
काजर की कोठरी खंड-7 के लिए क्लिक करें काजर की कोठरी -सभी खंड इस समय हम बाँदी को उसके मकान में छत के ऊपरवाली उसी कोठरी में अकेली बैठी हुई देखते हैं जिसमें दो दफे पहिले भी उसे पारसनाथ और हरनंदन के साथ देख चुके हैं। हम यह नहीं कह सकते कि उसके बाद पारसनाथ और हरनंदन बाबू का आना इस मकान में दो दफे हुआ या चार दफे, हाँ, इसमें कोई शक नहीं कि उसके बाद भी उन लोगों का आना यहाँ जरूर हुआ, मगर हम उसी जिक्र को लिखेंगे जिसमें कोई खास बात होगी। बाँदी अपने सामने पानदान रक्खे हुए धीरे-धीरे पान लगा रही है और कुछ सोचती भी जाती है। दो ही चार बीड़े पान के उसने खाए होंगे कि लौंडी ने खबर दी कि ‘पारसनाथ आए हैं, बड़ी बीबी उन्हें बरामदे में रोककर बातें कर रही हैं।’ इतना सुनते ही बाँदी […]
काजर की कोठरी खंड-6 के लिए क्लिक करें काजर की कोठरी के सभी खंड अब हम अपने पाठकों को एक ऐसी कोठरी में ले चलते हैं जिसे इस समय कैदखाने के नाम से पुकारना बहुत उचित होगा, मगर यह नहीं कह सकते कि यह कोठरी कहाँ पर और किसके आधीन है तथा इसके दरवाजे पर पहरा देनेवाले कौन व्यक्ति हैं। वह कोठरी लंबाई में पंद्रह हाथ और चौड़ाई में दस हाथ से ज्यादे न होगी। बेचारी सरला को हम इस समय इसी कोठरी में हथकड़ी-बेड़ी से मजबूर देखते हैं। एक तरफ कोने में जलते हुए चिराग की रोशनी दिखा रही है कि अभी तक उस बेचारी के बदन पर वे ही साधारण कपड़े मौजूद हैं, जो ब्याह वाले दिन उसके बदन पर थे या जिन कपड़ों के सहित वह अपने प्यारे रिश्तेदारों से जुदा […]
मेरे पंख रंग-बिरंगे, थोड़े बेजान जरा खुले, जरा बंद जैसे मेरा मन मेरा मन थका सा, थोड़ा टूटा कसक से ठिठकता, परतों में जैसे मेरी हँसी मेरी हँसी जग को खिलखिलाती खुद में मायूस, मगर मुसकाती जैसे मेरे नयन मेरे नयन सब कुछ देख, सब कुछ नकारते इंकार करते, कभी स्वीकारते जैसे मेरी आत्मा मेरी आत्मा क्षत-विक्षत, अवलंब ढूँढती स्वयं को मनाती, स्वयं रूठती जैसे मेरा जीवन मेरा जीवन रेत-सा फिसलता, अकेला मनमाना, अलमस्त-सा अलबेला जैसे मेरी सोच मेरी सोच बेबाक चहकती, कलरव करती भोली, ठहराव में डरती जैसे मेरी बातें मेरी बातें कभी मरहम, कभी नश्तर बचकानी, नासमझी से भीगी जैसे मेरी लेखनी मेरी लेखनी भावाभिव्यक्ति को आतुर, बेसब्र अंतरव्यथा उकेरने की जिद पर जैसे मेरे आँसू मेरे आँसू क्षण-क्षण छलकते, चंचल से गम में,अतिरेक में, एकल से
मैं जब भी व्यक्त हुआ आधा ही हुआ उसमें भी अधूरा ही समझा गया उस अधूरे में भी कुछ ऐसा होता रहा शामिल जिसमें मैं नहीं दूसरे थे जब उतरा समझ में तो वह बिल्कुल वह नहीं था जो मैंने किया था व्यक्त इस तरह मैं अब तक रहा हूँ अव्यक्त।
डर गईं अमराइयां भी आम बौराए नहीं, ख़ूब सींचा बाग हमने फूल मुस्काए नहीं। यार को है प्यार केवल जंग से, हथियार से, मुहब्बत के रंग मेरे यार को भाए नहीं। मंज़िलों के वास्ते खुदगर्जियाँ हैं इस कदर , हमसफ़र को गिराने में दोस्त शर्माए नहीं । रोज सिमटी जा रही हैं उल्फतों की चादरें , हसरतों ने आज अपने पांव फैलाए नहीं। वह फकीरों की अदा में रहजनी करता रहा, अदाकारी की हकीकत हम समझ पाए नहीं। कुछ दीए उम्मीद के ‘प्रवीण’अब भी जल रहे, सामने तूफान के ये कभी घबराए नहीं।
सूरज की आंखों में ढीठ बनकर देखते मुद्राओं की गर्मी पर बाजरे की रोटी सेकते हम चाह लेते तो दोनों पलड़े बराबर कर तुम्हारी अनंत चाहतों से अपने सारे हक तौलते सिले हुए होंठ और कटी ज़ुबान से बोलते हम चाह लेते तो पोखरे के गंदले पानी में आसमानी सितारे घोलते!
यूं तो नमक एक खाद्य पदार्थ है या खाद्य पदार्थों को स्वाद बख्शने वाली चीज है, लेकिन इसकी महत्ता सर्वविदित है । नमक का महत्व इंसान की जिंदगी में इतना ज्यादा है कि इसे लेकर ‘‘नमकहलाल’’, ‘‘नमकहराम’’ और ‘‘नमकख्वार’’ जैसी उपमाएं बनीं । महात्मा गांधी जी को भी ‘‘गांधी’’, उनके नमक कानून तोड़ने को लेकर किए गये ‘‘दांडी मार्च’’ ने बनाया। बेशक, इस तीन अक्षरों वाले नाम की चीज के बिना जिन्दगी बेस्वाद हो जाती है। कालांतर में नमक पर अधिकार के लिए युद्ध भी हुए । राजा हो या रंक, अमीर हो या गरीब, उच्च वर्ग हो या दलित, शासक हो या शासित, हर वर्ग के भोजन का यह अभिन्न अंग होता है। नमक बिना कोई भी व्यंजन स्वादिष्ट नहीं बनता। इसलिए खाद्य सामग्रियों और अनाज की व्यवस्था के साथ साथ नमक की व्यवस्था करना भी आवश्यक होता है। हमारे आदिवासी पुरखों के लिए नमक की व्यवस्था करना एक […]
सभ्यता के दूसरे छोर पर अपने पैरों से एक गोरा दबाए बैठा है एक काले की गर्दन और काला चिल्ला रहा है- ‘आई कांट ब्रीद-आई कांट ब्रीद’ सभ्यता के इस छोर पर जन्मना स्वघोषित श्रेष्ठ कुछ इस तरह से बुने बैठे हैं मायाजाल जिसमें फंसा है अधिकतर का गला बोला भी नहीं जाता उनसे बोलें तो सुना नहीं जाते किसी से बस गूंज रहा है गान- ‘अहम् ब्रह्मास्मि-अहं ब्रह्मास्मि’ सभ्यता के ऊपरी सिरे पर पूँजीपति करता है अट्टहास नीचे सिर्फ़ गूंज रहा है मजदूरों का मौन पदचाप पिसता है उनका शरीर निचुड़ती है आत्मा उससे टपकता है अमृत पर नीचे को नहीं सीधे ऊपर को पहुँचता है पूँजीपति के कंठ में पूँजीपति डकारता है और दुहराता है- ‘कर्मफल-कर्मफल’ सभ्यता के भीतरी हिस्सों में पुरुष सिर्फ पुरुष हैं पर स्त्री है ‘सेकेंड सेक्स’ और बाकी हैं ‘थर्ड जेंडर’ यह क्रम ही इस भीतर का बाहर भी है यहाँ एक चौथा भी […]
बहुत ही बढिया अौर शिक्षाप्रद ,एवं व्यंगात्मक कहानी , 🙏🙏🙏