हत्या और आत्महत्या, हम इन दोनों शब्दों से भली-भांति परिचित हैं। दैनिक जीवन में, इलेक्ट्रॉनिक एवं प्रिंट मीडिया के जरिये, हम कई ऐसे अपराधिक घटनाओं के बारे में जानते हैं, जिसमे इन दोनों टर्म का इस्तेमाल होता है। क्राइम फिक्शन पढने वाले कई पाठकों को भी इसके बारे जानकारी होती है। आपने अक्सर देखा होगा कि अधिकतर रहस्य कथाओं में यह सवाल प्रमुखता से उठाया जाता है – ‘की जो अपराधिक घटना हुई है, जिसमे एक इंसान की मृत्यु हो गयी है, वो ह्त्या है या आत्महत्या’? चालाक अपराधी बड़ी चतुराई से पुलिस या जासूस को इस बिना पर गुमराह करने में सफल रहता है की ये हत्या, हत्या ना होकर आत्महत्या है| अब तथ्यों, परिस्थितियों और अपनी इन्वेस्टीगेशन के आधार पर यह नायक जासूस (पुलिस/प्राइवेट/आम आदमी) का कार्य होता है कि वो कैसे अपराधी की इस चतुराई को भांपकर असल तह तक पहुंचेI हम आपको बताने जा रहे हैं […]
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‘लफ़्ज़ों से बनते किस्से’ ‘लफ़्ज़ों से बनते किस्से’ इस पेज पर शुरू की जा रही नयी ‘प्रतियोगिता’ है। इस प्रतियोगिता में, SWCCF के वेबसाइट पर, प्रतियोगिता सेक्शन में, ‘लफ़्ज़ों से बनते किस्से’ पेज पर, एक इमेज के जरिये, आप सभी के सामने हम ‘एक वाक्य या एक पंक्ति’ रखेंगे – प्रतियोगी को इसी ‘वाक्य या पंक्ति’ से अपनी कहानी को शुरू करना है और पूरा लिखकर हमें भेजना है। ध्यान रहे आपके द्वारा लिखी जा रही कहानी का ‘पहला वाक्य या पहली पंक्ति’ वही हो जो उस इमेज में दिया गया हो। उसके बाद आप अपनी कहानी में अपनी मर्जी के किरदार, घटनाएं एवं भाव आदि डालने के लिए स्वतंत्र हैं। प्रतियोगिता से जुड़े अन्य नियम आप नीचे पढ़ सकते हैं:- महतवपूर्ण तिथियाँ:- इस प्रतियोगिता के आरम्भ होने की तिथि – १ मई, २०१७ इस प्रतियोगिता में अपनी कहानी भेजने की अंतिम तिथि – २० मई, २०१७ SWCCF के […]
अध्याय १४ : पातालपुरी हीरा सिंह जब ठाकुर जी की आरती लेकर लौटा तबतक एक पहर दिन चढ़ गया था। अभी तक भोला राय वहीँ पर उसी तरह बैठा था। हीरा सिंह ने सोचा कि भोला का ढंग अच्छा नहीं है, इस समय उसको हाथ में न रखने से पीछे आफत आवेगी। यह सोचकर उसने भोला के पास जाकर उसका हाथ पकड़ा और कहा – “क्या करते हो राय जी। आओ चलो कुछ बातें करनी हैं।’ भोला चुपचाप उनके साथ चला। हीरा सिंह उसको साथ लेकर पहले कहे हुए पातालपुरी में गया, वहां उसके शरीर पर हाथ फेरकर प्रेमपूर्वक बोला – “क्या भोला राय। पहले तुम भी मुझे नहीं जानते थे और मैं भी तुम्हें नहीं जानता था परन्तु इन बारह वर्षों में हम एक दुसरे में इतना प्रेम हो गया है कि जितना शायद बाप-बेटे में भी नहीं होता। परन्तु एक समय मुझे भी तुम भूल जाओगे। तब दुसरे […]
शरलॉक होम्स : द परफेक्ट डिटेक्टिव वर्तमान में, शरलॉक होम्स को सोचे बगैर क्राइम फिक्शन की कल्पना भी नहीं की जा सकती है। आर्थर कॉनन डायल द्वारा रचित यह किरदार विश्व में क्राइम फिक्शन का प्रतीक बन चुका है। शरलॉक होम्स को समर्पित कई, अन्तराष्ट्रीय
अध्याय १३ : ठाकुरबाड़ी सबेरा हो गया है लेकिन अभी तक कहीं-कहीं अँधेरा है। इसी समय “सियाराम” – “सियाराम” कहकर प्रसिद्ध पुण्यात्मा हीरासिंह ने चारपाई से उठकर जमीन पर पैर रक्खा। वह इधर-उधर घूमकर एक पत्थर की वेदी के पास आ खड़ा हुआ। देखा वेदी पर भोलाराय
कोन्फ्लिक्ट (टकराव/संघर्ष) एक क्राइम उपन्यास या कहानी में ‘सस्पेंस’ का होना बहुत जरूरी होता है। इसे आप अपराध गल्प कथाओं का प्रमुख तत्व भी कह सकते हैं। नए लेखकों के लिए ‘अपराध गल्प कथा’ में सस्पेन्स डालना उतना आसान नही रहता है, हालांकि उनकी कोशिश पुरजोर रहती है
अध्याय १२ : गंगा की धारा छठ की रात तीन घड़ी बीत गयी है। डोरा के पास जंगल की नाहर से एक छोटी सी नाव निकलकर गंगा जी में आई। हीरासिंह के डाकुओं में से अबिलाख बिन्द, सागर पांडे, बुद्धन मुसहर तथा और दो आदमी उस पर सवार हैं। सागर पांडे ने जम्हाई ली और चुटकी बजाकर कहा – “क्यों रे कहीं तो कुछ दिखाई नहीं देता।” अबिलाख – “आँखें बंद किये हो क्या पांडे? देखते नहीं वह जा रही है।”
प्राइवेट डिटेक्शन एडगर एलन पो को कई लोग ‘क्राइम फिक्शन का जनक’ तो कई ‘ डिटेक्शन फिक्शन का पिता’ कहते हैं। ऐसा इसलिए कहा जाता है क्योंकि उन्होंने तर्कसंगत विश्लेषण का प्रयोग करते हुए,
अध्याय ११: नौरत्न संध्या बीत गयी है, निर्मल आकाश में छठ का चन्द्रमा हँस रहा है। नौरत्न के पास के गाँव में रामलीला की धूम है। सारा गाँव रामलीला देखने को एकत्र हुआ है, सिर्फ गूजरी नहीं गयी है। वह अपनी झोपड़ी में बिछौना बिछाकर चिराग चलाये बैठी है। इतने में रामलीला के बाजे
अध्याय १०: मैदान में आकाश में न बादल हैं न चाँद, सिर्फ लाखों तारे चारों ओर चमक रहे हैं। मैदान सनसन कर रहा है। कहीं जीव-जंतु का नाम निशाँ नहीं मिलता। केवल पेड़ों पर जुगनू चकमक कर रहे हैं। रात बीत चली है। इसी अवसर पर भोला पंछी मैदान के रास्ते पंछी बाग़ की तरफ जा रहा
पुलिस प्रशासन एवं डिटेक्टिव्स एक क्राइम फिक्शन कहानी के लिए क्या-क्या चीजें चाहिये – अपराध, अपराधी, मकतूल, डिटेक्टिव या पुलिस ऑफिसर। ब्रिटेन और अमेरिका के शुरुआती दौर (18 वीं शताब्दी) के क्राइम-फिक्शन कहानियों में पुलिस और डिटेक्टिव्स का कहीं भी इस्तेमाल होता नही दिखाया जाता है। 19वीं सदी के आरंभ तक भी,
अध्याय ९ : मुंशी जी का मकान मुंशी हर प्रकाशलाल अपने मकान पर पहुँच गए है। उनका मकान हीरा सिंह की इमारत की तरह आलीशान नहीं है और उनका न उतना ठाठ-बाट है परन्तु बहुत मामूली भी नहीं है। मकान खूब साफ़-सुथरा और देखने योग्य है। मकान के सामने रास्ता है,
#amwriting लेखन के विधा में वैसे तो कुछ भी स्टेटिक नहीं है, नियम बनते एवं बदलते रहते हैं। कई लेखक अपने नियम बनाते हैं तो कई दूसरों के नियमों को फॉलो करते हैं। फिर भी कुछ ऐसी बातें हैं, कुछ ऐसी गलतियाँ हैं,
अध्याय ८: हीरा सिंह का मकान हीरा सिंह एक बड़ा भारी जमींदार था। उसका धन-ऐश्वर्य अपार और दबदबा बेहद था। उन दिनों शाहाबाद जिले में उसकी जोड़ का कोई जमींदार नहीं था। हीरा सिंह दानी-मानी और आचारी था। सब तीर्थों में उसके बनाए मंदिर और बड़े-बड़े शहरों में उसकी कोठियां थी। वह मुरार में रहता था। जो कोई उससे एक बार मिलता या बात कर लेता था वह मानों उसीका हो जाता था। उसकी हंसती बोली में कुछ ऐसी ही जादू भरी थी।
‘द न्यूगेट कैलेंडर’ के ब्योरे से लेखन तक जहां विश्व पटल पर शरलॉक होल्म्स किरदार ने विश्व-विख्यात ख्याति पायी, वहीं ‘द न्यूगेट कैलेंडर’ को दुनिया ने भुला दिया। सबसे ज्यादा रुचिकर यह है कि इसका नाम ‘द न्यूगेट कैलेंडर’ ही क्यूं पड़ा – एक्चुअली लंदन में उस जेल का नाम ‘न्यूगेट प्रिजन’ था, जहां
Nicely written. Nagpanchami is one of that festivals which combines the good vibes of conservating forests and their dependents. The…