कैसी फीलिंग आती है, जब आपने कोई ऐसा फैसला किया हो जो आपके समूचे जीवन को बदल दे, आपकी बुनियाद हिला दे। न....न...न... आप ये न सोंचे कोई बड़ा फैसला, कोई नौकरी बदलना, शादी का फैसला करना, मेरा मतलब है ऐसा निर्णय जो आपकी जड़ हिला दे। बिलकुल ऐसा ही फैसला मैंने किया है। एक ऐसा फैसला जिसके बारे में कभी किस्से-कहानियों में पढ़ा ही था। सिनेमा के परदे पर देखा ही था। उसे खुद अंजाम देना और उसके बारे में स्वयं ही सोचना, उसे पल-पल जीना। विश्वास कीजिये एक ऐसी फीलिंग आती है जिसे शब्दों में ढालना बेहद मुश्किल होता है। लेकिन इसके अलावा और कोई चारा भी तो नहीं है। सीधे मुद्दे पर आऊँ तो मैंने अपनी गर्लफ्रेंड की हत्या का फैसला किया है। मुझे प्यार करने वाली, मेरी आँखों में आँखें डाल कर मेरे साथ अपना जीवन बिताने की कसमें खाने वाली, मेरे हर सुख-दुःख में साथ देने […]
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सर्दी की रात जल्दी होती है। और सन्नाटा भी। अगर कोहरा पड़ने लग जाए तो समझो सोने पे सुहागा। जो की आज पड़ रहा था। मेरे लिए ये सबसे मुफीद दिन था। बाइक स्टार्ट हुई, उसने मेरी तरफ देखा और फिर से पुछा "देख ले कर लेगा न?" मना करने का तो सवाल ही नही उठता था, इसी दिन का तो मैं इंतज़ार कर रहा था।
उपरोक्त टैगलाइन एक प्रसिद्ध टेलीकम्यूनिकेशन सर्विस प्रोवाइडर कंपनी द्वारा बहुत वर्षों तक इस ब्रांड को प्रमोट करने के लिए इस्तेमाल किया गया था । यह लाइन सच में ही अपने आप में एक प्रोत्साहन से भरी हुई है। एक आईडिया – ग्राहम बेल का – टेलीफोन के रूप में आया – जिसने दुनिया बदल कर रख दी, एक आईडिया – थॉमस एडिसन का – बल्ब के आविष्कार के रूप में आया – जिसने सच में दुनिया को बदल कर रख दिया; ऐसे कई उदाहरण हैं, जो सिर्फ और सिर्फ एक विचार – एक आईडिया के जरिये दुनिया के सामने आये। काल्पनिक कहानियों (फिक्शन स्टोरीज) की दुनिया में कहानियों का उदय भी एक ‘आईडिया’ के जरिये होता है। आगे जाकर यह ‘आईडिया’ एक कहानी का रूप लेकर पाठकों के सामने आता है। ये आइडियाज कहीं भी, कभी भी, किसी भी अवस्था में एक इंसान के दिमाग में क्लिक कर सकते हैं। […]
१४ जुलाई : उस दिन दोपहर से ही बारिश हो रही थी. उन दिनों मेरा मूड वैसे ही खराब रहता था. कोई नया काम नहीं मिल रहा था. रुपये पैसो के मामले में मैं परेशान था. मेरा जीवन भी क्या बेकार सा जीवन था. मैं लेखक था, और पूरी तरह से फ्लॉप था. करियर के प्रारम्भ में मैं खूब बिका लेकिन बाद में इन्टरनेट के युग के आने के बाद लोगों ने जैसे किताबें पढना ही छोड़ दिया और अब मुझ जैसे छोटे लेखकों को कोई नहीं पूछता था ! अच्छे वक़्त में जो कुछ पैसे कमाए थे वो भी करीब करीब ख़त्म हो रहे थे. ये घर भी एक पुराने प्रकाशक मित्र का था जिसने मेरे अच्छे समय में मेरी किताबों से खूब पैसे कमाए थे. उसी ने मुझ पर पुरानी दोस्ती के चलते ये घर देकर रखा था. कहीं से कोई आमदनी नहीं थी. ज्यादा दोस्त थे नहीं […]
वर्ष 1978 ब्रिटिश साम्राज्य से आज़ादी मिलने के बाद बने क्रोनेशिया और सर्बा पडोसी मुल्कों के बीच रिश्ते हमेशा तल्ख़ रहे। दशकों तक शीत युद्ध की स्थिति में दोनों देशो का एक बार भीषण युद्ध हो चुका था। अंतरराष्ट्रीय दबाव के बाद युद्ध समाप्त हुआ। युद्ध में कुछ टापू और समुद्री सीमा कब्ज़ाने वाले सर्बा को जीत मिली थी पर दोनों तरफ भारी नुक्सान हुआ था। युद्ध के बाद स्थिति काफी बदल गयी थी। अब क्रोनेशिया एक अच्छे-खासे रक्षा बजट के साथ आर्थिक रूप से सशक्त राष्ट्र था।
बीस साल बाद मेरे चेहरे में वे आंखें वापस लौट आई हैं जिनसे मैंने पहली बार जंगल देखा है : हरे रंग का एक ठोस सैलाब जिसमें सभी पेड डूब गए हैं। और जहां हर चेतावनी खतरे को टालने के बाद एक हरी आंख बनकर रह गई है। बीस साल बाद मैं अपने आप से एक सवाल करता हूँ जानवर बनने के लिए कितने सब्र की जरूरत होती है? और बिना किसी उत्तर के चुपचाप आगे बढ जाता हूँ क्योंकि आजकल मौसम का मिजाज यूं है कि खून में उडने वाली पत्तियों का पीछा करना लगभग बेमानी है। दोपहर हो चुकी है हर तरफ ताले लटक रहे हैं दीवारों से चिपके गोली के छर्रों और सडकों पर बिखरे जूतों की भाषा में एक दुर्घटना लिखी गई है हवा से फडफडाते हुए हिन्दुस्तान के नक्शे पर गाय ने गोबर कर दिया है। मगर यह वक्त घबराए हुए लोगों की शर्म आंकने […]
एक बार एक वन के पशुओं को ऐसा लगा कि वे सभ्यता के उस स्तर पर पहुँच गए हैं, जहाँ उन्हें एक अच्छी शासन-व्यवस्था अपनानी चाहिए | और,एक मत से यह तय हो गया कि वन-प्रदेश में प्रजातंत्र की स्थापना हो | पशु-समाज में इस `क्रांतिकारी’ परिवर्तन से हर्ष की लहर दौड़ गयी कि सुख-समृद्धि और सुरक्षा का स्वर्ण-युग अब आया और वह आया | जिस वन-प्रदेश में हमारी कहानी ने चरण धरे हैं,उसमें भेंडें बहुत थीं–निहायत नेक , ईमानदार, दयालु , निर्दोष पशु जो घास तक को फूँक-फूँक कर खाता है | भेड़ों ने सोचा कि अब हमारा भय दूर हो जाएगा | हम अपने प्रतिनिधियों से क़ानून बनवाएँगे कि कोई जीवधारीकिसी को न सताए, न मारे | सब जिएँ और जीने दें | शान्ति,स्नेह,बन्धुत्त्व और सहयोग पर समाज आधारित हो | इधर, भेड़ियों ने सोचा कि हमारा अब संकटकाल आया | भेड़ों की संख्या इतनी अधिक है कि […]
विकास खुराना ने कार की विंडस्क्रीन पर लुढ़कते मोतियों की शक्ल में एकाएक उभर आई बूंदों की तरफ देखा I देखते ही उसका मन खिन्न हो उठा I बाहर अँधेरा और घना होने लगा था और बादलों और बिजली की जुगलबन्दियों ने अपना असर भी दिखाना शुरू कर दिया था I उसने घडी के डायल की तरफ निगाह फिराई – ५.३५ I “ लग गयी आज तो……साला मेहरा का बच्चा….आज ही……” इस से पहले वो आगे कुछ बोल पाता एक जोरों की आवाज से उसका ध्यान बंट गया I उसने सामने की तरफ निगाह दौड़ाई तो देखा जहाँ से उसे टाउन हाल की तरफ जाने वाली सड़क पर मुड़ना था उसके दहाने पर एक पीपल के पेड़ की मोटी शाख बिजली गिरने की वजह से आ पड़ी थी I बाहर बारिश ने अपना रुख तब्दील कर लिया था और अब मूसलाधार बरस रही थी I वो धीमी रफ़्तार से कार […]
गोवा! मेरी वर्षों से यही तमन्ना रही थी कि मुझे भी कभी गोवा घूमने का मौका मिले। फिल्मों और तस्वीरों में देखकर एवं दोस्तों से सुनकर मन हमेशा लालायित रहता था। जब मैं दिल्ली में रहते हुए आईपीएस की तैयारी कर रहा था,तब मेरे दोस्त हर साल गोवा घूमने जाते थे। वे मुझे भी साथ ले जाना चाहते थे,लेकिन मुझे उस वक़्त पढना था ,क्यूंकि मैं किस तरह से अपना ग्रेजुएशन कर पाया था यह मुझे बखूबी पता था। अपनी अथक मेहनत से आखिरकार, मैंने आईपीएस का एंट्रेंस और मेन दोनों ही तीसरे एटेम्पट में क्लियर कर लिया। जब पुलिस अकैडमी से ट्रेनिंग कम्पलीट करने के बाद, मेरे पास अपॉइंटमेंट और पोस्टिंग का लैटर आया तो मेरी ख़ुशी का ठिकाना नहीं था। मैंने, इंदौर में अपने माता-पिता को इस बात की खबर दी, ताकि उन्हें पता चल सके कि उनके बेटे ने उनका सपना पूरा कर दिखाया था। मैं २ साल से गोवा में ए.सी.पी. […]
मैं समझा नहीं…! इंस्पेक्टर मुस्कुराया, “आपका घर बहुत बड़ा है। इसकी तलाशी लेने में बहुत वक्त लगेगा। और वैसे भी तलाशी से पेंटिंग तो बरामद हो सकती है, लेकिन इससे चोरी किसने की, इसका पता कैसे लगाएंगे। हमारे लिए पेंटिंग बरामद करने से ज्यादा अहम है चोर…” यह कहते हुए इंस्पेक्टर अभय ने सभी की ओर सख्त निगाह से देखा, “चोर, जो आपमें से ही एक है, उसकी शिनाख्त जरूरी है।“ “यह क्या बकवास है, हम चोर नहीं हैं।” अलका लांबा ने तीखे स्वर से कहा। “ठीक फरमाया, आप सब शहर के संभ्रांत शहरी हैं ! बड़े बड़े बंगलों में रहने वाले! इज्जतदार! वो क्या कहते हैं व्हाइट कॉलर! आप चोर कैसे हो सकते हैं। इसका ठीकरा तो किसी नौकर, माली या चौकीदार के सर फूटना चाहिए! चलिए मान लेते हैं! लेकिन सॉरी, आपको जानकर दुख होगा कि इस वक्त यहाँ कोई नौकर या माली मौजूद नहीं है!” कहकर इंस्पेक्टर […]
ओम प्रकाश सहित वहाँ उपस्थित सभी इंस्पेक्टर की बात सुनकर चौक गए। “मतलब आप जानते है की चोरी किसने की है?”, ओम प्रकाश ने इंस्पेक्टर से पूछा। “जी, बिलकुल, और उसने ही बाहर पेड़ पर वह पुतला भी लटकाया था।“ “फिर देर किस बात की है, जल्दी बताइए कि यह किसकी करतूत है।“ “आप अपना अपराध स्वयं स्वीकार करेंगे या हमें आपके कमरे कि तलाशी लेनी पड़ेगी?” इंस्पेक्टर ने करण रस्तोगी की तरफ देखते हुए कहा। सबकी आश्चर्यपूर्ण निगाहें करण की तरफ मूड़ गई। करण इस अचानक हमले से बौखला गया। “यह कैसा मज़ाक है इंस्पेक्टर?” “मतलब आप इस सबूत को झुठला सकते है?” कहते हुए इंस्पेक्टर ने एक पालिथीन की थैली दिखाई जिसमे पुतले से उतारे हुए कपड़े रखे हुए थे। इंस्पेक्टर शर्ट के पॉकेट को इंगित कर रहा था। “मुझे देखने दीजिए”, कहता हुआ करण इंस्पेक्टर के पास आ गया। “क्या है इसमें? मुझे तो कुछ भी नहीं […]
अल्का लाम्बा की घड़ी ने २ बजे का अलार्म बजाया तो उसने बहुत मुश्किल से अपनी आँखे खोली। उसे डॉक्टर की सख्त हिदायत थी की वह अपनी दवाइयां वक्त से खाया करे। उसे हर 6 घंटे पर दवाई खाना पड़ता था। जब वह अपने घर पर होती थी तो अलार्म लगाने की जरूरत नहीं पड़ती थी क्यूंकि घर के एक ख़ास नौकर ने उसको जगाने की ड्यूटी बजानी होती थी। उसने बेडसाइड टेबल पर रखी हुई दवाई निकाली और पानी के ग्लास को उठा कर उस खिड़की की तरफ मुड़ी जो उसके बेड के सिरहाने की तरफ से चाँद का प्रकाश कमरे में पहुंचा रहा था। अचानक उसके हाथ से पानी का ग्लास छूट गया और इतनी तेज़ चीख निकली की रात के स्तब्ध वातावरण में उसने एक बम के धमाके सा काम किया। वह अपने कमरे से सीधे निकल कर सीढियों के रास्ते पहले पहले फ्लोर पर पहुंची फिर […]
पाठक साहब के सभी सैदाइयों को दिल से नमस्कार। आप सभी ने कई बार देखा होगा और गौर भी किया होगा की सुनील जब भी मौकायेवारदात पर पहुँचता है तो वहां देखे गए तथ्यों के अनुसार क़त्ल के होने का सूरत-ए-अहवाल या खाका खींच देता है। वह यह बात या तो रमाकांत को बताता है या प्रभुदयाल को। लेकिन ऐसा बहुत कम होता है की पुलिस की लाइन ऑफ़ एक्शन और सुनील की लाइन ऑफ़ एक्शन एक ही रही हो। ऐसा ही आप सभी ने देखा होगा की, सुनील हर उपन्यास के अंत में तथ्यों, तर्कों और विश्लेषणों के आधार पर एक कहानी सुनाता है जो की तर्कपूर्ण लगता है, जिससे कि हत्यारा या मुजरिम आसानी से पकड़ा जाता है। इस कहानी में सुनील अपनी खोजबीन और तहकीकात को तो शामिल करता ही है साथ ही कल्पनाओं के आधार पर कुछ बातें उस बिंदु से आगे की भी कह […]
1. कोज़ी क्राइम ( Cosy Crime) – क्राइम फिक्शन जेनर की यह शाखा बहुत ही प्रसिद्द है। अमूमन एक छोटे से शहर में इसकी कहानी को प्लाट किया जाता है जहाँ एक हत्या के केस को हल करने के लिए पुलिस या प्राइवेट डिटेक्टिव काम करते हुए नज़र आते हैं। इसमें जुर्म का कोई ग्राफ़िक वर्णन नहीं किया जाता है। जब केस सोल्वे हो जाता है तो सब कुछ आम जनजीवन जैसा ही हो जाता है क्यूंकि अपराधी पकड़ा जा चूका है। सुधीर सीरीज और थ्रिलर सीरीज के कई उपन्यास इस श्रेणी में आते हैं। 2. लॉक्ड रूम मर्डर मिस्ट्री – क्राइम फिक्शन जेनर की इस शाखा में जुर्म एक असंभव से माहौल में किया जाता है जहाँ लेखक अपनी बुद्धिमता से रीडर के लिए एक जाल तैयार करता है। इसमें कानून का चैलेंज, कोई गवाह नहीं, मीना मर्डर केस, काला कारनामा आदि उपन्यास आते हैं। 3. हार्ड बॉयल्ड – […]
1954 में मैला आंचल के प्रकाशन को हिन्दी उपन्यास की अद्भुत घटना के रूप में माना जाता है। इसने आंचलिक उपन्यास के रूप में न सिर्फ हिन्दी उपन्यास की एक नयी धारा को जन्म दिया, बल्कि आलोचकों को लम्बे समय तक इस पर वाद-विवाद का मौका भी दिया। अंग्रेजी में चौसर के ‘केन्टरवरी टेल्स’ और अमेरिकी साहित्य में शेरवुड एंडरसन के ‘बाइंसबर्ग ओहियो’ की तरह रेणु मैला आंचल के साथ हिन्दी में आंचलिकता के ताजे झोंके को लेकर आते हैं। गांव की मिट्टी की सोंधी महक, गांव के गीत, नृत्य और संगीत की मधुर धुन, विदापन और सारंगा सदाबृज की तान हिन्दी उपन्यास के लिए बिल्कुल नयी चीज थे। इस नयेपन ने बरबस ही लोगों का ध्यान अपनी ओर खींचा। उपन्यास की भूमिका में ही रेणु ने इसे आंचलिक उपन्यास की संज्ञा दी है- ‘‘यह है मैला आंचल, एक आंचलिक उपन्यास। कथानक है पूर्णिया। इसमें शूल भी हैं फूल […]
बहुत ही बढिया अौर शिक्षाप्रद ,एवं व्यंगात्मक कहानी , 🙏🙏🙏