अध्याय ५: ससुराल रात झन-झन कर रही है। चारों ओर सन्नाटा है। निशाचरी जानवरों के सिवा और सभी जीव सोये हुए हैं। ऐसी गहरी रात में वह कौन स्त्री अकेली इस अटारी की खिड़की में बैठी झाँक रही है? युवती क्या किसी की बाट देख रही है? या किसी असह्य मनोवेदना से अभी तक सुख की नींद नहीं सो सकी है? घर में एक दीया जल रहा है और एक पलंग पर एक विधवा सोयी हुई है। घर के पिछवाड़े से एक गीदड़ हुआँ- हुआँ करके भागा, फिर कई कुत्ते भों-भों करने लगे। विधवा की नींद टूटी।
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कई बार, किसी लेख, किसी कहानी, किसी उपन्यास को लिखने के दौरान, लेखक खुद में ही नहीं रहता।
अध्याय ४: साधु का आश्रम साधो अधमरे हींगन को कंधे पर लेकर उस जवांमर्द के पीछी एक पगडण्डी से जाने लगा। पगडण्डी के दोनों तरफ बबूलों की कतार खड़ी थी, एक तो अँधेरी रात, दुसरे तंग रास्ता, उन लोगों को बड़ी तकलीफ होने लगी। परन्तु साधो को उस तकलीफ से मन की तकलीफ अधिक थी। डर के मारे वह सूख गया और उसके पीछे-पीछे जा रहा था। वह ताड़ गया था कि मुंशी जी नाजुक जगह में चोट लगने से बेहोश हो गए थे और अब होश में आकर मुझे पकड़े लिए जाते हैं। यह सोचकर उसका खून सूख जाता था कि मेरी क्या गति होगी। वह डर के मारे चुपचाप मुंशी जी के पीछे-पीछी जाने लगा। धीरे-धीरे आसमान साफ़ हो चला, अन्धकार की गहराई घाट गई। वे लोग जिस चिराग की रोशनी को ताकते हुए आते थे धीरे-धीरे उसके पास पहुँच कर देखा कि एक बड़े भारी पीपल के […]
मैं कभी-कभी अचरज में पड़ जाता हूँ कि जिस पुस्तक को मैं पढ़ रहा हूँ, उसे कितने लोगों ने पढ़ा होगा,
अध्याय ३: मैदान में मुंशी हरप्रकाश लाल लंबे-लंबे डेग मारते चले जा रहे थे। वे डर को कोई चीज नहीं समझते थे। उनके पीछे-पीछे भीम-देह दलीपसिंह एक संदूक पीठ पर बाँधे लम्बी लाठी कंधे पर लिए मतवाले हाथी की तरह झूमता जाता था। दोनों चुरामनपुर गाँव को जा रहे थे, जहाँ मुंशी जी की ससुराल थी। ठोरे पर से चुरामनपुर सड़क से जाने के बाद मैदान की पगडण्डी से जाना पड़ता था। मुंशी जी और दलीपसिंह धीरे-धीरे कई गाँव पार करके मैदान में जा पहुंचे। वहां जाने पर मुंशी जी को बड़ी ख़ुशी हुई। अगणित तारों से जुड़ा हुआ अनंत आकाश, चांदनी में सराबोर खेतों की हरियाली और शीतल-मंद बयार उनकी ख़ुशी चौगुनी करने लगी। मुंशी जी चलते-चलते गाने लगे –
लेखन में परफेक्शन परफेक्शन अर्थात पूर्णता, सिद्धि एवं प्रवीणता, आज के समय की जरूरत बन गयी है। हर चीज में परफेक्शन लाजमी होती जा रही है। आप जिस मशीन पर काम करते हैं, उसने परफेक्ट काम करना जरूरी है – आपका बॉस हमेशा आपसे परफेक्ट की उम्मीद लगाये बैठता है – आप भी किन्हीं अदाकारों, खिलाड़ियों से परफेक्ट की उम्मीद लगाए बैठते हैं – उसी तरह लेखक से हर पाठक को परफेक्शन की उम्मीद रहती है। लेकिन यह यहीं तक सीमित नही रहता, यहाँ तक कि लेखक भी अपनी कहानी को परफेक्ट बनाने में लगा रहता है। वैसे ये वाजिब बात भी है, जब तक लेखक परफेक्शन देगा नही तब तक पाठकों को वह कहां से नज़र आएगा।
अध्याय २ : पंछी का बाग़ मुंशी हरप्रकाश लाल जहाँ नाव से उतरे वहां से थोड़ी दूर पश्चिम जाने पर एक बाग़ मिलता है। किन्तु हम जिन दिनों की बात लिखते हैं उन दिनों वहां एक भयानक जंगल था, लोग इसको ‘पंछी का बाग़’ कहते हैं। इस नाम का कुछ इतिहास है:- लार्ड कार्नवालिस के समय में भोला पंछी नामक एक जबरदस्त डाकू था। वह किसी से पकड़ा नहीं जाता था। शाम को आपसे उसकी बातचीत होती। रात को वह बीस-पच्चीस कोस का धावा मारकर डाका डाल आता और सबेरे फिर वह वहीँ दिखाई देता। उसकी इस चाल के कारण लोग उसको पंछी कहते थे और यही उसका अड्डा था, इसलिए उसका नाम ‘पंछी का बाग़’ पड़ गया।
लेखकों के लिए, लेखन से लिया गया एक लंबा ब्रेक, उसके लिए एक श्राप के समान होता है। कभी-कभी ये ब्रेक जानबूझ कर लिए जाते हैं तो कभी स्थिति ऐसी बन आती है कि स्वतः ही ब्रेक लग जाता है। आपने अपने रोज लिखने की आदत से खुद को तोड़ लिया है या आप महीनों-हफ्तों से लिख रहे हैं लेकिन अचानक कुछ ऐसा घट जाता है, लेखन से मन उचट जाता है। कई स्थितियां उभर सकती हैं, इस बिंदु पर। ऐसी स्थितियों से उबरने में लिए आप एक दिन का ब्रेक लेते हैं, फिर दो दिन का, फिर यह सिलसिला चलता ही जाता है। आप अपने बंद लैपटॉप या धूल खाती डायरी को देखते रहते हैं।
अध्याय १ : गंगा जी की धारा अगर आकाश की शोभा देखना चाहते हो तो शरद ऋतु में देखो, अगर चन्द्रमा की शोभा देखना चाहते हो तो शरद ऋतु में देखो, अगर खेतों की शोभा देखना चाहते हो तो शरद ऋतु में देखो, अगर सब शोभा एक साथ देखना चाहते हो तो शरद ऋतु में देखो। आकाश में चन्द्रमा की खिलखिलाहट, तालाब में कमल की खिलखिलाहट, खेतों में धान की हरियाली, घर में नवरात्र की धूम, शरद ऋतु में सभी सुन्दर, सभी मनोहर हैं। इसी मनोहर समय दुर्गा पूजा की छुट्टी पाकर मुंशी हरप्रकाश लाल नाव से घर आ रहे थे। वे दानापुर के एक जमींदार के मुलाजिम थे। सूर्य डूब गया है, नीले आकाश में जहाँ-तहां दो-एक बड़े-बड़े बादल सुमेरु पर्वत की तरह खड़े हैं। चौथ के चन्द्रमा दिखाई दे रहे हैं परन्तु अभी तक उनकी चांदनी नहीं खिली है, इसी समय मल्लाहों ने डांड़ हाथ में लिए। गंगा […]
दिल्ली में बारिश का मौसम भी अजीब तरह से आता है। जहाँ मौसम विभाग कहता है कि आज बारिश होगी, तो उस दिन न होकर २ दिन लेट-लतीफी के साथ, बिल्कुल दिल्ली पुलिस की तरह देर से ही पहुँचती है। दिल्ली शहर की इस विशेषता के साथ ही इसे कुछ उन शहरों में गिना जाता है – जो कभी सोते ही नहीं हैं। दिन-रात, सुबह-शाम-दोपहर, सर्दी-गर्मी-बरसात, यह शहर बस दौड़ता-भागता ही नज़र आता है। रात के दो बज रहे थे – ऊपर से मूसलाधार बारिश – ऐसे मौसम में पालम विहार चौराहे की रोड नंबर २०१ पर, एक पान की दुकान का खुला होना अपने आप में आश्चर्य की बात थी। लेकिन यह आश्चर्य उस रास्ते से पहली बार गुजरने वालों को ही होता था। पूरे द्वारका में, एक यही पान की दुकान थी जो रात भर खुली रहती थी। वे मेडिकल शॉप, जो २४ घंटे खुले रहने का दावा […]
सभी आश्चर्यचकित निगाहों से फ्रेड को घूर रहे थे, और उसके बोलने की प्रतीक्षा कर रहे थे। फ्रेड अपनी एकाएक बन चुकी पूछ पर आनंदित होता हुआ, पांचों की तरफ देखते हुए बोला.. ‘इन्द्रेश कसाना का कातिल हम सबके बीच में ही है। कातिल ने कहानी तो बहुत सुंदर तैयार की थी लेकिन उससे थोड़ी चूक हो गयी।’ सभी सावधान से हो गये। मैंने फ्रेड से कहा, ‘पहेलियां मत बुझाओ। जो कहना है साफ–साफ कहो।’ फ्रेड बोला-‘ कहता हूं सर। दरअसल इस कत्ल में कातिल ने कुछ ऐसा किया था कि उसपर कोई शक ही न करे। करे भी तो केवल मामूली सा। कातिल के पास मौका और उद्देश्य दोनों ही उपलब्ध थे। उसने कुछ इस तरह इस हत्या की प्लानिंग की कि सभी के सामने होते हुए भी वह किसी को दिखाई न दे। ’ फ्रेड की बातों से किसी के मुंह से बोल नहीं फूट रहे थे। सब सस्पेंस भरी खामोशी के […]
“कौन है कातिल? “मैंने फ्रेड से पूछा । “सर कत्ल की सबसे पहले खबर किसको होती है?“ “जाहिर सी बात है, कातिल को” कमरे का माहौल और भी अधिक पैना हो उठा । “फ्रेड अब ज्यादा इन्तजार न करवाते हुए, कातिल से पर्दा उठा ही दो ।” “यस सर “ “सर इन्द्रेश कसाना का कत्ल तो कल रात को ही हो चुका था” “कातिल कल डिनर के बाद की मीटिंग के बाद जब सब लोग सो गए, तब कसाना साहब के पास पहुंचा, उसने उनको जगाकर कमरे का दरवाजा खुलवाया, आराम से हाथ पीछे किये हुए अंदर आया और फ़िर किसी बहाने से उनकी तवज्जो कुछ क्षण के लिए अपने पर से हटवाई और हाथ में पकड़ी साइलेंसर लगी गन सामने लाकर तुरन्त उनको शूट कर दिया और फिर वहां से चुपचाप निकल कर जाकर सो गया “ फ्रेड कुछ क्षण अपनी बातों का प्रभाव देखने के लिए रुका । “जिस तरह से कातिल देर रात […]
“आर यू श्योर, फ्रेड?” “यस सर, क्वाइट श्योर।” “लेकिन कैसे?” “बहुत सिंपल है सर, वो कहते हैं न कि झूठ के पाँव नहीं होते, तो झूठ ज्यादा देर टिक नहीं पाता है।” मैंने फ्रेड को चुप रहने का इशारा किया, और उन पाँचों को अंदर के कमरे में बैठने को कहा।जब वो पाँचों अंदर चले गए तो अब कमरे में केवल फ्रेड और मैं ही रह गए थे। तब मैनें फ्रेड से कहा, “अब बताओ कि किस आधार पर तुमने अपना निष्कर्ष निकाला है और क्या निकाला है?” ज़वाब में फ्रेड ने कहा— “सर, बहुत सीधा सादा सा केस है। जब हम यहाँ पर आये थे तो आपने देखा था कि खिड़की से सूर्य नीचे समुद्र में समाहित हो रहा था और सर, अगर आप भूगोल का सामान्य सा ज्ञान रखते होंगे तो आपको पता होगा कि केवल एक दिशा में देखने से आपको सूर्योदय और सूर्यास्त का अवलोकन नहीं हो सकता।” “हाँ फ्रेड, सही कह रहे हो […]
मैंने फ्रेड से कहा, “तुम्हें पहले से ही पता था कि कातिल कौन है?” “नहीं सर, पर इनके बयान दोबारा सुनने के बाद मुझे यकीन है कि मैं कातिल को अभी सामने ला सकता हूँ। बस मुझे इन लोगो से कुछ सवाल फिर से पूछने पड़ेंगे।“, कहते कहते फ्रेड ने एक कागज पर कुछ लिख कर एक हवलदार को दे दिया, जिसे पढ़ते ही वह कमरे से बाहर चला गया। फिर फ्रेड लिली से मुखातिब हुआ, “तुम और टोनी एक साथ इस कमरे में आए थे?” “जी साहब, हम दोनों लगभग एक साथ पहुँचे थे।“, लिली के कहते ही टोनी भी अपना सर सहमति में हिलाने लगा। “क्या ये दोनों लोग भी तुम्हारे साथ कमरे में पहुँचे थे?” फ्रेड ने जेसन और रईस खान की और इशारा करते हुए कहा। उत्तर टोनी ने दिया, “सर, ये दोनों साहब ठीक हमारे पीछे पीछे ही कमरे के अंदर आए थे।“ फ्रेड अब रागिनी की और मुड़ा, “आप कहती है […]
कहानी आपको पसंद आयी यह जानकर अच्छा लगा। हॉरर का तड़का देने की कोशिश की थी। अच्छा लगा यह जानकर…