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सयाली

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मैं पीजी में मौजूद अपने कमरे में दाखिल हुआ और दरवाजा बंद करके उसकी चटखनी लगाकर अपनी धौकनी सी चलती साँसों को काबू में लाने की कोशिश करने लगा।

“क्या हुआ”,शेखर ने अपने फोन से नजरें उठाकर मेरी तरफ देखा। शेखर मेरा रूम मेट था। हम कॉलेज के वक्त से ही दोस्त थे और अब पीजी में रूम मेट थे। इसके अलावा आजकल शेखर को पबजी का शौक चढ़ा हुआ था। वह या तो फोन पर पबजी खेल रहा होता या कंप्यूटर पर कोडिंग कर रहा होता। इससे इतर उसकी ज़िन्दगी में फिलहाल कुछ जरूरी नहीं था ।

मैंने पाँच मिनट तक लम्बी लम्बी साँसे ली। जब स्कूल में थे तो दौड़ने के पश्चात अपनी साँसों को नियंत्रित करने का तरीका बताया गया था। अपने मुँह को बंद रखकर नाक से ही लम्बी लम्बी साँसे लेते और छोड़ते जाओ। थोड़े देर में ही साँसे नियंत्रित हो जाती थी।

शेखर ने अब तक फोन नीचे रख दिया था। वो उठकर मेरे पास आया और बोला- “अबे हुआ क्या? भूत वगेरह देख लिया क्या?” अपने इस जोक पर खुद ही हँसने लगा था।

मैंने उसके इस जोक को सुना तो कुछ देर पहले जो मेरे साथ घटित हुआ था वो मेरी दृश्य मेरी आँखों के सामने आ गये और फिर मेरे शरीर में झुरझुरी सी हुई। मैंने उसके तरफ देखा और उसने न जाने मेरी आँखों में क्या देखा कि उसकी हँसी पर ब्रेक से लग गये।

“क्या हुआ?” उस ने अब संजीदगी से पूछा।

मेरी साँसे तब तक नियंत्रित हो गई थी।

“तू चल मेरे साथ।” मैंने उसका हाथ पकड़ा और दरवाज़े की कुण्डी खोलने लगा।

“अबे हुआ क्या बतायेगा भी।” उसने बोला।

;लेकिन मैं उसकी बात कहाँ सुन  रहा था। मेरे पर तो जैसे कुछ सनक सी सवार हो चुकी थी। मैं दरवाजे की कुण्डी खोलने की कोशिश कर रहा था और बारबार उसमें नाकामयाब हो रहा था। ऐसा इसलिए भी था कि मैंने एक हाथ से शेखर का हाथ पकड़ा हुआ था और दूसरे से कुण्डी खोल रहा था।

उसने झटके से अपना हाथ छुडाया और मुझे कंधे से घुमाते हुए बोला। फिर उसने मुझे बेड पर बैठाया।

फिर वो बोला – “अब बता क्या बात है?”

“वो…वो…  सयाली”, मैं रुआंसा होकर बोला।

“अबे पागल हो गया है।” वो झल्लाया, “तुझे मालूम है तू क्या बक रहा है?”

“हाँ हाँ मुझे पता है। तू चल न मेरे साथ। मैं दिखाता हूँ तुझे।”

उसने मुझे देखा और कहा।- “तू पागल हो गया है। कुछ वहम हो गया होगा तेरे को। कुछ लिया है क्या गोली बोली आज।”

“नहीं भाई। माँ कसम। कुछ नहीं लिया है।”

“रुक सोचने दे।”उसने अपना फोन उठाया और एक नंबर डायल किया। जब किसी ने फोन नहीं उठया तो उसने फिर थोड़ी देर बाद दूसरा नंबर डायल किया। इस बार कॉल उठाई गयी। “हाँ राजेश कैसा है, ब*****?” उसने एक गाली के साथ सामने वाले को कहा।

“इतनी रात गए क्यों फोन कर रहा हूँ?”-उसने दूसरे तरफ से आते प्रश्न के  उत्तर में बोला। “अरे ये चू*** शशांक रात के एक बजे आकर ऊल जलूल बक रहा है।”

“किसके बारे में?”.. “अरे सयाली सयाली जप रहा है। ”

“वही। मैं भी बोला इस घोडू को?”

शेखर ने फोन पर हाथ रखा और मुझसे बोला- “किधर देखा?”

“वो वो म म म.. ”,मैं हकलाने लगा। जब मैं डरा हुआ होता था तो मेरी ज़बान अटकने लगती थी।

“अबे हकले। सुबह तक बोलेगा क्या?“ शेखर ने खीज कर कहा।

“वो गली के आगे जो नई पीजी की बिल्डिंग बन रही है न। उसी के पास। एक गली में घुसते हुए।” मैंने उसे बताया और  उसने फोन वाले को बताया।

“ठीक है” वो बोला। “उधर ही आते हैं हम।” कहकर उसने फोन काटा।

“चल अब।” वो मुझसे बोला।

“किससे बात कर रहा था?”मैंने उससे पूछा।

“राजेश।” वो बोल

यह  नाम सुनकर मेरे चेहरे के भावों में बदलाव आया होगा तभी उसने  मुझसे पूछा -”क्यों क्या हुआ? तेरे को नाम सुनकर पसीने क्यों आ गए?”

“वो वो…..” मैं बोला।

“क्या वो वो” वो फिर खीजा।

“राजेश  से डर लगता है। पागल है वो। रोहित  को किया तूने फोन?” मैंने उससे पूछा।

“वो फोन नहीं उठा रहा। पहले देखे तो सही तू सच बोल रहा है क्या गोलियों ने तेरा फ्यूज उड़ा दिया है।”

“चल अब” वो मुझे बोला और उसने दरवाजे की कुण्डी खोली।

रूम से बाहर खाने की प्लेट पड़ी हुई थी और गली के कुत्ते उनसे जूठन साफ कर रहे थे। रात के वक्त पीजी में अक्सर वो घुस आते थे और कूड़े की बाल्टी आदि गिरा दिया करते थे। पूरे पीजी में लौंडे ही थे तो किसी को इस बात से तकलीफ भी नहीं थी। बल्कि जिम से आने के बाद जो लोग अंडे के योक नहीं खाते थे वो उनको बाहर कुत्तों के लिए छोड़ देते थे। कुत्तो को पता था कि हम उन्हें कुछ नहीं कहने वाले हैं इसलिए उन्होंने हमारे ऊपर ध्यान देने के बजाय अपने खाने के ऊपर ध्यान देने को प्राथमिकता दी।

हम उन्हें अपना काम करते छोड़कर पीजी से बाहर निकले। रात के दो बज रहे थे। मैं फिल्म देखकर लौटा था। मैं अलीशा से साथ गया था और फिर उसे उसके पीजी के बाहर छोड़कर पैदल ही आ रहा था। गली में मैंने ओला ले जाना मुनासिब नहीं समझा था। जब मैं उस बनती इमारत के पास से गुजरा था तो उधर ही मुझे सयाली दिखी थी। पहले तो मेरे को भी यकीन नहीं हुआ। लेकिन वो वही थी और फिर डर के मारे मेरी कपकपी छूटने लगी थी। और मैं भागते हुए अपने पीजी में पहुँचा था।

जिस इलाके में हमारा पीजी  था उधर ज्यादातर पीजी ही थे लेकिन रात के वक्त सुनसान रहता था। फिर इमारत मोहल्ले के एक कोने में बन रही थी जिस कारण वो इलाका बाकी मोहल्ले से कटा हुआ था। उधर से मेरे रूम में पहुँचने में पन्द्रह से बीस मिनट पैदल लगते थे लेकिन आज भागते हुए मैंने यह दूसरी पांच  मिनट में कर ली थी।

अब उसी इमारत की तरफ हम बढ़ रहे थे। राजेश भी हमे उधर मिलने वाला था। मैं और शेखर उधर बढ़ने लगे। मेरा शरीर पसीने से भीगा हुआ था। शेखर के चेहरे पर कोई शिकन नहीं थी। वो निश्चिन्त था।

2)

हम लोग इमारत के नज़दीक पहुँचे तो हमे उधर एक बाइक खड़ी मिली। वो राजेश की बाइक थी।

“लगता है वो पहुँच गया?”, शेखर ने मुझसे कहा।

“हम्म”, मैंने कहा।

“लेकिन दिख तो नहीं रहा?” शेखर ने बोला।

“शायद ईमारत के अदंर हो”, मैं बोला ही था कि उसी वक्त ईमारत की ऊपरी मंजिल में एक खड़खड़ाहट हुई। हम दोनों ने ऊपर की तरफ देखा। हमने एक दूसरे को देखा और आँखों ही आँखों में एक दूसरे को इशारा किया।

“क्या करने गया होगा वो उधर?”, शेखर फुसफुसाया।

मैंने कंधे उचकाये और कहा – “शायद उसे सयाली ….”  मैं कह ही रहा था कि उसने मुझे आँखें दिखाई  तो मैंने बात बदल कर कहा – “चलकर देखते हैं। है तो ऊपर ही।”

हम लोग इमारत के अंदर दाखिल हुए और ऊपर की मंजिल की तरफ बढ़ने लगे। हमारे पसीने छूट रहे थे। राजेश ने हमारा इन्तजार क्यों नहीं किया? वो किसके पीछे गया? यही सवाल हमारे मन में था। इसी सवाल को मन में रखकर हम ऊपर बढे जा रहे थे। आवाज़ ऊपर से तो आई थी ये हमे मालूम था लेकिन किस फ्लोर से इसका कोई भान हमे नहीं था।

हम पहले पहले माले पर पहुँचे। उधर सब कुछ खाली सा था। कई कमरे बने हुए थे।हमने जल्द से जल्द सब में झाँककर देख लिया था लेकिन हमें कुछ दिखा नहीं था। ऐसे ऐसे करके हमने बाकि के पाँच मालों में से चार माले देख लिए थे लेकिन हमे कुछ हासिल नहीं हुआ था। न राजेश, न ही सयाली।

शेख्रर ने मुझे देखा और मैंने उसे देखा। हम दोनों ने फोन की फ़्लैश लाइट को खोला हुआ था। उसी की रोशनी से हम आगे बढ़ रहे थे। कई कई जगह सीमेंट के बोरे और दूसरे सामान रखे हुए थे। कई जगह ईंटे,तसले इत्यादि भी रखे थे। ईमारत का काम जारी था तो उधर ये सब होना सामान्य बात थी। अब आखिरी माला बचा हुआ था।

“ऊपर भी नहीं मिला तो?” शेखर ने मुझसे कहा।

“तो वापस चलेंगे। म म म मुझे डर लग रहा है।” मैंने उससे कहा।

“भू”,शेखर अचानक से बोला तो दो चार कदम पीछे हो गया। उसने अपनी फोन की फ़्लैश लाइट को मुँह पर चमकाया और चेहरे को विकृत करते हुए कहा-”मैं सयाली हूँ मैं चू** शशांक से प्रेम करती हूँ। ही ही ही। मैं उसका दिल खाऊँगी। गरमा गर्म खून पियूँगी।” और फिर वो पागलों की तरह हँसने लगा।

मैंने झेंपते हुए कहा – “प्लीज डोंट जोक लाइक दिस। इट्स नॉट फनी।”

“अच्छा! फनी नहीं है तो मैं क्यों हँस रहा हूँ।”, वो बोला और दोबारा हँसने लगा।

“राजेश” मैंने उसे याद दिलाया।

वो संजीदा हुआ। और हम लोग फिर आखिरी माले की सीढ़िया चढने लगे।

3)

हम लोग उसमें दाखिल होने ही लगे थे कि अचानक मेरा फोन बंद पड़ गया। उसकी फ़्लैश लाइट अचानक से बंद हो गई और रोशनी आधी हो गई।

शेखर ने मुझे सवालिया नजरों से  देखा।

“बैटरी खत्म।” मैंने कहा।

अब हम आगे बढे। हम एक खुली जगह में थे। कुछ सीमेंट के खम्बे बने हुए थे। कुछ जगह से सरिये निकल रहे थे। इधर उधर सीमेंट के कट्टे पड़े थे। सीमेंट और रेत का ढेर भी उधर लगा हुआ था। लकड़ियों की बल्लियाँ भी मौजूद थीं। और चारों तरफ से दीवार भी नहीं थी। ये अमावस की रात थी तो आसमान भी अँधेरे में डूबा हुआ था। मैं शेखर के पीछे पीछे ही चल रहा था। माहौल पूरी तरह शांत था और अचानक से मैं हम दोनों की साँसों की आवाज़ ही सुन सकता था।

मैं चलता जा रहा था कि तभी न जाने शेखर को क्या हुआ। उसका पाँव मुड़ा या पता नहीं लेकिन वो गिरा। मैं चूँकि उसके पीछे पीछे ही था तो मेरा संतुलन भी बिगड़ा था। मैं भी गिरते गिरते बचा था। मैंने किसी तरह खुद को सम्भाला।

मैं शेखर को उठाने गया ही था कि मैंने देखा शेखर फोन की लाइट को अपने सामने चमका रहा था। वो देखना चाहता था कि वो किस चीज से टकरा कर गिरा था। उसने फोन की लाइट को नीचे चमकाया तो उसकी चीख निकलते निकलते रह गई।

नीचे रोहित की लाश पड़ी थी। वही रोहित जिसने उसका फोन नहीं उठाया था। उसने लाश से लाइट हटाई और उसे चारो और घुमाने लगा। एक जगह कुछ लकड़ी की बल्लियों और रेत के बोरों के बीच उसे कुछ चीज दिखी। वो इतना उत्तेजित था कि वो भूल गया था कि मैं भी उसके साथ था। वो आश्चर्यजनक फुर्ती के साथ उठा और उस दिशा में गया। उसके हाथ में अब भी लाइट थी और उसने लाइट उधर चमकाई। मैं अभी भी उसके साथ था। उसने लाइट उधर चमकाई तो उधर राजेश की लाश पड़ी हुई थी। उसका सिर तरबूज की तरह फोड़ दिया गया था।

तभी शायद उसे याद आया कि मैं भी उसके साथ हूँ। उसने लाश से मेरे तरफ देखा और तभी मैंने उसके चेहरे पर ईंट का वार किया।

4)

ताड़ की आवाज़ के साथ ईंट शेखर के चेहरे से टकराई थी।

इससे पहले शेखर को कुछ एहसास होता शशांक वहशियों  की तरह उस पर ईंट के प्रहार करने लगा। बेचारे शेखर को चिल्लाने तक का मौका भी नही मिला था। न जाने कितनी देर तक शशांक ईंट से शेखर के चेहरे पर वार करता था। ईट के शरीर पर टकराने की आवाज ही उस अँधेरी रात को चीरती जा रही थी।

फिर अचानक ही वो रुक गया।

उसके चेहरे से वहशीपन गायब हो गया। अब उसके चेहरे पर एक खौफ था। उसने एक तरफ देखा और लगभग रोते हुए कहा-

“सयाली! मुझे माफ़ कर दो। जैसा तुमने कहा। वैसा मैंने किया। मैंने इन तीनों को बुलाया और इन्हें  मार दिया। मैंने अपना वादा पूरा किया। अब तुम भी अपना वादा पूरा करो। मेरा पीछा छोड़ो।”

वो पागलों की तरह विलाप करने लगा। “मुझे छोड़ो सयाली। मुझे छोड़ दो। मैं कुछ नहीं करना चाहता था।”

“नही! नहीं! मेरे पास न आना सयाली।” कहकर वो जिधर से बैठा था उधर से उठकर तेजी से एक दिशा में भागा। वो इतना खौफ में था कि उसे दिशा का अहसास ही नहीं था। और फिर एक चीख सुनाई दी

“नहीं!! सयाली”

और शेखर का शरीर छः माले की ईमारत से नीचे गिरा और जमीन से टकराया। उसके प्राण जमीन से टकराने से पहले ही शरीर छोड़ चुके थे।

5)

अगले दिन के अखबार इस विचित्र काण्ड की खबरों से भरे थे। जितनी भी खबरे थीं वो मूलतः कुछ ऐसी थीं:

 एक अधूरी बनती ईमारत में तीन लाश मिली थी और एक लाश ईमारत के सामने मिली थी। चारों लोगों की हत्याएं कुछ ही घंटे के अंतराल में हुई थी। चारों लोग बड़ी बड़ी बहु राष्ट्रीय कमियों में कार्यरत थे।

पुलिस कयास लगा रही थी कि ड्रग्स के कारण इन दोस्तों में लड़ाई हुई थी। शशांक  की पोस्ट मार्टम रिपोर्ट के अनुसार उसके शरीर में काफी मात्रा में ड्रग्स पाई गई थी। चूँकि शशांक की लाश नीचे मिली थी और उसकी मौत ईमारत से गिरने से हुई थी तो पुलिस के अनुसार उसने ही ड्रग्स के प्रभाव में ये वहशियाना कदम उठाया था।

या इतनी रात गये ये चारों उधर क्या कर रहे थे इसका जवाब पुलिस के पास भी नहीं था।

वहीं शशांक के ऑफिस में उसके सहकर्मचारियों ने बताया था कि पिछले एक हफ्ते से शशांक काफी परेशान रहने लगा था। उन लोगों को लग रहा था कि हाल फ़िलहाल में एक प्रोजेक्ट में उससे कोई कोताही हुई थी जिसकी वजह से उसे काफी कुछ सुनना पड़ा था। सहकर्मचारियों को लगता था कि यही उसकी परेशानी का कारण था लेकिन जाहिर है बात कुछ और थी।

आखिर क्या हुआ था उस रात शायद ही इसका जवाब कभी मिले?

वहीं इन्ही अखबारों में किसी कोने में ये खबर भी दर्ज थी।

राजधानी फिर हुई शर्मसार। एक हफ्ते पहले अगवा  हुई तेईस वर्षीय युवती सयाली की लाश पुलिस ने बरामद कर ली थी। बताते चले सयाली एक क्लब के बाहर से अचानक गायब हो गई थी। शुरुआत जांच में पता चला है कि युवती के साथ दुष्कर्म हुआ था और उसकी लाश को इधर फेंक दिया गया था। इधर लोगों की आवाजाही कम होती है इसलिए लाश नज़र में नहीं आई थी।

पुलिस के अनुसार उन्होंने अज्ञात लोगों के खिलाफ मामला दर्ज कर दिया है और वो मामले की तहकीकात कर रहे हैं।

6)

एक हफ्ते पहले:

दिल्ली की सुनसान सड़कों पर एक गाड़ी दौड़ रही थी। उससे तेज म्यूजिक बज रहा था। गाड़ी एक क्लब के सामने रुकी थी।

अंदर चार लोग बैठे थे।

“यार दारु काफी हो गई। अब कुछ माल मिल जाए तो मजा आ जाये”, राजेश ने कहा था।

“हाँ,यार। वो देख। वो कैसी रहेगी। उधर सिगरेट पी रही है।”, रोहित ने गाड़ी से एक लड़की की तरफ इशारा करते हुए कहा।

“यार एक बार मिल जाए तो मजा आ जाए।” शशांक चटकारे लेते हुए बोला था।

“तुम लोग गाड़ी लेकर क्लब के पीछे तैयार रहो। मैं कुछ करता हूँ।”, शेखर ने कहा था।

आधे घंटे बाद क्लब के पीछे शेखर बेहोश सयाली को लेकर गाड़ी की तरफ बढ़ रहा था और बाकी के तीनो के दोस्त एक दूसरे को देख रहे थे।

उनके चेहरे पर मौजूद वहशीपन उनके इरादों की चुगली कर रहा था।

                                                            समाप्त

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विकास नैनवाल

Vikas Nainwal is a writer and translator who currently lives in Gurgram, Haryana. He writes in Hindi and translates English books into Hindi. His first story 'Kursidhar' (कुर्सीधार) was published in Uttaranchal Patrika in 2018. He hails from a town called Pauri in Uttarakhand.
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शोभित गुप्ता

आजकल के हालातों पर बहुत अच्छी कहानी, crime doesn’t pay..

विकास नैनवाल

जी आभार

आनंद

बढ़िया लिखी है…

विकास नैनवाल

कहानी आपको पसंद आयी यह जानकर अच्छा लगा। आभार।

Hitesh Rohilla

बढ़िया कहानी। ऊपर से हॉरर का तड़का।वाह।।

विकास नैनवाल

कहानी आपको पसंद आयी यह जानकर अच्छा लगा। हॉरर का तड़का देने की कोशिश की थी। अच्छा लगा यह जानकर कि आपको वो पसंद आया।