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जानवराधिकार-प्रेम एस गुर्जर (पाठकों की प्रतियोगिता-सातवीं कहानी)

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चारों तरफ सन्नाटा छाया हुआ था। सभी प्राणी शांत, आंखें बंद किए हुए प्रार्थना कर रहे थे। प्रार्थना मौन रूप में हो रही थी। शब्द भटकाने का काम करते हैं जबकि मौन आत्मा के अधिक निकट रहता है। प्रार्थना समाप्त होते ही महासंसद की कार्यवाही प्रारंभ हुई।

‘‘सदियों से तुम मनुष्यों ने तपती दुपहरी में हमें खेतों में जोता। हमारे गोबर तक को नहीं छोड़ा। बदले में हमें क्या दिया? सूखी घास व खाखला!’’ बैल सामाज के प्रतिनिधि ने महासंसद में खड़े होकर कहना जारी रखा, ‘‘तुम लोगों ने काजू कतली खाई और हमें दिया तो केवल गुलामी का जीवन और सूखा खाखला। अब हमें जानवाराधिकारों के अलावा कोई शर्त मंजूर नहीं होगी।’’ प्रतिनिधि बैल कहते हुए अपने स्थान पर बैठ गया। सभी जानवर प्रतिनिधियों ने तीन बार मेज थपथाई।

इसके बाद गर्दभ का नाम आया। प्रतिनिधि गर्दभ ने खड़े होकर माईक के पास मुँह ले जाकर कहना प्रारंभ किया, ‘‘हमने तुम्हारे लिए क्या नहीं किया? तुम्हारा बोझा ढोया। बदले में तुम इंसानों ने हमारे सरल स्वभाव का मजाक बनाया। हमें गर्दभराज से गधा-गधा कहने लगे। इतना ही नहीं पिछले कुछ वर्षों में हुए रीसर्च बताते हैं कि‘‘ कहते हुए गर्दभ ने अपनी अटेची में से कुछ कागज़ निकाले। उम्र में वह काफी वृद्ध लग रहा था। चेहरे पर झुर्रिया व गाल पिचके हुए थे। गोल फ्रेम का चश्मा उसके काले सूट पर जम रहा था। शायद उसे निकट दृष्टिदोष था इसलिए कागज को बिल्कुल आँखों के पास लाकर पढ़ने लगा। ‘‘इंसान ने कई मूर्खतापूर्ण कार्य किए।’’ इसके बाद वह इंसान की शर्मिंदा करने वाली हरकतें गिनाने लगा। ‘‘ये सारी डिटेल, मैं पीछले दस सालों से इंटरनेट से ढूंढ कर लाया हूँ। इसकी एक प्रति वैश्विक महासंसद के कार्यालय में जमा करवा दी है। इस सब बातों से साबित होता है कि इंसान जानवर से अधिक गिरा हुआ प्राणी हैं। बस फर्क़ इतना है कि वह स्वयं को गिरे हुए देखना पसंद नहीं करता। वह स्वयंभू प्रवृत्ति का जानवर है। इसलिए मेरा प्रबल अनुरोध है कि हमें भी जानवराधिकार मिलने ही चाहिए।’’ कहते हुए गर्दभराज अपनी सीट पर बैठ गया।

संसद में बैठे मनुष्यों को छोड़ सभी प्रतिनिधियों जानवरों ने एक स्वर में मेज थपथपाई। मनुष्य प्रतिनिधियों की संख्या लगभग दो सौ थी। हर देश से एक प्रतिनिधि मनुष्य शामिल हुआ। जबकि जानवरों की प्रजाति से एक निर्वाचित प्रतिनिधि शामिल हुआ। जिनकी संख्या पाँच सौ के लगभग थी। पिछले दस वर्षों से विश्व के सारे जंगलों में चुनाव प्रक्रिया चल रही थी, तब जाकर सभी अपनी कम्युनिटी में से एक चुनिंदा प्रतिनिधि का चयन कर पाए।

इस महासंसद में भाग लेने की एक मात्र शर्त सर्वसम्मति से यही रखी गई थी कि हर प्रजाति से एक प्रतिनिधि को शामिल किया जाएगा बशर्ते वह लोकतांत्रिक तरीके से चुनकर आया हुआ हो।

‘‘ताकत में हमारी प्रजाति तुम इंसानों से कईं गुना बेहतर हैं फिर भी तुम मनहूसों ने अपनी चतुराई से राजा बनने का हमारा सपना चकनाचूर कर दिया। हमें केवल जंगल का राजा बनाकर ही संतोष करना पड़ा।’’ शेर समाज के प्रतिनिधि ने अपनी बात रखते हुए ‘जानवराधिकार’ का पक्ष लिया। सभी ने मेज थपथपाई। शेर के बगल में बैठे हरिण ने भी निडर होकर मेज थपथपाई।

कम्प्यूटर स्क्रीन पर अगला नाम हरिण का आया। वह तुरंत उठ खड़ा हुआ। बारी-बारी से कम्प्यूटर के हिसाब से सभी प्रतिनिधियों को अपना-अपना पक्ष रखने का समय दिया जा रहा था। सारा सिस्टम कम्प्यूट्रीकृत था। सभी जानवर शांत बैठे हुए थे, जबकि मनुष्यों के चेहरे लाल-पीले हो रहे थे। पिछले करोड़ों वर्षाें से जो सपना जानवरों देखा वह आज साकार होता दिख रहा था। ये सब संभव हुआ कम्प्यूटर तकनीक से। दस साल पहले एक ऐसा कम्प्यूटर इजाद हुआ जो जानवरों की भाषा ट्रांसलेट कर देता था। तुरता-फुरती में गूगल ने एक एप लाॅन्च कर डाली ‘सर्वभाषा ट्रांसलेट एप’। इस एप की मदद से तत्काल किसी भी जानवर की भाषा को हिन्दी,अंग्रेजी, उर्दू, फ्रेंच आदि भाषाओं में कन्वर्ट किया जा सकता है। इससे पहले जानवरों से संवाद तो केवल पंचतंत्र की कहानियों में देखा जाता था।

शुरू-शुरू में जानवर इस प्रक्रिया में सहयोग नहीं कर रहे थे। वे इस तकनीक को तोड़-फोड़ देते थे; किंतु दो-तीन सालों में उन्हें विश्वास होने लगा कि ये तकनीक इंसान की चाल नहीं बल्कि इंसानियत का नमूना है।

‘‘हमने किसी प्रकार की हिंसा का पक्ष नहीं लिया। सदैव शांति, खुशहाली व सुंदरता में य़कीन किया। हमें विश्वास था एक दिन दुनिया बदलेगी, हमारी कुर्बानियाँ कभी व्यर्थ नहीं जाएगी। सबसे पहले तो मैं इस तकनीक का शुक्रिया अदा करना चाहती हूँ जिसने सभी जानवरों को इंसान के समकक्ष बिठाया, उनसे संवाद करवाया। साथ ही जंगल के पुराने अराजक कानून को समाप्त करने व जंगल में प्रजातंत्र स्थापित करने में भी हमारी मदद की। पहले जंगल में जिसकी लाठी उसकी भैंस जैसी स्थिति थी।’’ हरिणी बोलते हुए भावुक हो चुकी थी। उसकी बगल में बैठे शेर ने अपनी गर्दन नीचे झुका ली। वह समझ गया था कि इशारा उसी की तरफ था। हरिण के ठीक पीछे बैठी भैंस समाज की प्रतिनिधि ने अपनी त्यौरियाँ चढ़ा ली। वह इस लोकोक्ति से नाखुश थी।

हरिणी ने भी प्रबल स्वर में जानवराधिकार का पक्ष रखा। उसके बाद कम्प्यूटर पर श्वान वर्ग के प्रतिनिधि का नंबर आया। सभी ने कुत्ते की सीट की तरफ देखा; किंतु उस पर कोई नहीं था।

‘‘माफी चाहता हूँ ! कुत्तों के समाज में प्रजातांत्रिक तरीके से चुनाव सम्पन्न नहीं करा पाने के करण उनके प्रतिनिधि को शामिल नहीं किया गया।’’ संसद के अध्यक्ष ने माईक को अपने पास खींचते हुए कहा। सभी हल्के से मुस्करा दिए। सभी जानवरों के कानों में ईयरफोन लगे हुए थे जिससे भाषा ट्रांसलेट हो रही थी। जैसे ही कोई सदस्य बोलता, जानवर अपने कानों में लगे इयर फोन ध्यान से सुनने लगते।

इसके बाद मच्छर समाज के प्रतिनिधि का नंबर आया। वह अपने निर्धारित स्थान से उड़ा व माईक के पास आकर भिनभिनाने लगा, ‘‘पिछले हजारों सालों से हमने यही बात इंसान के कानों में उड़लने की कोशिश की; किंतु उन्होंने हमें कुचल दिया। आज इस तकनीक के कारण यह सब संभव हो पाया। मैं फिर से इस बात का समर्थन करता हूँ कि इंसानों के समान ही हमें भी जानवराधिकार मिले।’’ कहते हुए मच्छर अपनी जगह पर बैठ गया।

संसद में बैठे मनुष्य समाज के प्रतिनिधि चुपचाप सुन रहे थे। केवल सदन में ही नहीं बल्कि सारे विश्व में इस बहस का लाईव प्रसारण किया जा रहा था। कोई ऐसा टीवी नहीं जिसमें इसका प्रसारण नहीं हो रहा हो। एक चाय वाले के यहां कुछ लोग चाय पीते हुए मच्छर प्रतिनिधि का प्रसारण देख रहे थे तभी उनके कानों में कुछ मच्छर भिनभिनाएं। आदमी ने चीढ़ते हुए कहा, ‘‘हाँ… भाई… हाँ… मैं समझ गया हूँ कि तुम्हें भी अधिकार चाहिए।’‘ फिर उसने दूसरे साथी कि तरफ देखते हुए कहा, ‘‘देखो… कैसा जमाना आ गया। आज हम एक मच्छर भी नहीं मार सकते।’’

अगला नंबर छछूँदर का आया, ‘‘इंसान ने कभी हमें सम्मान की नजर से नहीं देखा। अब हम चाहते है कि हमारे साथ जी शब्द का प्रयोग किया जाए।’’ सभी जानवरों ने मेज थपथपाई। छछूँदर बैठ गया। इंसानों ने हल्की सी मुस्कान दी। एक आदमी ने दूसरे की तरफ कोहनी मारते हुए धीमे से कहा, ‘‘छछूँदर जी…’’

धीरे-धीरे करके सभी का क्रम आता रहा व उन्होंने अतीत के अत्याचारों को पुरजोर विरोध किया। कबूतर, तोता, चिड़िया, मगरमच्छ, तितली, कौआ, कोयल सभी ने अपनी बात कही। कोयल ने इस कार्यक्रम में एक शानदार कविता भी सुनाई। सभी स्रोता मंत्रमुग्ध  हो गए। कविता जानवराधिकारों पर केंद्रित थी।

अब मुर्गी का नंबर आया, ‘‘बड़ी मशक्कत के बाद एक अण्डा देना पड़ता है सभापति महोदय! एक अण्डे के लिए कितने पापड़ बेलने पड़ते। जबकि इस बिगड़ी कौम ने उनका भुर्ता-आमलेट बना-बना कर चटकाया।’’ मुर्गी बहुत बुजुर्ग लग रही थी। उसके अधिकांश बाल झड़ चुके थे। उसने कोई पुराना मोटा कोट पहन रखा था। आवाज़ हल्की-सी थरथरा रही थी, ‘‘इस जाहिल समाज का इससे भी पेट नहीं भरा तो उसने मुर्गे, मुर्गियों को ही खाना शुरू कर दिया। ये कैसी इंसानियत है?’’

संसद में पाँच अध्यक्ष बैठे थे। जिसमे एक इंसान समाज से एक जानवर समाज से तथा तीन रोबोट बैठे हुए थे। कईं वर्षों के खून खराबे के बाद इंसान इस महासंसद के लिए तैयार हुआ। तय यह हुआ कि पाँच सदस्यीय अध्यक्षों द्वारा बहुमत में लिए गए निर्णय के आधार पर तय किया जाएगा कि जानवरों को उनकी डिमाण्ड‘जानवाधिकार’ दिए जाए या नहीं।

‘‘अब हमारे सामने लोमड़ी समाज से आई प्रतिनिधि अपना पक्ष रखेगी’’ कम्प्यूटर स्क्रीन से आवाज़ आई।

‘‘आदमी बड़ा मतलबी है। उसने अपनी चतुराई से सभी भौतिक वस्तुओं पर अपना अधिकार कर लिया। नाम हमारा बदनाम कर रहा है कि लोमड़ी बड़ी चालाक होती है।’’

महासंसद के बाहर मीडिया का जमघट लगा हुआ था। पत्रकार बाहर विरोध कर रहे जानवरों व इंसानों का लाईव प्रसारण दिखा रहे थे।

विरोध में सबसे अधिक संख्या कुत्तों के समाज की थी;क्योंकि उनके प्रतिनिधियों को शामिल नहीं किया था। संसदीय समिति का आरोप था कि उन्होंने लोकतांत्रिक तरीके से चुनाव प्रक्रिया को नहीं अपनाया था। जबकि कुत्तों का कहना था कि इंसान कुत्तों से भी बदतर धांधली करता है। चुनाव कमीशन की रिपोर्ट का हवाला देते हुए संसदीय समिति ने तर्क रखा कि कुत्तों के समाज समेत तकरीबन दो सौ प्रजातियों को इस संसद से वंचित रखा गया, जिन्होंने या तो चुनावों में धांधली की या फिर हिंसात्मक प्रकिया को अपनाया। कुत्तों पर यह आरोप लगाया गया कि उन्होंने भौंक-भौंक कर चुनाव प्रक्रिया बाधित किया। मत पेटियों में वोट की बजाए हड्डिया डाल दी।

विरोध कर रहे प्राणियों में दूसरे स्थान पर इंसानों की संख्या थी। जो कि कुत्तों से बराबर लोहा लेते दिख रहे थे। सुरक्षा व्यवस्था चाक-चौबंध थी। सुरक्षा की सारी जिम्मेदारी रोबोट मशीनों को दी गई थी ताकि वे निष्पक्ष रूप से सुरक्षा कर सके।

‘‘मानव तेरी ये ही कहानी…झूठ मक्कारी और बेईमानी।।’’ सारे कुत्ते विरोध करते हुए नारे लगा रहे थे।

‘‘कुत्ते तेरी यही औकात…भौं-भौं करना दिन और रात ।।’’ कुत्तों के विरोध को दबाने के प्रयास में सारे इंसान एकजुट होकर नारे लगा रहे थे।

जोश दोनों तरफ बरकरार था। कभी कुत्ते इंसानों पर हावी थे तो कभी इंसान कुत्तों पर हावी थे। कुछ इंसान कुत्तों से अलग नहीं लग रहे थे। वे बराबर इनकी तरह ही भौंक रहे थे बस अंतर इतना था कि दोनों की भाषा अलग  थी। इंसानों को सबसे ज्यादा गुस्सा इस बात पर आ रहा था कि कल तक तलवे चाटने वाला कुत्ता आज उसके बराबर दर्जा मांग रहा हे।

इसी बीच एक इंसानों के झुण्ड ने कुत्तों को माँ बहन की गाली देते हुए पत्थर-बाजी शुरू कर दी। कम्प्यूटरीकृत रोबोटिक पुलिस ने मोर्चा संभालते हुए आँसू गैस के गोले बरसाने शुरू कर दिए।

‘‘आप सभी से विनम्र अपील करता हूँ कि शांति बनाए रखिए। किसी भी प्रकार की हिंसा स्वीकार नहीं की जाएगी। हमें दिए निर्देशों के अनुसार हम कार्यवाही करने को बाध्य हैं। चाहे आप कुत्ते हो या इंसान। सभी के लिए कानून बराबर है। अगर कोई ये सोचता है कि वह ऊचें दर्जे का है और दूसरा नीचे दर्जे का है तो भूल जाइए।’’कहते हुए एक रोबोट ने अपने अधीनस्थ सभी सुरक्षाकर्मियों को निर्देश दिया। सारे रोबोट एक्टिव हो गए। दोनों झुण्ड खामोंश हो गए।

‘‘इंसान ने कभी इस बात को स्वीकार नहीं किया कि वह जानवरों के साथ अत्याचार करता है।’’ महासंसद में आई तीतर समाज की प्रतिनिधि ने कहा।

‘‘मेरे अंदर जरूर ज़हर भरा हुआ है ;किंतु मैं कभी बिना कारण के इसानों को नहीं काटता। तभी काटता हूँ जब बात मेरे प्राणों पर आ जाएं, जबकि वे हमें देखते ही मार देते है। आप ही बताइए वास्तविक ज़हर किसके अंदर ज्यादा है?’’ एक प्रतिनिधि साँप ने कहा। उसकी उम्र एक हजार साल की लग रही थी।

सम्पूर्ण विश्व में ये अपने आप में अनोखा इवेंट था। इसके बाद तय होना था कि आखिर जानवाधिकार कानून लागू होगा कि नहीं। जंगलों के सारे जानवर भी अपने दैनिक कार्य छोड़कर सुबह से इसी निर्णय की प्रतिक्षा में टीवी पर डटे हुए थे। जंगल में जहां कही भी किसी धनी जानवर के यहां भाषा ट्रांसलेटर टीवी लगी हुई थी सारे जानवर उसके इर्द-गिर्द इकठ्ठे हो गए थे। मक्खियाँ तो टी.वी. के ऊपर ही बैठ गई।

संसद में इस बार स्क्रीन पर बंदर समाज का नंबर आया। सारे जानवरों की नज़र उनके प्रतिनिधि की तरफ गयी। एक बुजुर्ग बंदर जो मानों सदियों से अपने अंदर गहरी खामोशी लिए जी रहा था। जिसके चेहरे पर चारों तरफ झुर्रियाँ लटक रही थी। उस बंदर ने खड़े होकर सभापति की तरफ मुखातिब होते हुए कहना प्रारंभ किया, ‘‘सदियों पहले कि बात है, जब इंसान और बंदर भाई-भाई थे। नियति ने जाने क्या खेल रचाया कि इंसान उस झुण्ड से पृथक हो गया। उसने अपने जीवन में अवसरों को हाथ से जाने नहीं दिया। लिहाजा प्रकृति ने उसे खुब लुटाया। बुद्धि, सोच, समझ, भावना सब कुछ दिया उसे ;किंतु वह भूल गया कि उसका भाई कहीं पीछे गहरी खाई में छूट गया। स्वार्थी इंसान ने कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा कि कहीं कोई उसका अपना पीछे दुखों में, तकलीफों में तो नहीं।

इन मतलबी इंसानों ने आगे बढने को ही अपना जीवन दर्शन बना लिया। जैसा उस समय इन्होंने अपने सगे भाई के साथ। अपने माँ-बाप के साथ किया ,क्या उसे इंसानियत कहा जाएगा? मैं भले ही जानवर था। आगे नहीं बढ पाया। अवसरों को नहीं भुना पाया; किंतु उन बूढे़ माँ-बाप की सेवा तो की।

जब वे बूढे माँ-बाप मरे तब उन्होंने क्या कहा?’’ बंदर कुछ देर के लिए खामोश हो गया। सभी सभासद भावुक हो गए। इंसानी प्रतिनिधि अपने आप को शर्मिंदा महसूस कर रहे थे। टीवी पर देखने वाले दर्शकों के आँसू बह रहे थे।

‘‘इन्होंने कहा – बेटे जीवन में भले ही जानवर बनकर रहना किंतु इंसान मत बनना। जो इंसान अपने भाई, अपने माँ-बाप का नहीं हो सका वो भला कैसा इंसान।’’कहते हुए उन्होंने दम तोड़ दिया। क्या मुझे बताएंगे कुछ तकनीकी उन्नति कर लेने से इंसान अपने आप को ईश्वर समझने लगा। अरे ! बेशर्म इंसानों एक बार अपने गिरेबान में झांक कर तो देखो। तुम्हारे अंदर कितना वहशीपन छुपा है, तुम्हारे अंदर कितना ज़हर है।’’ बूढे बंदर की आँखें नम हो आई। उसकी बात पूरी होती उससे पहले संसद में हंगामा हो गया।

इंसानी प्रतिनिधियों में से एक व्यक्ति ने बीच में खड़े होकर कड़े शब्दों में विरोध किया, ‘‘ये सब बकवास  मनगढ़त कहानी है। इंसान पहले से काफी सभ्य हो गया है। पहले से दयालु, भावुक, संवेदनशील है। यह तो इंसान की इंसानियत ही थी कि उसने जानवरों को आज इस संसद में बैठने का अवसर दिया। क्या मेरे भाई बंदर के पास कोई सबूत है इस बात के?’’ कहते हुए वह आदमी अपनी सीट पर बैठ गया। इस कुटिल मुस्कान के साथ कि अब आया बंदर पहाड़ के नीचे।

बंदर ने शांत भाव से उसे जवाब दिया, ‘‘श्रीमान मेरा बड़ा भाई अगर सबूतों पर अधिक विश्वास करता है तो ये रहे सारे सबूत’’ कहते हुए बंदर ने प्रोजेक्टर पर विडियों क्लिप चलाई। जिसमे इंसानों द्वारा किए गए मासूम बच्चियों के साथ बलात्कार, हत्या, डकैती, हिंसा, दंगा, रासायनिक हमले, विश्व युद्ध,भ्रष्टाचार, जातिवाद,धार्मिक कट्टरता आदि के कई घिनौने कृत्य दिखाए गए। जिसे देखकर सारे इंसान प्रतिनिधि शर्मिंदा होने लगे। किसी को उम्मीद नहीं थी कि कोई जानवर इस प्रकार के सबूत इकठ्ठा कर सकेगा।

सारी बहस पूरी होने के बाद सभी सदस्य शांत हो गए। इंसान प्रतिनिधियों ने भी अपने खोखले तर्क रखे पर कोई ठोस तर्क नहीं रख पाए कि आखिर क्यों उन्होंने जानवरों पर इतने जुल्म ढाए। जब सारी दलीले सुन ली गई व तर्क-वितर्क हो चुके तो अब निर्णय पाँच प्रतिनिधियों को मिलकर करना था। उन्होंने एक घण्टे का समय मांगा। सारे जानवरों को आश्वस्त किया गया कि निर्णय कम्प्यूटर के आधार पर निष्पक्ष तरीके से किया जाएगा।

बहस खत्म होते ही टीवी पर एक्जिट पोल के नतीजे आने लगे। सभी में लगभग चार-एक के अनुपात से जानवरों के विजय होने की बाते होने लगी। एक्जिट पोल के नतीजे सुनने से पहले ही जानवरों में इस बात का विश्वास था कि पाँच सदस्यीय पैनल में से अगर एक इंसान अपनी समाज के पक्ष में वोट देगा तो भी तीन रोबोटिक कंम्प्यूटर व एक जानवर प्रतिनिधि तो उनके पक्ष में ही जाएगा। उन्हें इंसान पर विश्वास नहीं था पर रोबोट तकनीक पर पूरा विश्वास था। क्योंकि ये मशीने हमेशा से निष्पक्ष निर्णय करती है। मशीनों को किसी से कोई लगाव नहीं होता।

समय की घड़ी हृदय की धड़कन के समानांतर टिक् टिक् टिक् आगे बढ रही थी। समय पूरा होने में केवल दस मिनट बाकी। टीवी पर गरमागरम बहस चल रही थी। सारे राजनीतिक पंडित डटे हुए थे। सभी एक स्वर में सहमत थे कि इंसानों का जितना मुश्किल ही नहीं नामुमकिन है। जानवर अपने उज्ज्वल भविष्य के सपने देखने लगे। अब उन्हें भी इंसानों कि तरह शहर में रहने का अधिकार मिल जाएगा। अब वे भी अपने हक के लिए कानून के दरवाजे खटखटा सकेंगे। भर्तियों में उन्हें भी आनुपातिक आरक्षण मिल जाएगा। एक समय ऐसा भी आएगा जब कोई जानवरों का प्रतिनिधि देश का प्रधानमंत्री व राष्ट्रपति बनेगा। जिस प्रकार अश्वेत ओबामा अमेरीका के राष्ट्रपति बने उसी प्रकार कुछ अर्से बाद अखबार की सुखिर्यां होगी कि एक जानवर बना देश का राष्ट्राध्यक्ष।

सम्पूर्ण पृथ्वी पर रोबोट सुरक्षा कर्मियों ने अपनी सुरक्षा व्यवस्था बढा दी। उन्हें पता था कि निर्णय आते ही कोई ना कोई पक्ष तो नाखुश होगा ही व दंगे, मारकाट करने का प्रयास करेगा। एक दूसरे पर पत्थरबाजी होगी। एक दूसरे को फूटी आँखों देखना पसंद नहीं करेंगे। उन्हें आशंका थी कि अगर जानवर जीत गए तो कहीं मनुष्य जंगलों पर परमाणु बन नहीं गिरा दे इस लिए रोबोटिक पुलिस ने सारे परमाणु शस्त्रागार अपने अधीन कर रखे थे। एक ही तो चीज थी जिसने जानवरों को आवाज़ दी वो थी मशीन। इसी मशीन पर सारे जानवरों को भरोसा था।

निर्णय आ गया। नतीजा चैकाने वाला रहा।

चार एक के अनुपात से इंसान विजेता…।

सारे जानवरों के दिल की धड़कन धक्… से बैठ गई। सभी सोचने लगे भला ये कैसे संभव हो सकता है। सारे जानवर चुपचाप वहाँ से निकल गए। उन्हें भरोसा था कि फैसला ठीक ही हुआ होगा। शायद वे अभी इस काबिल नहीं कि इंसान के बराबर बैठ सके। शायद इंसान वाकई में महान हो; किंतु वे उसे समझ नहीं पाए हो। रोबोटिक पुलिस भी आश्चर्य में थी कि कहीं कोई दंगा नहीं हुआ। सारे जानवर अपने-अपने कार्य में लग गए। संसद बर्खास्त कर दी गई। सर्वसम्मति से फैसला लिया गया कि ‘‘जानवाधिकार’’ कानून को निरस्त किया जाता है व मानवाधिकार कानून ही वर्तमान में मान्य होगा।

बूढे बंदर की आँखें सूर्ख हो गई। उसे अपने बड़े भाई से कोई द्वेष नहीं था; किंतु वह समझ नहीं पाया कि भला ऐसा कैसे हो सकता है। उसके दस वर्षों की मेहनत कैसे असफल हो सकती है। तभी उसकी पीठ पर धौंस मारते हुए सभा में शामिल एक इंसान ने कहा, ‘‘काफी अच्छा लेक्चर दिया छोटे भाई।’’

‘‘शुक्रिया…’’ बंदर ने कहा, ‘‘शायद हम इंसान को अभी तक ठीक से समझ नहीं पाए’’

‘‘सही कहा। ये सब इंसानों द्वारा रचाया गया खेल था छोटे। क्या तुम में इतनी भी बुद्धि नहीं कि जो इंसान मंगल ग्रह पर जा सकता वह इतनी चतुराई भी नहीं कर सकता कि उसके द्वारा बनाई मशीन उसके पक्ष में वोटिंग ना करे।’’

बंदर को समझ आ गया कि माजरा क्या था। सारा खेल इंसानों का प्लान किया हुआ था। वह चुपचाप वहाँ से यह कहते हुए निकल गया कि ‘‘अच्छा हुआ जानवर इंसान की जमात में शामिल नहीं हुए वरना दुनिया पर कहर आ जाता है। अगर इस सृष्टि के सफल संचालन के लिए हमें कई सदियों तक जानवर बनकर जीना पड़े तो भी हम खुशी से जी लेंगे किंतु हमें ऐसे इंसान नहीं बनना।’’

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बहुत शानदार, मज़ा आ गया