‘परिंदे’ निर्मल वर्मा की सर्वाधिक चर्चित कहानियों में से है . यह न सिर्फ अपनी चित्रात्मक भाषा के ज़रिये एक नए शिल्प प्रयोग को सामने लाती है , बल्कि कथ्य के स्तर पर भी कई परंपरागत प्रतिमानों को तोड़ती हुई नज़र आती है . परिंदे एक प्रेम कथा है . ऐसा नहीं है कि हिंदी में प्रेम कथाएं कम लिखी गयी हैं . हिंदी कथा लेखन के आरंभिक चरण में ही ‘उसने कहा था ‘ ( चंद्रधर शर्मा गुलेरी) , पुरस्कार (जयशंकर प्रसाद) और जाह्नवी (जैनेन्द्र) जैसी शानदार प्रेम कथाएं सामने दिखती हैं , परन्तु ‘परिंदे’ अपनी पूर्ववर्ती प्रेमकथाओं से बिल्कुल अलग ज़मीन पर रची गयी है. यहाँ एक ओर जहाँ खोये हुए प्रेम की तड़प है तो दूसरी ओर उस प्रेम से मुक्त होने की छटपटाहट भी . परिंदे कहानी के केंद्र में है लतिका , एक पर्वतीय शहर के आवासीय गर्ल्स कान्वेंट स्कूल की वार्डन . लतिका मेजर […]
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अप्रैल के उत्तरार्द्ध की एक रात का पिछला पहर। खुला आकाश। वास्तव में खुला आकाश, क्योंकि आकाश के जिस अंश में धूल या धुन्ध होती है वह तो हमारे नीचे है। और धूल उसमें है भी नहीं, हलकी-सी वसन्ती धुन्ध ही है, बहुत बारीक धुनी हुई रुई की-सी: यह ऊपर आकाश नहीं, है रूपहीन आलोक-मात्र। हम अचल-पंख तिरते जाते हैं भार-मुक्त। नीचे यह ताजी धुनी रुई की उजली बादल-सेज बिछी है स्वप्न-मसृण: या यहाँ हमीं अपना सपना हैं ? हम नीचे उतर रहे हैं। धीरे-धीरे आकाश कुछ कम खुला हो आता है और फिर नीचे बहुत धुँधली रोशनी दीखने लगती है। विमान के भीतर, चालक के कैबिन को यात्रियों के कमरे से अलग करनेवाले द्वार के ऊपर बत्ती जल उठती है। ‘पेटियाँ लगा लीजिए’-‘सिगरेट बुझा दीजिए।’ एक गूँज-सी होती है, फिर स्वर आता है; ‘‘थोड़ी देर में हम लोग रोम के चाम्पीनो हवाई अड्डे पर उतरेंगे।’’ भारत से रोम (इटालीय […]
गर्मी के दिन थे। बादशाह ने उसी फाल्गुन में सलीमा से नई शादी की थी। सल्तनत के सब झंझटों से दूर रहकर नई दुलहिन के साथ प्रेम और आनन्द की कलोलें करने, वह सलीमा को लेकर कश्मीर के दौलतखाने में चले आए थे। रात दूध में नहा रही थी। दूर के पहाड़ों की चोटियाँ बर्फ से सफेद होकर चाँदनी में बहार दिखा रही थीं। आरामबाग के महलों के नीचे पहाड़ी नदी बल खाकर बह रही थी। मोतीमहल के एक कमरे में शमादान जल रहा था, और उसकी खुली खिड़की के पास बैठी सलीमा रात का सौन्दर्य निहार रही थी। खुले हुए बाल उसकी फिरोजी रंग की ओढ़नी पर खेल रहे थे। चिकन के काम से सजी और मोतियों से गुँथी हुई उस फीरोजी रंग की ओढ़नी पर, कसी हुई कमखाब की कुरती और पन्नों की कमर-पेटी पर, अंगूर के बराबर बड़े मोतियों की माला झूम रही थी। सलीमा का रंग […]
सन् 1908 ई. की बात है। दिसंबर का आखीर या जनवरी का प्रारंभ होगा। चिल्ला जाड़ा पड़ रहा था। दो-चार दिन पूर्व कुछ बूँदा-बाँदी हो गई थी, इसलिए शीत की भयंकरता और भी बढ़ गई थी। सायंकाल के साढ़े तीन या चार बजे होंगे। कई साथियों के साथ मैं झरबेरी के बेर तोड़-तोड़कर खा रहा था कि गाँव के पास से एक आदमी ने ज़ोर से पुकारा कि तुम्हारे भाई बुला रहे हैं, शीघ्र ही घर लौट जाओ। मैं घर को चलने लगा। साथ में छोटा भाई भी था। भाई साहब की मार का डर था इसलिए सहमा हुआ चला जाता था। समझ में नहीं आता था कि कौन-सा कसूर बन पड़ा। डरते-डरते घर में घुसा। आशंका थी कि बेर खाने के अपराध में ही तो पेशी न हो। पर आँगन में भाई साहब को पत्र लिखते पाया। अब पिटने का भय दूर हुआ। हमें देखकर भाई साहब ने कहा- “इन पत्रों को ले जाकर […]
“उस उमस एवं गर्मी से भरी मई के महीने में, शाम ५ बजे, सुब्रोजित बासु उर्फ़ मिकी, तीसरे क़त्ल की तैयारी कर रहा था| क़त्ल करते रहना कितना ख़तरनाक हो सकता था, उसे इस बात का पूरी तरह से एहसास था|” प्रतियोगिता के नियम
हीरासिंह का पापभवन छोड़कर महापापी भोलाराय सड़क में जाते-जाते सोचने लगा- अब पापियों के साथ नहीं रहूँगा, पाप में भी नहीं रहूँगा। पंछीबाग – मेरा रहने का स्थान- मेरे पापों की निशानी है उसे आज मैं अपने हाथों से जलाकर चला जाऊँगा, अपनी बाकी उमर आजतक किये हुए महापाप के प्रायश्चित में बिताऊँगा। चालीस वर्ष की उम्र हुई, हम ब्राह्मण होने का दावा करते हैं, परन्तु इतनी उमर में मैंने ब्राह्मण के योग्य कौन सा काम किया है? मेरी सारी उमर सिर्फ कुकर्म में ही बीती है। गूजरी बीनिन है और मैं ब्राह्मण हूँ। – यों सोचते-सोचते भोलाराय ने सघन वन में सूर्य का मुँह न देखनेवाले अपने घर में पहुंचकर देखा कि गूजरी अकेले एक जगह बैठी गीत गा रही है। उसको पास आते देखकर वह कोयल चुप हो गई। भोला- “गूजरी! तू यहाँ क्यों आई?” गूजरी-“तुम यहाँ क्यों आये?” भोला- “मेरा तो यह घर है।” गूजरी-“मैं यहाँ चिड़िया […]
वह इलाका पालम थाने के अंतर्गत आता था। वहाँ से दो हवलदार और थाना इंचार्ज त्यागी आए थे। बाहर अभी भी बारिश हो रही थी। सभी ने अपनी-अपनी गीली जैकेटें उतारी और उसी कुर्सी पर रख दीं। अनिल शर्मा ने उनका अभिवादन किया और ड्राइंग रूम में बैठने का इशारा किया। वहाँ उन दोनों के अलावा वहाँ हवलदार धर्मपाल, चावला चाइनीज का मैनेजर, डिलीवरी ब्वॉय राजेश मखीजा और मालविका भी मौजूद थे। अनिल शर्मा ने कहा, “मुझे चोर का अंदाजा हो गया है, लेकिन इससे पहले मैं कुछ सवाल जवाब करना चाहता हूँ… सब के सामने।” और मालविका की ओर मुखातिब हुआ, “आपको कोई ऐतराज तो नहीं?” मालविका ने कहा, “मुझे भला क्या ऐतराज हो सकता है?” अनिल – “मैं चाहता हूँ कि यहाँ देबीप्रसाद जी मौजूद रहें।” और मालविका की ओर देखा। मालविका इशारा समझ गई और देबीप्रसाद परिदा को लेने अंदर चली गई। धर्मपाल फुसफुसाया, “क्या माजरा है? […]
अपराध और अपराधी, दोनों ही क्राइम-डिटेक्शन का महत्वपूर्ण हिस्सा हैं। क्राइम डिटेक्शन में अपराधी का कैसे पता लगाये जाए, यह जानना बहुत जरूरी है। अपराध-स्थल से मिलने वाला एक सुराग भी पुलिस या डिटेक्टिव को संदिग्ध व्यक्ति तक पहुँचाने में सहायता प्रदान करता है। ये सुराग पुलिस को, अपराध को री-कंसट्रक्ट करने में भी सहायता प्रदान करते हैं। क्राइम-इन्वेस्टीगेशन का लक्ष्य होता है – अपराध स्थल या मौकायेवारदत से – सबूतों को पहचानना, उनको डॉक्यूमेंट करना और इकठ्ठा करना। अपराध की गुत्थी को सुलझाना इस बात पर निर्भर करता है कि सभी सुरागों से मिलने वाली जानकारी से एक तस्वीर बनायी जाए जो यह जानने में सहायता करे कि अपराध-स्थल पर हुआ क्या था। जब भी दो इंसान एक दुसरे के संपर्क में आते हैं, तो कुछ न कुछ आदान-प्रदान जरूर होता है, जैसे कि – बाल, स्किन सेल, कपड़े के रेशे, इत्र, शीशे के अंश, दुसरे व्यक्ति से […]
धर्मपाल ने चकित होकर पूछा, “किसने?” अनिल शर्मा ने मुसकुराते हुए मालविका परिंदा को देखा, और कहा, “मालविका जी, मूर्ति आप स्वयं पेश करेंगी, या फिर हमें पूरे घर की तलाशी लेनी पड़ेगी? हमें पता है कि मूर्ति अभी घर पर ही है।“ मालविका पहले चौकी, फिर उसका चेहरा गुस्से में लाल हो गया। “आप होश में तो है? आप जानते है कि आप क्या बकवास कर रहे है?” “ऐसे बेहूदा इल्जाम लगाने का अंजाम सही नहीं होगा! मेरे नंदी को खोजने कि बजाय यहाँ हम पर ही इल्जाम लगाने का क्या मतलब है?” देवीप्रसाद ने भी अपना गुस्सा जाहिर किया। अनिल शर्मा ने देवीप्रसाद को उत्तर देते हुये कहा, “देवीप्रसाद जी, इस मूर्ति का चोर सिर्फ आप और आपकी पत्नी हो सकते है, और कोई नहीं। और जैसा कि आप लोगों ने बताया कि आप मूवी देख रहे थे, यह काम सिर्फ आपकी पत्नी कर सकती थी।“ तभी थाने […]
नवमी के दिन हीरासिंह के घरवाले एक साथ स्नान करने चले गये हैं। अकेला हीरासिंह शिकार से चुके हुए शेर की तरह भयंकर मूर्ती धारण किये बैठक में टहल रहा है। सोचता है- लतीफन कैसे भाग गई? उसे कौन निकाल ले गया? बाग़ का सुरंग तीन-चार आदमियों को छोड़कर और कोई नहीं जानता; जो लोग जानते हैं उनमें से भी कोई कल रात को यहाँ नहीं था। दुखिया सिर्फ एक बार आया था लेकिन वह भी तो तुरन्त ही गोदाम की चाबी लेकर चला गया था। मैंने अपने हाथ से सुरंग का मुँह बन्द किया था तब वह कैसे बाहर गई? मैंने क्यों नहीं उसको मार डाला! उह वह तुर्किन जहाँ रहे मेरा क्या कर सकेगी? हीरासिंह इसी सोच-विचार में पड़ा था इतने में भोलाराय एक सन्दूक लेकर वहाँ आया, बोला-“लीजिये सिंहजी! मुंशीजी का जेवर का सन्दूक लीजिये। मैंने तुम्हारे बचने का रास्ता भी बना दिया है। मेरा प्रण पूरा […]
सर सुरेन्द्र मोहन पाठक जी के कई उपन्यासों पर ध्यान दिया जाए तो उससे हमें यह पता चलता है की किसी अमुक और अजनबी लाल रंग के धब्बे का जब परिक्षण किया जाता है तो उससे सिर्फ ब्लड ग्रुप के बारे में जानकारी मिलती है जिसके आधार पर सस्पेक्टस को धीरे-धीरे एलिमिनेट किया जाता है। लेकिन हम कभी यह नहीं जान पाते की किसी अमुक लाल रंग के धब्बे से या खून के धब्बे से कैसे ब्लड ग्रुप की जानकारी निकाली जा सकती है। ‘द कलर्स ऑफ़ मर्डर’ के पिछले दो भाग हमें फॉरेंसिक विज्ञानं में खून के एनालिसिस द्वारा कई महत्वपूर्ण जानकारी निकालने का तरीका बताते हैं। पहले किसी भी इन्वेस्टिगेटर का यह लक्ष्य होता है की जो अमुक धब्बा है वह खून है की नहीं। इसके दो टेस्ट के बारे में हमने बात किया था। एक टेस्ट तो मौकाए-वारदात पर ही संपन्न किया जाता है लेकिन लैब में […]
आरा में बड़ी धूमधाम से रामलीला हो रही है। आज नवमी को मेघनाथ वध होगा, बड़ी भीड़ है। शहर भर के लोग टूट पड़े हैं। चार बजे का समय है। भीड़ ‘राजा रामचन्द्र की जय’ शब्द से आकाश गुँजा रही है। इतने में खबर आई कि नहर के किनारे चार लाशें पड़ी हुई हैं। यह सुनते ही भीड़ मेला छोड़कर लाश देखने चली। नहर के पास पहुँच कर लोगों ने देखा कि अंगाटोपी पहने चार मरे मुसलामानों को घेर कर दारोगा, जमादार और चौकीदार खड़े हैं और एक मुसलमान बुढ़िया छाती पीटती चिल्ला-चिल्ला कर रो रही है। भीड़ बहुत बढ़ गई। बहुतेरों ने मरे मुसलामानों को पहचाना। हौरा मचा कि लतीफन बीबी कहीं नाचने गई थी, लौटते समय नाव डूब जाने से समाजियों के साथ डूब गई। चारो मुसलमान उसी के समाजी हैं। बुढ़िया रो रही है, कितने ही आदमी कितनी तरफ की बातें कर रहे हैं। इसी बीच में […]
क्राइम इन्वेस्टीगेशन में एविडेंस का महत्वपूर्ण योगदान है। एविडेंस एक ऐसी चीज है जिसके आधार पर न्यायलय किसी केस के लिए निर्णय लेती है। ऐसे एविडेंस कोर्ट के सामने इसलिए पेश किये जाते हैं ताकि वादी एवं प्रतिवादी पक्ष के बीच या दो पार्टी के बीच में बने विवाद के बिंदु को स्थापित किया जाए या नकार दिया जाए। “लॉ ऑफ़ एविडेंस” ‘कानून’ का एक ऐसा महत्वपूर्ण हिस्सा है, जो न्यायलय को, किसी तथ्य के होने या ना होने के, निष्कर्ष तक पहुँचने में सहायता प्रदान करें। एविडेंस का नियम सच को बाहर लेकर आने के लिए बहुत जरूरी है और प्रत्येक न्यायलय को इस नियम पर टिके रहना भी चाहिए। मूलतः तो एविडेंस के नियम की जरूरत, उचित और अनुचित तथ्यों के बीच एक रेखा खींचने के लिए किया जाता है। भारत में जिस ‘एविडेंस एक्ट’ का आज तक चलन चल रहा है, वो ब्रिटिश राज में, सन […]
अध्याय 22 : पार्वती और गूजरी सबेरे ससुर-दामाद के आरे जाने पर एक काली युवती मुंशी हरप्रकाशलाल के दरवाजे पर आई। ड्योढ़ीदार ने पूछा – “क्या चाहती है?” युवती ने हँसकर कहा – “भीतर जाना चाहती हूँ।” एक देहाती स्त्री के मुँह से ऐसी हिन्दी सुनकर ड्योढ़ीदार ने कुछ आश्चर्य के साथ उसके मुँह की तरफ देखा। युवती बोली-“क्या देखते हो?” ड्योढ़ीदार ने अचकचाकर कहा – “आप भीतर जाइये। जनाने में जाइये। वह भीतर चली गई।” यह काली युवती गूजरी है। दाई के द्वारा गूजरी बुलाये जाने पर पार्वती के पास आई और सिर से पैर तक उसको देखकर बोली- “तुम्ही मुंशीजी की बहू हो?” पार्वती ने शरमाकर सिर नीचे कर लिया, कुछ जवाब नहीं दिया। गूजरी – “समझ गई, तुम्ही बहूजी हो।” पार्वती – “किसलिये आना हुआ है?” गूजरी बोली – “मैं बड़ी दुखिया हूँ। मेरा एक छप्पर खर का था वह आग लगकर जल गया। अगर मैं भी […]
“किसने की है चोरी?” सभी ने लगभग चौंकते हुए पूछा। “बताता हूँ एक बार थाने वालों को भी आ जाने दो।” अनिल शर्मा ने ने सभी की और देखते हुए कहा। कुछ ही मिनटों में थाने वाले भी आ गये। “अरे अनिल तुम यहाँ कैसे?” थाने से आये पुलिस ऑफिसर जो की अनिल शर्मा का पुराना मित्र था ने अनिल को देखते ही कहा। “आज पी सी आर पर नाईट ड्यूटी पर था वायरलेस पर चोरी का मेसेज मिला तो तूरंत पहुच गया।” “अच्छा बताओ मामला क्या है?” “एक कीमती मूर्ति चोरी हुई जिसकी कीमत लगभग 30-40 लाख की थी।” अनिल शर्मा संक्षिप्त में मामला समझाते हुए कहा। “यार ये आज कल चोरो ने नाक में दम कर रखा है, सारी रात इनके पीछे भागते रहो।” थाने से आए पुलिस ऑफिसर ने कहा। “तुम चिंता मत करो मामला सुलझ गया है, मैंने पता लगा लिया है चोरी किसने की है।” […]
Nicely written. Nagpanchami is one of that festivals which combines the good vibes of conservating forests and their dependents. The…