भोजपुर की ठगी : अध्याय 25 : पश्चात्ताप
हीरासिंह का पापभवन छोड़कर महापापी भोलाराय सड़क में जाते-जाते सोचने लगा- अब पापियों के साथ नहीं रहूँगा, पाप में भी नहीं रहूँगा। पंछीबाग – मेरा रहने का स्थान- मेरे पापों की निशानी है उसे आज मैं अपने हाथों से जलाकर चला जाऊँगा, अपनी बाकी उमर आजतक किये हुए महापाप के प्रायश्चित में बिताऊँगा। चालीस वर्ष की उम्र हुई, हम ब्राह्मण होने का दावा करते हैं, परन्तु इतनी उमर में मैंने ब्राह्मण के योग्य कौन सा काम किया है? मेरी सारी उमर सिर्फ कुकर्म में ही बीती है। गूजरी बीनिन है और मैं ब्राह्मण हूँ। – यों सोचते-सोचते भोलाराय ने सघन वन में सूर्य का मुँह न देखनेवाले अपने घर में पहुंचकर देखा कि गूजरी अकेले एक जगह बैठी गीत गा रही है। उसको पास आते देखकर वह कोयल चुप हो गई।
भोला- “गूजरी! तू यहाँ क्यों आई?”
गूजरी-“तुम यहाँ क्यों आये?”
भोला- “मेरा तो यह घर है।”
गूजरी-“मैं यहाँ चिड़िया पकड़ने आई हूँ।”
भोला-“क्यों गूजरी! तू अब भी मुझे चाहती है?”
गूजरी- “अगर चाहती हूँ तो तुम्हें क्या?”
भोला- “नहीं गूजरी! मैं तेरे प्रेम के योग्य नहीं हूँ। मैं चाण्डाल हूँ। मुझे छूने से तू अपवित्र हो जायगी।”
“मैं तुम्हे छूने क्यों जाऊँगी?” यह कहकर गूजरी फिर गीत गाने लगी।
भोला गीत सुनकर पागल की तरह चिल्लाकर बोला-“नहीं गूजरी! मैं छूकर तुझे अपवित्र नहीं करूँगा, तू मेरे ह्रदय की देवी है।”
गूजरी ने मुँह फेरकर आँसू पोंछा, परन्तु तुरंत ही रुख बदलकर रूखाई से बोली-“अब बहुत पेंगल मत पढो। यह बताओ कि कल रात को कहाँ गये थे?”
भोला-“क्या?”
गूजरी -“कल तुम लोगों के उस नरक में तुमको ढूँढने गई थी, लेकिन वहाँ तुम्हें नहीं पाया। तुम कहाँ थे?”
भोला- “हरप्रकाशलाल के मकान में डाका डालने गया था।”
गूजरी- “फिर तुमने डाका डाला?”
भोला-“मैंने प्रण किया था कि उसके गहनों का सन्दूक चुराऊँगा। वह प्रण पूरा करके अपने पापयज्ञ को पूरा कर दिया है, अब मैं डकैती नहीं करूँगा।”
गूजरी- “तुम डकैती करो या न करो मुझे उससे मतलब नहीं, मैं गहनों का वह सन्दूक चाहती हूँ।”
भोला-“अब मैं उसे कहाँ पाऊँगा। मैंने वह सन्दूक हीरासिंह को दे दिया है।”
गू-“अच्छा मैं तुम्हें दिखाऊँगी की वह सन्दूक ला सकती हूँ या नहीं। क्यों रे मुँहझौसा! तुम लोगों ने उस वेश्या नसीबन को उस नरक में क्यों बन्द कर रक्खा था?”
भोला आश्चर्य में आकर उसका मुँह ताकने लगा। फिर बोला- “तेरी बात समझ में नहीं आई।”
गूजरी-“तब तुम उसका हाल नहीं जानते? हाँ, कल तो तुम यहाँ थे भी नहीं।”
भोला- “हीरा ने लतीफन को भी मार डाला क्या?”
गूजरी-“मैं मौके से न पहुँचती तो शायद मार ही डालता। अजी तुम लोग आदमी हो या राक्षस? स्त्रियों की जान लेने में भी तुम लोगों को दया नहीं आती?”
भोला-“गूजरी! वह बात कहकर अब मेरे दिल पर चोट मत कर। जो होना था हो गया, मुझे माफ़ कर। अब तू जो कहेगी मैं वही करूँगा। डकैती छोड़ने को कहा था, उसे छोड़ दिया। जनेऊ फेंकने को कहती थी, यह ले”- यह कहकर भोला जनेऊ उतारने लगा, तब गूजरी ने बड़ी व्याकुलता और जल्दी से उसका हाथ धरकर कहा-“हैं हैं क्या करते हैं? मुझे माफ़ कीजिये, मैं आपके पैरों पड़ती हूँ, मुझे अब पाप में न डुबोइये।”
यह कहकर आँसू पोंछते-पोंछते गूजरी वहाँ से चली गई। तब भोलाराय ने अपने हाथ से अपने घर में आग लगा दी और -“जो जस करे तो तस फल चाख।” कहता हुआ वहाँ से गायब हो गया। पंछी बाग़ जलने लगा।