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गोदान

गोदान में प्रेमचंद का उद्देश्य

लेखक: प्रेमचंद

साहित्य शिला प्रकाशन

मूल्य: 280

****

हार्ड बाउन्ड

उपन्यास
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किसान समस्या प्रेमचन्द के उपन्यासों में सर्वाधिक महत्वपूर्ण समस्या के रूप में सामने आती है।प्रेमचन्द का पहला उपन्यास ‘सेवासदन’ यद्यपि स्त्री समस्या को लेकर लिखा गया है,लेकिन यहाँ भी चैतू की कहानी के माध्यम से उन्होँने यह संकेत दे ही दिया है कि किसान समस्या और किसान जीवन ही उनके उपन्यासों का मुख्य विषय होने वाला है।प्रेमाश्रम, कर्मभूमि और गोदान मिलकर प्रेमचन्द के किसान जीवन पर लिखे गये उपन्यासों की त्रयी पूरी करते हैं।इन तीनों उपन्यासों को तत्कालीन राजनीतिक संदर्भों के साथ रखकर देखना समीचीन होगा। प्रेमाश्रम की रचना 1927 में होती है। कर्मभूमि की रचना 1932 में होती है, जबकि गोदान का प्रकाशन वर्ष 1936 है।इन तीनों उपन्यासों को कालक्रमिक दृष्टि से देखने से यह स्पष्ट हो जाता है कि किसान समस्या के संबंध में प्रेमचन्द का दृष्टिकोण लगातार परिपक्व हुआ है।प्रेमाश्रम और कर्मभूमि में जहाँ प्रेमचन्द आश्रम बनाकर या किसान आंदोलन की सफलता दिखाकर समस्या का आदर्शवादी हल प्रस्तुत कर देते हैं, वहीं गोदान का किसान अपनी नियति के साथ अकेला है-निपट अकेला।यहाँ प्रेमचन्द का यथार्थवादी दृष्टिकोण अपने चरम पर है।

गोदान ढहते हुए सामंतवाद और उभरते हुए पूँजीवाद की संक्रांति पर खड़े किसान की नियति कथा है।शोषकों के चंगुल में फंसा एक सीमांत किसान किस प्रकार मज़दूर बन जाने को विवश हो जाता है,गोदान में प्रेमचन्द ने इसका सूक्ष्म निरूपण किया है।
गोदान को प्रेमचन्द के एक अन्य उपन्यास रंगभूमि और उनके निबंध महाजनी सभ्यता के बरअक्स रखकर देखें तो यह स्पष्ट हो जाता है कि प्रेमचन्द पूंजीवाद को सामन्तवाद से ज़्यादा घातक समझते हैं।
गोदान का एक और महत्वपूर्ण सवाल है धार्मिक मर्यादा के नाम पर शोषण का।‘मरजाद की रक्षा’ का प्रश्न होरी के लिये जीवन की रक्षा से ज़्यादा महत्वपूर्ण हो जाता है और अंततः न मरजाद की रक्षा हो पाती है और न ही जीवन की।
होरी एक सीमांत किसान है, जो धार्मिक रूढ़ियों के चक्रव्यूह में फंसकर कर्ज़ के बोझ तले दबता चला जाता है। धर्म के ठेकेदार जोंक की तरह उसका खून चूसते हैं और वह उनका विरोध नहीं कर पाता क्योंकि मरजाद की रक्षा का सवाल उसकी आँखों के सामने आ खड़ा होता है। अपने सामाजिक व्यवहार में होरी मूर्ख कतई नहीं है। वह सामान्य किसान की तरह व्यावहारिक और चतुर है। अपने लाभ के लिये झूठ बोलने या किसी को धोखा देने में उसे कोई गुरेज़ नहीं है। बड़ी आसानी से वह भोला को विवाह का झाँसा देकर मूर्ख बनाता है या भाई को ही बाँस की झूठी कीमत बताता है।इसके बावज़ूद संगठित धर्मतंत्र के आगे वह पराजित होता है।
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chandan kumar

बहुत जल्द खत्म कर दिया , गुरूजी

abhishek kumar

ब्लॉग पर अभी पढ़ी।बहुत अच्छा लगा पढ़कर पर गुरूजी थोड़े में ही निपटा दिए?।खैर सही भी है,जहाँ लोग नॉवेल तक नहीं पढ़ पाते सही से वहां एक विमर्श पढ़ना संदेहास्पद है।तीन पारा में ही पूरा निचोड़ डालने की पूरी कोशिश की है।गुरूजी को साधुवाद।

ravikumarswarnkar

अच्छी गंभीर शुरूआत है…
महत्वपूर्ण कार्य….अभी उम्मीद कायम है…