सरोज स्मृति एक शोकगीति है, जो निराला ने अपनी पुत्री सरोज की मृत्यु के पश्चात लिखी थी।कवि अन्यत्र कहता है-‘गीत गाने दो मुझे तो वेदना को रोकने को’। यहाँ भी कवि अपनी पुत्री, जो उसके जीवन का एकमात्र सहारा थी’ की मृत्यु से उत्पन्न वेदना को कविता के माध्यम से कम करना चाहता है।पुत्री कवि के जीवन का एकमात्र सहारा थी-‘मुझ भाग्यहीन की तु संबल’..। उसी पुत्री की मृत्यु ने कवि को पूरी तरह तोड़ डाला। यहाँ यह पुत्री के बहाने दुःख भरे अपने पूरे जीवन पर दृष्टिपात कर रहा है – ‘दुःख ही जीवन की कथा रही,क्या कहा आज जो नहीं कही’। धीरे-धीरे बात सिर्फ पुत्री और कवि के जीवन की नहीं रह जाती बल्कि तत्कालीन सामाजिक परिवेश की हो जाती है- ये कान्यकुब्ज़ कुलकुलांगार खाकर पत्तल में करे छेद। पुत्री के सौंदर्य वर्णन में कवि की निर्वैयक्तिकता श्लाघनीय है। पूरी कविता में पिता और कवि का द्वन्द्व चलता रहता है। जब कविता पर पिता हावी होता है,तो पुत्री को खोने और दुःख ही के जीवन की कथा रहने की वेदना परत दर परत खुल कर सामने आती है। दूसरी ओर, कवि निराला पूरी घटना का तटस्थ और निर्लिप्त विश्लेषण करते हैं और इस क्रम में निराला ही नहीं,बल्कि उन जैसे कई साहित्य सेवियों का दुःख पाठक के सामने आता है।
पिता के विलाप में कवि को कभी शकुंतला की याद आती है और कभी अपनी स्वर्गीया पत्नी की।बेटी के सौंदर्य में कवि को पत्नी का सौंदर्य दिखाई पड़ता है।भाग्यहीन पिता के विलाप में समाज से उसके संबंध,पुत्री के लिये कुछ न कर पाने का अकर्मण्यता बोध और जीवन संघर्ष में अपनी विफलता की व्यथा भी व्यक्त हुई है।
मर्म को समझने और समझाने के लिए धन्यवाद
Saamne kuch peeche kuch aur kaha karte hain,
Is Shahar me bahurupiye raha karte hain.
Bas kisi tarah se apna bhala ho jaaye,
isi wazah se log auro ka bura karte hain.
Jinke bas me nahi hota bulandiyaa choona
fikre wo auron ki fatah par kasa karte hain.
Roshni jitna dabaoge aur baahar aayegi
kahi haathon ke ghere se samundar rooka karte hain
@Kavi Deepak Sharma
http://www.kavideepaksharma.co.in
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narayan narayan
साथ में रचना हो तो ज्यादा मज़ा आए.पर वह एक लंबा और मुश्किल काम है.आपकी व्याख्या अच्छी लगी.
एक गंभीर शुरूआत…