देवसेना का गीत जयशंकर प्रसाद के नाटक स्कंदगुप्त से लिया गया है। काव्यांश आह! वेदना मिली विदाई! मैंने भ्रम-वश जीवन संचित, मधुकरियों की भीख लुटाई। छलछल थे संध्या के श्रमकण, आँसू-से गिरते थे […]
झीनी-झीनी बीनी चदरिया जैसी लोकप्रियता भले ही अब्दुल बिस्मिल्लाह के अन्य उपन्यासों को हासिल नहीं हुई हो, लेकिन पठनीयता और सामाजिक यथार्थ के प्रामाणिक अंकन की दृष्टि से उनके सभी उपन्यास अत्यंत महत्वपूर्ण हैं। ‘जहरबाद’ प्रकाशन की दृष्टि से अब्दुल बिस्मिल्लाह का तीसरा उपन्यास है, परंतु वस्तुतः: यह प्रथम प्रकाशित उपन्यास ‘समर शेष है’ से […]
यशपाल की दिव्या को ऐतिहासिक उपन्यास माना जाता है। दिव्या और दिव्या जैसे अन्य उपन्यासों को लेकर आलोचकों में काफी चर्चा इस बात की हुई है कि उपन्यास में इतिहास का अंश कितना होना चाहिए। वस्तुतः ‘ऐतिहासिक उपन्यास’ शब्द ही अपने आप में व्याघाती है। इतिहास हमेशा तथ्यों पर आधारित होता है। इतिहासकार को यद्यपि […]
आचार्य रामचन्द्र शुक्ल ने मलिक मुहम्मद जायसी को सूफी कवि मानते हुए उन्हें सूफी प्रेमाश्रयी काव्य धारा के अन्तर्गत रखा है। आचार्य शुक्ल के अनुसार जायसी महदियां सूफी सम्प्रदाय में दीक्षित भी थे। यद्यपि शुक्ल जी से पूर्व ग्रियर्सन जायसी को मुस्लिम सन्त बता चुके थे, तथापि शुक्ल जी के बाद लगभग सभी आलोचकों ने […]
आचार्य शुक्ल ने शृंगार को रसराज कहा है। कारण यह है कि शृंगार रस के सहारे मनुष्य के सभी भावों को व्यंजित किया जा सकता है। यद्यपि सूरदास के यहाँ शृंगार के दोनों पक्षों संयोग और वियोग का चित्रण मिलता है, तथापि सूरदास का मन ज्यादातर वियोग वर्णन में ही रमा है। सूरदास का भ्रमरगीत […]
हजारी प्रसाद द्विवेदी के अनुसार ‘कबीर ने ऐसी बहुत सी बातें कहीं है जिनसे समाज सुधार में सहायता मिलती है, इसलिए उन्हें समाज सुधारक समझना उचित है। वस्तुतः उनकी व्यक्तिगत साधना की परिधि इतनी व्यापक थी कि वह अनजाने ही समाज की समस्त विकृतियों को झकझोरती हुई ब्रह्म में लीन हो गयी।’ द्विवेदी जी के […]
2004 में प्रदर्शित ‘द डे आफ्टर टूमारो’ में पर्यावरण संकट के भयावह रूप को दिखाया गया था। यद्यपि यह एक काल्पनिक कथा थी, लेकिन पिछले 15 वर्षों में यह कल्पना जिस तेजी से यथार्थ में रूपांतरित होने की ओर बढ़ी है, वह कहीं से भी उस फिल्म की कहानी से कम भयावह नहीं है। वैश्विक […]
‘झीनी-झीनी बीनी चदरिया’ अब्दुल बिस्मिल्लाह का सर्वाधिक चर्चित एवं प्रशंसित उपन्यास है। 1987 ई. में सोवियत लैंड नेहरू पुरस्कार से सम्मानित इस उपन्यास का कई भाषाओं में अनुवाद हो चुका है। उपन्यास बनारस के साड़ी बुनकरों की ज़िंदगी पर आधारित है। वर्षों तक इन बुनकरों के जीवन के रेशे-रेशे को देखने के बाद लेखक […]
किसान प्रारंभ से ही प्रेमचंद की साहित्य सर्जना के केंद्र में रहा है. अपने पहले उपन्यास सेवासदन के ‘चैतू प्रसंग’ से ही प्रेमचंद यह आभास दे देते हैं कि उनके साहित्य की दशा और दिशा क्या होने वाली है. तिलिस्मी-अय्यारी और जासूसी के सस्ते मनोरंजन में गोते खा रहे हिंदी उपन्यास को प्रेमचंद जन समस्याओं […]