फ्लैट के बाहर से आ रही जोर जोर से बोलने की आवाजें सुनकर अंगद ने दरवाजा खोला। अंगद का पूरा नाम अंगद शुक्ला था। वो अपनी नौकरी की वजह से अभी कुछ दिन पहले ही मथुरा से मुम्बई आया था, जहाँ कि वो एक ऑटोपार्ट्स बनाने वाली कम्पनी में टेक्निकल मैनेजर के पद पर नियुक्त हुआ था। गैलरी में मिसेज वर्मा और उनका बेटा किसी बात पर बहस कर रहे थे और उनकी बहू दरवाजे पर खड़ी थी। मिसेज वर्मा रिटायर्ड प्रोफेसर रघुवंश वर्मा की पत्नी थी। वे अंगद को कुछ खास पसन्द नही करतीं थीं। उन्हें लगता था कि घर से बाहर रहने वाले लड़के आवारा होते है और अंगद तो उन्हें कई बार गैलेरी में अक्सर सिगरेट के कश लगाता दिख जाता था। अंगद कई बार गैलरी में मिलने पर उन्हें नमस्ते भी करता था, जिसका जवाब न मिलने पर अब उसने वो भी करना बंद कर दिया […]
इण्डिया से बाहर, एशिया के भी बाहर, एक नए देश में जब मैंने अपना आशियाना बनाने का फ़ैसला किया, तब सबसे पहला सवाल जो मेरे मन में आया। कहाँ? उस नए देश में कहाँ? अपने देश में कब हमने इस सवाल का सामना किया था? जहाँ नियति में बदा था वहाँ पैदा हो गए और लो जी हो गए.. लखनवी, इलाहाबादी या इंदौरी। हमने कब तय किया? तरुणाई में, आगे की पढ़ाई के लिए कई तरह के फ़ॉर्म भरे, परीक्षाएँ दी और जहाँ से बुलावा आ गया वहाँ के हो गए.. भोपाल, गोवा या कोचीन। हमने कब सर खुजलाया था? कॉलेज परिसर में जितनी कम्पनियाँ आयीं, सब के इम्तिहान दिए और जिसने हमें चुन लिया उसके साथ चल पड़े.. दिल्ली, मुम्बई या हैदराबाद। हमने कब सोच-सोच कर रातें काली कीं कि कहाँ जाएँगे? कभी नहीं। हर बार किसी ना किसी ने हमारे लिए निर्णय ले लिया। ए बावरे नैन, उधर […]
ऊँचे-ऊँचे देवदार एवं बलूत के वृक्षों ने सूरज की रोशनी को पूरी तरह से ढक लिया था जिसके कारण दोपहर के समय भी उस जंगल में शाम का अहसास हो रहा था। जहां उस जंगल में आसमान को देखना आसान नहीं था वहीँ जमीन को देख पाना भी मुश्किल था। बर्फ की मोटी-मोटी परतों से वह धरती दूर-दूर तक बर्फ के रेगिस्तान जैसी नज़र आ रही थी। ठण्ड के कारण हर्ष वर्मा की हालत खराब हो रही थी। अपने मौजूदा प्रोफेशन में यह उसका सबसे मुश्किल असाइनमेंट था और इस बात का एहसास उसे अभी थोड़ी देर पहले ही हुआ था जब जंगल के एक हिस्से से गुजरते वक़्त एक गोली उसके फर की टोपी को छूकर गुजरते हुए उसके पीछे जंगल में कहीं गुम हो गयी। इस घटना के बाद उसकी साँसें थम गयी थीं और वह सकते में आ गया लेकिन क्षण भर में ही उसकी चेतना वापिस […]
दर्द दिया जो तूने कितना अच्छा लगता है, आँखों का खारा पानी भी मीठा लगता है । धब्बों वाला चाँद नहीं, तेरा सुन्दर मुखड़ा, सुबह सुबह का सूरज घर में उतरा लगता है। यह जो नीला अम्बर है, तेरे शर्माने से, कहीं गुलाबी ना हो जाए ऐसा लगता है । तू गुलशन में पहुँचेगी तो भौंरे बोलेंगे, यह गुलाब गुलशन में सबसे ताजा लगता है। तुझे देखने वालों का भी पागलपन देखा, जलसा तेरा कोई पागलखाना लगता है। खुशबू लाता है ‘ प्रवीण ‘ के अशआरों में जो, वो तेरी मीठी यादों का झोंका लगता है।
हॉस्पिटल के बाहर बेंच पर बैठी मैं अतीत के पन्नो को पलट रही थी…आज मैं ख़ुद को ऐसे मोड़ पर ले आई थी, जहाँ से मुझे रास्तें नही गहरी खाई दिख रही थी…सुरेखा भाभी की कही बात आज मेरे कानों में गूँज रही थी “वियोना, तुम्हें मैंने दिल से अपनी छोटी बहन माना है, इसका एहसास तुम्हें एक ना एक दिन जरूर होगा और जब होगा तो मिलने आना, मैं तुम्हें तुम्हारी बड़ी बहन की तरह ही मिलूंगी” परंपरागत, रूढ़िवादी ब्राह्मण खानदान में एक पारसी लड़की को बहु के रूप में स्वीकृति मिलना किसी चमत्कार से कम नही था, ये चमत्कार हुआ शुभम की सुरेखा भाभी के कारण..उफ़्फ़..ये क्या कर दिया मैंने, सुरेखा भाभी मेरे और शुभम के प्यार के लिए पूरे परिवार से लड़ गयी थी और मैंने उनको उनके ही घर संसार से निकाल दिया। मैं अपनी माँ के कहे अनुसार चलती रही जो परिवार प्यार और भरोसे […]
इधर अकादमी पुरस्कारों की घोषणा हुई उधर सिद्धवाणी का उद्घोष शुरू हो गया । वैसे सिद्धवाणी जो खुद को कबीरवाणी भी कहती रही है कि खासियत ये है कि इसकी तुलना आप क्रिकेटर -कम -नेता नवजोत सिंह सिद्धू के स्वागत भाषणों से भी कर सकते हैं जिसका कंटेंट वही रहता है तारीफ चालीसा का बस बन्दे या बन्दी का नाम बदल जाता है ।उन्हें अपने कंटेंट पर इतना नाज है कि वो कभी -कभी दुश्मन देश के उन्हीं लोगों के कसीदे गढ़ देते हैं जो हमसे हमेशा दुश्मनी निभाते आये हैं ।लोग बाग उनके भाषणों की तुलना तेरह नम्बर की रिंच से भी करते हैं जो कहीं भी फिट हो जाती है । साहित्य में खुद को कबीर पंथी घोषित करने वाले महापुरुष ने कसीदे गढ़ने शुरू कर दिए और तारीफ के गोले दनादन दागने शुरू कर दिए। अकादमी के पुरस्कार की खबर और महाकवि की फेसबुक पोस्ट शाम को […]
किम जोंग द्वारा अमेरिका से सुलह कर लेने के बाद भारत टीवी चैनल के कर्ता-धर्ता बहुत परेशान थे कि अब कौन सा देश उनसे युध्दनीति की सूचनाएं साझा करेगा और वो अपनी दुनिया को बचाने की योजनाओं पर काम कैसे करेंगे लेकिन भला हो हिंदी फिल्म की तारिकाओं का ,जिन्होंने टीवी चैंनलों में फिर से हरियाली ला दी ,पहले अनुष्का,फिर दीपिका उसके बाद प्रियंका और अब पूर्व ब्रह्मांड सुंदरी सुष्मिता सेन ने ये मोर्चा संभाला है वो भी अपने से काफी छोटे उम्र के युवक से शायद विवाह बंधन में बंध जाएं।वैसे खबर से मैं बहुत नासाज हूँ कि मेरी प्रिय हीरोइन शादी कर रही है लेकिन मेरे दुखी होने में मेरा तनिक भी दोष नहीं है हुजूर।बचपन से मैं यही सुनता आ रहा हूँ कि फलानी हीरोइन ने लाखों दिलों को तोड़ते हुए शादी कर ली ,समझ में नहीं आता कि ये चैनल वाले शादी पर मुबारकबाद पेश करते […]
आषाढ़ का महीना था। वर्षों बाद गाँव में आषाढ़ के महीने का आनन्द लेने का मौका मिला था। बादलों का उमड़ना-घुमड़ना, सूखी धरती पर बिछी हरियाली, कभी तेज फुहार, ठंडी हवाओं के झोंके, हवा के झोंको के साथ बगुलों का पंक्तिबद्ध उड़ना, खेती-बारी के कार्यों में आई तेजी से किसानों की व्यस्तता, हलवाहों का बैलों को हांकने की आवाज, चरवाहों का झुंडों के पीछे दौड़ना-भागना; खुशनुमा मौसम ! वर्षों बाद ऐसे वातावरण से रू-बरू होने का मौका हाथ आया था। सूर्यास्त होने को आया था। भंडार कोने में काले-काले बादल घनीभूत हो रहे थे। कभी-कभी बादल गरज उठते थे। रह-रहकर बिजली चमक रही थी और आने वाली बारिश की सूचना दे रही थी। पुरखों के लिए भंडारकोने में बादलों का घिरना और उमड़ना-घुमड़ना एक शुभ संकेत माना जाता था। भंडारकोना अर्थात् पश्चिमोत्तर कोना। इस कोने में बादलों का उठना, गरजना और बिजली का रह-रहकर चमकना अर्थात् अच्छी बारिश का होना […]
मिर्ज़ापुर 2 के स्क्रीनप्ले में ऐसी दसियों बाते हैं जो आपत्तिजनक हैं, ससुर बहु का हौलनाक रिश्ता, बिना मतलब की गालियां, लचर फिलर्स, धीमा होता कथानक या बेहद बचकाना क्लाइमेक्स; ऐसे कई पॉइंट्स हैं जिसको टेक्निकल समझ न रखने वाले भी ये ज़रूर कह सकते हैं कि ‘नहीं यार, मज़ा नहीं आया’ इन सबसे इतर, एक आपत्ति ऐसी उठी है जो किताबों से दूरी रखने वाला न समझ पायेगा लेकिन वो ख़ामी इन सारे टेक्निकल लापरवाहियों पर भारी है। Series के तीसरे एपिसोड में एक सीन है कि जब कुलभूषण खरबंदा नॉवेल पढ़ रहे हैं, voice-over चल रहा है “बलराज को अपनी चचेरी बहन अच्छी लगती थी… जब वो स्नान करने के लिए निवस्त्र हुई..“ ठीक इसी वक़्त रसिका दुग्गल उनके हाथ से नॉवेल छीन लेती हैं। इस नॉवेल का नाम धब्बा है और ये सुरेंद्र मोहन पाठक साहब के चर्चित पात्र सुनील series का नॉवेल है। तो इसमें आपत्ति […]
बन्धुमान्यगण, आज लेखक दिवस है। ये जानकर मुझे आश्चर्य का जोरदार झटका लगा। भला लेखक का भी कोई दिवस हो सकता है? लेखक तो वर्ष में 365 दिवस अपने दिमाग को घिस-घिसकर उसका दही करता रहता है। फिर भला कोई एक ही दिवस लेखक का किस प्रकार हो सकता है? और इस दिवस को मनाने के क्या विधान हैं? इस दिवस को मनाने के लिये किस-किस सामग्री की आवश्यकता होती है और वो सामग्री किन-किन प्रतिष्ठानों, केंद्रों पर मिलती है? क्या शिक्षक दिवस की तरह इस दिवस पर लेखक की शान में तराने गाये जाते हैं? या फिर लेखक को किसी उपाधि से नवाजा जाता है? क्या लेखक इस दिन छुट्टी रख सकता है और अपने खुराफाती दिमाग से कोल्हू वाला काम लेना बंद कर चैन की बंशी बजा सकता है? जो भी है, लेखक दिवस सुनने में काफी अजीब लगता है। मेरे विचार से जब इस दिवस की घोषणा […]
हिन्दी साहित्य के किस्सा साढे चार यार में जो चार अदद थे , ज्ञानरंजन, काशीनाथ सिंह, रवीन्द्र कालिया और दूधनाथ सिंह में हमें दूधनाथ सबसे कमजोर रचनकार लगते थे। ज्ञानरंजन में देवदत्त प्रतिभा थी, काशीनाथ उत्कृष्टता की कीमत पर भी पठनीय बने रहे, रवीन्द्र कालिया हँसमुख गद्य के ब्रांड एम्बेसडर थे, लेकिन दूधनाथ हमें कभी प्रभावित नहीं कर पाते थे। उनकी कहानियाँ हमें कृत्रिम लगती थीं, मुहावरे अराजक और कथोपकथन असामान्य,बिखरा बिखरा सा। इसलिए जब उनकी उपन्यासिका ‘ धर्मक्षेत्रे कुरुक्षेत्रे ‘ हमारे हाथ आई तो हमें इसे पढने को ले कर कोई विशेष उत्साह नहीं हुआ , लेकिन दूधनाथ चौंकाते हैं पाठक को इस रचना के साथ उसकी यात्रा में। अद्भुत भाषा स्मृति है इस लेखक के पास। चोरों, सेंधकटों और दलालों की भाषा और अभिव्यक्तियों का वर्णन बताता है कि विलक्षण स्मृति है उनकी। छोटे छोटे कोड्स, वाक्यांश, संबोधन, विशेषण सार्थ क्रियाओं की कथा में आवाजाही लेखक के अद्भुत […]
“बने है शाह का चमचा,फिरे है इतराता वरना आगरे में ग़ालिब की हस्ती क्या है “ मशहूर शायर मिर्जा गालिब ने जब ये फरमाया था तब बादशाह की उनपे नूरे नजर थी ,लेकिन वक्त ने ऐसी करवट बदली कि मिर्जा गालिब फकीर हो गए ।उन्होंने अंग्रेज़ राजा को अर्जी लगाई कि शाही खजाने से उनको नियामतें अता फ़रमाई जाएं तो वो बादशाह के वफादार रहेंगे, लेकिन अंग्रेजों ने उनकी अर्ज़ी को मुस्तरद कर दिया कि राजकाज चलाने के लिये कायदे की और डंडे के जोर की जरूरत होती है ।लेकिन शाह बनने का चस्का जब लग जाता है तो फिर उसे मेंटेंन करने के लिये पीआर एजेंसीज की जरूरत पड़ती है ।पीआर एजेंसी बताती है कि कौन सा सेलेब्रिटी कितना बोलेगा ,कितना ट्वीट करेगा ,कब करेगा और किसके शासन को सर्वकालिक श्रेष्ठ शासन घोषित करेगा ।कितने पैसे लेकर किसी भी विचारधारा के धरना स्थल पर किसे” गेस्ट अपीरेन्स”करनी है ।कब […]
हा, तुम्हारी मृदुल इच्छा हाय मेरी कटु अनिच्छा था बहुत माँगा ना तुमने , किंतु वह भी दे ना पाया । था मैंने तुम्हे रुलाया ,, ये एक तसल्ली भरा सन्देश है उन लोगों की तरफ से जिन्होंने इस बार मन के रावण को पुष्पित -पल्लवित नहीं होने दिया । इस बार का दशहरा बहुत फीका फीका रहा।,फेसबुक के कॉलेज से ग्रेजुएट और व्हाट्सप्प विश्वविद्यालय से दीक्षा प्राप्त लोग अभी मन के रावण को झाड़ पोंछ कर सामने ही लाये थे ।उसे कैसे मारा जाये ये लोगों को समझाने का सोच ही रहे थे कि विगत वर्षों से खार खाये लोगों ने पहले ही हमला कर दिया कि हम पुतले वाले रावण को जलाएंगे भी और मारेंगे भी ।दशहरे का मेला भी देखने जाएंगे और आतिशबाजी का आनन्द भी लेंगे और उस पर तुर्र्रा ये कि फेसबुक पर फोटो भी लगायेंगे ।कुछ लोग ने विगत वर्षों की उस पोस्ट को […]
हाजत में हरिणापि हरेणापि ब्रह्मणा त्रिदशैरपि | ललाटलिखिता रेखा न शक्या परिमार्जयितुम्|| (व्यास:) योंहीं सारी रात बीती और सबेरे जब मुझे एक कांस्टेबिल ने खूब चिल्ला-चिल्ला कर जगाया, तब मेरी नींद खुली। मैं आँखें मल और भगवान का नाम लेकर उठ बैठी और बाहर खड़े हुए कांस्टेबिल से मैंने पूछा,–“क्यों भाई, कै बजा होगा?” वह बिचारा बड़ा भला आदमी था। सो, उसने मेरी ओर करुणा भरी दृष्टि से देखकर यों कहा,–“अब नौ बजनेवाले हैं।” यह सुनकर मैं बहुत ही चकित हुई और बोली, “ओह! इतनी देर तक मैं सोती रही!!!” इस पर उस कांस्टेबिल ने कहा,–“नहीं, दुलारी! तुम रात को शायद सुख से न सोई होगी, क्योंकि मैं तीन बजे से तुम्हारे पहरे पर हूँ। इतनी देर में मैंने क्या देखा कि, ‘तुम बड़ी बेचैनी के साथ बार-बार करवटें बदलती और बराबर बर्राती रही!’ हाय, तुम बड़ी भारी मुसीबत में आ फँसी हो! अब जो भगवान ही तुम्हें बचावें, तभी […]
कुंअर आनन्दसिंह के जाने के बाद इन्द्रजीतसिंह देर तक उनके आने की राह देखते रहे। जैसे-जैसे देर होती थी, जी बेचैन होता जाता था। यहां तक कि तमाम रात बीत गई, सवेरा हो गया, और पूरब तरफ से सूर्य भगवान दर्शन देकर धीरे-धीरे आसमान पर चढ़ने लगे। जब पहर भर से ज्यादा दिन चढ़ गया, तब इन्द्रजीतसिंह बहुत ही बेताब हुए और उन्हें निश्चय हो गया कि आनन्दसिंह जरूर किसी आफत में फंस गये। कुंअर इन्द्रजीतसिंह सोच ही रहे थे कि स्वयं चलके आनन्दसिंह का पता लगाना चाहिए कि इतने ही में लाडिली को साथ लिए हुए कमलिनी वहां आ पहुंची। इन्हें देख कुमार की बेचैनी कुछ कम हुई और आशा की सूरत दिखाई देने लगी। कमलिनी ने जब कुमार को उस जगह अकेले और उदास देखा तो उसे ताज्जुब हुआ, मगर वह बुद्धिमान औरत तुरत ही समझ गई कि इनके छोटे भाई आनन्दसिंह इनके साथ नहीं दिखाई देते, जरूर […]
Nicely written. Nagpanchami is one of that festivals which combines the good vibes of conservating forests and their dependents. The…