वीरों का कैसा हो वसंत? आ रही हिमालय से पुकार है उदधि गरजता बार-बार प्राची-पश्चिम, भू नभ अपार. सब पूछ रहे हैं दिग-दिगंत वीरों का कैसा हो वसंत? फूली सरसों ने दिया रंग मधु लेकर आ पहुंचा अनंग वसु-वसुधा पुलकित अंग-अंग हैं वीर वेश में किंतु कंत वीरों का कैसा हो वसंत? गलबांही हो, या हो कृपाण चल-चितवन हो, या धनुष-बाण हो रस-विलास, या दलित त्राण अब यही समस्या है दुरंत वीरों का कैसा हो वसंत? भर रही कोकिला इधर तान मारू बाजे पर उधर गान है रंग और रण का विधान मिलने आए हैं आदि अंत वीरों का कैसा हो वसंत? कह दे अतीत अब मौन त्याग लंके! तुझमें क्यों लगी आग ऐ कुरुक्षेत्र ! अब जाग, जाग बतला अपने अनुभव अनंत वीरों का कैसा हो वसंत ? हल्दीघाटी के शिलाखंड ऐ दुर्ग सिंहगढ़ के प्रचंड राणा-ताना का कर घमंड दो जगा आज स्मृतियाँ ज्वलंत वीरों का कैसा हो […]
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झंडा ऊंचा रहे हमारा. विजयी विश्व तिरंगा प्यारा, झंडा ऊंचा रहे हमारा . सदा शक्ति बरसाने वाला, प्रेम सुधा सरसाने वाला, वीरों को हरषाने वाला, मातृभूमि का तन-मन सारा, झंडा ऊंचा रहे हमारा. स्वतंत्रता के भीषण रण में, लखकर जोश बढ़े क्षण-क्षण में, कांपे शत्रु देखकर मन में, मिट जावे भय संकट सारा, झंडा ऊंचा रहे हमारा. इस झंडे के नीचे निर्भय, हो स्वराज्य जनता का निश्चय, बोलो भारत माता की जय, स्वतंत्रता ही ध्येय हमारा, झंडा ऊंचा रहे हमारा. आओ प्यारे वीरों आओ, देश-जाति पर बलि-बलि जाओ, एक साथ सब मिलकर गाओ, प्यारा भारत देश हमारा, झंडा ऊंचा रहे हमारा. इसकी शान न जाने पावे, चाहे जान भले ही जावे, विश्व-विजय करके दिखलावे, तब होवे प्रण-पूर्ण हमारा, झंडा ऊंचा रहे हमारा.
उरूजे कामयाबी पर कभी हिन्दोस्तां होगा | रिहा सैय्याद के हाथों से अपना आशियां होगा || चखाएंगे मजा बर्बादिये गुलशन का गुलचीं को | बहार आ जाएगी उस दम जब अपना बागबां होगा || ये आए दिन की छेड़ अच्छी नहीं ऐ खंजरे क़ातिल | पता कब फैसला उनके हमारे दरम्यां होगा || जुदा मत हो मेरे पहलू से ऐ दर्दे वतन हर्गिज़ | न जाने बाद मुर्दन मैं कहाँ और तू कहाँ होगा || वतन की आबरू का पास देखें कौन करता है | सुना है आज मकतल में हमारा इम्तहां होगा || शहीदों की चिताओं पर जुड़ेंगे हर बरस मेले | वतन पर मरने वालों का यही बाकी निशां होगा || कभी वह भी दिन आएगा जब अपना राज देखेंगे| जब अपनी ही जमीं होगी और अपना आसमां होगा ||
चिट्ठी-डाकिए ने दरवाजे पर दस्तक दी तो नन्हों सहुआइन ने दाल की बटुली पर यों कलछी मारी जैसे सारा कसूर बटुली का ही है। हल्दी से रँगे हाथ में कलछी पकड़े वे रसोई से बाहर आईं और गुस्से के मारे जली-भुनी, दो का एक डग मारती ड्योढ़ी के पास पहुँचीं। ‘कौन है रे!’ सहुआइन ने एक हाथ में कलछी पकड़े दूसरे से साँकल उतार कर दरवाजे से झाँका तो डाकिए को देख कर धक से पीछे हटीं और पल्लू से हल्दी का दाग बचाते, एक हाथ का घूँघट खींच कर दरवाजे की आड़ में छिपकली की तरह सिमट गईं। ‘अपने की चिट्ठी कहाँ से आएगी मुंशीजी, पता-ठिकाना ठीक से उचार लो, भूल-चूक होय गई होयगी,’ वे धीरे से फुसफुसाईं। पहले तो केवल उनकी कनगुरिया दीख रही थी जो आशंका और घबराहट के कारण छिपकली की पूँछ की तरह ऐंठ रही थी। ‘नहीं जी, कलकत्ते से किसी रामसुभग साहु ने भेजी […]
जिस समय मैंने कमरे में प्रवेश किया, आचार्य चूड़ामणि मिश्र आंखें बंद किए हुए लेटे थे और उनके मुख पर एक तरह की ऐंठन थी, जो मेरे लिए नितांत परिचित-सी थी, क्योंकि क्रोध और पीड़ा के मिश्रण से वैसी ऐंठन उनके मुख पर अक्सर आ जाया करती थी। वह कमरा ऊपरी मंजिल पर था और वह अपने कमरे में अकेले थे। उनका नौकर बुधई मुझे उस कमरे में छोड़कर बाहर चला गया। आचार्य चूड़ामणि की गणना जीवन में सफल, सपन्न और सुखी व्यक्तियों में की जानी चाहिए, ऐसी मेरी धारणा थी। दो पुत्र, लालमणि और नीलमणि। लालमणि देवरिया के स्टेट बैंक की शाखा का मैनेजर था और नीलमणि लखनऊ के सचिवालय में डिप्टी सेक्रेटरी था। तीन लड़कियां थीं, सरस्वती, सावित्री और सौदामिनी। सरस्वती के पति श्री ज्ञानेन्द्रनाथ पाठक इलाहाबाद में पी.डब्ल्यू.डी. के सुपरिटेंडिंग इंजीनियर थे, सावित्री के पति श्री जयनारायण तिवारी की सुल्तानपुर में आटे की और तेल की मिलें […]
हिंदबाद और बाकी दोस्तों के आ जाने के बाद सिंदबाद ने अपनी कहानी शुरू की. सिंदबाद ने कहा, दोस्तो, मैंने दृढ़ निश्चय किया था कि अब कभी जल यात्रा न करूँगा। मेरी अवस्था भी इतनी हो गई थी कि मैं कहीं आराम के साथ बैठ कर दिन गुजारता। इसीलिए मैं अपने घर में आनंदपूर्वक रहने लगा। एक दिन अपने मित्रों के साथ भोजन कर रहा था कि एक नौकर ने आ कर कहा कि खलीफा के दरबार से एक सरदार आया है, वह आपसे बात करना चाहता है। मैं भोजन करके बाहर गया तो सरदार ने मुझसे कहा कि खलीफा ने तुम्हें बुलाया है। मैं तुरंत खलीफा के दरबार को चल पड़ा। खलीफा के सामने जा कर मैंने जमीन चूम कर प्रणाम किया। खलीफा ने कहा, ‘सिंदबाद, मैं चाहता हूँ कि सरान द्वीप के बादशाह के पत्र के उत्तर में पत्र भेजूँ और उसके उपहारों के बदले उपहार भेजूँ। तुम […]
ये उन दिनों की बात है, जब मैंने इंटर की परीक्षा पास कर बी ए में एडमिशन लिया था. शायद 1994 के शुरूआती महीनों की. अब तक का अपना सिनेमा देखने का अनुभव बड़ों के साथ उनकी निगरानी में ही रहा था. स्कूल के कई लड़के क्लास बंक करके सिनेमा देखने में माहिर थे, लेकिन अपनी न तो उन लड़कों से कोई दोस्ती थी और न ही इतनी हिम्मत कि ऐसा कुछ सोच भी पाता. ऐसे में हम तीन दोस्तों मैं, अजय और बबलू ने अकेले फिल्म देखने जाने की योजना बनाई. बिना किसी बड़े की निगरानी के मेरे लिए यह पहला मौका था, सिनेमा हॉल की दिशा में जाने का भी. शाहरुख खान की बाज़ीगर लगी हुई थी, जिसकी चर्चा गाहे-बगाहे कॉलोनी तक पहुँच ही जाती थी. डरते-डरते घर पर अनुमति की अर्ज़ी लगाई गई. पापाजी के समक्ष सीधे जाकर बात करने की हिम्मत आज भी नहीं है. अर्ज़ी […]
संध्या का समय था। डाक्टर चड्ढा गोल्फ खेलने के लिए तैयार हो रहे थे। मोटर द्वार के सामने खड़ी थी कि दो कहार एक डोली लिये आते दिखायी दिये। डोली के पीछे एक बूढ़ा लाठी टेकता चला आता था। डोली औषधालय के सामने आकर रुक गयी। बूढ़े ने धीरे-धीरे आकर द्वार पर पड़ी हुई चिक से झॉँका। ऐसी साफ-सुथरी जमीन पर पैर रखते हुए भय हो रहा था कि कोई घुड़क न बैठे। डाक्टर साहब को खड़े देख कर भी उसे कुछ कहने का साहस न हुआ। डाक्टर साहब ने चिक के अंदर से गरज कर कहा—कौन है? क्या चाहता है? डाक्टर साहब से हाथ जोड़कर कहा— हुजूर बड़ा गरीब आदमी हूँ। मेरा लड़का कई दिन से……. डाक्टर साहब ने सिगार जला कर कहा—कल सबेरे आओ, कल सबेरे, हम इस वक्त मरीजों को नहीं देखते। बूढ़े ने घुटने टेक कर जमीन पर सिर रख दिया और बोला—दुहाई है सरकार की, […]
बचपन में जो मेलोडीज़ गुनगुनाते थे, साहित्यिक अभिरुचि जागने के बाद पता चला किन्हीं गोपाल दास ‘नीरज’ नाम के कवि ने उन्हें रचा है। साहित्य का विद्यार्थी होने पर तो नीरज जैसे मन में समा गए। लोकप्रिय साहित्य बनाम गंभीर साहित्य के विमर्श को आधुनिक कवियों में नीरज से ही सबसे ज्यादा चुनौती मिली। न तो उनकी लोकप्रियता कभी कमजोर पड़ी और न उनकी साहित्यिकता। रुपहले परदे के कन्धों पर साहित्य की स्नेहिल बाहें पसार कर ही उन्होंने अपना जीवन जिया। किसी ने क्या खूब कहा कि बाज़ार के बेतरतीब दबाव के बावजूद नीरज जी ने कभी अपने फ़िल्मी गीतों का स्तर नहीं गिराया। बच्चन के हालावाद से नाक-भौं सिकोड़ते आलोचकों ने नीरज जी को बच्चन से कहीं ज्यादा उपेक्षित किया। हिंदी आलोचना के कुछ खेमों से बच्चन ने दोस्ती गाँठ रखी थी, लिहाजा इक्का दुक्का आलोचक कभी कभार बच्चन को याद भी कर लिया करते थे। लेकिन मजाल कि […]
सिंदबाद ने हिंदबाद और बाकी लोगों से कि आप लोग स्वयं ही सोच सकते हैं कि मुझ पर कैसी मुसीबतें पड़ीं और साथ ही मुझे कितना धन प्राप्त हुआ। मुझे स्वयं इस पर आश्चर्य होता था। एक वर्ष बाद मुझ पर फिर यात्रा का उन्माद चढ़ा। मेरे सगे-संबंधियों ने मुझे बहुत रोका किंतु मैं न माना। आरंभ में मैंने बहुत-सी यात्रा थल मार्ग से की और फारस के कई नगरों में जाकर व्यापार किया। फिर एक बंदरगाह पर एक जहाज पर बैठा और नई समुद्र यात्रा शुरू की। कप्तान की योजना तो लंबी यात्रा पर जाने की थी किंतु वह कुछ समय बाद रास्ता भूल गया। वह बराबर अपनी यात्रा पुस्तकों और नक्शों को देखा करता था ताकि उसे यह पता चले कि कहाँ है। एक दिन वह पुस्तक पढ़ कर रोने-चिल्लाने लगा। उसने पगड़ी फेंक दी और बाल नोचने लगा। हमने पूछा कि तुम्हें यह क्या हो गया है, […]
अगले दिन सब लोग फिर एकत्र हुए और भोजन के बाद सिंदबाद ने अपनी पाँचवीं यात्रा का वर्णन शुरू किया। सिंदबाद ने कहा कि मेरी विचित्र दशा थी। चाहे जितनी मुसीबत पड़े मैं कुछ दिनों के आनंद के बाद उसे भूल जाता था और नई यात्रा के लिए मेरे तलवे खुजाने लगते थे। इस बार भी यही हुआ। इस बार मैंने अपनी इच्छानुसार यात्रा करनी चाही। चूँकि कोई कप्तान मेरी निर्धारित यात्रा पर जाने को राजी नहीं हुआ इसलिए मैंने खुद ही एक जहाज बनवाया। जहाज भरने के लिए सिर्फ मेरा माल काफी न था इसीलिए मैंने अन्य व्यापारियों को भी उस पर चढ़ा लिया और हम अपनी यात्रा के लिए गहरे समुद्र में आ गए। कुछ दिनों में हमारा जहाज एक निर्जन टापू पर लगा। वहाँ रुख पक्षी का एक अंडा रखा था जैसा कि एक पहले की यात्रा में मैंने देखा था। मैंने अन्य व्यापारियों को उसके बारे […]
अगले दिन निश्चित समय पर सब लोग आए और भोजन के बाद सिंदबाद ने कहना शुरू किया. सिंदबाद ने कहा, कुछ दिन आराम से रहने के बाद मैं पिछले कष्ट और दुख भूल गया था और फिर यह सूझी कि और धन कमाया जाए तथा संसार की विचित्रताएँ और देखी जाएँ. मैंने चौथी यात्रा की तैयारी की और अपने देश की वे वस्तुएँ जिनकी विदेशों में माँग है प्रचुर मात्रा में खरीदीं. फिर मैं माल लेकर फारस की ओर चला. वहाँ के कई नगरों में व्यापार करता हुआ मैं एक बंदरगाह पर पहुँचा और व्यापार किया. एक दिन हमारा जहाज तूफान में फँस गया. कप्तान ने जहाज को सँभालने का बहुत प्रयत्न किया किंतु सँभाल न सका. जहाज समुद्र की तह से ऊपर उठी पानी में डूबी एक चट्टान से टकरा कर चूर-चूर हो गया. कई लोग तो वहीं डूब गए किंतु मैं और कुछ अन्य व्यापारी टूटे तख्तों के […]
हर इंसान के अंदर भगवान और शैतान, दोनों, किसी न किसी रूप में मौजूद होते हैं। जब हम कोई सत्कार्य कर रहे हों तो उसे अपने अंदर मौजूद ईश्वरीय अंश का कृत्य मानते हैं, जबकि हर दुष्कृत्य के लिए अपने अंदर मौजूद शैतानीय अंश को उत्तरदायी मानते हैं। हमारे अंदर मौजूद ये दोनो ही अंश एक दूसरे को रोकने और आगे बढ़ कर मनुष्य के निर्णय लेने तक को प्रभावित करने की कोशिश करते हैं। ऐसे में इंसान के नाम, जाति, धर्म, क्षेत्र आदि मायने नहीं रखते, लेकिन फिर भी हम पूर्वाग्रह से ग्रसित होकर एक सोच विकसित कर लेते हैं। कहा जाता है कि रावण ने अपनी अंतिम सांस लेने से पूर्व राम का नाम लिया था। उसके अंदर के ईश्वरीय अंश ने अंतिम समय में उसके अंदर के बुरे तत्वों पर विजय पा लिया था। ऐसे में किसी इंसान का नाम महत्व नहीं रखता कि क्या है। वर्तमान […]
कोई छींकता तक नहीं इस डर से कि मगध की शांति भंग न हो जाए, मगध को बनाए रखना है, तो, मगध में शांति रहनी ही चाहिए मगध है, तो शांति है कोई चीखता तक नहीं इस डर से कि मगध की व्यवस्था में दखल न पड़ जाए मगध में व्यवस्था रहनी ही चाहिए मगध में न रही तो कहाँ रहेगी? क्या कहेंगे लोग? लोगों का क्या? लोग तो यह भी कहते हैं मगध अब कहने को मगध है, रहने को नहीं कोई टोकता तक नहीं इस डर से कि मगध में टोकने का रिवाज न बन जाए एक बार शुरू होने पर कहीं नहीं रूकता हस्तक्षेप- वैसे तो मगध निवासियों कितना भी कतराओ तुम बच नहीं सकते हस्तक्षेप से- जब कोई नहीं करता तब नगर के बीच से गुज़रता हुआ मुर्दा यह प्रश्न कर हस्तक्षेप करता है- मनुष्य क्यों मरता है?
बात करीब दस बारह साल पहले की है, जब गोपाल होली की छुट्टियों में अपने पुस्तैनी घर आया था। उसके जन्म से पहले ही उसके पिता प्रभुनाथ सीआरपीएफ़ में कंपनी कमांडर हो गए थे। साल में एकाध बार ही घर आ पाते। बनारस कचहरी से लगभग दो फ़र्लांग बढ़ते ही गाजीपुर रोड पर सय्यद बाबा की मज़ार से बाएँ मुड़ती सड़क पर 200 मीटर बाद 25-30 घरों का पहाड़पुर मोहल्ला था। मोहल्ले की बसावट लंबाई में थी जो कि एक तरफ पुलिस लाइन और दूसरे तरफ एलटी कॉलेज की चहारदीवारी के बीच सैंडविच नुमा लगती थी। फागुन की दोपहर ढल रही थी। मोहल्ले की आधी जनसंख्या मतलब पुरुष काम धंधे पर गए थे और महिलाएं गोबर पाथने और होली के पापड़ आदि सुखाने में व्यस्त थीं। दोपहर का भोजन करके गोपाल अपने घर की ऊपरी मंज़िल पर लेटा ही था कि एक शोर सुनाई दिया। उसने खिड़की से देखा, सतेन्द्र […]
Nicely written. Nagpanchami is one of that festivals which combines the good vibes of conservating forests and their dependents. The…