जूँ चट्ट, पानी लाल-सर्वेश्वर दयाल सक्सेना
कवि सर्वेश्वर दयाल सक्सेना से परिचय बहुत बाद में हुआ। परिचय हो जाने पर भी उनकी पहली याद अपनी प्रिय पत्रिका पराग के संपादक के रूप में ही रही। आज उनकी पुण्य तिथि पर प्रस्तुत है, बच्चों के लिए लिखी गई उनकी एक गीत कथा
एक लड़की थी। वह हमेशा धूल में खेलती थी। नतीजा यह हुआ कि उसके सिर में जुएं भर गईं। वह हर समय सिर खुजलाती और रोती। एक दिन उसकी माँ ने कहा: ‘आ, तेरी जुएं निकाल दूँ।‘ माँ एक जूँ निकलती जाती और उसकी हथेली पर रखती जाती। लड़की उन्हें एक नाखून पर रख-रख कर मारती जाती। उसका नाखून लाल हो गया। वह दौड़ी-दौड़ी उसे धोने नदी पर गई। नदी ने पूछा: ‘लड़की, लड़की, तेरे नाखून कैसे लाल हो गए?
लड़की ने उत्तर दिया: “जूँ चट्ट, पानी लाल !”
नदी का पानी लाल हो गया। एक गाय नदी पर पानी पीने आई। उसने नदी से पूछा: ‘नदी, नदी, तेरा पानी कैसे लाल हो गया?
नदी ने कहा: “जूँ चट्ट, पानी लाल,
सींग सड़ !”
गाय का सींग सड़ गया। वह गाय एक पेड़ के नीचे जा खड़ी हुई। पेड़ ने पूछा: ‘गाय, गाय, तेरा सींग कैसे सड़ गया?’ गाय ने उत्तर दिया:
“जूँ चट्ट, पानी लाल,
सींग सड़,
पत्ते झड़ !”
पेड़ के पत्ते झड़ गए। एक कौआ, उस पेड़ पर आकर बैठा। कौए ने पूछा: ‘पेड़, पेड़, तेरे पत्ते कैसे झड़ गए?’ पेड़ ने उत्तर दिया:
“जूँ चट्ट, पानी लाल,
सींग सड़,
पत्ते झड़
कौआ काना !”
कौआ काना हो गया। वह कौआ उड़ता-उड़ता एक बनिए की दूकान पर जा बैठा। बनिए ने पूछा: ‘कौए, कौए, तुम काने कैसे हो गए?’ कौए ने उत्तर दिया:
“जूँ चट्ट, पानी लाल,
सींग सड़,
पत्ते झड़
कौआ काना,
बनिया दीवाना !”
बनिया दीवाना हो गया। वह पागलों जैसा काम करने लगा। एक रानी साहिबा आईं। उन्होंने बनिए से पूछा: ‘बनिए, बनिए, तू दीवाना कैसे हो गया?’ बनिया बोला:
“जूँ चट्ट, पानी लाल,
सींग सड़,
पत्ते झड़
कौआ काना,
बनिया दीवाना
रानी नचनी !”
रानी नाचने लग गई। उधर से राजा साहब निकले। उन्होंने पूछा: ‘रानी, रानी, तुम क्यों नाच रही हो?’ रानी ने कहा:
“जूँ चट्ट, पानी लाल,
सींग सड़,
पत्ते झड़
कौआ काना,
बनिया दीवाना
रानी नचनी,
राजा ढोल बजावें !”
राजा ढोल बजाने लग गयें। यह देखकर और लोग भी नाचने और गाने लगे। किसी को यह पता न लगा कि इसका कारण क्या है।