बाल कथाएँ
दोस्त कहूं या दुश्मन?
हरभगवान मेरा पुराना दोस्त है. अब तो बड़ी उम्र का है, बड़ी-बड़ी मूंछें हैं, तोंद हैं. जब सोता है तो लंबी तानकर और जब खाता है, तो आगा-पीछा नहीं देखता. बड़ी बेपरवाह तबियत का आदमी है, हालांकि उसकी कुछ आदतें मुझे कतई पसंद नहीं. पान का बीड़ा हर वक्त मुँह […]
मुसीबत है बड़ा भाई होना- शांति मेहरोत्रा
बड़ा भाई होना कितनी बड़ी मुसीबत है, इसे वे ही समझ सकते हैं, जो सीधे दिखाई पड़ने वाले चालाक छोटे भाई-बहनों के जाल में फंसकर आये दिन उनकी शरारतों के लिए मेरी तरह खुद ही डांट खाते नजर आते हैं. घर में जिसे देखो वही दो-चार उपदेश दे जाता है […]
दौड़ – पदुमलाल पुन्नालाल बख्शी
नौगढ़ के टूर्नामेंट की बड़ी तैयारी की गई थी. सारा नगर सुसज्जित था. स्टेशन से लेकर स्कूल तक सड़क के दोनों ओर झंडियाँ लगाईं गई थीं. मोटरें खूब दौड़ रही थीं. टूर्नामेंट में पारितोषिक वितरण के लिए स्वयं कमिश्नर साहब आने वाले थे. इसीलिए शहर के सब अफसर और रईस […]
लोहार और तलवार -मोहनलाल महतो वियोगी
पुष्पदंतपुर के चौड़े राजपथ के एक किनारे जिस लोहार की दूकान थी , वह अपनी कला में प्रवीण था. किन्तु बहुत ही कम व्यक्ति उसे जानते थे. वह लोहार सिर झुकाए अनवरत परिश्रम करता .उसकी दुकान के सामने से जुलूस जाते. सम्राट की सवारी जाती. फिर भी वह कभी सिर […]