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3 Comments

  1. shriram
    May 5, 2020 @ 7:01 pm

    वस्तुत: हम सामाजिक भेदभाव का गलत आधार ढूंढ़कर उसपर प्रहार कर रहे हैं। यह सत्य है कि भारत में जाति की व्यवस्था है किन्तु हमारे पूर्वजों ने जाति या वर्ण व्यवस्था किसी भेदभाव को जन्म देने के लिए नहीं बनाई, इसके निर्माण का आधार विशुद्ध रूप से श्रम विभाजन है । जाति व्यवस्था में कोई दोष भी नहीं है क्योंकि वर्तमान में इसका किसी कार्य विशेष से कोई संबंध नहीं किसी भी जाति का कोई भी व्यक्ति कोई भी कार्य कर सकता है। प्राचीन काल में किसी भी वर्ण का व्यक्ति किसी भी कार्य को अपनाकर वर्ण परिवर्तित कर सकता था। दोष है तो जाति के आधार पर अस्पृश्यता जैसे विचारों में किन्तु यदि हम पूर्वाग्रह मुक्त होकर विचार करेंगे तो पाएंगे कि अस्पृश्यता का आधार स्वच्छता है न कि जाति, एक ही जाति एक क्षेत्र में अस्पृश्य मानी जाती है और दूसरे क्षेत्र में स्पर्श्य। कुम्हार, लुहार खाती जैसी जातियां वर्ण के विचार से शूद्र ठहरती है किन्तु कोई इनके साथ छुआछूत का व्यवहार नहीं करता वही महब्राह्मन ब्राह्मण वर्ण में होने पर भी अस्पृश्य माने जाते हैं सभी सुधीजन मेरे उपनाम को देखकर ही पूर्वाग्रह न बना लें।

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  2. नरेश गुप्ता
    November 20, 2020 @ 11:24 am

    बेहतर होगा अगर आप फ़ेस बुक पर भी अपने लेखों को अपलोड करें।

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    • साहित्य विमर्श
      November 21, 2020 @ 11:18 pm

      सभी लेखों को फेसबुक पर शेयर किया जाता है. फेसबुक पर लेख पाने के लिए लिये हमारा फेसबुक पेज facebook.com/hindisahityavimarsh लाइक या फॉलो करें.

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