Skip to content

ब्राह्मण और तीन ठग – हितोपदेश

2 1 vote
Article Rating

बहुत पुराने समय की बात है .एक बार एक ब्राह्मण ने यज्ञ करने की सोची. उसने यज्ञ के लिए दूसरे गाँव से एक बकरा ख़रीदा . बकरे को कंधे पर रख कर वह अपने गाँव की ओर लौट रहा था , तभी तीन ठगों की नज़र उस पर पड़ी. मोटे ताजे बकरे को देख कर उनके मुंह में पानी आ गया .उन ठगों ने किसी उपाय से वह बकरा ब्राह्मण से ठगने की सोची . ठगों ने एक योजना बनाई और तीनों एक एक कोस की दूरी पर तीन वृक्षों के नीचे बैठ गए और उस ब्राह्मण के आने की राह देखने लगे।सबसे पहले ब्राह्मण की मुलाक़ात पहले ठग से हुई. जैसे ही ठग ने ब्राह्मण को बकरा लिए आते देखा ,उसने ब्राह्मण से कहा – हे ब्राह्मण, यह क्या बात है कि तुम कुत्ता कंधे पर लिये जाते हो ?
ब्राह्मण ने क्रोध से कहा- यह कुत्ता नहीं है, यज्ञ का बकरा है।
ठग ने हैरान होने का अभिनय करते हुए कहा – अच्छा, अच्छा ..मुझे माफ़ करना .मुझे न जाने क्यों ,ये कुत्ते जैसा लगा.
थोड़ी दूर जाने के बाद दूसरा ठग मिला . दूसरे ठग ने भी वही प्रश्न किया।
दुबारा बकरे को कुत्ता कहा जाता देख कर ब्राह्मण के मन में संदेह उत्पन्न हो गया . वह बकरे को धरती पर रखकर बार- बार देखने लगा. फिर कुछ सोचता हुआ बकरे को  कंधे पर रख कर आगे चल पड़ा.
थोड़ी दूर चलने के बाद ब्राह्मण की मुलाक़ात तीसरे ठग से हुई . तीसरे ठग  ने ब्राह्मण से कहा – हे ब्राह्मण ! क्या तुम्हारी बुद्धि भ्रष्ट हो गयी है? क्या कोई समझदार ब्राह्मण कुत्ते को कंधे पर लेकर घूमता है?

उसकी बात सुन कर ब्राह्मण को लगा कि शायद उसकी बुद्धि या नज़र में कुछ दोष आ गया है. अगर तीन लोग इसे कुत्ता कह रहे हैं,इसका मतलब मुझसे ही गलती हो रही है ,जो मैं एक कुत्ते को बकरा समझ कर यज्ञ के लिए ले जा रहा हूँ. ऐसा निश्चय करने के बाद ब्राह्मण ने बकरे को नीचे फेंका और खुद को पवित्र करने के लिए कुएं पर स्नान करने चला गया. उधर उन ठगों ने उस बकरे को ले जा कर खा लिया।

2 1 vote
Article Rating
Subscribe
Notify of
guest
0 Comments
Inline Feedbacks
सभी टिप्पणियाँ देखें