दीपों का शहर बनारस, भगवान शिव की नगरी बनारस, आस्था का शहर बनारस, ज्ञान की नगरी बनारस … न जाने कितने नामों और विशेषताओं से नवाजा जाता है इस शहर को। संसार के प्राचीनतम बसे शहरों में से एक है यह शहर जहाँ धर्म, आस्था और ज्ञान की त्रिवेणी बहती है।
यह एक ऐसा शहर है जहाँ गंगा किनारे पत्थर की सीढ़ियों पर बैठकर खूबसूरत घाटों को निहारा जा सकता है। मंदिरों की घंटियों से निकलती मधुर ध्वनि जहाँ मन को सुकून देती है, वहीं उदय और अस्त होते सूरज की किरणें घाटों को एक अद्भुत और मनमोहक दृश्य प्रदान करती हैं। मंदिरों में गूँजते हुए संस्कृत श्लोक और मंत्र मनुष्य को संस्कृति और धर्म के सागर में डूबो ही लेते हैं। एक ऐसा शहर है यह जिसके रग-रग में अपनापन और प्यार छुपा है।
बनारस की यह धरती महान कवियों, लेखकों, संगीतकारों और ऋषि-मुनियों की जननी है। बनारस भारत के गौरवशाली इतिहास का एक प्रतीक है। सदियों से ही बनारस शिक्षा और संस्कृति का केंद्र रहा है। भारत के कई प्रसिद्ध दार्शनिक, कवि, लेखक और संगीतज्ञ बनारस की मिट्टी में ही जन्मे हैं, जिनमें कबीर, रैदास, वल्लभाचार्य, स्वामी रामानंद, मुंशी प्रेमचंद, जयशंकर प्रसाद, रामचंद्र शुक्ल, गिरिजा देवी, हरिप्रसाद चौरसिया, पंडित रवि शंकर, उस्ताद बिस्मिल्लाह खाँ आदि महान विभूतियाँ हैं। बुद्ध ने ज्ञान की प्राप्ति गया में जरूर की, मगर प्रथम प्रवचन के लिए वह बनारस ही आए। तुलसीदास ने विश्व प्रसिद्ध रामचरितमानस की रचना इसी बनारस शहर में रहकर की। मशहूर चिंतक और भारत रत्न मदन मोहन मालवीय जी ने भी यहीं भारत के सबसे प्रमुख विश्वविद्यालय काशी हिंदू विश्वविद्यालय की स्थापना की। जब छत्रपति शिवाजी का अभिषेक हुआ, वे भी बनारस आए थे। तुलसीदास जी ने भी राम जी के गीत गंगा घाट पर गाए हैं। कुछ तो है इस शहर में जो पूरा विश्व इसकी सभ्यता और इतिहास को बड़े सम्मान और गर्व की नजरों से देखता है। कहावत है कि जिसे बनारस ने अपना लिया, वह पूरे संसार का हो गया। गंगा नदी की पवित्र धारा इस शहर को सिंचित और पोषित करती है। गंगा माँ के साथ इस शहर का अटूट-सा बंधन है, जो कभी नहीं टूट सकता। इंसान चाहे कहीं भी पैदा हो जाए, मगर हिंदू धर्म में यह मान्यता है कि मृत्यु के बाद आत्मा की शांति के लिए मनुष्य की अस्थियों को गंगा में ही बहाना चाहिए। यह शहर लोगों की आस्था और विश्वास को एक पहचान देता है, इन्हें मुक्त करता है। मन की व्यथा और बेचैनी को दूर कर हृदय को शांति और सुकून से भर देने की कला है इस शहर में।
आज जबकि हम सब बड़े-बड़े महानगरों में निवास करते हैं और विकास की दौड़ में अपनी जिंदगी को भी उतनी ही तेज रफ्तार से भगाए चले जा रहे हैं, ऐसे में बनारस एक ठहराव और सुकून का संदेश देता है। कवि केदारनाथ सिंह जी ने बनारस की इस विशेषता को सुंदर शब्दों में व्यक्त किया है:
“इस शहर में धूल धीरे-धीरे उड़ती है
धीरे धीरे चलते हैं लोग
धीरे-धीरे बजते हैं घंटे
शाम धीरे-धीरे होती है
धीरे धीरे होने की यह सामूहिक लय
दृढ़ता से बाँधे है समूचे शहर को!”
बनारस अपने खूबसूरत और मनोरम घाटों के लिए विश्वप्रसिद्ध है। रमणीय घाटों का शहर है यह बनारस! इन सभी घाटों से पौराणिक-धार्मिक कहानियाँ जुड़ी हुई हैं। इन घाटों के सुंदर दृश्यों का आनंद एक नौका में ही आता है, जो कि राजघाट से प्रारंभ होकर अस्सी घाट तक दर्शन कराती है। ऐसी मान्यता है कि इन सभी घाटों पर स्वयं शिव जी विराजमान हैं। बनारस गलियों का भी शहर। बहुत सी पतली और संकरी गलियों से यह घिरा हुआ है। बनारसी ठाठ और खानपान का आनंद इन गलियों में ही मिलता है। किसी गली में सुबह-सुबह दुकानों से उठती कचौड़ी-जलेबी की खुशबू आती है, तो कहीं चाट, रबड़ी और मलइयो की। बनारसी चाट और मलइयो का स्वाद अगर किसी ने नहीं लिया तो उसने पूरा बनारस जाना ही नहीं। ये गलियाँ इस शहर को एक अलग पहचान देती हैं। इनमें सबसे प्रसिद्ध है विश्वनाथ गली। बनारस के दिल में विश्वनाथ मंदिर के मार्ग पर स्थित यह गली इसी के नाम से प्रसिद्ध है।
बनारस एक जगह भर नहीं है, बल्कि अपने आप में पूरी संस्कृति है, जो अपने भीतर धर्म, दर्शन, अध्यात्म, कला और साहित्य की पूरी परंपरा को समेटे हुए है। तभी तो नेहरू जी ने बनारस को ‘पूर्व दिशा का शाश्वत नगर’ कहा है। किसी ने बनारस शहर के बारे में क्या खूब लिखा है:
“जिसने भी मुझे छुआ, वह स्वर्ण हुआ
सब कहें, मुझे मैं पारस हूँ।
मेरा जन्म महा श्मशान मगर
मैं जिंदा शहर बनारस हूँ।”