“चलिए, अपना ख्याल रखिएगा और कोई जरूरत हो तो फोन कीजियेगा” कहते हुए नीमा ने कॉल काटा और मुड़ी तो चौंक गई। पतिदेव सामने खड़े थे, बोले “किस से बात कर रही थी इतनी रात को?” नीमा ने कहा “मेरी फ्रेंड है ना विशाखा, जो कोविड पॉजिटिव है और उसके हसबैंड भी…. उसके हसबैंड को […]
फ्लैट के बाहर से आ रही जोर जोर से बोलने की आवाजें सुनकर अंगद ने दरवाजा खोला। अंगद का पूरा नाम अंगद शुक्ला था। वो अपनी नौकरी की वजह से अभी कुछ दिन पहले ही मथुरा से मुम्बई आया था, जहाँ कि वो एक ऑटोपार्ट्स बनाने वाली कम्पनी में टेक्निकल मैनेजर के पद पर नियुक्त […]
सायंकाल के चार बजे थे। मैं स्कूल से लौटकर घर में गरम-गरम चाय पी रहा था। किसी ने बाहर से पुकारा: “मास्टर साहब, मास्टर साहब, जरा बाहर आइए। एक आदमी आया है। बाघ की खबर लाया है।” बाघ का नाम सुनकर मैं उछल पड़ा। चाय का प्याला वहीं रखकर झट से बाहर आया। देखा, […]
लौटते समय डॉक्टर साहब माया के जेठ, उनके पड़ोसी निगम और निगम की माँ ‘चाची’ सबसे अपील कर जाते — “आप लोग इन्हें समझाइये… कुछ खिलाइये, पिलाइये और हंसाइये।” निगम साधारणतः स्वस्थ, परिश्रमी और महत्त्वाकांक्षी व्यक्ति है। वह चित्रकार है। पिछले वर्ष दिसम्बर में वह अमरीका में होने वाली एक प्रदर्शनी में भेजने के लिए […]
गाँव के बाहर एक बूढ़ा पीपल का पेड़ खड़ा था। कितनी उम्र थी उसकी, ठीक-ठीक कोई नहीं बता सकता। बड़े-बूढ़े कहा करते थे, वह पेड़ गाँव के बसने के समय भी इतना ही बड़ा, ऐसा ही घना और ऐसा ही था, जैसा आज है। उसी पेड़ से उस गाँव का नाम भी पिपरा था। प्राचीनता […]
राजा भोज ने जब खुदाई में प्राप्त राजा विक्रमादित्य के सिंहासन पर बैठने का प्रयत्न किया तो सिंहासन की पहली पुतली रत्नमंजरी ने उन्हें रोकते हुए कहा- “हे राजन! राजा विक्रम के इस सिंहासन पर वही बैठ सकता है, जो उनकी तरह प्रतापी, दानवीर और न्यायप्रिय हो। मैं आपको राजा विक्रम की कथा सुनाती हूँ। […]
बहुत समय पहले राजा भोज उज्जैन नगर पर राज्य करते थे। राजा भोज एक धार्मिक प्रवृति के न्यायप्रिय राजा थे। समस्त प्रजा उनके राज्य में सुखी एवं सम्पन्न थी। सम्पूर्ण भारतवर्ष में उनकी प्रसिद्धि दूर-दूर तक फैली हुई थी। राजा भोज के शासनकाल में प्रत्येक व्यक्ति संपन्न एवं सुखी था। कृषि भी खूब होती थी। […]
लाहौर पहुँच कर सीधा मसऊद के घर पहुँचा तो वह हजरत गायब थे। मालूम हुआ कि कहीं घूमने गये हैं। खैर, वो घूमने जाएँ अथवा जहन्नुम में, घर तो उनका मौजूद ही था। सामान रख कर अत्यन्त संतोष से नहाया-धोया। कपड़े बदले और उनके नौकर से कहा…”चाय लाओ!” यह नौकर भी कोई नया जानवर ही […]
एक दिन मिर्ज़ा साहब और मैं बरामदे में साथ साथ कुर्सियाँ डाले चुप-चाप बैठे थे। जब दोस्ती बहुत पुरानी हो जाए तो बातचीत की कुछ वैसी ज़रूरत बाक़ी नहीं रहती और दोस्त एक दूसरे की ख़ामोशी से लुत्फ़ उठा सकते हैं। यही हालत हमारी थी। हम दोनों अपने-अपने विचारों में डूबे थे। मिर्ज़ा साहब तो […]