चाँद का दाग
वी आर रेडी टू गो इन 100, 99, 98…. काउंटडाउन स्टार्ट हो चुका था। जिओसिंक्रोनोअस सैटेलाइट लांच वेहिकल एमकेIII-डी-2 के कॉकपिटशिप केबिन में उस वक़्त चार लोग थे। बाहर सबकी निगाहें उस रॉकेट पर लगी हुई थीं। ये पहला मौका होगा जब चाँद पर भारतीय तिरंगा लहराया जायेगा। लेकिन इसरो द्वारा चाँद पर भेजने का फैसला करने और साढ़े आठ सौ करोड़ रुपए इसपर ख़र्च करने की वजह सिर्फ झंडा लहराना तक सीमित नहीं थी।
काउंटडाउन अपने एंड पर पहुँचा 03..02..01, रिलीजिंग द लोअर डॉक एंड इन्जेंस ऑन फायर… मिशन मून-डॉट की टीम हवा में उठ चुकी थी।
उन चारों को तेज़ झटका लगा और उनकी पीठ अपनी-अपनी कुर्सियों पर तन गयी। 9537 किलोमीटर प्रति घंटे का थ्रस्ट जो S200 बूस्टर फर्स्ट स्टेज इंजिन्स की वजह से उन्हें लगा था। सबकी मुट्ठियाँ भिंच गयीं। रॉकेट स्पेस में पहुँचने और उसके बाद फिर थर्ड स्टेज एमकेIII के इजेक्ट होने तक पूरी तरह से लॉन्च-पैड-वन के बेस कण्ट्रोल में ही था। चारों एस्ट्रोनॉटस् को बस अपनी बारी आने का इंतेज़ार करना था।
अमन उस टीम को लीड कर रहा था। चाँद पर इंसानी पाँव रखने का ये पहला मौका था भारत के लिए। अमन के साथ उसको असिस्ट करने के लिए श्वेता मौजूद थी। अमन और श्वेता दोनों फ्रंट्स में थे और सिद्धार्थ और लोकेश बैकसाइड। श्वेता और अमन इस मिशन से पहले भी इंटरनेशनल स्पेस स्टेशन (Russia) पर साथ-साथ जा चुके थे। लोकेश के लिए ये उसकी दूसरी स्पेस ट्रिप थी। सिद्धार्थ इन सबमें सबसे छोटा था। स्पेस तो दूर की बात उसने कभी चेन्नई से बाहर कदम नहीं रखा था।
नियति का प्यार भी कैसा, NASA में जॉब करने के लिए सोचता था कि इसी बहाने इंडिया से बाहर घूम लूँगा, किस्मत ने खेल दिखाया और पृथ्वी से बाहर घूमने का नंबर आ गया।
फर्स्ट बूस्टर S200 अलग हो गया। अब वो सेकंड स्टेज में थे। सेकंड बूस्टर L110 अर्थ ऑर्बिट पर पहुँचकर अलग हो गया। अब स्टेज थ्री अगले बूस्टर की तरह काम आनी थी। टीम ज़रा रिलेक्स हुई।
“लोकेश फ्यूल स्टेटस बताओ” अमन ने आदेश दिए
लोकेश कुछ देर स्क्रीन से उलझा रहा फिर बोला “78%, अगर हम अर्थ ऑर्बिटर पर सात की बजाए नौ राउंड्स ले सकें तो हमारा कुछ फ्यूल बच सकता है” लोकेश ने बिना निगाह उठाये जवाब दिया
“लेकिन ऐसा करने से हम दो दिन लेट भी तो हो जायेंगे, दो दिन लेट का मतलब हम चाँद से दो लाख पच्चीस हज़ार छः सौ तेईस किलोमीटर के क्लोज़ेस्ट डिस्टेंस को मिस कर देंगे। नहीं हम सेवेन राउंड्स के बाद ही अर्थ ऑर्बिट से बाहर निकलने की कोशिश में लग जायेंगे”
लोकेश फ्यूल और सप्लाईज़ इंचार्ज था। वो इस मिशन के अनाउंस होते ही पहले दिन से इस फ्यूल और डिस्टेंस के साथ रिटर्न जर्नी के सक्सेसफुल होने को लेकर आश्वस्त नहीं था। पर टीम कैप्टन अमन और बेस कमांडर डॉक्टर राजन पूरी तरह कॉंफिडेंट थे।
श्वेता अमन की तरफ मुड़ी और बोली “बट सर, हमारे पास जो फ्यूल है वो इग्ज़ेक्ट उतना ही है कि हम इसी स्पीड से बढ़ते रहे तो रिटर्न जर्नी में अर्थ ग्राविटेशनल फ़ोर्स के वक़्त हमारे पास स्पीड बैलेंस करने के लिए थ्रस्ट नहीं बचा होगा। ऐसे में दो दिन के लूप से हम अगर थोड़ा फ्यूल बचा सकते हैं तो…”
“श्वेता आई नो यू आर सो मच कंसर्नड लाइक लोकेश, पर तुम बेसिक बात भूल रही हो कि एमके-III की स्पीड और फ्यूल एफिशिएंसी इसके मॉस पर भी डिपेंड करती है। जब हम मून के ऑर्बिटर पर अपना सैटेलाइट लॉन्च कर आयेंगे तो उसका 4 टन वजन भी तो इस स्पेस शिप से अलग होगा न? ये हमारी स्पीड बैलेंस करेगा”
“आपकी बात सही है सर लेकिन चंद्रयान 2 को तो मून ऑर्बिट तक पहुँचने में सात हफ़्ते लगे थे जबकि इस तरह हम चौथे हफ़्ते की शुरुआत में मून पर लैंड भी कर चुके होंगे”
इस बात ने सिद्धार्थ और लोकेश दोनों की निगाहें अमन पर टिका दीं। अमन अपने सूट को अपनी सीट से रिलीज़ करता हुआ बोला “उस वक़्त हमारी टीम ने तीन हफ़्ते से ऊपर सिर्फ अर्थ ऑर्बिट से निकलने में लगा दिए थे। उनके पास उसकी जायज़ वजह थी कि चाँद का लूनर साउथ पोल हमारा मिशन था। हमें तब करीब साढ़े तीन लाख किलोमीटर का फ़ासला तय करना था। फिर नासा ने भी स्टेटमेंट ज़ारी किया था कि इसरो एक हफ्ता पहले तो पहुँच ही सकता था। हमारे थ्रस्ट की स्पीड भी कम थी। लेकिन एमके-III-D2 पिछले एमकेIII-D1 से बेहतर और तेज़ है। इसलिए हम इस बार करीब दो हफ़्ते पहले पहुँच जायेंगे”
“सर लेकिन रिटर्न फ्यूल को लेकर…” लोकेश बहुत धीरे से बोला लेकिन अमन ने झिड़क दिया “ओह स्टॉप इट लोकेश, तुम कब तक एक ही इशू पर परेशान रहोगे? हमारा पहला मिशन वापस लौटना नहीं बल्कि चाँद की सोइल सैंपल लेना और चाँद पर जो डार्क मैटर नज़र आया था उसको स्टडी करना है”
नासा क्या इसरो, सब असमंजस में थे कि ये एक साल पहले ऐसा क्या ब्लैक डॉट चाँद पर आया है जो चाँद पर दाग जैसा लग रहा है। पहली उम्मीद सबको यही लगी कि शायद वर्महोल थ्योरी बिलकुल सही है और ये एक छोटा वर्महोल है। क्योंकि अगर ये ब्लैकहोल होता तो चाँद अबतक इसके ग्रेविटेशनल फ़ोर्स से बच न पाया होता। चाँद क्या, पृथ्वी भी।
वर्ल्ड लेवल पर स्पेस अजेंसीस इसका अध्ययन करने की कोशिश करने लगीं। जब बड़े-से-बड़ा टेलिस्कोप भी इस डार्क मैटर का हल न ढूंढ पाया तो सबने स्पेस शटल भेजने की ठान ली।
‘इसरो’ पहले ही इस मिशन को अंदरखाने अनाउंस कर चुका था। सरकार की तरफ से पूरा सपोर्ट था कि अगर किसी भी नई जानकारी का श्रेय भारत को मिल सकता है तो देर नहीं करनी चाहिए। नतीजतन जीएसएलवी रॉकेट को मॉडिफाई कर इस क़ाबिल बनाया गया कि इसमें मिशन चन्द्रयान-2 से ज़्यादा फ्यूल आ सके और उस मैटर को स्टडी करने के लिए एक छोटी सैटेलाइट डेवेलप की गयी।
इस सारी दौड़-धूप का नतीजा अब इन चार जनों को देना था। इंतेज़ार शुरु हुआ। नाश्ता अमूमन डिस्पोजल पैक्ड प्रॉन खाकर ही होता और लंच में वो लोग पैक्ड चिकन, पीनट बटर और फ्रूट्स से काम चलाते। रात में ब्राउनीज़ और ड्राई फ्रूट उनका सहारा बनते।
“मैं ऊब गया हूँ ये प्रॉन खा-खाके” सिद्धार्थ स्पेसशिप विंडो से बाहर पृथ्वी की तरफ झाँकता हुआ बोला।
“हाहाहा, तो मेरे भाई अब तेरे लिए आलू के पराठे तो यहाँ बना नहीं सकते न?” लोकेश मज़ाक उड़ाने से कहाँ पीछे हटने वाला था।
“आलू के पराठे तो नहीं, पर क्या तुम जानते हो कि स्पेस में एक बार पिज़्ज़ा भी डिलीवर हो चुका है” अमन ने फ्रूट-जूस की बोतल को पुश किया और एक घूट मुँह में भर लिया।
“क्या सच?” सिद्धार्थ हैरान था
“हाँ सिद्धार्थ, 2001 में पिज़्ज़ाहट पहली और इकलौती ऐसी कम्पनी बनी थी जिन्होंने इंटरनेशनल स्पेस स्टेशन में बैठे अंतरिक्ष यात्रिओं को पिज़्ज़ा डिलीवर कर दिया था।
“wow, हम अभी ऑर्डर करें तो क्या चाँद पर पहुँचते-पहुँचते डिलीवर हो जायेगा?” लोकेश ने आँख दबाई तो अमन की हँसी छूट गयी।
अब वो पृथ्वी के पार्किंग ऑर्बिट से बाहर निकल चुके थे। अब सामने चाँद था जो उनकी तरफ बढ़ रहा था और उनका स्पेसशिप चाँद की तरफ।
आख़िर वो दिन आया जब उनको चाँद पर उतरना था। चाँद के ऑर्बिटर पर चक्कर काटते उन्हें दो दिन हो चुके थे। अमन की गणित सही थी, वो पूरे अट्ठाइसवें दिन चाँद के सिर के ऊपर थे।
वो काला बिंदु अब उन्हें थोड़ा बड़ा नज़र आने लगा था।
श्वेता सैटेलाइट स्पेशलिस्ट थी, वो अपने काम में लग गयी और सैटेलाइट स्पेसशिप से डिटैच होकर चाँद की ग्रेविटेशनल फ़ोर्स में एंटर कर गयी।
“Yesssss” चारों एक साथ बोले। आपस में गले मिले। जो छोटा काम था वो हो चुका था। अब मुसीबत थी धीमी गति से चाँद पर उतरने की।
यहाँ अमन ने पूरी तरह शिप अपने कण्ट्रोल में कर लिया। वो बेस से द्वारा ऑडियो और विडियो दोनों रूप से जुड़े हुए थे। लेकिन उनकी आवाज़ बेस पर पहुँचने में थोड़ा समय लग रहा था।
“मैं थ्रस्टर्स ऑन करके लैंडिंग अटेम्प्ट कर रहा हूँ। लोकेश प्लीज़ बी ऑन योर पोजीशन एंड कीप अपडेटिंग मी अबाउट रेमैनिंग फ्यूल”
“आई एम ऑन इट सर”
“श्वेता तुम हमें अभी डिटैच हुई सैटेलाइट से जो इमेजेस मिल रहीं हैं उनकी अपडेट्स देती जाओ ताकि मून सर्फेस कैसा है इसकी जानकारी मुझे मिलती रहे”
“राईट अवे सर” श्वेता मुस्तैदी से अपनी स्क्रीन में उलझ गयी।
सिद्धार्थ का काम लैंडिंग के बाद सोइल सैंपल लेना और उन्हें बिना समय गंवायें वहीं चेक करना था। साथ ही उस डार्क मैटर से उलझना भी उसे के हिस्से आया था।
स्पेसशिप की सीट्स से चारों अटैच हो गये। ग्रेविटी बढ़ने लगी। शिप आउट ऑफ़ कण्ट्रोल होने लगा।
“सर-सर-सर, शिप बहुत तेज़ी से नीचे जा रहा है। साथ ही फ्यूल भी दोगुनी रफ़्तार से बर्न हो रहा है” लोकेश घबराने लगा।
“सर इमेजेस क्लियर नहीं हैं बट वी कैन नॉट एक्स्पेक्ट दी सॉफ्ट लेंडिंग” श्वेता ने चेताया
“आई नो स्पीड बहुत ज़्यादा है, मैं इंजिन ऑफ कर चुका हूँ पर ग्रेविटेशनल फ़ोर्स की वजह से स्पीड कम होने की बजाए बढ़ रही है। वी आर फालिंग टू क्विक्ली”
“सर प्लीज़ मूव दिस शिप लिटिल बिट ईस्ट” सिद्धार्थ जो अबतक चुपचाप स्क्रीन में घुसा हुआ था पहली बार बोला “सर हम जहाँ गिर रहे हैं वहां सर्फेस स्मूद नहीं है पर फोर्टी टू डिग्री ईस्ट में देखिए सर्फेस यहाँ के मुकाबले थोड़ा दूर है, हो सकता है ये चाँद पर बना कोई पहाड़ हो”
“ही इज़ राईट अमन सर, टर्न ईस्ट”
“ओके आई एम टेकिंग योर सजेशन सिद्धार्थ, पर ये पहाड़ नहीं है, जहाँ तुम लैंड करने के लिए कह रहे वो एक गड्ढा है। बहुत बड़ा गड्ढा। बट यस, हमें थोड़ा और समय मिल जायेगा स्पीड कम करने का”
“लेकिन सर हम साथ ही डार्क मैटर की लोकेशन से दूर भी हो जायेगे” लोकेश ने संशय ज़ाहिर किया।
“लोकेश इस वक़्त ज़िन्दा बचके उतरना इम्पोर्टेन्ट है, व्हाट इज़ दी फ्यूल स्टेटस?”
“52%, वी आर अबाउट टू टचिंग द लिमिट सर इन फाइव…फोर…थ्री…टू….”
“एनफ” अमन चिल्लाया तो लोकेश सहम गया।
शिप तिरछा होता हुआ तेज़ी से गड्ढे की तरफ बढ़ने लगा। अमन ने उसी वक़्त थ्रस्टर्स ऑन किये। स्पीड बहुत तेज़ी से कम होने लगी।
श्वेता ने सैटेलाइट इमेजेस देख मुँह खोल लिया। “अमन सर, सी दिस”
“अमन तबतक सर्फेस से कुल सौ मीटर की दूरी पर आ चुका था और शिप अब स्थिर था। उसने सैटेलाइट इमेज पर निगाह डाली – डार्क मैटर के अन्दर कुछ नीला-काला द्रव जैसा दिख रहा था। अमन को अपनी आँखों पर भरोसा न हुआ।
“सॉफ्ट लैंडिंग स्टार्ट इन टेन सेकंड्स” लोकेश की आवाज़ ने श्वेता और अमन का ध्यान खींचा। अगले बीस मिनट बाद उनका शिप कुल दस मीटर की ऊंचाई पर था।
“वाच आउट” सिद्धार्थ चीखा
शिप सर्फेस छूने की बजाए किसी चीज़ से टकराया और फिर उतरा।
“ओह हेल, फ्यूल रिड्यूस होता जा रहा है, 49%” लोकेश की आँखें बड़ी होती गयीं।
“इम्पॉसिबल” अमन और श्वेता एक साथ बोले। फिर अमन ने बात आगे बढ़ाई “थ्रस्टर्स ऑफ हैं। फ्यूल कैसे रिड्यूस हो सकता है?”
“बैडलकली हमारे शिप से कुछ टकराया है” लोकेश गर्दन हिलाता हुआ बोला।
“इसे रोकने का कोई तरीका है तुम्हारे पास?” अमन ने सीधा सवाल किया।
“यहाँ बैठे तो नहीं है, हमें बाहर निकलना होगा” लोकेश इनता बोलते ही बेल्ट्स लूज़ करने लगा।
अमन कुछ देर देखता रहा, उसे लगा कि उसके कहे बगैर किसी को उठना नहीं चाहिए था पर मन ही मन बोला ‘कोई बात नहीं’। फिर वो खुद भी उठा और घोषणा की “हम दो लोग ‘मैं और सिद्धार्थ’ सोइल सैंपल लेंगे और आगे डार्क मैटर की तरफ बढ़ेंगे। तुम दोनों शिप मेंटेनेंस में लग जाओ”
चारों बाहर निकले। सिद्धार्थ समेत सबकी आँखें हैरानी से डबल हो गयीं। उन्हें अपने ठीक सामने ‘नीली गोल’ पृथ्वी दिखाई दे रही थी।
अमन बेस कमांड को भी मेसेज अपडेट करता जा रहा था।
लोकेश कुछ पल को सन्न रह गया फिर वो तुरंत अपने शिप के बैकसाइड की तरफ बढ़ा। दो ही मिनट बाद उसकी आवाज़ आई “अमन सर, आई थिंक यू शैल कम हियर एंड सी दिस”
सब वायरलेस से जुड़े हुए थे। अमन, श्वेता और सिद्धार्थ तीनों बैकसाइड पहुँचे। पहले वो समझ न पाये कि बात क्या हुई है फिर लोकेश ने डिटेल्स दीं।
“सर आप जहाँ खड़े हैं वहां से आपको सिर्फ शिप और बगल की पहाड़नुमा चोटी ही दिखाई देगी लेकिन यहाँ करीब से देखिए….” लोकेश अपनी पोजीशन पर अमन को बुलाकर लाया “….तो ये छः इंच मोटा और करीब बीस फीट ऊँचा नेचुरल पिलर टाइप पत्थर दिखाई देगा। ये बैकग्राउंड की पहाड़ियों से इतना डिट्टो मिलता है कि दिखाई ही नहीं दिया। खैर, इसी से टकराकर शिप का फ्यूल टैंक डैमेज हो गया है” लोकेश ने ये बात अमन को घूरते हुए कही।
“तुम्हारा डर सही साबित हुआ फिर तो लोकेश, या यूँ कहूँ कि तुम्हारी ‘हाय’ लग गयी हमारी रिटर्न जर्नी को” अमन ने ये बात बहुत सी सहज रूप से कही लेकिन लोकेश फट पड़ा “अमन सर मैंने आपको और बेस कमांडर सर को डेढ़-सौ बार बताया था कि एक्स्ट्रा फ्यूल रखें, एक दम नपा तुला फ्यूल हमारे लिए रिस्की होगा पर आप माने नहीं”
“लोकेश बच्चों जैसी बातें न करो, हमारे पास इतना ही वेट ले जा सकने की गुंजाईश थी”
“गुंजाईश बढ़ाई जा सकती थी सर, इतना एक्स्ट्रा फ़ूड एंड मिनरल्स अवॉयड किया जा सकता था। एक एस्ट्रोनॉट कम किया जा सकता था। सैटेलाइट का वजन घटाया जा सकता था क्योंकि अगर खाना ख़त्म हो गया और हम एक हफ्ता देर से भी पहुँच गये तो हम मरेंगे नहीं लेकिन हमारा फ्यूल ख़त्म हो गया तो हम यहाँ चाँद पर फंस ग्येतो परिवार नहीं बसा सकते सर” लोकेश गुस्से में हांफने लगा।
“एनफ ऑफ दिस लोकेश” श्वेता ने टोका। “बेहतर होगा कि तुम डैमेज को लॉक करने की कोशिश करो, ऐसे आर्ग्युमेंट में समय और फ्यूल दोनों वेस्ट हो रहे हैं”
श्वेता के कहने का लोकेश पर तुरंत असर हुआ। वो झटपट अपने काम में लग गया।
सिद्धार्थ इस बहस से दूर सैंपल लेने पहुँच चुका था। उसकी निगाह सामने पृथ्वी पर गयी। आज चाँद पृथ्वी के सबसे पास है। आज भारत में पूर्णिमा भी है। उसकी माँ पूर्णिमा के दिन व्रत रखती है। क्या पता माँ अपना चेहरा चाँद की ओर किये अपने चाँद को ढूंढ रही हो” उसकी आँखें भर आयीं। उसने सोइल सैंपल लेने के लिए थोड़ा ड्रिल किया। तब तक अमन भी वहां आ गया।
सिद्धार्थ सारी आपसी बहस कॉमन रेडियो वायरलेस की वजह से सुन ही चुका था। उसने सैंपल लिए और अमन की तरफ मुड़ा। अमन ने इशारे से पूछा कि क्या लिया?
“सर्फेस बहुत हार्ड है इसलिए थोड़ी डिगिंग के बाद सैंपल लिया है, मुझे स्पेसशिप जाना होगा इसकी जांच करने के लिए”
“चलो मैं साथ चलता हूँ, उसके बाद ‘रूवर’ लेकर हम दोनों उस पहाड़ी तक चलेंगे जहाँ वो ब्लैकस्पॉट दिखा था”
“क्या हम दोनों उस बैटरी ऑपरेटेड रूवर पर सवार हो सकेंगे? वो चल भी पायेगा?”
अमन कुछ पल तक सिद्धार्थ को देख मुस्कुराता रहा फिर धीरे से बोला “सिद्धार्थ, रूवर बैटरी ऑपरेटेड ज़रूर है पर वो सोलर एनर्जी जनरेटेड है। जैसा कि अभी हम देख ही रहे हैं सोलर यहाँ अर्थ के मुक़ाबले ज़्यादा तीखा और पॉवरफुल है”
“आपने सही कहा सर, फिर यहाँ ग्रेविटी भी अर्थ की तुलना में सिर्फ 17 परसेंट है”
“एग्ज़ेक्ट 16.7% सिद्धार्थ” वायरलेस पर उन दोनों को श्वेता की आवाज़ टकराई।
“यहाँ तो सौ किलो का आदमी सत्रह किलो का रह जायेगा” सिद्धार्थ बड़बड़ाकर लौटने लगा।
अमन ने टोका “ये सोचो सत्रह किलो का आदमी आ गया तो क्या बचेगा?”
चाँद पर चलना थोड़ा मुश्किल था। हालाँकि उन चारों मिशन से पहले एक महीना ट्रेनिंग की थी पर यूनिट टेस्ट और बोर्ड एग्जाम में कुछ तो फर्क होना ही था। कदम भर चलने की बजाए छलांग लग रही थी। एक तंदरुस्त आदमी जहाँ एक घंटे में 5 किलोमीटर मुश्किल से चल सकता हैं वहीं चाँद पर वो आसानी से तीस किलोमीटर से ज़्यादा पार कर जायेगा। लेकिन यहाँ दौड़ना मुमकिन नहीं था। हद से ज़्यादा ऊंची छलांग वापस ज़मीन पर लाने में लंबा समय लगा सकती थी।
स्पेसशिप पर वापस पहुँचकर अमन बेस कमांड को रिपोर्ट करने में लग गया। सिद्धार्थ सोइल सैंपल को एनेलाईज़ करने में लग गया। श्वेता और लोकेश शिप की लीकेज वेल्ड करने में लगे थे कि श्वेता को कुछ सूझा और तुरंत स्पेसशिप के अन्दर गयी।
उसका शक सही था। उसकी चार मीटर चौड़ी सोलर ऑपरेटेड सैटेलाइट एक लोकेशन पर बहुत स्लो मूव कर रही थी। ये बहुत हैरानी की बात थी कि डेढ़ किलोमीटर प्रति सेकंड की स्पीड से रोटेट करती सैटेलाइट क्यों एक ही जगह पर रुक गयी है।
“अमन सर, हमें सारे काम छोड़कर पहले उस डार्क मैटर को स्टडी करना होगा। वो आख़िर है क्या। देखिए सैटेलाइट भी उसी एक पोजीशन पर बहुत स्लो होकर निकल रही है”
“ह्म्म्म” अमन के लिए मुश्किलें बढ़ती जा रही थीं। फ्यूल का सिमित होना। फिर शिप का डैमेज होना और अब सैटेलाइट का पर्टिकुलर पॉइंट पर स्लो होना।
“बेस कमांड से मुझे मेसेज मिला है कि हम लोगों कि आवाज़ और यहाँ की पिक्चर्स उनतक नहीं पहुँच पा रही हैं। सिर्फ शिप से किया कम्युनिकेशन ही काम कर रहा है”
“सर मुझे लगता है कि सारी मुसीबत की जड़ ये डार्क मैटर, ये ब्लैक डॉट ये कीचड़ जैसा दिखने वाला आइटम ही है। आपको सिद्धार्थ के साथ जाकर पहले इसी को स्टडी करना चाहिए”
“अगर हम निर्धारित लोकेशन पर उतरे होते तो हमें इतनी बहस करने की ज़रुरत ही न करनी पड़ती” लोकेश ने ताना जड़ा। वो ये जताना भी चाह रहा था कि वो सब सुन रहा है।
“लोकेश फॉर गॉड सेक प्लीज़ डोंट टॉक नेगेटिव” अमन धर्य रखता बोला “ख़ुशी मनाओ कि हमने लोकेशन बदली और हम ज़िन्दा हैं, वर्ना उस स्पीड से अगर हम टकराते तो हमारी हड्डियाँ न मिलतीं”
“सॉरी अमन सर, पर जबसे ये मिशन स्टार्ट हुआ है मुझे कुछ भी पॉजिटिव नज़र नहीं आ रहा। आप ही बताइए यहाँ क्या पॉजिटिव है, हर तरफ काला ही नज़र आ रहा है। जिधर रौशनी है उधर इतनी तेज़ है कि देखते नहीं बन रहा है, बताइए आप ही क्या पॉजिटिव है यहाँ?”
“ये रौशनी ही पॉजिटिव है लोकेश” अमन ने तुरंत जवाब दिया “शुक्र मनाओ कि यहाँ रात बारह घंटे में नहीं होती। यहाँ का दिन ढलने में भी अभी 14 दिन लगेंगे और पूरी तरह अँधेरा होने में 28 दिन” ये तार्किक बात थी। चाँद का एक दिन और चाँद का एक साल एक समान थे।
“सॉरी सर” लोकेश कोई दस सेकंड बाद बोला
“इट्स ओके लोकेश, तुम शिप का स्टेटस बताओ”
“लीकेज सील्ड हो गयी है सर, शिप दुबारा उड़ने के लिए तैयार है लेकिन…”
“लेकिन?” अमन ने भी उसी अंदाज़ में पूछा
“….लेकिन फ्यूल वापस अर्थ तक पहुँचने लायक नहीं बचा है” जवाब श्वेता ने दिया।
“अभी 28% बचा है सर” लोकेश ने आंकड़े पूरे किये।
“इतना कैसे बर्बाद हो गया?” अमन हैरान हो गया
“सर पॉजिटिव ये है कि इतना तो बच गया” लोकेशन उसी टोन में बोला जिसमें अमन ने उसको पॉजिटिव होना सिखाया था।
“कोई नहीं, मैंने कुछ सोचा है उसके लिए भी, पहले हमें डार्क मैटर को स्टडी करना होगा। यहाँ से उस पहाड़ी का डिस्टेंस करीब चार सौ किलोमीटर है, रूवर रेडी करना में श्वेता मुझे तुम्हारी मदद चाहिए”
“राईट अवे सर”
कोई आधे घंटे बाद सिद्धार्थ और अमन एक चार पहिए की मोटरसाइकिल नुमा गाड़ी पर सवार थे। रफ़्तार 80 किलोमीटर से ऊपर करने पर रूवर डिसबैलेंस हो रहा था। कई जगह उनकी उछाल छः-छः मीटर तक ऊंची हुई, सिद्धार्थ के तो प्राण कांप गये लेकिन नीचे आते वक़्त वो गिरने की बजाए स्लो मोशन में उतर रहे थे। सिद्धार्थ को ऐसा महसूस हो रहा था मानों वो तैर रहा हो।
“सर एक बात पूछूँ?” सिद्धार्थ से रहा न गया।
“ज़रूर पूछो”
“यहाँ से पृथ्वी को देखकर आपके मन में पहला ख्याल क्या आता है?”
अमन बिना सोचे बोला “भीड़”
“हाहाहा, फिर तो आपको यहाँ बहुत सुकून मिल रहा होगा न?”
“नहीं सिद्धार्थ, मिशन पूरा करने से पहले मुझे कोई सुकून महसूस नहीं हो सकता। ये ग्रे ज़मीन मुझे कहीं से भी फैसीनेट नहीं करती, हाँ, देश के हित में किसी भी काम की ख़ातिर मैं चाँद क्या सूरज तक भी जाने में हिचकिचाऊंगा नहीं”
“वाह सर” सिद्धार्थ इससे ज़्यादा कुछ न कह पाया।
“अब तुम बताओ”
“क्या सर” अचानक हुए सवाल से सिद्धार्थ चौंक उठा
“अरे तुमने मुझसे पूछा इसलिए था ताकि तुम अपना नज़रिया बता सको। तो बताओ भई तुम्हें अर्थ को देख क्या याद आया है?”
“माँ” सिद्धार्थ की नज़र फिर आधे चाँद-सी दिखती पृथ्वी पर पड़ी। “मेरी माँ हर रात चाँद को देखती है, पूर्णिमा की रात तो ज़रूर ही, वो ज़रूर इंतेज़ार कर रहीं होंगी” कहते-कहते सिद्धार्थ का गला रुंध गया।
अमन चुप हो गया। अगले आधे घंटे तक दोनों में कोई बात न हुई। फिर धीरे से अमन बोला “मिशन कामयाब होगा सिद्धार्थ, हम ज़रूर वापस जायेंगे”
आख़िर वो डार्क मैटर तक पहुँचे।
“श्वेता, सैटेलाइट की पोजीशन क्या है? श्वेता कम इन”
“सर उस डा-र्क मैटर——- को——–फिर-क्रॉस—किये एक घंटा——– चालीस मि–नट हो—- चुके हैं। कुछ—— ही देर में—– वहां— से गुज़र–ने वाली— हो-गी” श्वेता की ब्रेक होती आवाज़ आई।
“यहाँ तो सिग्नल भी ब्रेक हो रहे हैं” अमन हैरान हुआ।
“ये अजीब नहीं है सर कि जो सिग्नल्स तीन लाख किलोमीटर दूर बैठे हमारे बेस तक पहुँचने चाहिए थे वो 380 किलोमीटर भी क्लियर नहीं पहुँच पा रहे हैं?”
“हैरानी तो है, श्वेता की मानूं तो इसमें भी इस—— इस—-“ अमन की समझ न आया कि उसे क्या नाम दे “कीचड़ का हाथ है” आख़िर वो बोला।
“डार्क मैटर से मेरा पहला अंदाज़ा ब्लैकहोल का था” अमन जैसे खुद से बोला
“पर वो हो नहीं सकता था—-“ सिद्धार्थ बोलने को ही था कि अमन ने बात काटी “—– क्योंकि ब्लैकहोल की ग्रेविटेशनल फ़ोर्स इस चाँद और हमारी पृथ्वी, दोनों को निगल जाती। मुझे मालूम है”
“अच्छा सर आपको नहीं लगा कि कहीं ये वर्म होल तो नहीं? एक पैसेज यहाँ से वहां का? फोल्डेड स्पेस?” सिद्धार्थ ऐसे राज़दाराना तरीके से बोला कि अमन की हँसी छूट गयी।
“वो सिर्फ थ्योरी तक ही सीमित है सिद्धार्थ, उसके कहीं कोई प्रमाण न मिले अब तक”
वो दोनों रूवर से उतरकर पहाड़ी कूद-कूदकर पार करने लगे।
“सर कोई प्रमाण नहीं मिला इसीलिए तो एक उम्मीद थी। पर ये काला-सा डार्क मैटर कहीं हमारे मिशन पर कालिख न पोत दे”
“स्टॉप प्रेटेंडिंग सिद्धार्थ, एंड स्टार्ट टेस्टिंग” दोनों बड़े से कीचड़ नुमा दलदल के सामने थे। ये कुछ नहीं तो पचास मीटर व्यास तक फैला हुआ था। तभी अमन की नज़र ऊपर गयी तो उसे सैटेलाइट आती दिखी।
वो दोनों भौचक्के रह गये जब उन्होंने अपनी आँखों से देखा कि सैटेलाइट स्लो होती हुई, अटकती हुई आगे बढ़ी और धीरे-धीरे फिर अपनी रफ़्तार पकड़ने लगी। ये सारा प्रकरण डेढ़ मिनट से भी कम समय में हुआ।
“सर हमारी सैटेलाइट कितनी उचाई पर थी?”
“90 किलोमीटर से ज़रा ज़्यादा, क्यों?”
“सर नब्बे किलोमीटर ऊचाई पर भी यहाँ कितना साफ़ दिख रहा है, इस बात से हैरान हो रहा था मैं”
“उसकी वजह सोलर का हमारे लेफ्ट थर्टीफाइव डिग्री पर होना भी कारण है सिद्धार्थ, फिर यहाँ वातावरण तो है नहीं, विजिबिलिटी बाधित आख़िर होगी तो कैसे होगी?”
“सर” सैंपल उठाता सिद्धार्थ एक दम चीखा “सर, ये लिक्विड मैटर है, इसमें शायद फेर्रोमेंग्नेटिक पार्टिकल्स भी हैं। यही शायद 90 किलोमीटर ऊँची सैटेलाइट को इंटरैप्ट कर रहे हैं”
“लेकिन अगर ऐसा है सिद्धार्थ, तो हमारे रूवर के साथ ये दिक्कत क्यों न आई? हम तो करीब पांच सौ मीटर तक पास ले आये थे”
“वो इसलिए सर क्योंकि मेग्नटिक फील्ड पर्टिकुलर डायरेक्शन में ही रिवर्स फ़ोर्स करती है। यहाँ ये डायरेक्शन ऊपर की तरफ है। शायद ये भी एक वजह थी कि हमारा शिप बहुत तेज़ी से नीचे उतरते हुए आउट ऑफ़ कण्ट्रोल हो गया था”
“पर ये यहाँ आया कैसे?” अमन की हैरानी कम होने का नाम न ले रही थी।
“आने से पहले ये जानिये सर कि ये बढ़ता जा रहा है। मेरा अनुमान है कि ये पिछले 28 दिनों में ही 25 से पचास मीटर तक फ़ैल चुका है, क्योंकि टेलेस्कोपिक इमेज के हिसाब से ये बहुत ज़्यादा फैला हुआ है”
“इस—-का, —-इसका सीधा—- मतलब—- है सर—“ लोकेश की टूटी फूटी आवाज़ उनके कानों में पड़ी “सर—-इसका मतलब है कि—“
“इसका मतलब है कि ये कभी एक छोटा सा बिंदु भर था” अमन ने उसकी बात पूरी की।
“और अगर ये एक बिंदु जितना छोटा था तो ये ज़मीन के अन्दर से निकला हुआ होगा” सिद्धार्थ अतिउत्साही होकर बोला।
“अगर—-ये—ज़मी—न—–से—निकला—–है—-तो—–एक—चांस—है—कि—इसमें—-बहुत—खनिज—हों” लोकेश की फिर टूटी फूटी आवाज़ ने उन दोनों में एक नई ऊर्जा भर दी।
मिशन पूरी तरह फेल नहीं हुआ था। बस ये जानकारी बेस केम्प तक पहुंचनी बहुत ज़रूरी थी। लेकिन इस अहतियात के साथ पहुंचनी ज़रूरी थी कि और भारत के अलावा और किसी के रेडियो पर इसकी भनक न लगे। अमन को अचानक स्पेसशिप पर पहुंचना बहुत ज़रूरी लगने लगा।
“श्वेता, आप समझ रहे हो उन्हें क्या मिला है?” लोकेश स्पेसशिप के पास टहलता हुआ बोला।
“हाँ, अभी सुना टूटा-फूटा कुछ सुना कि उस लिक्विड-नुमा मैटर में कुछ फेर्रोमैग्नेटिक पार्टिकल्स हैं”
“वो तो हैं ही लकिन मुझे तो इसमें दुनिया की सबसे कीमती चीज़ नज़र आ रही है?”
“वो क्या लोकेश?”
“लोकेश मुस्कुराने लगा
“सस्पेंस क्यों फैला रहे हो, बोलो एक बार में”
“फ्यूल मैडम फ्यूल” लोकेश मानों ख़ुशी से झूम उठा। “जैसा डिस्क्राइब वो कर रहे हैं, इस हिसाब से पूरी उम्मीद है कि उसमें कोई एनर्जी सोर्स फ्यूल मिल जाये”
श्वेता को ये बात शेख चिल्ली का सपना सी लगी। आख़िर चाँद की धरती पर फ्यूल कहाँ से आ जायेगा? उसने बात बदली “लोकेश मुझे लगता है तुम्हें अपना मील अब खा लेना चाहिए, दिन भर में 3200 कैलोरीज़ तुम्हें पूरी करनी ज़रूरी हैं”
लोकेश इस जवाब से समझ गया कि श्वेता को उसकी बात पर भरोसा नहीं हुआ। वो वापस शिप में घुसकर अपनी कैलोरीज पूरी करने में लग गया।
कोई पांच घंटे बाद वो दोनों वापस शिप पर आये। दोनों आते ही अपनी खुराक पूरी करने लगे। इसके तुरंत बाद ही सिद्धार्थ लाये हुए लिक्विड मैटर को स्टडी करने में लग गया। उसके साथ ही लोकेश भी वहीं टिक गया। उस वक़्त वो चारों ही शिप के अन्दर थे।
“यूरेका” सिद्धार्थ चिल्लाया
“क्या मिल गया अब?” अमन शान्ति से बोला
“इस मैटर को अगर हम अपनी – अर्थ में, श्रीहरिकोटा में रिफाइन करें तो 22% तक अनसिमेंट्रिकल डाईमेंथिलहाइड्रेज़ाइन केमिकल निकाल सकते हैं जिसे आप यूडीएमएच भी कह सकते हो”
लोकेश ने एक विजेता सी मुस्कान श्वेता की तरफ बिखेरी। फिर बिना श्वेता की तरफ से निगाह फेरे बोला “सिद्धार्थ कहीं तुम्हारा मतलब उस यूडीएमएच से तो नहीं जो सेकंड स्टेज इंजिन L110 में इस्तेमाल होता है” लोकेश के चेहरे पर मुस्कान थी।
श्वेता मुस्कुरा के बोली “माई डिअर, उस यूडीएमएच के साथ नाइट्रोजन टेट्रोक्साइड भी पड़ता है। पर तुम्हारी बात सही निकली कि इस कीचड़ से दिखने वाले मैटर में ईधन भी है” श्वेता थोड़ा रूककर बोली “पर सिद्धार्थ, यूडीएमएच तो कलरलेस होता है और ये बिलकुल ब्लैक है, फिर भी…”
“मैम इसीलिए तो रिफाइन करना बहुत मुश्किल होगा, फिर मैं अभी श्योरिटी के साथ नहीं कह सकता कि इसमें क्या-क्या मौजूद है पर इतना यकीन जानिए कि ये एक ऐसा खज़ाना साबित हो सकता है जो हमारे देश को पचास साल आगे कर देगा दुनिया से”
“रेडियो सिग्नल्स अर्थ तक नहीं पहुँच पा रहे हैं, उनकी आवाज़ मुझे आ रही है पर वो मेरी रिपोर्ट नहीं ले पा रहे हैं। लोकेश” अमन कमांडिंग फॉर्म में बोला
“यस सर” लोकेश में नया जोश आ चुका था।
“मुझे पांच मिनट के अन्दर शिप की ओक्सिजन से लेकर खाने में कितने प्रॉन्स बचे हैं इसकी रिपोर्ट दो, फ़ौरन”
“राईट अवे सर” लोकेश अपने काम में लग गया। सिद्धार्थ और श्वेता की आँखें आपस में मिलीं, किसी को कुछ समझ नहीं आ रहा था कि अमन के मन में क्या चल रहा है।
“28% फ्यूल रेमैनिंग सर, ओक्सीजन 71%, बैटरीबैक अप अवेलेबल फॉर नेक्स्ट 725 आवर्स सर, ब्रेकफास्ट फ़ूड इस आल्सो रेमैनिंग फॉर नेक्स्ट 30 डेज़। डिनर एंड लंच विल बी लास्ट फॉर नेक्स्ट 28 डेज़। बेवेरेजेस माईट बी अन इशु सर”
“क्यों पानी और जूस हम प्रॉपर काउंट में नहीं लाये थे क्या?” अमन अचम्भे में पड़ गया।
“नहीं सर, सब कुछ केलकुलेटिव था, बट सिद्धार्थ ने ब्रेकफास्ट में अक्सर जूस पीकर ही काम चलाया है”
सिद्धात हंस दिया।
अमन ने कोई रिएक्शन न दिया “तो तुम्हारा कहना ये है कि फ्यूल छोड़कर सब कुछ अगले लूनर क्लोज़र तक अवेलेबल रहेगा न यहाँ?”
“टेक्निकली यस सर”
“आल राईट, लूनर के ग्रेविटेशनल फ़ोर्स ने निकलने में कितना फ्यूल लग जायेगा लोकेश?”
“ऑलमोस्ट आधा, लेकिन सर इशू यहाँ से बाहर निकलना नहीं है, इशू ह अर्थ के ग्रेविटेशनल फ़ोर्स में घुसते वक़्त स्पीड बैलेंस करना क्योंकि आपने देखा ही ये शिप आलरेडी डैमेज है, अगर थ्रस्ट फ्यूल न हुआ तो हम इतनी तेज़ी से ज़मीन से टकरायेंगे कि शिप तिनकों में बंटा मिलेगा”
सिद्धार्थ के साफ़ झुरझुरी होती देखी सबने
लोकेश आगे बोला “दूसरा इशू है कि पृथ्वी के वातावरण में मिलते ही जहाँ वेल्ड हुआ है वहाँ से एयर आ जाये और टैंक ब्लास्ट होते ही पूरा शिप ब्लास्ट हो जाए”
अब लोकेश चुप हुआ तो सबने सिद्धार्थ की तरफ देखा, उसने कंधे उचकाये
लोकेश ने बात आगे बढ़ाई “तीसरा और सबसे अहम इशू है, कि हम अर्थ तक पहुँच जाएं, क्योंकि इतने फ्यूल में हम हाफ वे भी क्रॉस नहीं कर पाए और चाँद की ही तरह पृथ्वी से लॉक हो जाने के बाद सालों तक घूमते रहे”
“और भी कुछ होगा डराने लायक तो अभी बता दो?” सिद्धार्थ खिसिया गया
अमन उसको इग्नोर करता बोला “सिद्धार्थ इस लिक्विड का कुछ बन बिगड़ नहीं सकता कि टेम्पररी फ्यूल की तरह काम आ जाये?”
“सर इसको रिफाइन करना बहुत-बहुत लम्बा प्रोसीज़र होगा, ऐसे अगर इसकी एक ड्राप भी टैंक में पड़ गयी तो कोई बड़ी बात नहीं शिप स्टार्ट ही न हो या स्टार्ट के साथ ही ब्लास्ट हो जाए”
“ओह नो, तो अभी तुम्हारा कितना काम रह गया है?”
“सर कुछ घंटे के रेस्ट के बाद मैं उस लिक्विड के सोर्स का पता लगाने के लिए निकल जाऊंगा। बल्कि ये बेहतर रहेगा कि हम वहीं पर एक कैंप लगा लें क्योंकि 40 से 60 घंटे तक लग सकते हैं पूरी स्टडी में”
“और अभी जो सैंपल लाये थे इसकी रिपोर्ट?”
“सर मैं बेस से कनेक्ट करने की कोशिश कर रहा हूँ मगर डेटा शेयर नहीं हो पा रहा। हालाँकि उनकी आवाज़ आ रही है”
“यही तो इशू है, आल राईट, अब तुम सब ध्यान से सुनों कि करना क्या है”
तीनों अमन की तरफ देखने लगे
“आज से चाँद और पृथ्वी का डिस्टेंस फिर बढ़ने लग जायेगा। इसलिए बिना कोई मेजर टाइम वेस्ट किये अभी लौटना होगा”
“बट सर?….” सिद्धार्थ कुछ बोला ही था कि अमन ने इशारे से रोका “लेट मी फिनिश सिद्धार्थ, मैं जानता हूँ अभी तुम्हारा काम बाकी है जो सबसे ज़रूरी है, पर लोकेश की बात भी ठीक है कि जितने दिन हम लेट करेंगे उतना ही वापस पहुँचने के चांसेस कम होते जायेंगे”
“बट सर आपने ही तो कहा कि मिशन पहले है लौटना….”
“बिलकुल, मैंने यही कहा और इस मिशन में सैटेलाइट से बेस तक सिग्नल और डेटा पहुँचना भी उतना ही ज़रूरी है। रोसकॉसमॉस (रूसी स्पेस एजेंसी) और नासा की नज़र भी हमारे मिशन हमारे डेटा पर है। इसलिए मैं चाहता हूँ जल्द-से-जल्द ये डेटा हेड क्वाटर पहुँचें”
सिद्धार्थ चुप रहा
“रही बात यहाँ की स्टडी की, तो वो मैं करूंगा और तुम तीनों वापस जाओगे”
तीनों एक साथ बोले “बट सर”
“इम्पॉसिबल सर”
“आप लीडर हैं सर, आपके बिना हम लौट ही नहीं सकते”
अमन ने तीनों का चेहरा देखा और धीरे से बोला “लीडर हूँ इसलिए ये फैसला लिया है। मेरे बाद टीम को लीड…..” अमन तींनों की तरफ देखने लगा। लोकेश और सिद्धार्थ ने श्वेता की तरफ देखा
“……लोकेश करेगा”
लोकेश चौका!
“अब कोई सवाल तुम लोग नहीं पूछोगे, मैं या तो खुद बताऊंगा या तुमसे जवाब लूँगा। अब सबसे पहला काम हम ये करेंगे कि एयर-लीक-प्रूफ टेंट हम उसी लोकेशन के आस-पास लगायेंगे जहाँ डार्क मैटर है। उसके बाद सिद्धार्थ तुम्हारी लैब को शिप से डिटैच करना है और उसी टेंट हाउस में लगाना है”
सब मंत्रमुग्ध अमन को सुन रहे थे
“उसके बाद जो भी एक्स्ट्रा ओक्सिजन है इस शिप में, उसको टेंट हाउस में रखना है। अपने स्पेससूट में मैं डेली रिफिल कर लूँगा। टेंट हाउस थ्री दिफेरेंट लेयर्स में होगा। वहीं लैब होगी और मैं उसी में रहूँगा। उसी में डेटा इकठ्ठा करके बेस तक भेजने की कोशिश करूंगा”
“लेकिन सर बेस पर सिग्नल तो जा ही नहीं रहे” लोकेश पूछे बिना रह न पाया
“लोकेश बेस पर फोटोज और विडियोज नहीं जा रही है, बाइनरी कोड और मोर्स कोड ज़रा देर ही सही लेकिन बेस पर ज़रूर पहुंचेंगे। फिर मेरे पास तुम लोगों से जुड़ा वायरलेस है, टूटा फूटा ही सही, कुछ तो काम बनेगा”
“लेकिन सर आप कबतक ऐसे ओक्सिजन पीकर काम चलाएंगे?” लोकेश एक टक अमन को देख रहा था।
“जब तक ख़त्म नहीं होगी, क्या बता उससे पहले ही तुम लोग यहाँ आ जाओ। देखो लोकेश, एक आदमी कम करने वाली तुम्हारी बात मुझे तार्किक लगी थी। मेरे साथ मेरा सामान मिलाकर करीब 2 क्विंटल वजन में फर्क पड़ेगा”
“सर बाल कांटने से भला मुर्दे हल्के हुए हैं?”
“हाथ काटने से तो हुए हैं न? मैं लैब भी यहीं रखवा रहा हूँ। इससे करीब डेढ़ टन का फर्क पड़ेगा। फिर ओक्सिजन सिलेंडर्स…”
“मैं….मैं समझ रहा हूँ सर” लोकेश मरी आवाज़ में बोला
“तो चलो जल्दी सब लोग, शिप को तीन सौ अस्सी किलोमीटर वेस्ट ले जाना है” अमन के बोलते ही सब अपनी अपनी पोजीशन में आने लगे।
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इसरो में नेटवर्क कट जाने का बड़ा बुरा असर पड़ा। पूरे विश्व में न्यूज़ फ़ैल गयी कि इंडिया का एक और स्पेस मिशन पूरा न हो पाया। बेस कमांडर राजन और उनके सहायक के सिवा कोई नहीं जानता था कि अमन, उस मिशन मून डॉट-1 का लीडर उन्हें मोर्स कोड भेजने की कोशिश कर रहा है पर जो अभी अब तक प्राप्त हुआ है वो अधूरा है। उससे इतना ही पता चलता है कि शिप का फ्यूल टैंक डैमेज हो चुका है।
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कोई 18×20 का विशाल टेंट लगा। ये ख़ास चाँद पर कुछ समय रुकने की स्थिति के लिए डिजाइन किया गया था। इसमें तीन लेयर्स लगाई गयीं। सबसे अन्दर लैब को फिक्स करने और बैटरीज़ सेट करने में 15 घंटे बीत गये। इस टेंट में पाइपलाइन के द्वारा ओक्सीजन की व्यवस्था थी। वहीं टेंट के एक कोने में ओक्सिजन सिलेंडर जोड़ने का प्रावधान था। कार्बन निकालने के लिए मैन्युअल एग्जोस्ट की सुविधा थी। पहली लेयर से बाहर निकलने के बाद दूसरी लेयर तक ओक्सिजन रोकी जाती थी फिर पहली लेयर को जैम पैक करने के बाद ही दूसरी लेयर से निकलकर, तीसरी लेयर से होते हुए बाहर निकल सकते थे।
उस टेंट के अन्दर से देखने पर समझना मुश्किल था कि ये मनाली का कैंप है या चाँद का मिशन टेम्पररी बेस।
जब शिप सबके जाने की बारी आई तो टेंट के अन्दर ही चारों गले मिले।
“सर मुझे अभी भी लगता है कि आपको यहाँ नहीं रुकना चाहिए” श्वेता की आँखों में आंसू थे।
लोकेश और सिद्धार्थ बिलकुल चुप थे।
अमन उसी वक़्त चाँद की धरती पर अपने टेंट के ठीक पास हल्की सी खुदाई करने लगा। सब देखते रहे।
उसने स्पेसशिप में अपने बैग से एक पैकेट निकाला और उसको खोलकर सीधा किया। सिद्धार्थ तुरंत समझ गया। वो टेंट के पास पड़े एलुमिनियम पाइप को ले आया और गड्ढे में फिक्स करने लगा। अमन ने पैकेट खोला तो उसमें तिरंगा था। भारत देश की शान। वो तिरंगा जिसके लिए फौजी हो या एस्ट्रोनौट, किसी की जाने लेने या अपनी क़ुरबानी देने से पहले एक पल नहीं सोचते।
झंडा पाइप में पिरोने के बाद उसके कार्नर पर एलुमिनियम वायर लगा दी जिससे वो तना और फैला हुआ सूरज की रौशनी में अलग ही चमकने लगा।
“श्वेता” अमन बोला “मैं इसके लिए यहाँ रुका हूँ। यहाँ न जाने अभी कितनी स्पेस एजेंसीज़ आयेंगी, कम से कम मेरे रहते तो इसको हाथ लगाने वाला बक्शा नहीं जायेगा”
“वन्दे मातरम” सिद्धार्थ के मुँह से निकला।
सबने एक साथ सुर मिलाया। राष्ट्रगान गाया और वापसी की तैयारी शुरु कर दी।
“सर, आज चाँद की हवा बंद है वर्ना लहरता हुआ झंडा बहुत प्यारा लगता” लोकेश मज़ाक करने से बाज न आया।
“हाहाहा, जैसे नासा मिशन की फोटोज में लहरा रहा था?” अमन ने आँख मारी और झंडे के पास ही खड़ा हो गया।
एक-एक करके तीनों शिप में चढ़ गये
सिद्धार्थ भीगी आँखों से अमन को झंडे के पास खड़े देख रहा था।
लोकेश ने अगले 10 सेकंड्स में इंजन फायर अगले एक घंटे में वो स्पेस में थे और पृथ्वी की तरफ बढ़ रहे थे।
अमन का साया देखते-देखते छोटा होता और फिर गुम हो गया।
स्पेसशिप के निकल जाने के बाद अमन वापस अपने टेंट की ओर बढ़ा तो देख पहले हैरान हुआ और फिर मुस्कुरा दिया, लोकेश ने तय सीमा से ज़्यादा ओक्सिजन सिलेंडर्स रख गया था।
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लोकेश 13% बचे फ्यूल में एक ही तरीके से शिप अर्थ तक पहुँचा सकता था। कि वो अर्थ के ऑर्बिट ज़ोन में घुसकर अर्थ के चक्कर लगाने शुरु कर दे और रोज़ थोड़ा-थोड़ा बूस्ट देकर डायरेक्शन क्लोज़ करता चले।
पांच हफ़्ते बीत गये। पानी अपने अंतिम चरण पर पहुँच गया। श्वेता को ब्रेक डाउन होने लगा। सिद्धार्थ ने पानी की बोतलों पर नज़र मारी, दो ही बची थीं।
“श्वेता कीप ब्रीथिंग” लोकेश हौसला बढ़ाने की कोशिश करने लगा। उसे समझ आ गया कि ऐसे ही चलते रहे तो अभी एक हफ्ता और पृथ्वी तक पहुँचने में लग जायेगा और पानी बड़ी हद दो दिन में बिलकुल ख़त्म हो जायेगा।
लोकेश और सिद्धार्थ की नज़र मिली।
“मैं कुछ कहूँ सर?”
“बिलकुल कहो” लोकेश निर्विकार भाव से बोला। उसने पिछले तीन दिन से पानी नहीं पिया था।
“अगर हम इसी वक़्त बूस्ट देकर ऑर्बिट से कटते हुए अर्थ को ग्रेविटेशनल फोर्स में एंटर कर जायें तो…..”
“असंभव”
“सर आप बात तो सुनिए पूरी”
लोकेश चुप हो गया
“हम इस फ्यूल के भरोसे अर्थ की ग्रेविटी में घुसते ही थ्रस्टर एक्टिव करते हैं तो वो दस मिनट के अन्दर ख़त्म हो जायेंगे। अगर हम फ्लोर से पांच सौ मीटर ऊपर लास्ट मोमेंट पर ऑन करते हैं तो बैलेंस नहीं कर पायेंगे”
“और यहीं सारा बर्बाद करके अर्थ की ग्रेविटेशनल फोर्स में एक बारगी एंटर कर भी गये तब क्या करेंगे?”
“एग्जिट”
“मतलब?”
“अर्थ लेयर एक्सोसफेयर और थर्मोसफेयर को को क्रॉस करते ही शिप बर्न होना शुरु हो जायेगा। बस हमें उसके बाद ही इसे छोड़कर पैराशूट लेकर निकलना होगा”
“गलत” तबसे पहली बार श्वेता बोली
“सुना” लोकेश ने सिद्धार्थ की तरफ देखा
“ग़लत उसका प्लान नहीं है लोकेश, वो सही कह रहा है कि हम इतना इंतेज़ार नहीं कर सकते”
“तो फिर ग़लत क्या है?”
श्वेता ने गले पर हाथ फेरा और बोली “ग़लत है थर्मोसफेयर के बाद निकलना। तीन-चार सौ किलोमीटर से नीचे हम कभी पहुँच ही नहीं पायेंगे अगर पैराशूट खोल देंगे, अगर पैराशूट नहीं खोलेंगे तो सूट पर बर्फ जमने लग जायेगी”
“फिर हमें क्या करना चाहिए?” सिद्धार्थ ने पूछा
“फिर हमें स्ट्रेटॉसफेयर में एंटर करने के बाद,यानी करीब 30 किलोमीटर रहते निकलना चाहिए ताकि देर से ही सही पर लैंड हो सकें”
“मुझे अभी भी लगता है कि हम एक हफ्ता और जैसे-तैसे काट लें तो सॉफ्ट लैंडिंग कर सकते हैं। ये शिप बर्बाद करने से सैंपल्स भी तो नष्ट हो जायेंगे कि नहीं?” लोकेश दोनों का चेहरा ताकता हुआ बोला
“लोकेश सर, अगर फिर भी एग्जिट करने की नौबत आयी तो हमारे शरीर में इतनी जान भी नहीं बची होगी जितनी अब है”
“लोकेश मैं लोकेशन सेट कर रहीं हूँ ताकि हम इधर-उधर भटकने की बजाए इंडिया, बल्कि साउथ इंडिया में ही ड्रॉप हों, अब इस डिसिशन पर कोई बहस नहीं” श्वेता ने कमांड अपने हाथ में लेते हुए कहा।
“वेट” सिद्धार्थ बोला, दोनों की नज़र उसकी ओर गयी।
“मैं अपने सूट के अन्दर सैंपल्स रख लेता हूँ”
लोकेश ने अपनी गर्दन को खम दिया। सामने पृथ्वी बहुत विशालकाय लग रही थी मानों अभी कुछ ही मिनट्स में वो लोग नीले गोले से टकरा जायेंगे।
तीनों अपनी जगह पर फिक्स होकर बैठ गये। लोकेश ने बूस्ट किया, श्वेता ने डायरेक्शन दिया, सिद्धार्थ ने प्रार्थना की।
वो तेज़ी से ऑर्बिट काटते हुए पृथ्वी की तरफ बढ़ने लगे। सारा फ्यूल एक झटके में फुंक गया। गति जितनी तेज़ी से बढ़ी थी उतनी ही तेज़ी से कम हुई।
लेकिन अब भी वो ग्रेविटी में एंटर नहीं कर पाए
“शिट, ये नहीं होना था” लोकेश के मुँह से निकला।
शिप तेज़-तेज़ अपनी ही जगह पर घूमने लगा। लोकेश और श्वेता का कण्ट्रोल छूटने लगा। उन्हें लगा वो पृथ्वी के के चक्कर काटने वाले हैं पर ग्राविटेशनल पुल का अचानक एक झटका लगा और उनका शिप चकराते हुए तेज़ी से नीचे गिरने लगा।
“स्पीड और रोटेशन आउट ऑफ कण्ट्रोल है, हमने सीट से डिटैच हुए नहीं कि पूरे शिप से टकराते फिरेंगे”
श्वेता का सिर तेज़ी से घूम रहा था। डिस्टेंस बहुत तेज़ी से कम होता जा रहा था।
“इम्पैक्ट स्टेटस क्या है?” श्वेता जैसे तैसे बोल पाई
“कुछ समझ नहीं आ रहा, कुछ दिखाई नहीं दे रहा”
शिप का बाहरी हिस्सा जलने लगा। शिप के अन्दर भी हीट बढ़ने लगी।
“ऐसे दो मिनट और बैठे रहे तो हम बर्स्ट हो जायेंगे, सर, कुछ करिए” सिद्धार्थ की घबराती आवाज़ आई।
लोकेश ने खुद को डिटैच कर जैसे ही हिला, एक झटके ने उसे शिप के पिछले हिस्से में फेंक दिया, वो बुरी तरह इधर-उधर टकराने लगा।
श्वेता ने भी खुद को डिटैच किया लेकिन बेल्ट नहीं छोड़ी। वो स्क्रीन और मशीनरी से टकराती रही लेकिन अपनी पोजीशन से नहीं हिली।
उसने एग्जिट डोर की तरफ टारगेट करके खुद को पुश किया।
राह चलते लोगों के लिए एक अजीब नज़ारा था। मानों कोई चाँद टूटकर धरती पर गिर रहा हो।
“सिद्धार्थ खुद को डिटैच करो फ़ौरन”
ठीक उसी वक़्त श्वेता ने डोर ओपन कर दिया। दरवाज़ा ज़बरदस्त वेग के साथ शिप से अलग हो गया। श्वेता एयर प्रेशर के झटके से तुरंत बाहर ही उड़ गयी। सिद्धार्थ की आँखों के सामने-सामने शिप की इंटरनल मशीनरीज़ ने आग पकड़ ली।
लोकेश जैसे तैसे दरवाज़े तक पहुँचने की कोशिश कर रहा था पर एयर प्रेशर उसे रोक रहा था।
सिद्धार्थ ने लोकेश की तरफ खुद को झोंका और उसका हाथ पकड़ लिया। अगले ही सेकंड शिप ब्लास्ट हो गया। टुकड़े यहाँ-वहाँ गिरने लगे।
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कोई ढाई घंटे बाद वो आँध्रप्रदेश का कोई गाँव था जहाँ श्वेता पैराशूट लिए लैंड हुई। शाम का समय था। बच्चे उसे देखते ही पीछे लग गये। जैसे तैसे वो पास के पुलिसस्टेशन पहुँची। इतने दिनों से न्यूज़ चल ही रही थी इसलिए सब जानते थे ये मिशन मून डॉट के अन्तरिक्ष यात्री हैं। मिडिया को ख़बर मिलने से पहले ही पुलिस वालों की मदद से वो पहले चेन्नई फिर वहाँ से शिरीहरिकोटा के लिए रवाना हो गयी।
इसरो टीम बेसब्री से उसका इंतेज़ार कर रहे थे। डॉक्टर राजन खुद श्वेता को रिसीव करने आये।
“सॉरी सर, मिशन की इफ्नोर्म…”
“बाद में बाद में” उन्होंने टोका। अभी तो आई हो, मिशन डिटेल्स की कोई जल्दी नहीं”
“लेकिन सर, अमन सर तो वहीं…”
“आई नो, आई नो” डॉक्टर राजन ने कहा और श्वेता के आगे-आगे चलने लग गये।
श्वेता सख्त हैरान हुई।
“अमन मुझे पर्सनली सिंगल्स भेज रहा है, सिर्फ उसे मैंने इमरजेंसी के लिए ये इंस्ट्रक्शन्स दी थीं”
“ओह्ह..” श्वेता के मुँह से निकला। तब तक वो लोग सेंट्रल कण्ट्रोल सिस्टम हॉल तक पहुँच चुके थे। एक ग्लास के केबिन में उसकी नज़र गयी। अन्दर नर्सेस के बीच उसे सिद्धार्थ दिखाई दिया।
“सर ये तो….” श्वेता आगे कुछ न बोल पाई
“ये तुमसे कुछ देर बाद शिप से निकल पाए थे, इसलिए जल्दी लैंड हो गये। फिर चेन्नई से कदरन पास हुए इसलिए।।”
श्वेता सिद्धार्थ के सामने जा खड़ी हुई तो सिद्धार्थ मुस्कुराने लगा। वो उठने की हालत में नहीं था
“हुआ क्या तुम्हें?”
जवाब डॉक्टर राजन ने दिया “बॉडी बर्न हो गयी है। कुछ दिनों में ठीक हो जायेगा, पर अच्छी बात ये है कि इसने सैंपल्स सही सलामत बचा लिए हैं, लैब में टेस्ट के लिए गये हैं”
“और लोकेश?”
“वो हॉस्पिटलाइज़ है। उसके मल्टीप्ल फ्रैक्चर हुए हैं। लेकिन गुड न्यूज़ ये है कि ज़िन्दा है”
“ओह नो” श्वेता की आँखें भर आईं।
“ओह यस कहो श्वेता, कि आज इस स्पेससूट की क्वालिटी की वजह से शिप ब्लास्ट होने के बावजूद ये लोग कम से कम ज़िन्दा तो बच गये। कल्पना चावला और उनकी टीम के साथ भी यही हादसा हुआ था पर…..” डॉक्टर राजन ने बात आधूरी छोड़ दी और आगे निकल गये।
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रात को इन सारी बातों से बेखबर सिद्धार्थ की माँ छत पे खड़ी चाँद निहार रही थीं। उनकी आँखों में उदासी थी कि उसी वक़्त एक बच्चा उनके पास मोबाइल लेकर आया और ख़ुशी की किलकारियां मारता बोला “सिद्धार्थ भैया का फोन है, वो वापस आ चुके हैं। लो अम्मा बात करो”
कान से फोन लगाते ही माँ रो पड़ी।
“बेटा कबसे तेरी राह में चाँद को तकी जा रही हूँ”
“माँ तेरा बेटा तो आ गया पर, एक और बेटा है जो अभी वहीं है, उसका भी इंतेज़ार करना है माँ, हम तुम मिलकर करेंगे”
माँ ज़रा असमंजस में हुई “वो किसका बेटा है रे?”
सिद्धार्थ ने तुरंत जवाब दिया “इस देश का”
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#सहर
Note – इस कहानी में टेक्निकल पॉइंट्स पर लिखी गयी सारी बातें सही हैं, रिसर्च करने के बाद ही लिखी गयी हैं। हर एक फैक्ट को nasa और isro की ऑफिसियल वेबसाईट से वरिफाई किया जा सकता है। लेकिन मार्कIII-D2 अभी उपयोग में नहीं आया है, वो कल्पना की उपज है और कहानी को 28 दिन के चक्र में फिट करने के लिए गढ़ा गया है। इन सारे फैक्ट्स के बावजूद ये फिक्शन वर्क ही है।
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