अभी-अभी बस पानी थमा ही है और अभी-अभी कानन उसके होटल के कमरे से अस्वीकृता लौटी है. कानन ने इसे तिरस्कार समझा, लेकिन स्वयं उसने क्या समझा, यह वह भी नहीं जानता. अभी तो कुर्सी की गीली गद्दी की सलवटें तक यथावत हैं. साँझ बहुत पूर्व ही हो चुकी थी, बल्कि कहना चाहिए कि […]
दिल्ली में एक सुल्तान थे सिकंदर लोदी। उनके एक छोटे भाई थे आलम खाँ। उनकी एक बेटी थी, जिसका नाम था गुलनार। गुलनार बेहद खूबसूरत थी। इतनी…जितना – ‘त्योहारों में घर चाहे जितना सजा लो, एक लड़की बिना हमेशा सजावट अधूरी। लड़की से ही घर की सबसे बड़ी सुंदरता है। चाहे झोपड़ी ही क्यों न हो। और महल […]
बुढ़ापे में चलने की ताकत भी कहाँ बची थी। पर नफीसा आज रुक भी तो नहीं सकती थी। आखिर उसने बड़ी मुश्किल और जद्दोजहद के बाद यह ठाना था। हाँफते लड़खड़ाते उसके कदम बस मंजिल तक पहुँचकर ही दम लेना चाहते थे। मंजिल….इसे लेकर भी तो नफीसा निश्चिंत नहीं थी। सोच रही थी….पता नहीं वहाँ […]
मैं पीजी में मौजूद अपने कमरे में दाखिल हुआ और दरवाजा बंद करके उसकी चटखनी लगाकर अपनी धौकनी सी चलती साँसों को काबू में लाने की कोशिश करने लगा। “क्या हुआ”,शेखर ने अपने फोन से नजरें उठाकर मेरी तरफ देखा। शेखर मेरा रूम मेट था। हम कॉलेज के वक्त से ही दोस्त थे और अब […]
यश खांडेकर ने महलनुमा इमारत को ध्यान से देखा। शाम के वक्त हल्की बारिश में पुराने जमाने की वह इमारत भूतिया प्रतीत हो रही थी। इमारत की सभी खिड़कियाँ बंद थी। बाहर से यह कहना असंभव था कि वह किसी पार्टी का आयोजन स्थल है। वह वहाँ किशोरचंद राजपूत के निमंत्रण पर पहुँचा था। अपने […]
“प्रभु आये हैं द्वार पर साम्राज्ञी और प्रथम भिक्षा वे आप से ही चाहते हैं आज!” दासी की आवाज़ भर्राई हुयी थी और आँखों से आंसू टप टप टपक रहे थे मगर वो ये देख कर मन ही मन आश्चर्यचकित भी थी कि रानी यशोधरा की आँख में एक भी आंसू न था. हाँ कहीं […]
प्रोफेसर को वो साढ़े तीन शब्द अपने कानों में मिश्री की तरह घुलते महसूस हुए। उसने नाक पर थोड़ा नीचे ढुलक आए चश्में को ठीक किया और गर्दन उठाकर सामने देखा। एक अल्हड़ युवती, शालीनता की प्रतिमूर्ति बनी उसके सामने हाथ जोड़कर खड़ी थी।
एक सुंदर युवती, प्रात:काल, गाँधी-पार्क में बिल्लौर के बेंच पर गहरी नींद में सोयी पायी जाय, यह चौंका देने वाली बात है। सुंदरियाँ पार्कों में हवा खाने आती हैं, हँसती हैं, दौड़ती हैं, फूल-पौधों से खेलती हैं, किसी का इधर ध्यान नहीं जाता; लेकिन कोई युवती रविश के किनारे वाले बेंच पर बेखबर सोये, यह […]
घंटी की आवाज सुनते ही खेल के मैदान में भगदड़ मच गई. लड़के खेल छोड़कर अपने कमरों की और भागे. अशोक तो ‘कबड्डी-कबड्डी’ करता हुआ ही अपने कमरे में पहुँच गया. डेस्क के नीचे पड़े हुए जूते पहनने के लिए वह जैसे ही झुका, उसकी नजर अपनी पुस्तक पर पड़ी. पुस्तक औंधे मुँह पड़ी थी. […]